प्रत्यावर्ती धारा | Alternating current (A.C.)

Alternating current

प्रत्यावर्ती धारा | Alternating current (A.C.)

विधुत धारा दो प्रकार की होती है- प्रत्यावर्ती धारा (AC) व दिष्ट धारा (DC), लेकिन यहां प्रत्यावर्ती धारा का वर्णन विस्तार से किया गया है | 
प्रत्यावर्ती धारा- वह विधुत धारा जिसका मान व प्रवाह की दिशा एक निश्चित दर पर परिवर्तित होती रहती है, उसे प्रत्यावर्ती धारा (Alternating current) कहते हैं | घरों, दुकानों, कारखानों इत्यादि में विधुत शक्ति के रूप में AC का ही उपयोग किया जाता है | AC को आल्टरनेटर से पैदा किया जाता है | ऑसिलेटर द्वारा भी ए.सी. की किसी भी प्रकार की तरंग पैदा की जा सकती है, लेकिन ये छोटे स्तर पर ही कार्य करता है |

प्रत्यावर्ती धारा का मान व प्रवाह की दिशा एक तरंग के रूप में परिवर्तित होते रहते हैं | विधुत धारा का मान शून्य से एक निश्चित मान तक धनात्मक दिशा में बढ़कर वापस शून्य होने के बाद फिर उसी निश्चित मान तक ऋणात्मक दिशा में बढ़कर वापस शून्य हो जाता है, जिसे एक तरंग (wave) कहते हैं | तरंग के रूप के अनुसार प्रत्यावर्ती धारा मुख्यतः निम्न तीन प्रकार की होती है :

1. ज्या तरंग (Sine wave)
2. वर्गाकार तरंग (Square wave)
3. सा-टूथ तरंग (Saw tooth wave)

सामान्यतः प्रत्यावर्ती धारा के ज्या तरंग रूप का ही अधिकतर उपयोग किया जाता है |

1. ज्या तरंग (Sine wave)

ज्या तरंग ऐसे तरंग को कहते हैं जिसका आकार, ग्राफ पर एक ज्या वक्र के समान बनता हो | आल्टरनेटर से पैदा होने वाली बिजली व भारत की विधुत वितरण व्यवस्था में उपयोग होने वाली बिजली ज्या तरंग प्रत्यावर्ती धारा (Sine wave AC) होती है |  ज्या तरंग को निम्न चित्र में दर्शाया गया है |

sine wave

2. वर्गाकार तरंग (Square wave)

वर्गाकार तरंग ऐसे तरंग को कहते हैं जिसका आकार, ग्राफ पर एक वर्गाकार आकृति के समान बनता हो | इन्वर्टर या किसी इलेक्ट्रॉनिक परिपथ द्वारा DC से AC में परिवर्तन करने पर बनने वाली बिजली, वर्गाकार तरंग प्रत्यावर्ती धारा (Square wave AC) होती है | लेकिन आजकल ज्या तरंग इन्वर्टर (Sine wave inverter) भी काम में लिए जाते हैं, जिनसे आल्टरनेटर के जैसी बिजली बनाई जाती है | वर्गाकार तरंग को निम्न चित्र में दर्शाया गया है |

square wave

3. सा-टूथ तरंग (Saw tooth wave)

सा-टूथ तरंग ऐसे तरंग को कहते हैं जिसका आकार, ग्राफ पर एक आरी के दांते की आकृति के समान बनता हो | विशेष प्रकार के इलेक्ट्रॉनिक परिपथ द्वारा DC से AC में परिवर्तन कर सा-टूथ तरंग प्रत्यावर्ती धारा (Saw-tooth wave AC) बनाई जाती है, जिसे विशेष प्रयोजन के लिए उपयोग किया जाता है  | सा-टूथ तरंग को निम्न चित्र में दर्शाया गया है |

saw tooth wave

दिष्ट धारा | Direct current (D.C.)

AC को समझने के लिए DC का अध्यन भी जरुरी है | अतः
वह विधुत धारा जिसका मान व प्रवाह की दिशा नियत रहती है, दिष्ट धारा कहलाती है | यह हमेशा एक ही दिशा में बहती है अथवा इसकी ध्रुवता नियत रहती है | DC कई प्रकार की होती है जैसे- शुद्ध, पल्सेटिंग एवं परिवर्तनीय आदि लेकिन इसकी ध्रुवता हमेशा एक ही रहती है |

DC को बैटरी, DC जनरेटर, डायनेमो आदि द्वारा प्राप्त किया जाता है | DC का उपयोग बैटरी चार्जिंग, इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के प्रचालन, धातु शोधन, विधुत लेपन, इलेक्ट्रिक कार के चालन इत्यादि में किया जाता है |

दिष्ट धारा के निम्न प्रकार होते हैं :-
1. शुद्ध दिष्ट धारा (Pure DC)
2. पल्सेटिंग दिष्ट धारा ( Pulsating DC)
3. परिवर्तनीय दिष्ट धारा (Modified DC)

Types of DC

बैटरी, सेल इत्यादि से शुद्ध दिष्ट धारा (Pure DC) प्राप्त होती है व DC जनरेटर, डायनेमो इत्यादि से पल्सेटिंग दिष्ट धारा (Pulsating DC) प्राप्त होती है | लेकिन DC जनरेटर, डायनेमो आदि से प्राप्त होने वाली पल्सेटिंग डी.सी. को फ़िल्टर परिपथ लगाकर शुद्ध किया जा सकता है |

प्रत्यावर्ती धारा (Alternating current) व दिष्ट धारा (Direct current) में अंतर

 

क्र.स.

अंतर

प्रत्यावर्ती धारा (AC)

दिष्ट धारा (DC)

1.

प्रतीक

_

2.

तरंग रूप

AD 4nXccS593Li8DXzca8oVa0DeJ80OgvG8cwWTI34UEPKWOrNnOj9x4 5nO 5R2f9PKRPkK0SXHbVlTsFHdYYYK4HA3T1 NtbX ITIWALE

AD 4nXfw3iCqUGc0pzTPsxdjInKZ2PJulOXaN1c566An2bGZ A53dUWDYl jF gxlKJ0 NKMygmz0bwTOXyGm0SQ3vb99XWKuT7zAN00NJ4sjAGeHBveJvX06uEToIoVxmw1UhX7ab ITIWALE

3.

आवृति

भारत में 50Hz (कुछ देशों में 60Hz भी होती है)

DC की कोई आवृति नहीं होती है 

4.

स्रोत

आल्टरनेटर / मेन सप्लाई

बैटरी / डायनेमो / DC जनरेटर

5.

धारा का मान

आवृति के अनुसार बदलता रहता है

नियत रहता है

6.

शक्ति का सूत्र

P = V.I.cosⲪ

P = V.I

7.

प्रकार

ज्या तरंग, वर्गाकार तरंग, सा-टूथ तरंग इत्यादि

शुद्ध, परिवर्तनीय, पल्सेटिंग इत्यादि

8.

शक्ति गुणक (Power factor)

शून्य व एक के मध्य 

हमेशा एक

9.

धारा की दिशा

आवृति के अनुसार दिशा बदलती रहती है

दिशा नियत रहती है

10.

अनुप्रयोग

शक्ति उपकरणों जैसे- मोटर व भारी मशीनों तथा घरेलु इलेक्ट्रिकल उपकरणों जैसे- वाशिंग मशीन, पंखे, लाइट, रेफ्रीजरेटर इत्यादि में |

गाड़ियों, मोबाइल फोन, व अन्य इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों में 

itiwale

DC की तुलना में AC के फायदे

डी.सी. की तुलना में ए.सी. के फायदे निम्न प्रकार हैं :-

1. ए.सी. (Alternating current) को ट्रांसफॉर्मर की सहायता से आसानी से निम्न वोल्टेज से उच्च वोल्टेज में तथा उच्च वोल्टेज से निम्न वोल्टेज में परिवर्तित किया जा सकता है | ट्रांसफॉर्मर एक स्थेतिक उपकरण होने के कारण इसमें शक्ति हानियाँ (Power losses) भी कम होती हैं |
लेकिन डी.सी. (Direct current) से ए.सी. में परिवर्तन करने के लिए रोटरी बूस्टर का प्रयोग किया जाता है, जिसमे बहुत अधिक शक्ति हानियाँ होती है तथा प्रतिरोधक की सहायता से भी डी.सी. वोल्टेज को कम किया जा सकता है लेकिन इससे बहुत कम धारा को ही परिवर्तित किया जा सकता है तथा इसमें भी बहुत अधिक शक्ति हानियाँ होती हैं |

2. आवश्यकता होने पर ए.सी. को रेक्टिफायर की सहायता से डी.सी. में परिवर्तन किया जा सकता है, रेक्टिफायर में शक्ति हानियाँ भी बहुत कम होती हैं |
लेकिन डी.सी. (Direct current) को ए.सी. में परिवर्तित करने के लिए रोटरी कनवर्टर का उपयोग किया जाता है, रोटरी कनवर्टर एक गतिशील उपकरण होने के कारण इसमें बहुत अधिक शक्ति हानियाँ होती हैं | इन्वर्टर द्वारा भी डी.सी. को ए.सी. में बदला जा सकता है लेकिन इससे कम शक्ति वाली डी.सी. को ही परिवर्तित किया जा सकता है |

3. ए.सी. (Alternating current) का उत्पादन कम, मध्यम व अधिक, किसी भी वोल्टेज पर किया जा सकता है, (जैसे- 220V, 440V, 11000V व 33000V आदि) लेकिन डी.सी. (Direct current) का उत्पादन कम वोल्टेज (660V तक) पर ही किया जा सकता है |

4. ए.सी. (Alternating current) का पारेषण (Transmission) उच्च वोल्टेज पर किया जाता है | (विधुत सप्लाई को एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुंचाने को पारेषण कहते हैं) उच्च वोल्टेज वाली लाइनों में धारा का मान कम होने के कारण अपेक्षाकृत पतले तारों का उपयोग किया जाता है जिससे लाइन की लागत कम आती है व कम मान की धारा बहने के कारण शक्ति हानियाँ भी कम होती हैं | उच्च वोल्टेज पर पारेषण  करने के बाद विधुत सप्लाई को ट्रांसफॉर्मर द्वारा आवश्यकतानुसार कम वोल्टेज में परिवर्तित कर लिया जाता है |
लेकिन डी.सी. (Direct current) को उच्च वोल्टेज पर पारेषित नहीं किया जा सकता |

5. ए.सी. (Alternating current) पर चलने वाले उपकरणों की संरचना सरल होती है | जैसे- ए.सी. मोटर की संरचना डी.सी. मोटर की अपेक्षा सरल होती है, आल्टरनेटर की संरचना डी.सी. जनरेटर की अपेक्षा सरल होती है | ए.सी. उपकरणों की सरल संरचना के कारण इन्हें अधिक शक्तिशाली भी बनाया जा सकता है |

6. बड़े ए.सी. उपकरणों, जैसे- मोटर, जनरेटर, ट्रांसफॉर्मर इत्यादि को बड़े डी.सी. उपकरणों की अपेक्षा कम रखरखाव की आवश्यकता होती है |

DC की तुलना में AC के नुकसान

1. सुरक्षा की द्रष्टि से ए.सी. सप्लाई में अर्थिंग की आवश्यकता होती है जबकि डी.सी. में अर्थिंग की आवश्यकता नहीं होती है |

2. डी.सी. से ए.सी. की अपेक्षा अधिक शक्तिशाली चुम्बकीय क्षेत्र पैदा किया जा सकता है क्योंकि डी.सी. में धारा का मान नियत रहता है जबकि ए.सी. में धारा का मान बदलता रहता है |

3. ए.सी. में उपयोग होने वाले अचालकों की परावैधुत सामर्थ्य का मान अधिक रखना पड़ता है क्योंकि समान वोल्टेज की ए.सी. का शिखर मान डी.सी. की अपेक्षा अधिक होता है | (जैसे-220 वोल्ट AC का शिखर मान 220 X 1.414 = 311 वोल्ट होता है, जबकि 220V DC का शिखर मान भी 220V ही होता है)

4. ए.सी. से बैटरी चार्जिंग, विधुतलेपन, ट्रेक्शन कार्य, आर्क लैंप, एलीवेटर, धातु शोधन व इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों का प्रचालन आदि कार्य नहीं किये जा सकते | इन कार्यों को करने के लिए ए.सी. को डी.सी. में परिवर्तित किया जाता है |

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व्यावसायिक जोखिम | Occupational risk

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व्यावसायिक जोखिम

व्यावसायों अथवा कार्यस्थल पर होने वाली जोखिम को व्यावसायिक जोखिम कहते हैं | ये खतरे या जोखिम, व्यवसाय या कार्यशाला में कार्य करते समय घटित होते हैं, जैसे अस्वस्थता, चोट लगना अथवा प्रदूषण से होने वाले नुकसान इत्यादि | ये खतरे/जोखिम कई प्रकार के होते हैं, जिनका वर्णन नीचे किया गया है :-

1. शारीरिक जोखिम (physiological risk)
2. वैधुतिक जोखिम (Electrical risk)
3. यांत्रिक जोखिम (Mechanical risk)
4. भौतिक जोखिम (Physical risk)
5. रासायनिक जोखिम (Chemical risk)
6. मनोवैज्ञानिक जोखिम (Psychological risk)
7. जैविक खतरे (Biological risk)
8. अन्य तकनीकी जोखिम (Other technical risk)

उपरोक्त खतरों का वर्णन निम्न प्रकार है :-

1. शारीरिक जोखिम (physiological risk)

1. बीमारी
2. आयु का बढ़ना
3. थकावट

व्यावसायिक जोखिम

2. वैधुतिक जोखिम (Electrical risk)

1. नंगे तार
2. लघु परिपथ
3. अर्थिंग रहित मशीनें
4. मशीनों में धारा लीकेज
5. बिना फ्यूज की वायरिंग

3. यांत्रिक जोखिम (Mechanical risk)

1. नियंत्रक उपकरणों की कमी
2. बिना गार्डिंग वाली मशीनें

व्यावसायिक जोखिम

4. भौतिक जोखिम (Physical risk)

1. कम्पन्न
2. ध्वनि प्रदूषण
3. वायु प्रदूषण
4. अति गर्म और ठंडा वातावरण
5. विकिरण
6. प्रदीपन

itiwale

5. रासायनिक जोखिम (Chemical risk)

1. विस्फोटक सामग्री
2. विषाक्त पदार्थ
3. रेडिओधर्मी पदार्थ
4. ज्वलनशील वस्तुएं

6. मनोवैज्ञानिक जोखिम (Psychological risk)

1. धूम्रपान
2. नशे की आदत
3. आक्रामक रवैया
4. हिंसक प्रवृति
5. भावनात्मक उत्तेजना
6. डरा-धमकाना
7. यौन उत्पीडन

7. जैविक खतरे (Biological risk)

1. संक्रमण
2. बैक्टीरिया
3. वायरस
4. प्लांट-पेस्ट
5. फंगी

8. अन्य तकनीकी जोखिम (Other technical risk)

1. गलत औजारों का उपयोग
2. मशीनों में तकनीकी खराबी इत्यादि

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दिस्ट धारा (DC) परिपथ के बहुविकल्पीय प्रश्न

mcqs of dc circuit

दिस्ट धारा (DC) परिपथ के बहुविकल्पीय प्रश्न | MCQs of dc circuit

1. वह परिपथ जिसके सभी घटकों में समान विधुत धारा बहती है |

(a) समान्तर परिपथ
(b) श्रेणी परिपथ
(c) खुला परिपथ
(d) लघु परिपथ

(b) श्रेणी परिपथ

2. चित्र में प्रदर्शित रंग कोड वाले प्रतिरोध का क्या मान है ?

resistance

(a) 0.39 Ω
(b) 3.9 Ω
(c) 39 Ω
(d) 390 Ω

(b) 3.9 Ω

3. डीसी परिपथ में शक्ति की गणना किस सूत्र से की जाती है ?

(a) समय × वोल्टेज
(b) वोल्टेज / प्रतिरोध
(c) धारा × वोल्टेज
(d) धारा / प्रतिरोध

(c) धारा × वोल्टेज

4. 100W / 250V रेटेड लैंप प्रतिरोध की गणना करें

(a) 625 Ω
(b) 6250 Ω
(c) 62.52 Ω
(d) 312 Ω

(a) 625 Ω

5. किरचॉफ के नियम हैं

(a) विद्युत धारा का नियम
(b) वोल्टेज का नियम
(c) ‘a’ और ‘b’ दोनों
(d) ऊपरोक्त में से कोई नहीं

(c) ‘a’ और ‘b’ दोनों

6. किसी क्वॉयल का प्रतिरोध 0°C पर 50Ω हो, तो 50°C पर उसका प्रतिरोध क्या होगा (ताँबे का ताप-गुणांक α = 0.0043/ °C है?

(a) 30.25 Ω
(b) 6.07 Ω
(c) 62.42 Ω
(d) 60.75 Ω

(d) 60.75 Ω

MCQs of dc circuit

7. किसी विधुत नेटवर्क के किसी जोड़ पर आने वाली धाराओं का योग तथा जाने वाली धाराओं का योग बराबर होता है। इस नियम को कहते है -

(a) किरचॉफ का प्रथम नियम
(b) किरचॉफ का द्वितीय नियम
(c) फेराडे का नियम
(d) ओम का नियम

(a) किरचॉफ का प्रथम नियम

8. आमतौर पर शक्ति परिपथों में जो प्रतिरोधक प्रयोग किये जाते हैं -

(a) वायर वाउण्ड
(b) कार्बन प्रतिरोधक
(c) दोनों
(d) उपरोक्त में से कोई नहीं

(a) वायर वाउण्ड

9. एक विद्युत हीटर को 240 V सप्लाई से संयोजित किये जाने पर वह 8 ऐम्पियर धारा लेता है तो उसके एलीमेन्ट का प्रतिरोध कितना होगा ?

(a) 30 Ω
(b) 25 Ω
(c) 60 Ω
(d) 35 Ω

(a) 30 Ω

10.जब किसी व्हीटस्टोन ब्रिज के गैल्वेनोमीटर में से कोई धारा प्रवाहित नहीं होती है, तो ब्रिज के परिपथ को कहा जाता है।

(a) असन्तुलित
(b) खुला
(c) सन्तुलित
(d) निर्गुट

(c) सन्तुलित

11. निम्न में से चालक का प्रतिरोध तथा चालक की लम्बाई के बीच सही सम्बन्ध दर्शाता है

Resistance length graph

(c)

12. प्रति डिग्री सेन्टीग्रेड ताप परिवर्तन से, प्रतिरोध में प्रति ओम परिवर्तन कहलाता है।

(a) यान्त्रिक तुल्यांक
(b) प्रतिरोध का ताप-गुणांक
(c) ओह्म का नियम
(d) विशिष्ट प्रतिरोध

(b) प्रतिरोध का ताप-गुणांक

MCQs of dc circuit

13. श्रेणी प्रकार के ओह्य मीटर में शंट प्रतिरोध का क्या उपयोग होता है ?

(a) परिपथ को जलने से रोकना
(b) संकेतक को शून्य पर समंजित करना
(c) धारा को कम करना
(d) मीटर के प्रतिरोध को बढ़ाना

(b) संकेतक को शून्य पर समंजित करना

14. चालकता को प्रदर्शित किया जाता हैं -

(a) ओम/मीटर (Ω/M) से
(b)  मोह (℧) से
(c) मोह/मीटर (℧/M) से
(d) अम्पिअर (A) से

(b)  मोह (℧) से

15. 200 V, 100 W के लैम्प का प्रतिरोध कितना होगा ?

(a) 400 Ω
(b) 200 Ω
(c) 450 Ω
(d) 100 Ω

(a) 400 Ω

16. निम्न में से कौन-सा नियम बताता है कि बन्द परिपथ में नियत तापमान पर, वोल्टेज तथा धारा का अनुपात समान रहता है

(a) फैराडे का नियम
(b) किरचॉफ का वोल्टेज नियम
(c) ओह्म का नियम
(d) किरचॉफ का धारा नियम

(c) ओम का नियम

17. सभी अच्छे चालक रखते हैं-

(a) निम्न चालकता
(b) उच्च चालकता
(c) उच्च विशिष्ट प्रतिरोध
(d) उच्च प्रतिरोध

(b) उच्च चालकता 

18. ओह्म का नियम प्रयोग किया जा सकता है

(a) गैस डिस्चार्ज लैम्प के लिए
(b) वैक्यूम ट्यूब के लिए
(c) रेक्टीफायर युक्ति के लिए
(d) उपरोक्त में से कोई नहीं

(a) गैस डिस्चार्ज लैम्प के लिए

19. यदि बिंदु C व F को लघुपथित कर दिया जाये तो निम्न परिपथ का क्या प्रभाव होगा ?

DC MCQ 3

(a) प्रत्येक शाखा में आपूर्ति वोल्टेज भिन्न-भिन्न रहेगा
(b) CF शाखा में अधिक धारा बहेगी
(c) परिपथ प्रतिरोध शून्य हो जायेगा
(d) परिपथ धारा कम हो जाएगी

(c) परिपथ प्रतिरोध शून्य हो जायेगा

itiwale

MCQs of dc circuit

20. विशिष्ट प्रतिरोध की इकाई है

(a) माइक्रो-ओम/सेमी²
(b) ओम-सेमी
(c) ओम/सेमी²
(d) उपरोक्त में से कोई नहीं

(b) ओम-सेमी

21. एक पूर्ण चालक (complete conductor) में

(a) प्रतिरोध अनन्त होना चाहिये
(b) प्रतिरोध अधिक होना चाहिये
(c) प्रतिरोध कम होना चाहिये
(d) प्रतिरोध शून्य होना चाहिये

(d) प्रतिरोध शून्य होना चाहिये

MCQs of dc circuit

22. तांबे के चालक की प्रतिरोधकता है

(a) 1.72 माइक्रो ओम/सेमी³
(b)1.72 माइक्रो ओम/सेमी²
(c)  1.73 ओम/सेमी³
(d) 1.72 माइक्रो ओममीटर

(a) 1.72 माइक्रो ओम/सेमी³

23. 125V / 40 वाट एवं 125V / 100 वाट के दो लैम्पों को 230 वोल्ट की आपूर्ति से श्रेणी-क्रम में जोड़ा गया है। इससे क्या होगा ?

(a) 40 वाट के लैम्प को मिलने वाली वोल्टेज अधिक होगी जिससे यह फ्यूज हो जाएगा
(b) 100 वाट के लैम्प को मिलने वाली वोल्टेज अधिक होगी जिससे यह फ्यूज कर जाएगा
(c) 100 वाट लैम्प अधिक धारा लेगा, जिससे 40 वाट वाला लैम्प फ्यूज हो जाएगा
(d) दोनों लैम्प फ्यूज हो जाएँगे

(a) 40 वाट के लैम्प को मिलने वाली वोल्टेज अधिक होगी जिससे यह फ्यूज हो जाएगा

24. यदि ताँबे का विशिष्ट प्रतिरोध 1.72 माइक्रो ओम सेमी है तो 100 मी लम्बे, 1.07 सेमी² अनुप्रस्थ-काट क्षेत्रफल वाले ताँबे के तार का कुल प्रतिरोध कितना होगा ?

(a) 1.4 X 10⁻⁴ Ω
(b) 2.0 X 10⁻⁸ Ω
(c) 2.4 X 10⁻² Ω
(d) 1.6 X 10⁻² Ω

(d) 1.6 X 10⁻² Ω

25. R प्रतिरोध के एक तार को उस समय तक खींचा गया जब तक कि इसकी त्रिज्या आधी ना रह गई। खिंचे हुये तार का प्रतिरोध क्या होगा ?

(a) 2 R
(b) 16 R
(c) 4 R
(d) 12 R

(b) 16 R

26. ओम के नियम के अनुसार परिपथ में, धारा किसके समानुपाती होती है?

(a) विशिष्ट प्रतिरोध
(b) वोल्टेज
(c) तापमान
(d) प्रतिरोध

(b) वोल्टेज

27. विशिष्ट चालकता (specific conductance) का मात्रक है

(a) सीमेन
(b) सीमेन प्रति सेमी
(c) ओम-सीमेन
(d) वाट-सीमेन

(b) सीमेन प्रति सेमी

28.यदि तीन समान प्रतिरोध-R वाले प्रतिरोधक समान्तर में जुड़े हों, तो परिपथ का कुल प्रतिरोध क्या होगा ?

(a) R x 3
(b) R
(c) R/3
(d) R x 6

(c) R/3

29. कोई धातु सुपर कन्डक्टिविटी (super conductivity) का गुण कब प्रदर्शित करती है ?

(a) परम शून्य ताप पर
(b) क्रान्तिक ताप पर
(c) उच्चतम ताप व दाब की स्थिति में
(d) त्रिक बिन्दु पर

(a) परम शून्य ताप पर

MCQs of dc circuit

30. यदि दिए हुए व्हीटस्टोन ब्रिज में P = 100 Ω, Q = 1 kΩ एवं S = 120Ω होने पर ब्रिज सन्तुलित होता है, तो अज्ञात प्रतिरोध R का मान क्या होगा

Wheatstone bridge

(a) 12 ΚΩ
(b) 2.2 ΚΩ
(c) 2.1 ΚΩ
(d) 1.2 ΚΩ

(d) 1.2 ΚΩ

31. न्यूनतम प्रतिरोध की माप निम्न में से किस उपकरण से शुद्धता से ली जा सकती है ?

(a) व्हीट स्टोन ब्रिज द्वारा
(b) केल्विन ब्रिज द्वारा
(c) वीन ब्रिज द्वारा
(d) मल्टीमीटर द्वारा

(b) केल्विन ब्रिज द्वारा

32. ऋणात्मक ताप गुणांक का उदाहरण है

(a) माइका
(b) एल्युमीनियम
(c) तांबा
(d) नाइक्रोम

(a) माइका

33. 200W/240V के दो लैंप 240V आपूर्ति से श्रेणी में जुड़े हुए हैं; कुल शक्ति ज्ञात कीजिये।

(a) 800 W
(b) 240 W
(c) 100 W
(d) 400 W

(c) 100 W

MCQs of dc circuit

34. एक खिलौने की मोटर 6V बैटरी से चलती है। इस मोटर की कुंडली (Coil) का प्रतिरोध 4.5 Ω है तो मोटर द्वारा कितनी धारा ली जाएगी ?

(a) 2.50 A
(b) 0.75 A
(c) 27 A
(d) 1.33 A

(d) 1.33 A

35. यदि किसी प्रतिरोधक पर आरोपित वोल्टता तथा उसमें से प्रवाहित धारा का मान ज्ञात हो, तो उस प्रतिरोधक का मान किस सूत्र से ज्ञात किया जायेगा ?

(a) R = I².R
(b) R = V/I
(c) R = V².I
(d) R = V X I

(b) R = V/I

36. विधुत परिपथों में प्रतिरोधक का प्रयोग किस लिए किया जाता है ?

(a) वोल्टेज को बढ़ाने के लिए
(b) धारा के प्रवाह को घटाने के लिए
(c) धारा के प्रवाह को रोकने के लिए
(d) उपरोक्त में से कोई नहीं

(b) धारा के प्रवाह को घटाने के लिए

MCQs of dc circuit

37. निम्न चित्र में दिए गए प्रतिरोधक में से गुजरने वाली धारा का मान क्या होगा है ?

IMAGE

(a) 4 A
(b) 6 A
(c) 3 A
(d) 0 (शून्य)

(d) 0 (शून्य)

व्याख्या- क्योंकि परिपथ का स्विच चालू ना होने के कारण धारा का प्रवाह नहीं हो रहा है | स्विच चालू होने पर धारा का मान 12/3 =  4A  होगा |

38 . किसी पदार्थ के मीटर क्यूब या सेन्टीमीटर क्यूब की दो आमने-सामने की सतहों के बीच प्रतिरोध को क्या कहा जाता है?

(a) विशिष्ट प्रतिरोध
(b) प्रतिरोध का नियम
(c) आन्तरिक प्रतिरोध
(d) ओह्म का नियम

(a) विशिष्ट प्रतिरोध

39. नीचे चित्र में दर्शाए गए प्रतिरोधक का प्रतिरोध क्या है ?

direct marking resistance

(a) 25 Ω
(b) 0.25 Ω
(c) 2.5 ΚΩ
(d) 250 Ω

(c) 2.5 ΚΩ

MCQs of dc circuit

40. किसी चालक का विशिष्ट प्रतिरोध निम्न में से किस पर निर्भर करता है ?

(a) चालक की लम्बाई पर
(b) चालक की मोटाई पर
(c) उसकी लम्बाई एवं अनुप्रस्थ-काट क्षेत्रफल पर
(d) चालक के पदार्थ की प्रकृति पर

(d) चालक के पदार्थ की प्रकृति पर

41. निम्न चित्र में दिए गए परिपथ का तुल्यांकी प्रतिरोधक क्या होगा ?

DC MCQ

(a) 22 Ω
(c) 4 Ω
(b) 2 Ω
(d) 12 Ω

(b) 2 Ω

42. धात्विक प्रतिरोधक का प्रतिरोध, तापमान बढ़ाने पर होता है-

(a) समान रहता है
(b) बढ़ता है
(c) घटता है
(d) बदलता रहता है

(b) बढ़ता है

43. 1100 Ω प्रतिरोध को दर्शाता है-

(a) 1 k 1
(b) 11 k 0
(c) 1 M 1
(d) 11 k

(a) 1 k 1

44. तार कुंडलित प्रतिरोधक (Wire wound Resistor) बनाने के लिए उपयुक्त मिश्रधातु है-

(a) टंगस्टन
(b) ब्रोंज
(c) यूरेका
(d) नाइक्रोम

(c) यूरेका

MCQs of dc circuit

45. निम्न चित्र में दर्शाए गए प्रतिरोधक में चौथी पट्टी का रंग पीला होने पर, प्रतिरोध मान की प्रतिशत त्रुटी का मान क्या होगा ?

DC MCQ1

(a) ± 2%
(b) ± 4%
(c) ± 10%
(d) ± 20%

(b) ± 4%

46. किसका मान ज्ञात करने के लिए, व्हीटस्टोन ब्रिज का उपयोग किया जाता हैं ?

(a) वोल्टता
(b) धारा
(c) प्रतिरोध
(d) दूरी

(c) प्रतिरोध

47. ................ बढ़ाने पर चालक का प्रतिरोध बढ़ता है |

(a) मोटाई
(b) लम्बाई
(c) अनुप्रस्थ-काट क्षेत्रफल
(d) लम्बाई एवं अनुप्रस्थ-काट क्षेत्रफल

(b) लम्बाई

48. ................ बढ़ाने पर चालक का प्रतिरोध घटता है |

(a) मोटाई
(b) अनुप्रस्थ-काट क्षेत्रफल
(c) लम्बाई
(d) ‘a’ व ‘b’ दोनों

(d) ‘a’ व ‘b’ दोनों

49. किस नियम के अनुसार किसी जोड़ पर मिलने वाली सभी धाराओं का योग शून्य के बराबर होता है ?

(a) किरचॉफ का प्रथम नियम
(b) किरचॉफ का द्वितीय नियम
(c) ओम का नियम
(d) फैराडे का नियम

(a) किरचॉफ का प्रथम नियम

50. 2.4 Ω प्रतिरोध के लिए क्या कलर कोड होगा ?

(a) नीला, हरा, लाल
(b) भूरा, लाल, सुनहरा
(c) लाल, पीला, सुनहरा
(d) भूरा, सुनहरा, भूरा

(c) लाल, पीला, सुनहरा

51. दिए गए परिपथ में i5 बिंदु पर धारा का मान क्या होगा ?

DC MCQ 2

(a) 4A
(b) 10A
(c) 12A
(d) 6A

(a) 4A

MCQs of dc circuit

52. निम्न में से किरचॉफ का नियम है ?

(a) H = I². R . T
(b) ΣΕ = Σ I.R
(c) P/Q = R/S
(d) V = IR

(b) ΣΕ = Σ I.R

53. प्रत्येक बन्द परिपथ में, सभी वोल्टेज ड्रॉप का योग शून्य के बराबर होता है, ये नियम है-

(d) किरचॉफ का द्वितीय नियम

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परिपथ के प्रकार | Types of circuits

Types of circuits

परिपथ के प्रकार | Types of circuits

विधुत धारा के प्रवाह के लिए बनाया गया एक बंद मार्ग विधुत परिपथ कहलाता है | इसमें धारा प्रवाहित होती है अथवा प्रवाहित होने का प्रयास करती है | परिपथ कई प्रकार के होते हैं जिन्हें निम्न प्रकार परिभाषित किया गया है :-

1. पैरामीटर के आधार पर परिपथ के प्रकार (Types of Circuits Based on Parameters)

परिपथों का निर्माण रेखिक और गैर-रेखिक घटकों द्वारा किया किया जाता जिनके आधार पर निम्न दो प्रकार के परिपथ होने हैं :- 

A. रेखीय परिपथ (Linear circuit)
B. गैर-रेखीय परिपथ (Non-Linear circuit)

A. रेखीय परिपथ (Linear circuit)

स्थिर पैरामीटर वाले परिपथों को रेखीय परिपथ कहते हैं अर्थात इस प्रकार के परिपथ के पैरामीटर स्थिर होते हैं जैसे- किसी प्रतिरोधक में से बहने वाली धारा उसके सिरों पर लगाये गए विभवान्तर के समानुपाती होती है, जिसे ओह्म के नियम से सिद्ध किया जाता है | अर्थात यदि इस परिपथ पर आरोपित वोल्टेज को बढ़ाया जाता है तो धारा का मान भी बढ़ जाता है और आरोपित वोल्टेज का मान घटाया जाता है तो धारा का मान भी कम हो जाता है |

रेखीय परिपथ की गणनाएं करना आसान होता है |

रेखीय घटकों के उदाहरण- प्रतिरोधक, संघारित्र (Capacitor),  इत्यादि |

B. गैर-रेखीय परिपथ (Non-Linear circuit)

अस्थिर पैरामीटर वाले परिपथों को गैर-रेखीय या अरेखीय परिपथ कहते हैं अर्थात इस प्रकार के परिपथ के पैरामीटर वोल्टेज व धारा के साथ बदलते रहते हैं | ये परिपथ ओह्म के नियम का पालन नहीं करते हैं |

गैर-रेखीय परिपथ की गणनाएं करना अपेक्षाकृत कठिन होता है | इसकी गणना करने के लिए बहुत सारे तथ्यों और जानकारी की आवश्यकता होती है |

गैर-रेखीय घटकों के उदाहरण वेक्यूम ट्यूब, ट्रांसफार्मर, एकीकृत सर्किट (IC), लोह कोर, ट्रांजिस्टर, डायोड, सेंसर इत्यादि |

2. धारा के प्रवाह के आधार परिपथ के प्रकार (Types of circuits based on flow of current)

धारा के प्रवाह के आधार पर निम्न 2 प्रकार के परिपथ होते हैं :-
A. एक तरफा परिपथ (Unilateral circuit)
B. दो तरफ़ा परिपथ (Bilateral circuit)

A. एक तरफा परिपथ (Unilateral circuit)

जिस परिपथ में धारा का प्रवाह केवल एक ही दिशा में होता है वह एक तरफा परिपथ कहलाता है | डायोड लगा हुआ परिपथ एक तरफा परिपथ होता है क्योंकि डायोड में केवल एक दिशा में ही धारा का प्रवाह हो सकता है | डायोड में धारा का प्रवाह एनोड से कैथोड की तरफ होता है |

यदि किसी डायोड के एनोड से सप्लाई का धनात्मक (+) सिरा तथा कैथोड से ऋणात्मक (-) सिरा जोड़ दिया जाये तो डायोड एक चालक की तरह कार्य करता है और इसमें से धारा का प्रवाह होने लगता है | इसी प्रकार डायोड के कैथोड से सप्लाई का धनात्मक (+) सिरा तथा एनोड से ऋणात्मक (-) सिरा जोड़ दिया जाये तो डायोड एक प्रतिरोधक (Insulator) की तरह कार्य करता है और इसमें से धारा का प्रवाह नहीं होता है अथवा बहुत कम मात्रा में होता है |

B. दो तरफ़ा परिपथ (Bilateral circuit)

जिस परिपथ में धारा का प्रवाह दोनों दिशाओं में हो सकता है, वह दो तरफ़ा परिपथ कहलाता है | एक साधारण तारों द्वारा बनाया गया परिपथ दो तरफा होता है | विधुत सप्लाई के लिए प्रयोग की गई वितरण लाइन भी दो तरफ़ा परिपथ होता है क्योंकि वितरण लाइन के प्रथम सिरे पर सप्लाई देकर अंतिम सिरे पर लोड जोड़ा जा सकता है तथा अंतिम सिरे पर सप्लाई जोड़कर प्रथम सिरे पर भी लोड जोड़ा जा सकता है |

3. घटकों को जोड़ने की विधि के आधार पर परिपथ के प्रकार (Types of circuits based on the method of connecting the components)

घटकों/अवयवों (Components) को निम्न 3 प्रकार से जोड़कर परिपथ बनाये जाते हैं :-
A. श्रेणी परिपथ (Series circuit)
B. समान्तर परिपथ (Parallel circuit)
C. श्रेणी समान्तर परिपथ (Series parallel circuit)

उपरोक्त तीनों विधियों का विस्तार से वर्णन एक अन्य पोस्ट “प्रतिरोधकों का संयोजन” में किया गया है |

A. श्रेणी परिपथ (Series circuit)

जिस परिपथ में विधुत धारा के प्रवाह के लिए केवल एक ही मार्ग उपलब्ध होता है वह श्रेणी परिपथ (Series circuit) कहलाता है | श्रेणी परिपथ में सभी घटकों का विभवान्तर अलग-अलग हो सकता है लेकिन सभी घटकों का धारा प्रवाह समान होता है |

श्रेणी परिपथ को निम्न चित्र में दर्शाया गया है :-

Series combination of resistors

B. समान्तर परिपथ (Parallel circuit)

जिस परिपथ में विधुत धारा के प्रवाह के लिए कई मार्ग उपलब्ध होते हैं वह समान्तर परिपथ (Parallel circuit) कहलाता है | समान्तर परिपथ में सभी घटकों का विभवान्तर समान होता है लेकिन सभी घटकों में धारा का प्रवाह भिन्न-भिन्न हो सकता है |

समान्तर परिपथ को निम्न चित्र में दर्शाया गया है :-

Parallel combination of resistors
itiwale

C. श्रेणी-समान्तर परिपथ (Series-parallel circuit)

श्रेणी-समान्तर परिपथ ऐसा संयोजन होता है जिसमे घटकों/अवयवों को श्रेणी व समान्तर दोनों प्रकार से संयोजित किया जाता है | इस संयोजन को मिश्रित संयोजन भी कहते हैं | मिश्रित संयोजन निम्न 2 प्रकार से होता है :-
1. समान्तर-श्रेणी परिपथ (Parallel-series circuit)
2. श्रेणी-समान्तर परिपथ (Series-parallel circuit)
इन दोनों परिपथों को निम्न चित्रों में दर्शाया गया है :-

Parallel-series circuit
Series-Parallel circuit

4. स्थिति अथवा दोष के आधार पर परिपथ के प्रकार (Types of circuits based on condition or fault)

स्थिति अथवा दोष के आधार पर परिपथ की निम्न 3 स्थितियां होती हैं :-
A. खुला परिपथ (Open circuit)
B. बंद परिपथ (Closed circuit)
C. लघु परिपथ (Short circuit)

बंद परिपथ ऐसी स्थिति है जिसमे परिपथ ठीक प्रकार से कार्य कर रहा होता है तथा खुला परिपथ व लघु परिपथ दोष वाली स्थिति हैं, इनमे परिपथ दोषित होने के कारण कार्य नहीं कर रहा होता हैं |

A. खुला परिपथ (Open circuit)

ऐसा परिपथ जिसका प्रतिरोध अनंत हो अथवा सामान्य से बहुत अधिक हो तो वह परिपथ खुला परिपथ कहलाता है | परिपथ में कहीं से तार टूट जाने, जोड़ खुल जाने अथवा MCB या फ्यूज उड़ जाने के कारण ऐसा हो सकता है |

खुला परिपथ होने पर परिपथ में से धारा का प्रवाह नहीं होता है तथा सभी उपकरण कार्य करना बंद कर देते हैं |

B. बंद परिपथ (Closed circuit)

जिस परिपथ में सभी अवयव ठीक प्रकार से जुड़े हों तथा किसी प्रकार का दोष नहीं हो उसे बंद परिपथ कहते हैं |

C. लघु परिपथ (Short circuit)

ऐसा परिपथ जिसका प्रतिरोध शून्य हो अथवा बहुत कम हो तो वह परिपथ लघु परिपथ कहलाता है | AC परिपथ के फेज तार से न्यूट्रल अथवा अर्थ संपर्क में आने पर ऐसा होता है | DC परिपथ में +ive तार व -ive तार आपस में मिलने पर भी लघु परिपथ होता है |

लघु परिपथ होने पर परिपथ में से अत्यधिक धारा का प्रवाह होता है जिससे, परिपथ गर्म हो जाता है तथा तारों का रोधन पिघल कर समाप्त हो सकता है तथा तार भी पिघलकर टूट सकते हैं, जिससे अन्य वस्तुओं में भी आग लग सकती है |

5. सप्लाई की प्रकृति के आधार पर परिपथ के प्रकार (Types of circuits based on nature of supply)

विधुत सप्लाई दो प्रकार की होती है 1. प्रत्यावर्ती धारा (AC) 2. दिस्ट धारा (DC) | सप्लाई के आधार पर परिपथ भी निम्न दो प्रकार के होते हैं :-
A. प्रत्यावर्ती धारा परिपथ (AC circuit ) 
B. दिस्ट धारा परिपथ (DC circuit)

A. प्रत्यावर्ती धारा परिपथ (AC circuit )

जिस परिपथ को AC सप्लाई के द्वारा प्रचालित किया जाता है उसे प्रत्यावर्ती धारा परिपथ (AC Circuit) कहते हैं | जैसे- घरेलु व कारखानों इत्यादि की वायरिंग |

B. दिस्ट धारा परिपथ (DC circuit)

जिस परिपथ को DC सप्लाई द्वारा प्रचालित किया जाता है उसे दिस्ट धारा परिपथ (DC Circuit) कहते हैं | जैसे गाड़ियों की वायरिंग इत्यादि |

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श्रेणी व समान्तर नेटवर्क में लघु व खुला परिपथ Open and short circuit in Series and parallel network

Open and short circuit in Series and parallel network

श्रेणी व समान्तर नेटवर्क में लघु व खुला परिपथ Open and short circuit in Series and parallel network

लघु परिपथ (Short circuit)

Short ciucuit

ऐसा परिपथ जिसका प्रतिरोध शून्य हो अथवा बहुत कम हो तो वह परिपथ लघु परिपथ कहलाता है | AC परिपथ के फेज तार से न्यूट्रल अथवा अर्थ संपर्क में आने पर ऐसा होता है | DC परिपथ में +ive तार व -ive तार आपस में मिलने पर भी लघु परिपथ होता है |

लघु परिपथ के प्रभाव- लघु परिपथ होने पर परिपथ में से अत्यधिक धारा का प्रवाह होता है जिससे, परिपथ गर्म हो जाता है तथा तारों का रोधन पिघल कर समाप्त हो सकता है तथा तार भी पिघलकर टूट सकते हैं, जिससे अन्य वस्तुओं में भी आग लग सकती है |

लघु परिपथ से बचाव- परिपथ में उचित आकार/क्षमता के तार लगायें तथा तारों का रोधन भी उच्च गुणवत्ता का हो जिससे रोधन पिघलकर लघु परिपथ ना हो |लघु परिपथ से बचाव के लिए परिपथ में उपयुक्त परिपथ वियोजक (Circuit breaker) लगाने चाहियें, जैसे MCB, फ्यूज इत्यादि | इस स्थिति में लघु परिपथ होने पर परिपथ में लगा परिपथ वियोजक (Circuit breaker) परिपथ को खोल देता है जिससे परिपथ में धारा का प्रवाह रुक जाता है व परिपथ जलने से बच जाता है |

खुला परिपथ (Open circuit)

Open circuit

ऐसा परिपथ जिसका प्रतिरोध अनंत हो अथवा सामान्य से बहुत अधिक हो तो वह परिपथ खुला परिपथ कहलाता है | परिपथ में कहीं से तार टूट जाने, जोड़ खुल जाने अथवा MCB या फ्यूज उड़ जाने के कारण ऐसा हो सकता है |

खुला परिपथ के प्रभाव- खुला परिपथ होने पर परिपथ में से धारा का प्रवाह नहीं होता है तथा सभी उपकरण कार्य करना बंद कर देते हैं |

खुला परिपथ से बचाव- लघु परिपथ से बचाव के लिए उचित आकार के तारों का प्रयोग करें जिससे तार गर्म होकर टूटें नहीं तथा उचित क्षमता के परिपथ वियोजक का प्रयोग करें | परिपथ में सभी जोड़ों को भी ठीक प्रकार से लगायें |

Open and short circuit in Series and parallel network

इस प्रकार परिपथों में निम्न 4 स्थितियां होती हैं :-
1. श्रेणी नेटवर्क में लघु परिपथ (Short circuit in series network)
2. श्रेणी नेटवर्क में खुला परिपथ (Open circuit in series network)
3. समान्तर नेटवर्क में लघु परिपथ (Short circuit in parallel network)
4. समान्तर नेटवर्क में खुला परिपथ (Open circuit in parallel network)

Open and short circuit in Series and parallel network

1. श्रेणी नेटवर्क में लघु परिपथ (Short circuit in series network)

लघु परिपथ के कारण परिपथ में धारा का मान बढ़ जाता है जिससे फ्यूज उड़ सकता है, MCB ट्रिप हो सकती है, परिपथ के अवयव ख़राब हो सकते हैं तथा परिपथ जल भी सकता है | श्रेणी क्रम में लघु परिपथ की 2 स्थितियां हो सकती है (1) आंशिक लघु परिपथ (2) पूर्ण लघु परिपथ |

आंशिक लघु परिपथ (Partial short circuit) इसमें परिपथ के कई घटकों में से कोई 1 या कुछ घटक ही लघु परिपथ होते हैं जिससे उस लघु परिपथ हुए घटक का प्रतिरोध कम हो जाता है अथवा लगभग शून्य हो जाता है, इस एक घटक का प्रतिरोध कम होने पर परिपथ का कुल प्रतिरोध भी कम हो जाता है | परिपथ का प्रतिरोध कम होने पर परिपथ की धारा बढ़ जाती है | धारा बढ़ने के कारण परिपथ के जो घटक लघु परिपथ नहीं हुए हैं उनके ख़राब होने की सम्भावना होती है, फ्यूज उड़ सकता है, MCB ट्रिप हो सकती है तथा परिपथ जल भी सकता है |

पूर्ण लघु परिपथ (Full short circuit)इसमें परिपथ के मुख्य तार अथवा मुख्य वायरिंग ही लघु परिपथ (Short circuit) हो जाती है जिससे परिपथ की धारा अत्यधिक बढ़ जाती है | धारा बढ़ने के कारण फ्यूज उड़ सकता है, MCB ट्रिप हो सकती है तथा परिपथ जल भी सकता है | इसमें परिपथ के घटकों (Components) के खराब होने की संभावना बहुत कम होती है |

उपरोक्त दोनों स्थितियों के चित्र नीचे दिए गए हैं :-

Types of short circuit

ऊपर दिए गए दोनों परिपथों में से प्रथम परिपथ को आंशिक लघु परिपथ इसलिए कहा गया है क्योंकि इसमें तीन लैम्पों में से केवल एक लैम्प L1 लघु परिपथ हुआ है जिससे इस लैम्प का प्रतिरोध शुन्य हो गया है परिणामस्वरूप परिपथ का कुल प्रतिरोध कम हो जायेगा जिससे परिपथ में धारा का मान सामान्य से अधिक हो जायेगा जिसके फलस्वरूप लैम्प L1 बुझ जायेगा तथा अधिक धारा के कारण अन्य दोनों लेम्पों L2 व L3 के ख़राब होने की सम्भावना रहेगी |

तथा दूसरे परिपथ को पूर्ण लघु परिपथ इसलिए कहा गया है क्योंकि इसमें मुख्य वायरिंग ही लघु परिपथ हो गई है जिससे परिपथ का प्रतिरोध शुन्य हो जायेगा परिणामस्वरूप धारा अत्यधिक रूप से बढ़ जाएगी जिसके परिणामस्वरूप तीनो लैम्प बुझ जायेंगे व अधिक धारा के कारण परिपथ के जलने की सम्भावना होगी |

Open and short circuit in Series and parallel network

2. श्रेणी नेटवर्क में खुला परिपथ (Open circuit in series network)

जब श्रेणी परिपथ का कोई भी घटक खुला परिपथ हो जाता है, फ्यूज जल जाता है अथवा तार टूट जाता है तो पूरा परिपथ खुला परिपथ हो जाता है | श्रेणी परिपथ में सभी घटक एक के बाद एक श्रेणी क्रम में लगे होने के कारण किसी भी घटक के खुला परिपथ होने पर धारा के बहने के लिए रास्ता नहीं होता जिससे परिपथ में से धारा का प्रवाह नहीं हो पाता है | इस प्रकार के परिपथ का प्रतिरोध अनंत होता है | खुला परिपथ होने पर परिपथ के किसी भी घटक में धारा का प्रवाह नहीं होने के कारण घटकों के जलने अथवा ख़राब होने की सम्भावना नहीं होती है |

श्रेणी नेटवर्क में आंशिक खुला परिपथ नहीं होता | इसमें किसी भी घटक के खुला परिपथ होने पर पूर्ण खुला परिपथ ही होता है | श्रेणी नेटवर्क में खुला परिपथ निम्न चित्रों में दर्शाया गया है |

Open circuit in series networks

उपरोक्त दिए गए श्रेणी परिपथ में बल्ब L2 फ्यूज हो गया है जिससे पूरे परिपथ में धारा का प्रवाह रुक गया है | धारा का प्रवाह रुकने के कारण परिपथ में लगे सभी बल्ब जलने बंद हो गए हैं |

Open circuit in series network

उपरोक्त दिए गए परिपथ में एक तार टूटा हुआ है जिससे पूरे परिपथ में धारा का प्रवाह रुक गया है | धारा का प्रवाह रुकने के कारण परिपथ में लगे सभी बल्ब जलने बंद हो गए हैं |

Open and short circuit in Series and parallel network

3. समान्तर नेटवर्क में लघु परिपथ (Short circuit in parallel network)

लघु परिपथ के कारण परिपथ में धारा का मान बढ़ जाता है जिससे फ्यूज उड़ सकता है, MCB ट्रिप हो सकती है, परिपथ के अवयव ख़राब हो सकते हैं तथा परिपथ जल भी सकता है | समान्तर क्रम में लघु परिपथ या तो पूर्ण रूप से होता है या बिलकुल नहीं होता | इसमें आंशिक लघु परिपथ नहीं होता है क्योंकि किसी भी एक घटक के लघु परिपथ होने पर पूरा परिपथ ही कार्य करना बंद कर देता है |

समान्तर नेटवर्क में लघु परिपथ के कारण प्रतिरोध का मान शून्य अथवा बहुत कम हो जाता है जिसके परिणामस्वरूप धारा का मान अत्यधिक रूप से बढ़ जाता है | धारा बढ़ने के कारण परिपथ का फ्यूज उड़ सकता है, MCB ट्रिप हो सकती है तथा परिपथ जल भी सकता है |

समान्तर नेटवर्क में लघु परिपथ को निम्न 2 चित्रों से समझा जा सकता है :-

short circuit in parallel network

ऊपर दिए गए परिपथ में लैंप L3 को एक लिंक तार द्वारा लघु परिपथ किया गया है जिससे धारा का प्रवाह लैंपों में से ना होकर लिंक तार द्वारा हो रहा है (क्योंकि धारा हमेशा कम प्रतिरोध वाले रास्ते से अधिक से अधिक गुजरती है) | धारा के प्रवाह को नीली बिंदु लाइन द्वारा दर्शाया गया है | लघु परिपथ होने के होने के कारण परिपथ का प्रतिरोध कम हो गया है जिससे धारा का मान बढ़ गया है | लघु परिपथ होने के कारण परिपथ में तीनो लैम्प नहीं जल रहे हैं |

short circuit in parallel network 1

ऊपर दिए गए परिपथ में मुख्य परिपथ को एक तार द्वारा लघु परिपथ किया गया है जिससे धारा का प्रवाह लैंपों में से ना होकर इस तार द्वारा हो रहा है | धारा के प्रवाह को नीली बिंदु लाइन द्वारा दर्शाया गया है | लघु परिपथ होने के कारण परिपथ का प्रतिरोध शुन्य अथवा बहुत कम हो गया है जिससे धारा का मान बढ़ गया है | लघु परिपथ होने के कारण परिपथ में तीनो लैम्प नहीं जल रहे हैं |

Open and short circuit in Series and parallel network

4. समान्तर नेटवर्क में खुला परिपथ (Open circuit in parallel network)

जब समान्तर परिपथ का कोई भी घटक खुल जाता है अथवा टूट जाता है,तो वह खुला परिपथ (Open circuit) हो जाता है जैसे फ्यूज जल जाना, तार टूट जाना अथवा कोई घटक (Component) ख़राब हो जाना | खुला परिपथ होने पर धारा के बहने के लिए रास्ता नहीं होता जिससे उस परिपथ में से धारा का प्रवाह नहीं हो पाता है | इस प्रकार के परिपथ का प्रतिरोध अनंत होता है | खुला परिपथ होने के बाद परिपथ के घटकों (Components) में धारा का प्रवाह नहीं होने के कारण घटकों के जलने अथवा ख़राब होने की सम्भावना नहीं होती है |

समान्तर नेटवर्क में खुला परिपथ की 2 स्थितियां होती हैं (1) आंशिक खुला परिपथ (2) पूर्ण खुला परिपथ |

आंशिक खुला परिपथ (Partial open circuit)- समान्तर परिपथ में सभी घटक समान्तर में लगे होते हैं अतः किसी एक घटक के खुला परिपथ हो जाने पर पूरा परिपथ खुला परिपथ (Open circuit) नहीं होता बल्कि केवल खुला परिपथ हुआ घटक कार्य करना बंद कर देता है तथा अन्य घटक सामान्य रूप से कार्य करते रहते हैं | इस स्थिति में जो घटक खुला परिपथ हुआ है केवल उसमे से धारा का प्रवाह बंद हो जाता है जिससे परिपथ की कुल धारा का मान कम हो जाता है |

पूर्ण खुला परिपथ (Full open circuit)- समान्तर परिपथ में मुख्य लाइन के खुला परिपथ होने के कारण सभी घटक (Components) कार्य करना बंद कर देते हैं | इस स्थिति में परिपथ की धारा का मान शून्य हो जाता है तथा किसी भी घटक के ख़राब होने की सम्भावना नहीं होती है | समान्तर नेटवर्क में मुख्य फ्यूज उड़ने, परिपथ वियोजक (Circuit breaker) खुलने अथवा मुख्य तार टूटने/जलने आदि से पूर्ण खुला परिपथ होता है |

उपरोक्त दोनों स्थितियों को निम्न चित्रों से समझा जा सकता है :-

Open circuit in parallel network

ऊपर दिए गए प्रथम चित्र में आंशिक खुला परिपथ दर्शाया गया है जिसमे केवल एक लैम्प L2 का तार टूटा होने के कारण वह बुझ गया है तथा अन्य दोनों लैम्प जल रहे हैं | तथा द्वितीय चित्र में पूर्ण खुला परिपथ दर्शाया गया है जिसमे मुख्य तार टूटा होने के कारण पूरे परिपथ ने कार्य करना बंद कर दिया है परिणामस्वरूप तीनो लैम्प बुझ गए हैं |

Open and short circuit in Series and parallel network

itiwale

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प्रतिरोध मान अंकन Marking of Resistance value

Marking of Resistance value

प्रतिरोध मान अंकन Marking of Resistance value

नियत मान कार्बन प्रतिरोधकों के अलावा अन्य सभी प्रकार के प्रतिरोधकों की बॉडी के ऊपर सीधे ही इनका प्रतिरोध व वाटेज आदि लिख दिए जाते हैं | नियत मान कार्बन प्रतिरोधकों की बॉडी इतनी छोटी होती है कि उस पर प्रतिरोधक का मान सीधे ही अंकों में लिखना काफी कठिन होता है, निर्माता द्वारा अगर बहुत छोटे अंकों में मान लिख भी दिया जाये तो उसे पढना बहुत कठिन होगा |

प्रतिरोधकों के मान अंकन की निम्न 2 विधियां हैं :-
1. रंगों द्वारा (By colours) 
2. प्रत्यक्ष मान अंकन (Direct marking)

Marking of Resistance value

1. रंगों द्वारा (By colours)

नियत मान कार्बन प्रतिरोधकों के ऊपर कुछ विभिन्न रंगों की लाइनें अथवा विभिन्न रंगों की बिंदी बना दी जाती हैं जिनसे इनका प्रतिरोध मान ज्ञात किया जा सकता है | रंगों द्वारा मान अंकन के आधार प्रतिरोध 2 प्रकार के होते हैं
1. बैंड प्रकार
2. बॉडी प्रकार | 
(दोनों में से बैंड प्रकार प्रतिरोधक सर्वाधिक उपयोग में लिया जाता है )

Marking of Resistance value

A. बैंड प्रकार (Band type)

इस विधि में प्रतिरोधक के ऊपर विभिन्न 4 रंगों की पट्टी बना दी जाती हैं जो निम्नलिखित को इंगित करती हैं :-
1. प्रथम पट्टी- प्रतिरोध मान के पहले अंक को
2. दूसरी पट्टी- प्रतिरोध मान के दूसरे अंक को 
3. तीसरी पट्टी- गुणक को
4. चौथी पट्टी- प्रतिशत त्रुटी को

Marking of Resistance value

B. बॉडी प्रकार (Body type)

इस विधि में प्रतिरोधक की पूरी बॉडी पर एक रंग किया जाता है, दूसरे रंग से प्रतिरोधक के एक सिरे को रंगा जाता है, तीसरे रंग से एक गोल बिंदी बनाई जाती है तथा चौथे रंग से एक चोकोर बिंदी बनाई जाती है | ये चारों रंग निम्नलिखित को इंगित करते हैं :-
1. बॉडी का रंग- प्रतिरोध मान के पहले अंक को
2. एक सिरे के रंग- प्रतिरोध मान के दूसरे अंक को 
3. गोल बिंदी का रंग- गुणक को
4. चोकोर बिंदी का रंग- प्रतिशत त्रुटी को

प्रतिरोध मान ज्ञात करने के लिए एक सारणी का उपयोग किया जाता है जो निम्न प्रकार है :-

क्र.स.

रंग

पहली पट्टी के लिए मान / बॉडी के लिए मान

दूसरी पट्टी के लिए मान / सिरे के लिए मान

तीसरी पट्टी के लिए मान / गोल बिंदी के लिए मान

चौथी पट्टी के लिए मान / चोकोर बिंदी के लिए मान

1.

काला (Black)

0

0

1

2.

भूरा (Brown)

1

1

10

± 1%

3.

लाल (Red)

2

2

10²

± 2%

4.

नारंगी (Orange)

3

3

10³ या K

± 3%

5.

पीला (Yellow)

4

4

10⁴

± 4%

6.

हरा (Green)

5

5

10⁵

7.

नीला (Blue)

6

6

10⁶ या M

8.

बैंगनी (Violet)

7

7

9.

सलेटी (Grey)

8

8

10.

सफ़ेद (White)

9

9

11.

सुनहरा (Golden)

0.1

± 5%

12.

चांदी (Silver)

0.01

± 10%

13.

रंग नहीं (No colour)

± 20%

Marking of Resistance value

निम्न उदाहरणों से हम नियत मान कार्बन प्रतिरोधक का मान निकालना समझ सकते हैं :-

उदाहरण 1- निम्न चित्र में दिए गए बैंड प्रकार प्रतिरोध का प्रतिरोध मान ज्ञात करें जिस पर क्रमानुसार निम्न रंगों की पट्टियां बनी हुई हैं :-
प्रथम पट्टी- भूरा (Brown)
दूसरी पट्टी- काला (Black)
तीसरी पट्टी- नीला (Blue)
चौथी पट्टी- सुनहरी (Golden)

Fixed resistor

हल- ऊपर दी गई सारणी में हम निम्न रंगों का मान देखेंगे :-
दिए गए मान मे से पहली पट्टी के रंग का मान प्रतिरोध मान का पहला अंक होगा, दूसरी पट्टी के रंग का मान प्रतिरोध मान का दूसरा अंक होगा, तीसरी पट्टी के रंग का मान गुणक होगा तथा चौथी पट्टी के रंग का मान प्रतिरोध मान की प्रतिशत त्रुटी को दर्शायेगा | इस प्रकार दिए गए चारो मानो से हम उस प्रतिरोधक का मान निकालेंगे |

सारणी देखकर हमें निम्न मान प्राप्त हुए :-

प्रथम पट्टी- भूरा (Brown) अर्थात 1 (प्रथम अंक)
दूसरी पट्टी- काला (Black) अर्थात 0 (दूसरा अंक)
तीसरी पट्टी- नीला (Blue) अर्थात 10⁶ (गुणक)
चौथी पट्टी- सुनहरी (Golden) अर्थात ± 5% (प्रतिशत त्रुटी)

= 10 X 10⁶ अर्थात 10 X 1000000
= 10000000 अर्थात 10

= इस प्रकार इस प्रतिरोधक का मान होगा
10⁷Ω या 10MΩ ±5% (यहां ±5% का मतलब है कि दिया गया प्रतिरोध मान 5% कम या अधिक हो सकता है)

itiwale

Marking of Resistance value

उदाहरण 2- निम्न चित्र में दिए गए बैंड प्रकार प्रतिरोध का प्रतिरोध मान ज्ञात करें जिस पर क्रमानुसार निम्न रंगों की पट्टियां बनी हुई हैं :-
प्रथम पट्टी- लाल (Red)
दूसरी पट्टी- हरा (Green)
तीसरी पट्टी- हरा (Green)
चौथी पट्टी- पीला (Yellow)

example of band type resistor

हल- ऊपर दी गई सारणी में हम निम्न रंगों का मान देखेंगे :-
दिए गए मान मे से पहली पट्टी के रंग का मान प्रतिरोध मान का पहला अंक होगा, दूसरी पट्टी के रंग का मान प्रतिरोध मान का दूसरा अंक होगा, तीसरी पट्टी के रंग का मान गुणक होगा तथा चौथी पट्टी के रंग का मान प्रतिरोध मान की प्रतिशत त्रुटी को दर्शायेगा | इस प्रकार दिए गए चारो मानो से हम उस प्रतिरोधक का मान निकालेंगे |

सारणी देखकर हमें निम्न मान प्राप्त हुए :-

प्रथम पट्टी- लाल (Red) अर्थात 2 (प्रथम अंक)
दूसरी पट्टी- हरा (Green) अर्थात 5 (दूसरा अंक)
तीसरी पट्टी- हरा (Green) अर्थात10⁵(गुणक) चौथी पट्टी- पीला (Yellow) अर्थात ± 4% (प्रतिशत त्रुटी)

= 25 X 10⁵ अर्थात 25 X 100000

= 2500000 अर्थात 25
= इस प्रकार इस प्रतिरोधक का मान होगा 25⁵Ω ±4% (यहां ±4% का मतलब है कि दिया गया प्रतिरोध मान 4% कम या अधिक हो सकता है)

Marking of Resistance value

2. प्रत्यक्ष मान अंकन (Direct marking)

जिन प्रतिरोधकों का आकार बड़ा होता है, जैसे- परिवर्ती मान कार्बन प्रतिरोधक, तार कुंडलित प्रतिरोधक इत्यादि पर सीधे ही प्रतिरोध मान लिख दिया जाता है | इस पर कलर कोड द्वारा मान लिखने की आवश्यकता नहीं होती क्योंकि इनका आकार इतना बड़ा होता है कि इन पर सीधे ही प्रतिरोध मान लिखा जा सकता है |

प्रतिरोधकों के प्रत्यक्ष मान अंकन (Direct marking) में दशमलव के स्थान पर अक्षर लिखा जाता है जैसे :-
0.3 Ω को लिखा जाता है- R3
3.8 Ω को लिखा जाता है- 3R8
2.5 KΩ को लिखा जाता है- 2K5
0.25 MΩ को लिखा जाता है- M25
78 MΩ को लिखा जाता है- 78M
यहां R का मतलब केवल दशमलव है, K का मतलब 10³ तथा M का मतलब 10⁶ है |

Marking of Resistance value

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विभिन्न प्रकार के प्रतिरोधक Different types of Resistors

Different types of Resistors

विभिन्न प्रकार के प्रतिरोधक | Different types of Resistors

ऐसा पदार्थ जो विधुत धारा के प्रवाह में एक निश्चित मान का प्रतिरोध उत्पन्न करे, प्रतिरोधक (resistor) कहलाता है | इसलिए प्रतिरोधक का उपयोग वैधुतिक परिपथों में बहने वाली विधुत धारा के मान में एक निश्चित मान का अवरोध उत्पन्न करने के लिए किया जाता है | प्रतिरोधक एक वैधुतिक अवयव होता है जो विभिन्न मानों के बनाये जाते हैं, जैसे 1Ω, 100µΩ, अथवा 2KΩ इत्यादि |

इस पोस्ट में हम प्रतिरोधक के विभिन्न प्रकारों के बारे में समझायेंगे व एक अन्य पोस्ट “Resistance and Resistor” में प्रतिरोधक का सामान्य विवरण दिया गया है | प्रतिरोधक के निम्न दो मुख्य प्रकार हैं  :-
1. कार्बन प्रतिरोधक (Carbon Resistor)
2. तार कुंडलित प्रतिरोधक (Wire wound Resistor)

वैसे प्रतिरोधक के अन्य भी कई प्रकार हैं लेकिन आईटीआई (इलेक्ट्रीशियन) में मुख्यतः इन 2 प्रतिरोधकों का वर्णन ही मिलता है |

Different types of Resistors

1. कार्बन प्रतिरोधक (Carbon Resistor)

अन्य प्रतिरोधकों की तुलना में कार्बन प्रतिरोधकों की प्रतिरोधकता अधिक होती है | अन्य प्रकार के प्रतिरोधक, जैसे- पीतल, टंगस्टन, नाइक्रोम, प्लेटिनम इत्यादि से बने प्रतिरोधकों की प्रतिरोधकता कम होती है इसलिए अधिक प्रतिरोधकता प्राप्त करने के लिए कार्बन प्रतिरोधक का उपयोग किया जाता है | ये प्रतिरोधक अधिक तापसंवेदी होने के कारण इनका उपयोग कम तापमान पर किया जाता है |

इलेक्ट्रॉनिक परिपथों में अधिकतर कार्बन प्रतिरोधक का उपयोग किया जाता है | इनका मान अधिक सटीक होने के कारण अन्य प्रतिरोधकों को मापने के उपकरणों में अथवा प्रतिरोधकों को कैलिब्रेट करने में इनका उपयोग किया जाता है | इनको बनाने के लिए कार्बन अथवा ग्रेफाइट के पाउडर को आवश्यक मात्रा में अचालक पदार्थ व बंधक पदार्थ के साथ मिलाया जाता है तथा ये 1/20 वाट से 2 वाट तक वाटेज में बनाये जाते हैं |

कार्बन प्रतिरोधक की विशेषताएं :-
1. अन्य प्रतिरोधकों की तुलना में इनकी प्रतिरोधकता उच्च होती है |
2. अधिक ताप संवेदी होते हैं |
3. अन्य प्रकार के प्रतिरोधकों की तुलना में इनका मान अधिक सटीक होता है |
4. सस्ते होते हैं |
5. आकार में छोटे होते हैं |

कार्बन प्रतिरोधक का उपयोग:-
कार्बन प्रतिरोधकों का उपयोग सभी प्रकार के बड़े तथा छोटे इलेक्ट्रॉनिक परिपथो तथा इलेक्ट्रिकल परिपथों में किया जाता है, लेकिन इलेक्ट्रॉनिक परिपथो में इनका उपयोग बहुतायत से किया जाता है |

मुख्यतः कार्बन प्रतिरोधक निम्न 2 प्रकार के होते हैं :-
A. नियत मान प्रतिरोधक | Fixed resistor
B. परिवर्ती मान प्रतिरोधक Variable resistor

उपरोक्त दोनों प्रतिरोधकों के नाम से ही समझा जा सकता है कि नियत मान प्रतिरोधक का मान नियत होता है, इसे आवश्यकतानुसार बदला नहीं जा सकता तथा परिवर्ती मान प्रतिरोधक का मान आवश्यकतानुसार बदला जा सकता है | 

Different types of Resistors

A. नियत मान कार्बन प्रतिरोधक (Fixed type carbon resistor)

नियत मान प्रतिरोधक को बनाने के लिए कार्बन अथवा ग्रेफाइट के पाउडर को आवश्यक मात्रा में अचालक पदार्थ व बंधक पदार्थ के साथ मिलाकर एक छड़नुमा आकार में ढाल लिया जाता है, फिर आवश्यकतानुसार छोटे-छोटे टुकड़ों में काट लिया जाता है | इन टुकड़ों के दोनों सिरों पर संयोजक तार लगी हुई टिन आलेपित तांबे अथवा पीतल की धातु की टोपी को लगा दिया जाता है | इसके पश्चात इनके ऊपर रंग कर इनकी प्रतिरोधकता, क्षमता तथा टोलरेन्स के अनुसार विभिन्न रंगों के घेरे बना दिए जाते हैं जिनसे इनकी पहचान होती है |

प्रतिरोधक पर बने विभिन्न रंगों के घेरों से प्रतिरोधक के मान, उसकी क्षमता तथा टोलरेन्स का पता लगाया जा सकता है | तथा ओह्ममीटर द्वारा प्रतिरोधक के दोनों सिरों के मध्य प्रतिरोध मापकर की उसके मान का पता लगाया जा सकता है |

नियत मान  प्रतिरोधकों का प्रतिरोध मान 1Ω से 20MΩ तक होता है तथा ये 1/8 वाट से 2 वाट तक की वाटेज में बनाये जाते हैं | नियत मान प्रतिरोधक का चित्र निम्न प्रकार हैं :-

Fixed resistor

Different types of Resistors

B. परिवर्ती मान कार्बन प्रतिरोधक (Variable type carbon resistor)

परिवर्ती मान प्रतिरोधक को बनाने के लिए कार्बन अथवा ग्रेफाइट के पाउडर को आवश्यक मात्रा में अचालक पदार्थ व बंधक पदार्थ के साथ मिलाकर एक अर्धचन्द्राकार अथवा वक्राकर पट्टी के रूप में ढाल लिया जाता है | इस पट्टी के दोनों सिरों पर टिन आलेपित तांबे के संयोजक तार जोड़कर किसी अचालक आधार पर कस दिया जाता है |

इस अर्धचंद्राकार पट्टी पर एक चल संयोजक भुजा इस प्रकार लगाई जाती है कि वो इसके दोनों संयोजकों के मध्य सरक सके | मध्य संयोजक से एक घूमने वाली शाफ़्ट लगा दी जाती है, जिसे घुमाने पर मध्य बिंदु, दोनों स्थिर बिन्दुओं के मध्य सरकता रहता है | अब अर्धचन्द्राकार पट्टी के दो संयोजक तथा चल भुजा का एक संयोजक (कुल 3 संयोजक) बाहर निकालकर इन सबको धात्विक आवरण से  ढक दिया जाता है | 

शाफ़्ट को घुमाकर किसी एक स्थिर संयोजक तथा मध्य वाले चल संयोजक के मध्य प्रतिरोध मान को परिवर्तित किया जा सकता है | 

परिवर्ती मान प्रतिरोधकों का प्रतिरोध मान 100Ω से 5MΩ तक होता है तथा ये 1/20 वाट से 1/4 वाट तक की वाटेज में बनाये जाते हैं | परिवर्ती मान प्रतिरोधक का चित्र निम्न प्रकार हैं :-

Variable type carbon resistor

Different types of Resistors

2. तार कुंडलित प्रतिरोधक (Wire wound Resistor)

पोर्सिलेन, चीनी मिट्टी अथवा बैकेलाइट से बनी शीट या पाइप पर नाइक्रोम का तार लपेटकर इस प्रतिरोधक को तैयार किया जाता है, इसलिए इसे तार कुंडलित प्रतिरोधक अथवा वायर वाउंड प्रतिरोधक कहा जाता है | जहां अधिक वाटेज की आवश्यकता होती है अथवा अधिक विधुत धारा क्षमता की आवश्यकता होती है वहां वायर वाउंड प्रतिरोधक का इस्तेमाल किया जाता है | ये 1 वाट से 100 वाट अथवा अधिक वाटेज में बनाये जाते हैं | इनका प्रतिरोध मान 1Ω से हजारों Ω तक हो सकता है |

तार कुंडलित प्रतिरोधक की विशेषताएं :-

1. कार्बन प्रतिरोधकों की तुलना में इनकी प्रतिरोधकता निम्न होती है |
2. कार्बन प्रतिरोधकों की तुलना में कम ताप संवेदी होते हैं, इसलिए अधिक ताप पर भी काम में लिया जा सकता है |
3. कार्बन प्रतिरोधकों की तुलना में इनका मान कम सटीक होता है |
4. कार्बन प्रतिरोधकों की तुलना में महंगे होते हैं |
5. कार्बन प्रतिरोधकों की तुलना में आकार में बड़े होते हैं |
6. विधुत धारा वहन क्षमता अधिक होती है |

तार कुंडलित प्रतिरोधक का उपयोग:-
इस प्रकार के प्रतिरोधकों का उपयोग मुख्यतः इलेक्ट्रिकल परिपथों में किया जाता है जैसे- मोटर की गति परिवर्तित करने, जनरेटर की वोल्टेज परिवर्तित करने व प्रयोगशालाओं इत्यादि में |

मुख्यतः तार कुंडलित प्रतिरोधक भी निम्न 2 प्रकार के होते हैं :-
A. नियत मान, तार कुंडलित प्रतिरोधक (Wire wound type fixed resistor)
B. परिवर्ती मान, तार कुंडलित प्रतिरोधक (Wire wound type variable resistor)

Different types of Resistors

A. नियत मान, तार कुंडलित प्रतिरोधक (Wire wound type fixed resistor)

ये प्रतिरोधक, पोर्सिलेन, चीनी मिट्टी अथवा बैकेलाइट से बनी शीट या पाइप पर नाइक्रोम का तार लपेटकर बनाये जाते हैं |  प्रतिरोध के मान तथा उसकी क्षमता के अनुसार लपेटे जाने वाले तार की मोटाई तथा लम्बाई रखी जाती है | तार के दोनों सिरों पर एक-एक संयोजक लगाकर उन्हें स्थिर कर दिया जाता है |

Wire wound fix resistor

Different types of Resistors

B. परिवर्ती मान, तार कुंडलित प्रतिरोधक (Wire wound type variable resistor)

ये प्रतिरोधक भी पोर्सिलेन, चीनी मिट्टी अथवा बैकेलाइट से बनी शीट या पाइप पर नाइक्रोम का तार लपेटकर बनाये जाते हैं |  प्रतिरोधक के मान तथा उसकी क्षमता के अनुसार लपेटे जाने वाले तार की मोटाई तथा लम्बाई रखी जाती है | तार के दोनों सिरों पर एक-एक संयोजक लगाकर उन्हें स्थिर कर दिया जाता है | इसके अलावा इस पाइप के ऊपर एक सरकने वाली भुजा भी लगाई जाती है जो पाइप के ऊपर लगे तारों पर संपर्क करती हुई सरकती है |

इस सरकने वाली भुजा पर तीसरा चल संयोजक बिंदु लगा दिया जाता है | इस प्रकार इसमें 2 स्थिर संयोजक तथा 1 चल संयोजक होते हैं (कुल 3 संयोजक) | किसी एक स्थिर संयोजक तथा चल संयोजक के मध्य प्रतिरोध को परिवर्तित किया जा सकता है जिसके लिए हमें सरकने वाली भुजा (Movable arm) को सरकाना होता है |

Wire wound variable resistor

परिवर्ती मान, तार कुंडलित प्रतिरोधक (Wire wound type variable resistor) जिसका चित्र ऊपर दर्शाया गया है को “रिहोस्टेट” भी कहा जाता है | रिहोस्टेट का उपयोग प्रयोगशालाओं में किया जाता है |

प्रतिरोधकों का मान ज्ञात करना:-
नियत मान कार्बन प्रतिरोधकों के ऊपर कुछ विभिन्न रंगों की लाइनें बनाकर अथवा विभिन्न रंगों की बिंदी बना दी जाती हैं जिनसे इनका प्रतिरोध मान ज्ञात किया जा सकता है | प्रतिरोध मान ज्ञात करने के लिए एक सारणी का उपयोग किया जाता है जिसका विवरण अन्य पोस्ट “प्रतिरोध मान अंकन” में किया गया है |

नियत मान कार्बन प्रतिरोधकों के अलावा अन्य सभी प्रकार के प्रतिरोधकों की बॉडी के ऊपर सीधे ही इनका प्रतिरोध व वाटेज आदि लिख दिए जाते हैं |

विभिन्न प्रकार के प्रतिरोधक | Different types of Resistors
विभिन्न प्रकार के प्रतिरोधक | Different types of Resistors

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प्रतिरोधकों का संयोजन | combination of resistors

प्रतिरोधकों का संयोजन

प्रतिरोधकों का संयोजन | combination of resistors

जब कोई विशिस्ट मान का प्रतिरोधक (Resistor) उपलब्ध ना हो तो विभिन्न प्रतिरोधकों को श्रेणी, समान्तर अथवा मिश्रित क्रम में संयोजन कर उस आवश्यक मान का प्रतिरोध मान प्राप्त किया जा सकता है |

जैसे – माना की हमें 10Ω के प्रतिरोध की आवश्यकता है लेकिन हमारे पास 10Ω का प्रतिरोधक उपलब्ध नहीं है तो 5Ω के दो प्रतिरोधकों को श्रेणी में जोड़कर 10Ω का प्रतिरोध मान प्राप्त किया जा सकता है | इसी प्रकार 20Ω के दो प्रतिरोधकों को समान्तर में जोड़कर भी 10Ω का प्रतिरोध मान प्राप्त किया जा सकता है | इसी प्रकार विभिन्न मान के प्रतिरोधकों को श्रेणी, समान्तर अथवा मिश्रित क्रम में जोड़कर प्रतिरोध के विभिन्न मान प्राप्त किये जा सकते हैं | 

प्रतिरोधकों का निम्न 3 प्रकार से संयोजन किया जा सकता है :-
1. प्रतिरोधकों को श्रेणी क्रम में जोड़ना | Connecting resistors in Series
2. प्रतिरोधकों को समान्तर क्रम में जोड़ना | Connecting resistors in Parallel
3. प्रतिरोधकों को मिश्रित क्रम में जोड़ना | Connecting resistors in Mixed

प्रतिरोधकों का संयोजन

1. प्रतिरोधकों को श्रेणी क्रम में जोड़ना | Connecting resistors in Series

जिस संयोजन में विधुत धारा के प्रवाह के लिए केवल एक ही मार्ग उपलब्ध होता है वह श्रेणी संयोजन (Series combination) कहलाता है | प्रतिरोधकों के श्रेणी संयोजन में सभी प्रतिरोधकों में से समान विधुत धारा का प्रवाह होता है | प्रतिरोधकों के श्रेणी संयोजन में सभी प्रतिरोधकों का विभवान्तर अलग-अलग हो सकता है | 

प्रतिरोधकों के श्रेणी क्रम में संयोजन की विशेषताएं निम्न प्रकार हैं :-

  1. परिपथ का कुल प्रतिरोध, सभी प्रतिरोधकों के प्रतिरोध के योग के बराबर होता है |
  2. विधुत धारा के प्रवाह के लिए केवल एक ही मार्ग होता है |
  3. सभी प्रतिरोधकों में से प्रवाहित हो रही विधुत धारा का मान समान होता है |
  4. सभी प्रतिरोधकों के विभवान्तर का मान भिन्न-भिन्न हो सकता है तथा परिपथ का कुल विभवान्तर, सभी प्रतिरोधकों के विभवान्तर के योग के बराबर होता है |

प्रतिरोधकों को श्रेणी क्रम में निम्न चित्र के अनुसार जोड़ा जाता है :-

Series combination of resistors

उपरोक्त श्रेणी परिपथ से सम्बंधित कुछ सूत्र निम्न प्रकार हैं :-

R=R1+R2+R3

V=V1+V2+V3

I=i1=i2=i3

यहां-
R=परिपथ का कुल प्रतिरोध
R1,R2R3 = परिपथ में लगे विभिन्न प्रतिरोध

V= परिपथ का कुल विभवान्तर
V1,V2V3 = परिपथ में लगे विभिन्न प्रतिरोधकों का विभवान्तर

I = परिपथ की कुल विधुत धारा
i1,i2i3 = परिपथ में लगे विभिन्न प्रतिरोधकों में से बहनेे वाली विधुत धारा

नीचे श्रेणी परिपथ के कुछ उदाहरण दिए गए हैं जिनसे श्रेणी परिपथ को समझना और आसान हो जायेगा |

नोट- इन उदाहरणों में हमें ओह्म का नियम काम आयेगा | ओह्म के नियम को निम्न चित्र से आसानी से समझा जा सकता है :-

ohm's law

ऊपर दिए गए चित्र से हम समझ सकते हैं कि :-

V=I×R

I=VR

R=VI

यहां
V = विभवान्तर (वोल्ट में)
I = धारा (एम्पियर में)
R = प्रतिरोध (Ω में)

उदाहरण- यदि किसी 200 वोल्ट के स्त्रोत से 100Ω व 25Ω के दो प्रतिरोधक श्रेणी में जुड़े हों तो परिपथ का कुल प्रतिरोध, परिपथ में प्रवाहित विधुत धारा तथा प्रत्येक प्रतिरोधक के विभवान्तर का मान ज्ञात करें |

हल- यहां प्रतिरोध R1 = 100Ω
प्रतिरोध R2 = 25Ω
स्रोत वोल्टेज V = 200V

-परिपथ का कुल प्रतिरोध R = R1+R2
=100+25 = 125Ω ( क्योंकि श्रेणी संयोजन में परिपथ का कुल प्रतिरोध सभी प्रतिरोधकों के योग के बराबर होता है )

-परिपथ में प्रवाहित विधुत धारा I= VR
=200125=
1.6 A

-100Ω के प्रतिरोधक R1 का विभवान्तर = I x R1
= 1.6 x 100
= 160V
-25Ω के प्रतिरोधक R2 का विभवान्तर = I x R2
= 1.6 x 25
= 40V

प्रतिरोधकों का संयोजन

2. प्रतिरोधकों को समान्तर क्रम में जोड़ना | Connecting resistors in Parallel

जिस संयोजन में विधुत धारा के प्रवाह के लिए कई मार्ग उपलब्ध होते हैं वह समान्तर संयोजन (Parallel combination) कहलाता है | इसमें सभी प्रतिरोधकों के प्रथम सिरों को आपस में जोड़ दिया जाता है तथा इसी प्रकार सभी द्वितीय सिरों को आपस में जोड़ दिया जाता है | प्रतिरोधकों के समान्तर संयोजन में सभी प्रतिरोधक एक ही स्त्रोत से जुड़े होते हैं | 

प्रतिरोधकों के समान्तर क्रम में संयोजन की विशेषताएं निम्न प्रकार हैं :-

  1. परिपथ का कुल प्रतिरोध, सबसे न्यून प्रतिरोधक से भी कम होता है |
  2. विधुत धारा के प्रवाह के लिए कई मार्ग उपलब्ध होते हैं | 
  3. परिपथ की कुल विधुत धारा, सभी प्रतिरोधकों में से प्रवाहित हो रही विधुत धारा के योग के समान होती है |
  4. सभी प्रतिरोधकों का विभवान्तर तथा स्त्रोत वोल्टेज एक समान होते हैं |

प्रतिरोधकों को समान्तर क्रम में निम्न चित्र के अनुसार जोड़ा जाता है :-

Parallel combination of resistors

उपरोक्त समान्तर परिपथ से सम्बंधित कुछ सूत्र निम्न प्रकार हैं :-

1RT=1R1+1R2+1R3

Vsource=V1=V2=V3

IT=I1+I2+I3

यहां RT= परिपथ का कुल प्रतिरोध (Ω में)
R1, R2 and R3= परिपथ में लगे विभिन्न प्रतिरोधकों के प्रतिरोध (Ω में)

Vsource=स्रोत विधुत वाहक बल (वोल्ट में )
V1,V2 and V3= परिपथ में लगे विभिन्न प्रतिरोधकों के विभवान्तर (वोल्ट में)

IT=  परिपथ की कुल विधुत धारा (एम्पीयर में )
I1,I2 and I3= परिपथ में विभिन्न प्रतिरोधकों में से गुजरने वाली विधुत धाराएं (एम्पीयर में)

नीचे समान्तर परिपथ के कुछ उदाहरण दिए गए हैं जिनसे समान्तर परिपथ को समझना और आसान हो जायेगा :-

उदाहरण- यदि किसी 240 वोल्ट के स्रोत से 100Ω व 25Ω के दो प्रतिरोधक समान्तर क्रम में जुड़े हों तो (1.)परिपथ का कुल प्रतिरोध (2.) परिपथ में प्रवाहित कुल  विधुत धारा (3.) प्रत्येक प्रतिरोधक में से गुजरने वाली विधुत धारा तथा (4.) प्रत्येक प्रतिरोधक के विभवान्तर का मान ज्ञात करें |

हल- यहां प्रतिरोध R1 = 100Ω
प्रतिरोध R2 = 25Ω
स्त्रोत वोल्टेज V = 240v

Parallel circuit

1. परिपथ का कुल प्रतिरोध-

1RT=1R1+1R2

=1RT=1100+125

=1RT=5100


=RT= 1005

=RT=20 Ω

2. परिपथ में प्रवाहित कुल विधुत धारा-

I = VR

I = 24020

I = 12 A

3. प्रत्येक प्रतिरोधक में से गुजरने वाली विधुत धारा-

प्रतिरोधक R1 में से गुजरने वाली विधुत धारा
I = VR1

I =240100

I = 2.4 A

प्रतिरोधक R2 में से गुजरने वाली विधुत धारा
I = VR2

I =24025

I = 9.6 A

4. प्रत्येक प्रतिरोधक के विभवान्तर का मान-

प्रत्येक प्रतिरोधक के विभवान्तर का मान 240V होगा क्योंकि समान्तर क्रम में लगे सभी प्रतिरोधकों के विभवान्तर का मान, स्रोत वोल्टेज के समान ही होता है |
अर्थात-

Vsource=V1=V2=V3 = 240V

प्रतिरोधकों का संयोजन

3. प्रतिरोधकों को मिश्रित क्रम में जोड़ना | Connecting resistors in Mixed combination

प्रतिरोधकों का मिश्रित संयोजन (Mixed combination) ऐसा संयोजन होता है जिसमे प्रतिरोधकों को श्रेणी व समान्तर दोनों प्रकार से संयोजित किया जाता है | इस संयोजन को श्रेणी-समान्तर संयोजन भी कहते हैं | मिश्रित संयोजन निम्न 2 प्रकार से होता है :-
1. समान्तर-श्रेणी संयोजन
2. श्रेणी-समान्तर संयोजन

1. समान्तर-श्रेणी संयोजन

इस संयोजन में प्रतिरोधकों को जोड़-जोड़कर कुछ समान्तर जोड़े बना लिए जाते है, फिर इन समान्तर जोड़ो को आपस में श्रेणी में जोड़ दिया जाता है | यह संयोजन निम्न चित्रानुसार किया जाता है :-

Parallel-series circuit

2. श्रेणी-समान्तर संयोजन

इस संयोजन में प्रतिरोधकों जोड़-जोड़कर कुछ श्रेणी जोड़े बना लिए जाते है, फिर इन श्रेणी जोड़ो को आपस में समान्तर में जोड़ दिया जाता है | यह संयोजन निम्न चित्रानुसार किया जाता है :-

Series-Parallel circuit

उदाहरण- निम्न परिपथ का कुल प्रतिरोध व कुल धारा ज्ञात करें |

MIXED COMBINATION OF RESISTORS

हल:- यहां पर परिपथ में प्रतिरोधकों के दो जोड़े दिए गए हैं पहले जोड़े (A) में 3 प्रतिरोधक  (20Ω, 50Ω व 100Ω) समान्तर में जुड़े हैं तथा दूसरे जोड़े (B) में 2 प्रतिरोधक (5Ω व 7Ω) श्रेणी में लगे हैं | इन दोनों जोड़ों को आपस में श्रेणी में जोड़ा गया है | इस परिपथ का कुल प्रतिरोध निकालने के लिए हम निम्न विधि अपनाएंगे |

1. सबसे पहले हम जोड़े A में समान्तर में लगे 3 प्रतिरोधकों (20Ω, 50Ω व 100Ω) का कुल प्रतिरोध निकालेंगे |
2. इसके पश्चात हम जोड़े B में श्रेणी में लगे 2 प्रतिरोधकों (5Ω व 7Ω) का कुल प्रतिरोध निकालेंगे |
2. तत्पश्चात दोनों जोड़ों के प्रतिरोध को आपस में जोड़ देंगे (क्योंकि दोनों जोड़े आपस में श्रेणी में लगे हैं ) जिससे परिपथ का कुल प्रतिरोध निकल जायेगा |

प्रथम समान्तर जोड़े A का कुल प्रतिरोध :-

1RT=1R1+1R2+1R3

1RT=120+150+1100

1RT=8100

RT=1008=12.5 Ω

दूसरे श्रेणी जोड़े B का कुल प्रतिरोध :-

RT=R1+R2

RT=5+7
=12 Ω

परिपथ का कुल प्रतिरोध:-
प्रथम जोड़े का प्रतिरोध + दूसरे जोड़े का प्रतिरोध
12.5+12= 24.5 Ω

परिपथ की कुल धारा :-

I=VR

I=24524.5=10A

प्रतिरोधकों का संयोजन

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प्रतिरोध मापने की विधियां | Resistance testing methods

Resistance testing methods

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Resistance testing methods

किसी पदार्थ का वह गुण जो उसमे से गुजरने वाली विधुत धारा के प्रवाह का विरोध करता है, प्रतिरोध (Resistance) कहलाता है | प्रतिरोध को R से दर्शाया जाता है तथा इसकी इकाई ओह्म (Ω) है | एक तरह से प्रतिरोध को करंट का दुश्मन भी माना जा सकता है | प्रतिरोध की गणना ओह्म के नियम द्वारा की जाती है |

प्रतिरोध को सीधे ही विभिन्न उपकरणों से भी मापा जा सकता है | प्रतिरोध मापने की निम्न विधियां हैं :-
1. व्हीटस्टोन ब्रिज द्वारा प्रतिरोध का मापन | Measurement of resistance by wheatstone bridge
2. ओह्म मीटर द्वारा प्रतिरोध का मापन | Measurement of resistance by Ohmmeter
3. डिजिटल मल्टीमीटर द्वारा प्रतिरोध का मापन | Measurement of resistance by Digital multimeter

Resistance testing methods

1. व्हीटस्टोन ब्रिज द्वारा प्रतिरोध को मापना | Measuring Resistance by Wheatstone Bridge

व्हीटस्टोन ब्रिज द्वारा प्रतिरोध का मापन” एक पुरानी विधि है | इस विधि का आविष्कार व्हीटस्टोन नामक वैज्ञानिक द्वारा किया गया था जिसमे 4 प्रतिरोधकों से एक विशेष ब्रिजनुमा परिपथ बनाया गया | जिसके कारण इस उपकरण का नाम व्हीटस्टोन ब्रिज रखा गया | इस विधि का प्रचलन अब बंद हो चूका है |

व्हीटस्टोन ब्रिज निम्न चित्र के अनुसार बना हुआ होता है :-

Measuring Resistance by Wheatstone Bridge

उपरोक्त चित्र के अनुसार व्हीटस्टोन ब्रिज में 4 शाखाएं होती हैं जिनमे 3 शाखाओं में पहले से प्रतिरोधक लगे हुए होते हैं तथा 1 शाखा में उस प्रतिरोधक को लगाया जाता है जिसका प्रतिरोध मापना होता है |

उपरोक्त चित्र में दिए गए प्रतिरोध P तथा Q को अनुपात भुजा (Ratio arm) कहा जाता है, इन दोनों के मान को परिवर्तित करके 100:1, 10:1, 1:1, 1:10, 1:100 आदि निष्पत्तियां प्राप्त की जाती हैं | प्रतिरोधक R के मान को 1Ω से 500Ω तक समायोजित किया जा सकता है | S के स्थान पर उस प्रतिरोधक को लगाया जाता है जिसका मान ज्ञात करना होता है | 

इस उपकरण में एक गेल्वेनोमीटर लगा होता है जिसमे लगी सूई विक्षेप दर्शाती है |

विधि- S भुजा पर उस प्रतिरोधक को संयोजित कर दिया जाता है जिसका प्रतिरोध ज्ञात करना होता है | भुजा P तथा Q को उपयुक्त निष्पत्ति पर समायोजित कर दिया जाता है | अब भुजा R को उस मान पर समायोजित किया जाता है जिस पर उपकरण में लगा गेल्वेनोमीटर 0 विक्षेप दर्शाए अर्थात बिंदु B व D के मध्य धारा का प्रवाह शून्य हो जाये ( क्योंकि बिंदु B व D के मध्य धारा का प्रवाह शून्य होने पर ही गेल्वेनोमीटर शून्य विक्षेप दर्शाता है )

Formula- PQ=RS

नीचे इस सूत्र को खोलकर दिखाया गया है :-

Vab =Vad  and  Vbc =Vdc

इस प्रकार :-

P×i1=R×i2  and  Q×i1=S×i2
=P×i1Q×i1=R×i2S×i2

अथवा

=PQ=RS
इस प्रकार अज्ञात प्रतिरोध S= RQp

अतः उपरोक्त सूत्र से अज्ञात प्रतिरोध (S) का मान ज्ञात किया जा सकता है |

व्हीटस्टोन ब्रिज के प्रयोग :-
1. व्हीटस्टोन ब्रिज का प्रयोग निम्न मान के प्रतिरोध को मापने के लिए किया जाता है |
2. व्हीटस्टोन ब्रिज का प्रयोग भौतिक राशियों जैसे- प्रकाश, तापमान, तनाव तथा विकृति आदि को मापने के लिए भी किया जा सकता है लेकिन इसके लिए व्हीटस्टोन ब्रिज को ऑपरेशनल एम्पलीफायर के साथ जोड़ना पड़ता है |
3. व्हीटस्टोन ब्रिज से विविधताओं का उपयोग करके प्रेरकत्व, प्रतिबाधा और धारिता इत्यादि को भी मापा जा सकता है।

Resistance testing methods

2. ओह्ममीटर द्वारा प्रतिरोध को मापना | Measuring Resistance by Ohmmeter

ओह्ममीटर का उपयोग भी प्रतिरोध मापने के लिए किया जाता है लेकिन इसकी प्रतिरोध मापने की शुद्धता “व्हीटस्टोन ब्रिज” से कम होती है | ओह्ममीटर एक प्रत्यक्ष पाठ्यांक यंत्र है (क्योंकि इसकी सुईं सीधे ही प्रतिरोध को दर्शाती है )

ओह्ममीटर के अन्दर निम्न भाग होते हैं :-
1. माइक्रो अमीटर
2. प्रोब्स
3. धारा लिमिटिंग प्रतिरोधक
4. शून्य समायोजक प्रतिरोध
5. बैटरी

ओह्ममीटर निम्न 2 प्रकार के होते हैं :-
1. श्रेणी प्रकार ओह्ममीटर
2. शंट प्रकार ओह्ममीटर

1. श्रेणी प्रकार ओह्ममीटर :- इस प्रकार के ओह्ममीटर में बैटरी, माइक्रो अमीटर तथा अज्ञात प्रतिरोधक श्रेणी क्रम में लगे होते हैं | इसका उपयोग उच्च तथा मध्यम प्रतिरोध को मापने के लिए किया जाता है |
2. शंट प्रकार ओह्ममीटर :- इस प्रकार के ओह्ममीटर में माइक्रो अमीटर तथा अज्ञात प्रतिरोधक समान्तर क्रम में लगे होते हैं | इसका उपयोग मध्यम तथा निम्न  प्रतिरोध को मापने के लिए किया जाता है |

ओह्ममीटर का डायग्राम निम्न प्रकार है :-

Measuring Resistance by Ohmmeter

ओह्ममीटर द्वारा प्रतिरोध मापने की विधि :-
1. ओह्ममीटर में अज्ञात प्रतिरोधक को लगाने से पहले दोनों प्रोब को लघु पथित (Short circuit) कर शून्य समायोजक का समायोजन इस प्रकार करें कि मीटर की सुईं शून्य पर आ जाये |
2. अज्ञात प्रतिरोधक को उपरोक्त चित्र के अनुसार दोनों प्रोब के मध्य लगा दें |
3. धारा लिमिटिंग प्रतिरोधक का इस प्रकार समायोजन करें कि मीटर की सुईं, शून्य व अनंत (∞) के मध्य आ जाये |
4. अब मीटर के डायलर पर सुईं जितना प्रतिरोध दर्शा रही है वही अज्ञात प्रतिरोधक का प्रतिरोध होगा |

नोट- ओह्ममीटर में व्हीटस्टोन ब्रिज की तरह प्रतिरोधक का मान निकालने के लिए गणना करने की आवश्यकता नहीं होती | इसमें अज्ञात प्रतिरोधक का मान सीधे ही ओह्म (Ω) में पढ़ा जा सकता है |

Resistance testing methods

3. डिजिटल मल्टीमीटर द्वारा प्रतिरोध को मापना | Measurement of resistance by Digital multimeter

डिजिटल मल्टीमीटर तथा ओह्ममीटर से प्रतिरोध मापने का तरीका एक समान ही है | केवल इतना अंतर होता है कि डिजिटल मल्टीमीटर में डिस्प्ले दी होती है जिसमे प्रतिरोध का मान सीधे ही अंकों में प्रदर्शित होता है तथा ओह्ममीटर में एनालॉग मीटर होता है जिसकी सुईं की स्थिति से प्रतिरोध के मान का पता लगाया जाता है | डिजिटल मल्टीमीटर में प्रतिरोध को मापने के साथ-साथ AC वोल्टेज, DC वोल्टेज, करंट, कैपेसीटेन्स इत्यादि को मापने की सुविधा होती है तथा ओह्ममीटर से केवल प्रतिरोध ही मापा जा सकता है |

यहां पर डिजिटल मल्टीमीटर का चित्र दिया गया है :-

Multimeter

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प्रतिरोध पर तापमान का प्रभाव | Effect of temperature on resistance

Effect of temperature on resistance

प्रतिरोध पर तापमान का प्रभाव | Effect of temperature on resistance

किसी भी चालक/अचालक/अर्धचालक का प्रतिरोध हमेशा समान नहीं होता, प्रतिरोध को प्रभावित करने वाले वाले कारक निम्न प्रकार हैं जिन पर किसी भी चालक/अचालक/अर्धचालक का प्रतिरोध निर्भर करता है |
1. चालक की मोटाई
2. चालक की लम्बाई
3. पदार्थ का गुण
4. तापमान

हम इस पोस्ट में केवल प्रतिरोध पर पड़ने वाले तापमान परिवर्तन के प्रभाव का ही अध्यन करेंगे | अधिकतर धातुओं तथा मिश्र धातुओं का प्रतिरोध तापमान बढ़ने से बढ़ता है तथा तापमान घटने से घटता है | लेकिन मिश्र धातुओं के तापमान में परिवर्तन होने से प्रतिरोध में होने वाले परिवर्तन की दर धातुओं की अपेक्षा कम तथा असमान होती है | मैंगनिन व यूरेका इत्यादि मिश्र धातुओं के तापमान में परिवर्तन होने पर इनके प्रतिरोध में बहुत कम परिवर्तन होता है | 

इसके विपरीत प्रतिरोधकों (Resistors) का प्रतिरोध तापमान बढ़ने से  घटता है तथा तापमान घटने से बढ़ता है |

Effect of temperature on resistance

ताप गुणांक | Temperature coefficient

तापमान में 1°C का परिवर्तन होने पर पदार्थ के प्रतिरोध में होने वाले परिवर्तन को उसका ताप गुणांक कहते हैं | ताप गुणांक को “प्रति °C” में मापा जाता है | ताप गुणांक 2 प्रकार का होता है | (1) धनात्मक ताप गुणांक (2) ऋणात्मक ताप गुणांक

धनात्मक ताप गुणांक- जब किसी पदार्थ का तापमान बढ़ने पर उसका प्रतिरोध भी बढ़ता है तो उसका ताप गुणांक “धनात्मक ताप गुणांक” कहलाता है | यह धातुओं (जैसे- तांबा, चांदी, एल्युमीनियम, सोना, लोहा) इत्यादि पर लागू होता है |
ऋणात्मक ताप गुणांक- जब किसी पदार्थ का तापमान बढ़ने पर उसका प्रतिरोध घटता है तो उसका ताप गुणांक “ऋणात्मक ताप गुणांक” कहलाता है |  यह प्रतिरोधकों (जैसे- कांच, अभ्रक, रबर, कागज़) व कुछ चालकों (जैसे-कार्बन) इत्यादि पर लागू होता है |

नीचे दिए गए ग्राफ में धनात्मक व ऋणात्मक ताप गुणांक को दर्शाया गया है :-

Temperature coefficient

ताप गुणांक का सूत्र निम्न प्रकार है :-

ताप गुणांक α=Rt-R0R0 × t

α=ताप गुणांक
R0=0°c पर पदार्थ का प्रतिरोध
Rt=t°c पर पदार्थ का तापमान
t=वह तापमान जहां तक पदार्थ को गर्म किया गया है अथवा अंतिम तापमान

Effect of temperature on resistance

ताप गुणांक के द्वारा एक तापमान पर किसी पदार्थ का प्रतिरोध ज्ञात होने पर अन्य तापमान पर उसका प्रतिरोध ज्ञात किया जा सकता है | जिसका सूत्र निम्न प्रकार है :-

Rt2Rt1=R0(1+α.t2)R0(1+α.t1)

α=ताप गुणांक (प्रति °C में)
t1=प्रारंभिक तापमान ( °C में )
t2=अंतिम तापमान ( °C में )
Rt1=t1°C तापमान पर प्रतिरोध (Ω में)
Rt2=t2°C तापमान पर प्रतिरोध (Ω में)
R0=0°C तापमान पर प्रतिरोध (Ω में)
itiwale

उदाहरण 1 :- किसी कुंडली का 10°C पर प्रतिरोध 225Ω है व कुंडली के पदार्थ का ताप गुणांक 0.0043/°C है तो 70°C पर उस कुंडली का कितना प्रतिरोध होगा ?

हल :- 

सूत्र = Rt2Rt1=R0(1+α.t2)R0(1+α.t1) अर्थात = Rt2Rt1=(1+α.t2)(1+α.t1)

α=ताप गुणांक = 0.0043/°C
t1=प्रारंभिक तापमान = 10°C
t2=अंतिम तापमान = 70°C
Rt1=t1°C तापमान पर प्रतिरोध = 225Ω
Rt2=?
सूत्र के अनुसार - Rt2=Rt1(1+a.t2)(1+a.t1)

Rt2=225 (1+0.0043×70)(1+0.0043×10)

Rt2=225 (1+0.301)(1+0.043)

Rt2=225 (1.301)1.043

Rt2=292.7251.043

Rt2=280.66

अतः 70°C पर उस कुंडली का प्रतिरोध होगा 280.66Ω

Effect of temperature on resistance

उदाहरण 2 :- किसी कुंडली का 25°C पर प्रतिरोध 200Ω है व कुंडली के पदार्थ का ताप गुणांक 0.0050/°C है तो 10°C पर उस कुंडली का कितना प्रतिरोध होगा ?

हल :- 

सूत्र = Rt2Rt1=R0(1+α.t2)R0(1+α.t1) अर्थात = Rt2Rt1=(1+α.t2)(1+α.t1)

α=ताप गुणांक = 0.0050/°C
t1=प्रारंभिक तापमान = 10°C
t2=अंतिम तापमान = 25°C
Rt1=?
Rt2=t2°C तापमान पर प्रतिरोध = 200Ω
सूत्र के अनुसार - Rt1=Rt2(1+a.t1)(1+a.t2)

Rt1=200(1+0.0050×10)(1+0.0050×25)

Rt1=200(1+0.05)(1+0.125)

Rt1=200(1.05)(1.125)

Rt1=2101.125

Rt1=186.67

अतः 10°C पर उस कुंडली का प्रतिरोध होगा 186.67Ω

विभिन्न पदार्थों के ताप गुणांक निम्न प्रकार हैं :-

 

क्र.स.

पदार्थ का नाम

ताप गुणांक (20°C पर)

1.

तांबा

0.0038

2.

चांदी

0.0038

3.

नाइक्रोम

0.00015

4.

मरकरी

0.00089

5.

ब्रास

0.002

6.

जर्मन सिल्वर

0.00027

7.

मैंगनीज

0.000015

8.

कार्बन

-0.0005

9.

निकल

0.0054

10.

टंगस्टन

0.0047

11.

जर्मेनियम

-0.05

12.

प्लेटिनम

0.00367

13.

एल्युमीनियम

0.00403

14.

लोहा

0.0065

Effect of temperature on resistance

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