प्रत्यावर्ती धारा | Alternating current (A.C.)
विधुत धारा दो प्रकार की होती है- प्रत्यावर्ती धारा (AC) व दिष्ट धारा (DC), लेकिन यहां प्रत्यावर्ती धारा का वर्णन विस्तार से किया गया है |
प्रत्यावर्ती धारा- वह विधुत धारा जिसका मान व प्रवाह की दिशा एक निश्चित दर पर परिवर्तित होती रहती है, उसे प्रत्यावर्ती धारा (Alternating current) कहते हैं | घरों, दुकानों, कारखानों इत्यादि में विधुत शक्ति के रूप में AC का ही उपयोग किया जाता है | AC को आल्टरनेटर से पैदा किया जाता है | ऑसिलेटर द्वारा भी ए.सी. की किसी भी प्रकार की तरंग पैदा की जा सकती है, लेकिन ये छोटे स्तर पर ही कार्य करता है |
प्रत्यावर्ती धारा का मान व प्रवाह की दिशा एक तरंग के रूप में परिवर्तित होते रहते हैं | विधुत धारा का मान शून्य से एक निश्चित मान तक धनात्मक दिशा में बढ़कर वापस शून्य होने के बाद फिर उसी निश्चित मान तक ऋणात्मक दिशा में बढ़कर वापस शून्य हो जाता है, जिसे एक तरंग (wave) कहते हैं | तरंग के रूप के अनुसार प्रत्यावर्ती धारा मुख्यतः निम्न तीन प्रकार की होती है :
1. ज्या तरंग (Sine wave)
2. वर्गाकार तरंग (Square wave)
3. सा-टूथ तरंग (Saw tooth wave)
सामान्यतः प्रत्यावर्ती धारा के ज्या तरंग रूप का ही अधिकतर उपयोग किया जाता है |
1. ज्या तरंग (Sine wave)
ज्या तरंग ऐसे तरंग को कहते हैं जिसका आकार, ग्राफ पर एक ज्या वक्र के समान बनता हो | आल्टरनेटर से पैदा होने वाली बिजली व भारत की विधुत वितरण व्यवस्था में उपयोग होने वाली बिजली ज्या तरंग प्रत्यावर्ती धारा (Sine wave AC) होती है | ज्या तरंग को निम्न चित्र में दर्शाया गया है |

2. वर्गाकार तरंग (Square wave)
वर्गाकार तरंग ऐसे तरंग को कहते हैं जिसका आकार, ग्राफ पर एक वर्गाकार आकृति के समान बनता हो | इन्वर्टर या किसी इलेक्ट्रॉनिक परिपथ द्वारा DC से AC में परिवर्तन करने पर बनने वाली बिजली, वर्गाकार तरंग प्रत्यावर्ती धारा (Square wave AC) होती है | लेकिन आजकल ज्या तरंग इन्वर्टर (Sine wave inverter) भी काम में लिए जाते हैं, जिनसे आल्टरनेटर के जैसी बिजली बनाई जाती है | वर्गाकार तरंग को निम्न चित्र में दर्शाया गया है |

3. सा-टूथ तरंग (Saw tooth wave)
सा-टूथ तरंग ऐसे तरंग को कहते हैं जिसका आकार, ग्राफ पर एक आरी के दांते की आकृति के समान बनता हो | विशेष प्रकार के इलेक्ट्रॉनिक परिपथ द्वारा DC से AC में परिवर्तन कर सा-टूथ तरंग प्रत्यावर्ती धारा (Saw-tooth wave AC) बनाई जाती है, जिसे विशेष प्रयोजन के लिए उपयोग किया जाता है | सा-टूथ तरंग को निम्न चित्र में दर्शाया गया है |

दिष्ट धारा | Direct current (D.C.)
AC को समझने के लिए DC का अध्यन भी जरुरी है | अतः
वह विधुत धारा जिसका मान व प्रवाह की दिशा नियत रहती है, दिष्ट धारा कहलाती है | यह हमेशा एक ही दिशा में बहती है अथवा इसकी ध्रुवता नियत रहती है | DC कई प्रकार की होती है जैसे- शुद्ध, पल्सेटिंग एवं परिवर्तनीय आदि लेकिन इसकी ध्रुवता हमेशा एक ही रहती है |
DC को बैटरी, DC जनरेटर, डायनेमो आदि द्वारा प्राप्त किया जाता है | DC का उपयोग बैटरी चार्जिंग, इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के प्रचालन, धातु शोधन, विधुत लेपन, इलेक्ट्रिक कार के चालन इत्यादि में किया जाता है |
दिष्ट धारा के निम्न प्रकार होते हैं :-
1. शुद्ध दिष्ट धारा (Pure DC)
2. पल्सेटिंग दिष्ट धारा ( Pulsating DC)
3. परिवर्तनीय दिष्ट धारा (Modified DC)

बैटरी, सेल इत्यादि से शुद्ध दिष्ट धारा (Pure DC) प्राप्त होती है व DC जनरेटर, डायनेमो इत्यादि से पल्सेटिंग दिष्ट धारा (Pulsating DC) प्राप्त होती है | लेकिन DC जनरेटर, डायनेमो आदि से प्राप्त होने वाली पल्सेटिंग डी.सी. को फ़िल्टर परिपथ लगाकर शुद्ध किया जा सकता है |
प्रत्यावर्ती धारा (Alternating current) व दिष्ट धारा (Direct current) में अंतर
क्र.स. | अंतर | प्रत्यावर्ती धारा (AC) | दिष्ट धारा (DC) |
1. | प्रतीक | ⏦ | _ |
2. | तरंग रूप | ||
3. | आवृति | भारत में 50Hz (कुछ देशों में 60Hz भी होती है) | DC की कोई आवृति नहीं होती है |
4. | स्रोत | आल्टरनेटर / मेन सप्लाई | बैटरी / डायनेमो / DC जनरेटर |
5. | धारा का मान | आवृति के अनुसार बदलता रहता है | नियत रहता है |
6. | शक्ति का सूत्र | P = V.I.cosⲪ | P = V.I |
7. | प्रकार | ज्या तरंग, वर्गाकार तरंग, सा-टूथ तरंग इत्यादि | शुद्ध, परिवर्तनीय, पल्सेटिंग इत्यादि |
8. | शक्ति गुणक (Power factor) | शून्य व एक के मध्य | हमेशा एक |
9. | धारा की दिशा | आवृति के अनुसार दिशा बदलती रहती है | दिशा नियत रहती है |
10. | अनुप्रयोग | शक्ति उपकरणों जैसे- मोटर व भारी मशीनों तथा घरेलु इलेक्ट्रिकल उपकरणों जैसे- वाशिंग मशीन, पंखे, लाइट, रेफ्रीजरेटर इत्यादि में | | गाड़ियों, मोबाइल फोन, व अन्य इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों में |

DC की तुलना में AC के फायदे
डी.सी. की तुलना में ए.सी. के फायदे निम्न प्रकार हैं :-
1. ए.सी. (Alternating current) को ट्रांसफॉर्मर की सहायता से आसानी से निम्न वोल्टेज से उच्च वोल्टेज में तथा उच्च वोल्टेज से निम्न वोल्टेज में परिवर्तित किया जा सकता है | ट्रांसफॉर्मर एक स्थेतिक उपकरण होने के कारण इसमें शक्ति हानियाँ (Power losses) भी कम होती हैं |
लेकिन डी.सी. (Direct current) से ए.सी. में परिवर्तन करने के लिए रोटरी बूस्टर का प्रयोग किया जाता है, जिसमे बहुत अधिक शक्ति हानियाँ होती है तथा प्रतिरोधक की सहायता से भी डी.सी. वोल्टेज को कम किया जा सकता है लेकिन इससे बहुत कम धारा को ही परिवर्तित किया जा सकता है तथा इसमें भी बहुत अधिक शक्ति हानियाँ होती हैं |
2. आवश्यकता होने पर ए.सी. को रेक्टिफायर की सहायता से डी.सी. में परिवर्तन किया जा सकता है, रेक्टिफायर में शक्ति हानियाँ भी बहुत कम होती हैं |
लेकिन डी.सी. (Direct current) को ए.सी. में परिवर्तित करने के लिए रोटरी कनवर्टर का उपयोग किया जाता है, रोटरी कनवर्टर एक गतिशील उपकरण होने के कारण इसमें बहुत अधिक शक्ति हानियाँ होती हैं | इन्वर्टर द्वारा भी डी.सी. को ए.सी. में बदला जा सकता है लेकिन इससे कम शक्ति वाली डी.सी. को ही परिवर्तित किया जा सकता है |
3. ए.सी. (Alternating current) का उत्पादन कम, मध्यम व अधिक, किसी भी वोल्टेज पर किया जा सकता है, (जैसे- 220V, 440V, 11000V व 33000V आदि) लेकिन डी.सी. (Direct current) का उत्पादन कम वोल्टेज (660V तक) पर ही किया जा सकता है |
4. ए.सी. (Alternating current) का पारेषण (Transmission) उच्च वोल्टेज पर किया जाता है | (विधुत सप्लाई को एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुंचाने को पारेषण कहते हैं) उच्च वोल्टेज वाली लाइनों में धारा का मान कम होने के कारण अपेक्षाकृत पतले तारों का उपयोग किया जाता है जिससे लाइन की लागत कम आती है व कम मान की धारा बहने के कारण शक्ति हानियाँ भी कम होती हैं | उच्च वोल्टेज पर पारेषण करने के बाद विधुत सप्लाई को ट्रांसफॉर्मर द्वारा आवश्यकतानुसार कम वोल्टेज में परिवर्तित कर लिया जाता है |
लेकिन डी.सी. (Direct current) को उच्च वोल्टेज पर पारेषित नहीं किया जा सकता |
5. ए.सी. (Alternating current) पर चलने वाले उपकरणों की संरचना सरल होती है | जैसे- ए.सी. मोटर की संरचना डी.सी. मोटर की अपेक्षा सरल होती है, आल्टरनेटर की संरचना डी.सी. जनरेटर की अपेक्षा सरल होती है | ए.सी. उपकरणों की सरल संरचना के कारण इन्हें अधिक शक्तिशाली भी बनाया जा सकता है |
6. बड़े ए.सी. उपकरणों, जैसे- मोटर, जनरेटर, ट्रांसफॉर्मर इत्यादि को बड़े डी.सी. उपकरणों की अपेक्षा कम रखरखाव की आवश्यकता होती है |
DC की तुलना में AC के नुकसान
1. सुरक्षा की द्रष्टि से ए.सी. सप्लाई में अर्थिंग की आवश्यकता होती है जबकि डी.सी. में अर्थिंग की आवश्यकता नहीं होती है |
2. डी.सी. से ए.सी. की अपेक्षा अधिक शक्तिशाली चुम्बकीय क्षेत्र पैदा किया जा सकता है क्योंकि डी.सी. में धारा का मान नियत रहता है जबकि ए.सी. में धारा का मान बदलता रहता है |
3. ए.सी. में उपयोग होने वाले अचालकों की परावैधुत सामर्थ्य का मान अधिक रखना पड़ता है क्योंकि समान वोल्टेज की ए.सी. का शिखर मान डी.सी. की अपेक्षा अधिक होता है | (जैसे-220 वोल्ट AC का शिखर मान 220 X 1.414 = 311 वोल्ट होता है, जबकि 220V DC का शिखर मान भी 220V ही होता है)
4. ए.सी. से बैटरी चार्जिंग, विधुतलेपन, ट्रेक्शन कार्य, आर्क लैंप, एलीवेटर, धातु शोधन व इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों का प्रचालन आदि कार्य नहीं किये जा सकते | इन कार्यों को करने के लिए ए.सी. को डी.सी. में परिवर्तित किया जाता है |
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