घरेलु और व्यवसायिक वायरिंग के प्रकार | Types of Home and commercial wiring
घरेलु अथवा व्यवसायिक स्तर पर निम्न 7 प्रकार की वायरिंग की जाती है |
1. कन्ड्यूट वायरिंग ( तार नली वायरिंग ) | Conduit wiring
2. कन्सील्ड वायरिंग ( भूमिगत वायरिंग ) | Consealed wiring ( Underground wiring )
3. बैटन वायरिंग | Batten wiring
4. लैड शीथ्ड वायरिंग | Lead sheathed wiring
5. केसिंग-केपिंग वायरिंग | Casing-caping wiring
6. फ्लेक्सिबल केबल वायरिंग | Flexible cable wiring
7. क्लीट वायरिंग | Cleat wiring
Types of Home and commercial wiring
1. कन्ड्यूट वायरिंग ( तार नली वायरिंग ) | Conduit wiring

यह एक स्थाई वायरिंग है | कन्ड्यूट वायरिंग को ‘तार नली वायरिंग’ भी कहते हैं क्योंकि इस वायरिंग में धातु अथवा PVC पाइप में तारों की स्थापना की जाती है | इन पाइपों को कन्ड्यूट पाइप कहा जाता है | इस वायरिंग को दीवार के ऊपर किया जाता है | इस प्रकार की वायरिंग निम्न व मध्य वोल्टता के लिए की जाती है | यह वायरिंग अधिकतर कार्यशाला तथा कारखानों में की जाती है क्योंकि तार, कन्ड्यूट पाइप के अन्दर होने के कारण बाहरी आघातों से सुरक्षित होते हैं |
कन्ड्यूट पाइप वायरिंग हेतु आवश्यक सामग्री:-
1. कन्ड्यूट पाइप- ये 18 से 22 गेज की चादर से बनाये जाते हैं व इनका व्यास 16mm से 65mm तक होता है लेकिन साधारणतः 35mm तक के पाइपों का उपयोग ही किया जाता है | ये 3 मीटर लम्बाई में आते हैं | कन्ड्यूट पाइप निम्न चार प्रकार के होते हैं :-
a. पी.वी.सी. कन्ड्यूट पाइप ( PVC Condute pipe )
b. लोह कन्ड्यूट पाइप ( Iron condute pipe )
c. नम्य पी.वी.सी. कन्ड्यूट पाइप ( Flexible PVC condute pipe )
d. नम्य लोह कन्ड्यूट पाइप ( Flexible Iron condute pipe )
आवश्यकता के अनुसार उपरोक्त चारों प्रकार के पाइपों से वायरिंग की जाती है जैसे कारखानों आदि में जहां बाहरी आघात व आग लगने की सम्भावना होती है व यांत्रिक सुरक्षा आवश्यक होती है वहां लोह कन्ड्यूट पाइप का उपयोग किया जाता है तथा अन्य कारखानों व घरों में PVC कन्ड्यूट पाइप का उपयोग किया जाता है | जहां वायरिंग में कई मोड़ हों अथवा बार-बार वायरिंग को मोड़ने की आवश्यकता हो वहां नम्य कन्ड्यूट पाइप ( Flexible condute pipe ) का उपयोग किया जाता है |
लोह कन्ड्यूट पाइप के साथ अन्य सामग्री जैसे जंक्शन बॉक्स, बोर्ड, बैंड, एल्बो इत्यादि भी लोहे के प्रयोग किये जाते हैं तथा PVC पाइप के साथ अन्य सामग्री भी PVC की प्रयोग की जाती है |
2. सॉकेट- दो पाइपों को जोड़ने के लिए सॉकेट का उपयोग किया जाता है | ये लोहे व PVC दोनों प्रकार के होते हैं |
3. जंक्शन बॉक्स- तारों के जोड़ पर जंक्शन बॉक्स लगाये जाते हैं | ये दो-तरफ़ा (Two-way), तीन-तरफ़ा (Three-way) तथा चार-तरफ़ा (Four-way) प्रकार के होते हैं | जंक्शन बॉक्स में तार के जोड़ लगाकर ऊपर से कवर लगा दिया जाता है | जंक्शन बॉक्स 12mm, 19mm तथा 25mm माप के प्रयोग किये जाते हैं | ये भी लोहे अथवा PVC के होते हैं |
4. बोर्ड- लगाये जाने वाले स्विच सॉकेट इत्यादि के अनुसार बोर्ड के आकार का चयन किया जाता है |
5. एल्बो- कन्ड्यूट पाइप को 90° पर मोड़ने के लिए एल्बो का उपयोग किया जाता है |
6. बैंड- बैंड को भी 90° के मोड़ पर प्रयोग किया जाता है लेकिन इसका मोड़ अधिक गोल होता है जिससे तार डालने में आसानी होती है |
7. टी- “T” प्रकार के जोड़ पर इसका प्रयोग किया जाता है |
8. कन्ड्यूट बुश- पाइप में से तारों को खींचते समय तारों की इंसुलेशन ख़राब होने की सम्भावना होती है | अतः इससे बचने के लिए पाइप के मुख पर प्लास्टिक अथवा लकड़ी की बनी बुश लगा दी जाती है |
9. सैडल- दीवार पर कन्ड्यूट पाइप को कसने के लिए सैडल का का प्रयोग किया जाता है | पाइप के व्यास के अनुसार सैडल का चयन किया जाता है |
10. तार- आवश्यकता के अनुसार तारों का माप लिया जाता है जैसे 0.5mm, 0.75mm, 1mm, 2mm, 2.5mm, 4mm, 6mm इत्यादि
11. रावल प्लग अथवा लकड़ी की गिट्टी
12. पेंच
नोट- ऊपर दिए गए सॉकेट, एल्बो, बैंड व टी साधारण प्रकार तथा निरिक्षण प्रकार के होते हैं | निरिक्षण प्रकार में ऊपर एक ढक्कन दिया होता है जिसे खोलकर तारों की जाँच की जा सकती है |
वायरिंग करने की विधि-
1. सर्वप्रथम स्थान के आधार पर वायरिंग का ले-आउट बनाया जाता है |
2. ले-आउट के अनुसार वायरिंग के सामान का अनुमान लगाया जाता है |
3. कन्ड्यूट पाइप लगाने के लिए लकड़ी की गिट्टी अथवा रावल प्लग लगाये जाते हैं |
4. सैडलों की सहायता से कन्ड्यूट पाइप स्थापित कर दिए जाते हैं |
5. जंक्शन बॉक्स, बोर्ड, बैंड, एल्बो, सॉकेट, टी व कन्ड्यूट बुश आदि लगा दिए जाते हैं |
6. फिश तार की सहायता से वायरिंग के ताम्बे अथवा एल्युमीनियम के तारों को कन्ड्यूट पाइपों में स्थापित कर दिया जाता है |
7. आवश्यक विधुत सहायक सामग्री (जैसे- स्विच, सॉकेट, बल्ब होल्डर, प्लग टॉप, सीलिंग रोज, फ्यूज, सर्किट ब्रेकर, बोर्ड शीट इत्यादि) लगा दी जाती है |
8. वायरिंग के आवश्यक परीक्षण किये जाते हैं (जिनका विवरण “वायरिंग के विभिन्न परीक्षण” नामक एक अन्य पोस्ट में किया गया है)
9. परीक्षण सफल होने के पश्चात् विधुत सप्लाई चालू कर दी जाती है |
कन्ड्यूट पाइप वायरिंग के गुण :-
1. यह वायरिंग बाहरी आघातों अथवा यांत्रिक आघातों से सुरक्षित होती है |
2. यह वायरिंग अग्नि से सुरक्षित होती है |
3. यह वायरिंग वर्षा व पानी से सुरक्षित होती है |
कन्ड्यूट पाइप वायरिंग के अवगुण :-
1. इस वायरिंग का स्थापना मूल्य अधिक होता है |
2. बरसात के मौसम में पाइपों में पानी जाने की स्थिति में दोष उत्पन्न होने की सम्भावना होती है |
3. दोष खोजना कठिन होता है |
4. वायरिंग करने के लिए अनुभवी विधुत्कार की आवश्यकता होती है |
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2. कन्सील्ड वायरिंग ( भूमिगत वायरिंग ) | Consealed wiring ( Underground wiring )

कन्सील्ड वायरिंग एक स्थाई वायरिंग है | इस वायरिंग में मकान बनने पर प्लास्टर होने से पूर्व ही दीवार में खांचे काटकर पाइप, बॉक्स व अन्य सहायक सामग्री को स्थापित कर दिया जाता है तथा ऊपर से प्लास्टर कर दिया जाता है | प्लास्टर होने के बाद पाइपों में तार स्थापित कर अन्य सामग्री जैसे स्विच, सॉकेट, सीलिंग रोज, इंडिकेटर, फ्यूज, होल्डर, MCB इत्यादि को स्थापित कर दिया जाता है | अतः दीवार के अन्दर होने के कारण इसे कन्सील्ड वायरिंग या भूमिगत वायरिंग कहा जाता है | यह दीवार में छिपी होने के कारण मकान सुन्दर दिखता है |
आवश्यक सामग्री- कन्सील्ड वायरिंग में भी वो ही सामग्री लगती है जो कन्ड्यूट वायरिंग में लगती है- जैसे- कन्ड्यूट पाइप, सॉकेट, जंक्शन बॉक्स, बोर्ड, एल्बो, बैंड, टी, कन्ड्यूट बुश, सैडल, तार, पेंच इत्यादि, लेकिन ये सामग्री भूमिगत प्रकार की होती है |
वायरिंग करने की विधि-
1. सर्वप्रथम स्थान के आधार पर वायरिंग का ले-आउट बनाया जाता है |
2. ले-आउट के अनुसार वायरिंग के सामान का अनुमान लगाया जाता है |
4. खांचों में लोहे के हुकों की सहायता से पाइप, बॉक्स व अन्य सहायक सामग्री को स्थापित कर दिया जाता है
5. अब दीवार पर प्लास्टर होने व सूखने के पश्चात् फिश तार की सहायता से वायरिंग के ताम्बे अथवा एल्युमीनियम के तारों को कन्ड्यूट पाइपों में स्थापित कर दिया जाता है |
6. आवश्यक विधुत सहायक सामग्री (जैसे- स्विच, सॉकेट, बल्ब होल्डर, प्लग टॉप, सीलिंग रोज, फ्यूज, सर्किट ब्रेकर, बोर्ड शीट इत्यादि) लगा दी जाती है |
7. आवश्यक कनेक्शन कर दिए जाते हैं |
8. वायरिंग के आवश्यक परीक्षण किये जाते हैं (जिनका विवरण “वायरिंग के विभिन्न परीक्षण” नामक एक अन्य पोस्ट में किया गया है)
9. परीक्षण सफल होने के पश्चात् विधुत सप्लाई चालू कर दी जाती है |
कन्सील्ड / भूमिगत वायरिंग के गुण :-
1. इसकी उम्र लम्बी होती है |
2. बाहरी वातावरण, आग व बाहरी आघातों से वायरिंग सुरक्षित रहती है |
3. तार अधिक संख्या में लगाये जा सकते हैं |
4. मकान सुन्दर दिखता है |
कन्सील्ड / भूमिगत वायरिंग के अवगुण :-
1. इस वायरिंग का रखरखाव करना एक कठिन कार्य है |
2. दोष खोजना कठिन होता है |
3. स्थापना महंगी होती है |
4. वायरिंग में पानी भरने की स्थिति में पानी निकालना कठिन होता है |
5. भविष्य में वायरिंग का विस्तार करना कठिन होता है |

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3. बैटन वायरिंग | Batten wiring
बैटन वायरिंग एक स्थाई वायरिंग है | एक लकड़ी की पट्टी पर तारों की स्थापना की जाती है जिसे बैटन कहते हैं | बैटन का उपयोग होने के कारण इसे बैटन वायरिंग कहते हैं | इस वायरिंग में CTS (Cab tyre sheathed) अथवा TRS (Tough rubber sheathed) केबल का उपयोग किया जाता था इसलिए इस वायरिंग को CTS अथवा TRS वायरिंग भी कहा जाता है, लेकिन इन केबलों के साथ-साथ अब इस वायरिंग का चलन भी बंद हो चूका है | बैटन की चोड़ाई तारों की संख्या के अनुसार ली जाती है | इसमें उपयोग होने वाले तार वातावरण रोधी (Weather proof) होने चाहियें, क्योंकि ये बैटन के ऊपर खुली अवस्था में होते हैं |
आवश्यक सामग्री-
1. बैटन
2. रावल प्लग अथवा लकड़ी की गिट्टी
3. बैटन पर लगने वाली ‘जॉइंट लिंक क्लिप’
4. स्विच बोर्ड व राउंड ब्लॉक
5. कील व पेंच
6. आवश्यक सहायक सामग्री जैसे- स्विच, सॉकेट, सूचक, होल्डर, सीलिंग रोज, फ्यूज इत्यादि |
7. तार
वायरिंग करने की विधि-
1. सर्वप्रथम वायरिंग का ले-आउट बनाया जाता है |
2. ले-आउट के अनुसार 60 से.मी. से 75 से.मी. की दूरी पर रावल प्लग अथवा लकड़ी की गिट्टी लगाईं जाती हैं |
3. लकड़ी की बैटन पर कीलों की सहायता से लिंक क्लिप लगाई जाती हैं |
4. बैटन को पेचों की सहायता से रावल-प्लग अथवा लकड़ी की गिट्टीयों पर लगा दिया जाता है |
5. बैटन पर लिंक क्लिपों की सहायता से तारों को स्थापित कर दिया जाता है |
6. राउंड ब्लॉक व स्विच बोर्ड को पेचों की सहायता से स्थापित कर दिया जाता है |
7. आवश्यक विधुत सहायक सामग्री (जैसे- स्विच, सॉकेट, बल्ब होल्डर, सीलिंग रोज, फ्यूज, सर्किट ब्रेकर, बोर्ड शीट इत्यादि) लगा दी जाती हैं |
8. आवश्यक कनेक्शन कर दिए जाते हैं |
9. वायरिंग के आवश्यक परीक्षण किये जाते हैं (जिनका विवरण “वायरिंग के विभिन्न परीक्षण” नामक एक अन्य पोस्ट में किया गया है)
10. परीक्षण सफल होने के पश्चात् विधुत सप्लाई चालू कर दी जाती है |
1. वायरिंग में आने वाले मोड़ों को समकोण में ना रखकर गोलाकार रखना चाहिए जिससे तार टूटने की सम्भावना ना रहे |
2. पेंचों को हथोड़ी से नहीं ठोकना चाहिए अपितु पेचकस से कसना चाहिए |
3. दीवार में से वायरिंग को आर-पार निकालते समय दीवार में कन्ड्यूट पाइप लगाने चाहियें |
4. बैटन और स्विच बोर्ड लगाकर वायरिंग पर एनेमल पेंट करना चाहिए |
बैटन वायरिंग के गुण :-
1. नमी में जंग लगने की सम्भावना नहीं होती |
2. सुन्दर लगती है |
3. सस्ती होती हैं |
4. वायरिंग खुली होने के कारण दोष खोजना आसान होता है |
बैटन वायरिंग के अवगुण :-
1. वायरिंग पर गंदगी अधिक जमती है जिसे साफ़ करना कठिन कार्य है |
2. तार अधिक लगता है, क्योंकि खुले में जोड़ नहीं दिए जाते |
3. आग से सुरक्षित नहीं होती |
4. लैड शीथ्ड वायरिंग | Lead sheathed wiring
लैड शीथ्ड वायरिंग एक स्थाई वायरिंग है | यह वायरिंग बैटन वायरिंग ही होती है लेकिन इसमें पी.वी.सी. कवर्ड तार के स्थान पर लैड कवर्ड पी.वी.सी. तार/केबल लगाया जाता है जिससे ये तार बाहरी आघातों से सुरक्षित रहता है तथा ‘लैड कवर’ अर्थिंग का कार्य भी करता है जिससे अलग से अर्थ तार डालने की आवश्यकता नहीं होती है |
आवश्यक सामग्री- वायरिंग में केवल तार/केबल को छोड़कर अन्य सामग्री बैटन वायरिंग के समान ही प्रयोग की जाती है, जिसका विवरण बिंदु संख्या 3 में दिया गया है |
लैड शीथ्ड वायरिंग करने की विधि- लैड शीथ्ड वायरिंग करने की विधि बैटन वायरिंग के सामान ही है, जिसका विवरण बिंदु संख्या 3 में दिया गया है |
लैड शीथ्ड वायरिंग के गुण :-
1. लैड कवर्ड पी.वी.सी. तार/केबल लगाने के कारण ये बाहरी आघातों से सुरक्षित होती है |
2. तार/केबल आग से सुरक्षित होते हैं |
3. लैड कवर्ड पी.वी.सी. तार/केबल बाहरी वातावरण तथा नमी से सुरक्षित होते हैं |
लैड शीथ्ड वायरिंग के अवगुण :-
1. लैड कवर्ड पी.वी.सी. तार/केबल महंगे होते हैं |
2. इसकी आयु कम होती है
3. स्थापना के समय सावधानी की आवश्यकता होती है क्योंकि तार में तीक्ष्ण मोड़ देने पर टूटने की सम्भावना होती है |
4. रासायनिक पदार्थों से सुरक्षित नहीं है
5. केवल निम्न वोल्टेज (250V तक) में ही उपयोगी है
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5. केसिंग-केपिंग वायरिंग | Casing-caping wiring
केसिंग-केपिंग वायरिंग एक स्थाई वायरिंग है | केसिंग-केपिंग वायरिंग दो प्रकार की होती है :-
1. लकड़ी की केसिंग-केपिंग वायरिंग | Wooden Casing-caping wiring
2. पी.वी.सी. केसिंग-केपिंग वायरिंग | P.V.C. Casing-caping wiring
1. लकड़ी की केसिंग-केपिंग वायरिंग | Wooden Casing-caping wiring
केसिंग-केपिंग टीक/सागोन की लकड़ी से बनी होती है | केसिंग में तार स्थापित करने के लिए दो खांचे होते हैं तथा तारों को ढकने के लिए ऊपर से केपिंग लगा दी जाती है |
लकड़ी की केसिंग-केपिंग वायरिंग का चलन वर्तमान में बंद हो चूका है, इसका स्थान PVC केसिंग-केपिंग वायरिंग ने ले लिया है |
आवश्यक सामग्री-
4. आवश्यक सहायक सामग्री जैसे- स्विच, सॉकेट, सूचक, होल्डर, सीलिंग रोज, फ्यूज इत्यादि |
5. तार (20 SWG)
6. पेंच
वायरिंग करने की विधि-
1. सर्वप्रथम वायरिंग का ले-आउट बनाया जाता है |
2. ले-आउट के अनुसार दीवार पर 60 से.मी. से 75 से.मी. की दूरी पर रावल प्लग अथवा लकड़ी की गिट्टी लगाईं जाती हैं |
3. केसिंग को पेचों की सहायता से रावल-प्लग अथवा लकड़ी की गिट्टीयों पर लगा दिया जाता है |
4. राउंड ब्लॉक व स्विच बोर्ड को पेचों की सहायता से स्थापित कर दिया जाता है |
8. आवश्यक कनेक्शन कर दिए जाते हैं |
10. परीक्षण सफल होने के पश्चात् विधुत सप्लाई चालू कर दी जाती है |
लकड़ी की केसिंग-केपिंग वायरिंग के गुण :-
1. नमी में जंग लगने की सम्भावना नहीं होती |
2. सुन्दर लगती है |
3. न्यूट्रल व फेज तार अलग-अलग होने के कारण लघु-पथन (Short-circuit) होने की सम्भावना कम होती है
4. केपिंग द्वारा तार ढके होने के कारण वायरिंग यांत्रिक चोटों से सुरक्षित होती है |
लकड़ी की केसिंग-केपिंग वायरिंग के अवगुण :-
1. वायरिंग में दोष खोजना थोड़ा कठिन कार्य होता है |
2. आग से सुरक्षित नहीं होती |
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2. पी.वी.सी. केसिंग-केपिंग वायरिंग | P.V.C. Casing-caping wiring

पी.वी.सी. केसिंग-केपिंग वायरिंग एक स्थाई वायरिंग है | इस वायरिंग में नीचे केसिंग तथा उसके ऊपर केपिंग लगाई जाती है | केसिंग-केपिंग में केवल एक चौड़ा खांचा होता है तथा ये PVC की बनी होती हैं | तारों की संख्या के अनुसार केसिंग-केपिंग की माप का निर्धारण किया जाता है जो समान्यतः 20mmx35mm तथा 20mmx50mm की माप में आती हैं | खुली वायरिंग में ये वायरिंग सर्वाधिक की जाती है |
आवश्यक सामग्री-
4. पी.वी.सी. के L जोड़, T जोड़, कार्नर जोड़ इत्यादि
6. तार
7. पेंच
वायरिंग करने की विधि-
1. सर्वप्रथम वायरिंग का ले-आउट बनाया जाता है |
2. ले-आउट के अनुसार रावल प्लग लगाये जाते हैं |
3. केसिंग को पेचों की सहायता से रावल-प्लगों पर कस दिया जाता है |
4. राउंड ब्लॉक व स्विच बोर्ड को पेचों की सहायता से स्थापित कर दिया जाता है |
8. आवश्यक कनेक्शन कर दिए जाते हैं |
9. वायरिंग के आवश्यक परीक्षण किये जाते हैं (जिनका विवरण “वायरिंग के विभिन्न परीक्षण” नामक एक अन्य पोस्ट में किया गया है)
10. परीक्षण सफल होने के पश्चात् विधुत सप्लाई चालू कर दी जाती है |
पी.वी.सी. केसिंग-केपिंग वायरिंग के गुण :-
1. नमी में जंग लगने की सम्भावना नहीं होती |
2. सुन्दर लगती है |
4. केपिंग द्वारा तार ढके होने के कारण वायरिंग यांत्रिक चोटों से सुरक्षित होती है |
4. केपिंग में पेंच लगाने की आवश्यकता नहीं होती इसलिए केपिंग हटाकर निरिक्षण करना भी आसान होता है |
पी.वी.सी. केसिंग-केपिंग वायरिंग के अवगुण :-
1. इसकी आयु कम होती है
2. बाहरी आग से सुरक्षित नहीं होती |
3. लघु पथन से आग लगने की सम्भावना अधिक होती है |
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6. फ्लेक्सिबल केबल वायरिंग | Flexible cable wiring
फ्लेक्सिबल केबल वायरिंग एक अस्थाई (Temporary) वायरिंग है | ये वायरिंग थोड़े समय के लिए की जाती है जैसे किसी मैले, उत्सव, त्यौहार, समारोह आदि के लिए | कुछ समय बाद आवश्यकता ख़त्म होने के बाद इस वायरिंग को हटा दिया जाता है | इस वायरिंग में किसी भी फ्लेक्सिबल केबल/तार का उपयोग किया जाता है | इसमें मेन स्विच व फ्यूज के बाद केबल को दीवारों पर सीधे ही कीलों व हुकों की सहायता से स्थापित कर दिया जाता है |
इस वायरिंग में ट्री प्रणाली का उपयोग किया जाता है जिसमे कहीं भी आवश्यकता होने पर तार को काटकर उसमे शाखा बनाकर अन्य तार जोड़कर पी.वी.सी. टेप लगा दी जाती है | इस वायरिंग में फ्लेक्सिबल केबल, बैड स्विच, तथा पेंडेंट होल्डर इत्यादि का प्रयोग किया जाता है |
फ्लेक्सिबल केबल वायरिंग के गुण :-
1. वायरिंग खुली होने के कारण इसमें दोष खोजना आसान होता हैं |
2. सस्ती होती है |
3. शीघ्रता से की जा सकती है |
4. वायरिंग में आसानी से परिवर्तन किये जा सकते हैं |
फ्लेक्सिबल केबल वायरिंग के अवगुण :-
1. वायरिंग खुली होने के कारण बाहरी वातावरण, जल, अग्नि इत्यादि से सुरक्षित नहीं होती है |
2. वायरिंग पर गंदगी जमती है |
3. देखने में भद्दी लगती है |
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7. क्लीट वायरिंग | Cleat wiring
क्लीट वायरिंग एक अस्थाई (Temporary) वायरिंग है | चीनी-मिटटी की बनी क्लीट लगाने के कारण ये क्लीट वायरिंग कहलाती है | तारों की स्थापना के लिए क्लीट में 2 या 3 खांचे बने होते हैं तथा ये दो भागों में बनी होती है, नीचे वाले भाग पर तार लगाने के बाद ऊपरी भाग को लगाकर पेंच से दीवार पर कस दिया जाता है | इस वायरिंग में V.I.R अथवा P.V.C तार का प्रयोग किया जाता है |
आवश्यक सामग्री-
1. चीनी-मिटटी की क्लीट
2. रावल प्लग
3. आवश्यक सहायक सामग्री जैसे- स्विच बोर्ड, स्विच, सॉकेट, सूचक, होल्डर, सीलिंग रोज, फ्यूज, परिपथ वियोजक (Circuit breaker) इत्यादि |
4. तार
5. पेंच
वायरिंग करने की विधि-
1. सर्वप्रथम दीवार में रावल-प्लग लगाये जाते हैं |
2. तारों में क्लीट फंसाकर क्लीटों को पेंचों की सहायता से कस दिया जाता है |
3. बोर्ड लगाकर उनमे स्विच, सॉकेट इत्यादि लगा दिए जाते हैं |
4. होल्डर, सीलिंग रोज इत्यादि लगाकर कनेक्शन कर दिए जाते हैं |
5. ततपश्चात् विधुत सप्लाई चालू कर दी जाती है |
क्लीट वायरिंग के गुण :-
1. वायरिंग खुली होने के कारण इसमें दोष खोजना आसान होता हैं |
2. सस्ती होती है |
3. शीघ्रता से की जा सकती है |
4. वायरिंग में आसानी से परिवर्तन किये जा सकते हैं |
क्लीट वायरिंग के अवगुण :-
1. वायरिंग खुली होने के बाहरी वातावरण, जल, अग्नि इत्यादि से सुरक्षित नहीं होती है |
2. वायरिंग पर गंदगी जमती है |
3. देखने में भद्दी लगती है |
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स्थाई व अस्थाई वायरिंग में अंतर :-
स्थाई व अस्थाई वायरिंग में अंतर :-
स्थाई वायरिंग (Permanent wiring) – स्थाई वायरिंग वह वायरिंग होती है जिसे घरों, दुकारों व उधोगों इत्यादि में स्थाई रूप से किया जाता है | इस प्रकार की वायरिंग को बार-बार हटाया नहीं जाता तथा इसकी उम्र ईमारत की उम्र के लगभग बराबर होती है |
बिंदु संख्या 1 से 5 में वर्णित कन्ड्यूट वायरिंग, कन्सील्ड वायरिंग, बैटन वायरिंग, लैड शीथ्ड वायरिंग व केसिंग-केपिंग वायरिंग स्थाई वायरिंग हैं |
अस्थाई वायरिंग (Temporary wiring)- अस्थाई वायरिंग वह वायरिंग होती है जिसे मेले, उत्सव, समारोह इत्यादि में अस्थाई रूप से किया जाता है | आवश्यकता ना होने पर इस वायरिंग को हटा लिया जाता है |
बिंदु संख्या 6 व 7 में वर्णित फ्लेक्सिबल केबल वायरिंग व क्लीट वायरिंग अस्थाई वायरिंग हैं |

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