ट्रांसफार्मर क्षति का मान ज्ञात करना Calculate the value of transformer loss

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ट्रांसफार्मर क्षति का मान ज्ञात करना Calculate the value of transformer loss

ट्रांसफार्मर क्षतियों का मान ज्ञात करके हम ट्रांसफार्मर की दक्षता भी ज्ञात कर सकते हैं निम्न दो विधियों द्वारा ट्रांसफार्मर क्षति का मान ज्ञात किया जा सकता है |

1. खुला परिपथ परीक्षण (Open circuit test)
2. लघु परिपथ परिक्षण (Short circuit test)

ट्रांसफार्मर क्षति का मान ज्ञात करना

1. खुला परिपथ परीक्षण | Open circuit test

खुला परिपथ परिक्षण द्वारा लोह क्षतियों (हिस्टेरेसिस तथा भंवर धारा क्षतियां) का मान ज्ञात किया जाता है | इसे शुन्य लोड परिक्षण (Zero load test) भी कहते हैं 

खुला परिपथ टेस्ट को करने लिए ट्रांसफार्मर की द्वितीय वाइंडिंग के सिरे खुले रखे जाते हैं अर्थात उस पर कोई लोड जुड़ा नहीं होता | प्राथमिक वाइंडिंग पर वाट मीटर लगा दिया जाता है |अब प्राथमिक वाइंडिंग को उसकी सामान्य AC  वोल्टेज से जोड़ा जाता है अर्थात जितने वोल्टेज की यह वाइंडिंग होती है उतनी वोल्टेज से जोड़ा जाता है |

द्वितीय वाइंडिंग को विधुत स्त्रोत से जोड़कर भी यह परीक्षण किया जा सकता है |

प्राथमिक वाइंडिंग को विधुत स्त्रोत से जोड़ने पर ट्रांसफार्मर की द्वितीय वाइंडिंग खुली होने के कारण द्वितीय वाइंडिंग में धारा का प्रवाह नहीं होता है तथा प्राथमिक वाइंडिंग में जो धारा का प्रवाह होता है वह ट्रांसफार्मर की लोह क्षति के कारण होता है | लोह क्षति में हिस्टेरेसिस तथा भंवर धारा क्षतियां सम्मिलित होती हैं | इस अवस्था में बहने वाली धारा, पूर्ण धारा का लगभग 5% होती है | 

उक्त अवस्था में प्राथमिक वाइंडिंग पर लगा वाट मीटर लोह क्षति का मान watt में दर्शाता है | वाट मीटर  के स्थान पर वोल्टमीटर, एम्पियर मीटर तथा पॉवर फैक्टर मीटर भी लगाये जा सकते है | वोल्ट मीटर, एम्पियर मीटर तथा पॉवर फैक्टर मीटर के मानों को गुणा करके वाट में लोह क्षति का मान निकाला जा सकता है | अर्थात W = V x I x COSΦ

खुला परिपथ परिक्षण विधि का डायग्राम निम्न चित्र में दर्शाया गया है :-

ट्रांसफार्मर क्षति का मान ज्ञात करना Calculate the value of transformer loss open circuit test

ट्रांसफार्मर क्षति का मान ज्ञात करना

2. लघु परिपथ परीक्षण | Short circuit test

लघु परिपथ परीक्षण द्वारा ताम्र क्षतियों का मान ज्ञात किया जाता है | इसे पूर्ण लोड परीक्षण (Full load test) भी कहते हैं |

इस परीक्षण में ट्रांसफार्मर की निम्न वोल्ट वाइंडिंग को लघु परिपथ कर दिया जाता है | तथा उच्च वोल्ट वाइंडिंग पर वाट मीटर लगाकर इसे AC स्त्रोत से जोड़ दिया जाता है | लघु परिपथ होने के कारण ट्रांसफार्मर की वाइंडिंग में उच्च धारा बहती है जिससे ट्रांसफार्मर जल सकता है इससे बचने के लिए वाइंडिंग की रेटेड वोल्टेज का 5% ही दिया जाता है | कम वोल्टेज देने के लिए ऑटो ट्रांसफार्मर का उपयोग किया जा सकता है |

अब ट्रांसफार्मर पर लगा वाट मीटर कुल ताम्र हानियां दर्शाता है |

नोट- इस परीक्षण में उच्च वोल्ट वाली वाइंडिंग में ही सप्लाई इसलिए दी जाती है क्योंकि उच्च वोल्टेज मान के घटाए गए मान (5%) पर वोल्टेज देना अपेक्षाकृत आसान होता है | जैसे एक ट्रांसफार्मर जिसका वोल्टता मान 3300/220 है | इसके निम्न वोल्टेज मान का 5% (अर्थात 11 वोल्ट) देना कठिन है जबकि उच्च वोल्टेज मान 3300 का 5% (अर्थात 165 वोल्ट) देना अपेक्षाकृत आसान है |

लघु परिपथ परिक्षण विधि का डायग्राम निम्न चित्र में दर्शाया गया है :-

ट्रांसफार्मर क्षति का मान ज्ञात करना Calculate the value of transformer loss Short circuit test

ट्रांसफार्मर क्षति का मान ज्ञात करना

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ट्रांसफार्मर की दक्षता Efficiency of Transformer

ट्रांसफार्मर की दक्षता Efficiency of Transformer

ट्रांसफार्मर की दक्षता Efficiency of Transformer

परिभाषा- किसी ट्रांसफार्मर की आउटपुट शक्ति तथा इनपुट शक्ति का अनुपात ट्रांसफार्मर की दक्षता (Efficiency) कहलाता है | 

दक्षता का प्रतीक η है | दक्षता को प्रतिशत (%) में व्यक्त किया जाता है | 

यदि किसी ट्रांसफार्मर की आउटपुट शक्ति तथा इनपुट शक्ति बराबर है तो उसकी दक्षता 100% होगी अर्थात ट्रांसफार्मर ने जितनी शक्ति इनपुट में ली उतनी ही शक्ति आउटपुट में दे दी |

100% दक्षता वाले ट्रांसफार्मर को आदर्श ट्रांसफार्मर कहते हैं लेकिन वास्तविकता में इस प्रकार का कोई ट्रांसफार्मर नहीं है क्योंकि ट्रांसफार्मर में कुछ ना कुछ क्षति अवश्य होती है जिससे ट्रांसफार्मर जितनी शक्ति इनपुट में लेता है उतनी शक्ति आउटपुट में नहीं देता | 

ट्रांसफार्मर की दक्षता अन्य मशीनों (जैसे मोटर, जनरेटर इत्यादि) से उच्च होती है क्योंकि मोटर, जनरेटर इत्यादि में घूमने वाले भाग होने के कारण इनमे क्षति अधिक होती है | किसी मशीन में जितनी अधिक क्षति होती है उतनी ही कम उसकी दक्षता होती है |

ट्रांसफार्मर की दक्षता का सूत्र निम्न प्रकार है :-

efficiency of transformer

ट्रांसफार्मर की दक्षता

पूर्ण दिवस दक्षता | All day efficiency

ट्रांसफार्मर पर पूरे दिन समान लोड नहीं रहता इस कारण ट्रांसफार्मर की द्वितीयक वाइंडिंग में करंट का प्रवाह कभी कम तथा कभी अधिक होता रहता है जिससे ताम्र क्षति घटती-बढती रहती है | ताम्र क्षति घटने-बढ़ने के कारण ट्रांसफार्मर की दक्षता भी घटती-बढती रहती है |

अतः ट्रांसफार्मर की पूरे दिन (24 घंटे) की ओसत दक्षता पूर्ण दिवस दक्षता कहलाती है | अर्थात पूरे दिन में ट्रांसफार्मर द्वारा आउटपुट में दी गई ऊर्जा तथा इनपुट में ली गई ऊर्जा का अनुपात पूर्ण दिवस दक्षता कहलाता है |

पूर्ण दिवस दक्षता का सूत्र निम्न प्रकार है :-

All day efficiency of transformer
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ट्रांसफार्मर की वि वा ब समीकरण EMF Equation of transformer

ट्रांसफार्मर की वि वा ब समीकरण EMF Equation of transformer

ट्रांसफार्मर की वि वा ब समीकरण EMF Equation of transformer

ट्रांसफार्मर की प्राथमिक वाइंडिंग को विधुत स्त्रोत से जोड़ने पर द्वितीयक वाइंडिंग में एक विधुत वाहक बल पैदा हो जाता है तथा प्राथमिक वाइंडिंग में भी एक विरोधी विधुत वाहक बल (Back E.M.F.) पैदा हो जाता है | ये दोनों विधुत वाहक बल फैराडे के विधुत चुम्बकीय प्रेरण सिद्धांत पर आधारित होते हैं |

ट्रांसफार्मर की वाइंडिंग में पैदा हुआ विधुत वाहक बल निम्न कारकों पर निर्भर करता है :-

  • वाइंडिंग में तारों की लपेट संख्या- N
  • विधुत सप्लाई की आवृति (Frequency)- f
  • क्रोड़ में पैदा हुआ अधिकतम चुम्बकीय फ्लक्स- Φm

ट्रांसफार्मर में प्रेरित विधुत वाहक बल की समीकरण निम्न प्रकार है :-

E=4.44.Φm.f.N Volts

यहां :-
Φm = अधिकतम चुम्बकीय फ्लक्स घनत्व
f = फ्रीक्वेंसी (Hz में)
N = वाइंडिंग में लपेटों की संख्या 

अब इस समीकरण को हम विस्तार से समझेंगे :-
प्रत्यावर्ती धारा की प्रत्येक साइकिल में चुम्बकीय फ्लक्स 4 बार अधिकतम तथा 0 के बीच परिवर्तित होता है इसलिए 

E  4.Φm.f.N
Because  Erms= Eaverage × form factor
or  Erms= Eaverage × 1.11 
E=(4×1.11) Φm.f.N
  • 4 = इस सूत्र में 4 इसलिए दिया गया है क्योंकि प्रत्यावर्ती धारा की प्रत्येक साइकिल में चुम्बकीय फ्लक्स 4 बार अधिकतम तथा 0 के मध्य परिवर्तित होता है |
  • 1.11 = इस सूत्र में 1.11 इसलिए दिया गया है क्योंकि AC में फॉर्म फैक्टर का मान 1.11 होता है |
Therefore  E=4.44.Φm.f.N  Volts

ट्रांसफार्मर की वि वा ब समीकरण

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ट्रांसफार्मर क्षतियां Transformer losses

transformer loss

ट्रांसफार्मर क्षतियां Transformer losses

Transformer losses

कोई भी ट्रांसफार्मर इनपुट में दी गई ऊर्जा को 100 प्रतिशत आउटपुट में नहीं दे सकता | जैसे सभी मशीनों में क्षतियां होती हैं उसी प्रकार ट्रांसफार्मर में भी क्षतियां होती हैं | जितनी ऊर्जा हम ट्रांसफार्मर को इनपुट में देते हैं उससे कम ऊर्जा हमें आउटपुट में मिल पाती है | हालाँकि जिन मशीनों में चलायमान पुर्जे होते हैं उनकी तुलना में ट्रांसफार्मर में कम क्षति होती है क्योंकि ट्रांसफार्मर में वायु क्षति तथा घर्षण क्षति नहीं होती |
ट्रांसफार्मर में निम्न 2 प्रकार की क्षतियां / हानियां होती हैं :-

1. लोह क्षति (Iron loss)
(a) हिस्टेरेसिस क्षति (Hysteresis loss)
(b) भंवर धारा क्षति (Eddy current loss)
2. ताम्र क्षति (Copper loss)

Transformer losses

1. लोह क्षति | Iron loss

ट्रांसफार्मर की वाइंडिंग लोहे की क्रोड़ पर की जाती है | अतः इस क्रोड़ में होने वाली विधुत शक्ति की क्षति लोह क्षति कहलाती है | लोह क्षति जीरो लोड से फुल लोड तक अर्थात प्रत्येक लोड पर समान रहती है | इसे नो-लोड-क्षति (No load loss) भी कहते हैं |

लोह क्षति का मान ज्ञात करने के लिए खुला परिपथ परिक्षण (Open circuit test) किया जाता है | लोह क्षति निम्न दो प्रकार की होती है :-

(a) हिस्टेरेसिस क्षति (Hysteresis loss)
(b) भंवर धारा क्षति (Eddy current loss)

Transformer losses

a. हिस्टेरेसिस क्षति | Hysteresis loss

किसी चुम्बकीय पदार्थ के बार-बार चुम्बकित व अचुम्बकित होने के कारण जो विधुत शक्ति की क्षति होती है उसे हिस्टेरेसिस क्षति कहते हैं | प्रत्यावर्ती धारा द्वारा किसी चुम्बकीय पदार्थ को चुम्बकित करने पर प्रत्यावर्ती साईकल के धनात्मक होने पर चुम्बकीय पदार्थ के अणु एक दिशा में चुम्बकित होने हैं तथा साईकल के नकारात्मक होने पर चुम्बकीय पदार्थ के अणु दूसरी दिशा में चुम्बकित होने हैं | इस दिशा बदलने की प्रक्रिया के कारण चुम्बकीय अणु आपस में टकराते हैं जिससे ऊष्मा उत्पन्न होने के कारण चुम्बकीय पदार्थ अथवा लोहा गर्म होने लगता है | इस पूरी प्रक्रिया में विधुत उर्जा की क्षति होती है | 

हिस्टेरेसिस क्षति का सूत्र :- 

 
Wh=η . Bmax1.6 . f . V

Wh = हिस्टेरेसिस क्षति, वाट में 
η = हिस्टेरेसिस नियतांक
Bmax = क्रोड़ में अधिकतम चुम्बकीय फ्लक्स घनत्व, वेबर प्रति मीटर² में
f = फ्रीक्वेंसी, Hz में
V = क्रोड़ का आयतन, मीटर³ में

नोट- हिस्टेरेसिस नियतांक (η) का मान प्रत्येक धातु के लिए अलग-अलग होता है जैसे सिलिकॉन स्टील के लिए हिस्टेरेसिस नियतांक का मान 191 होता है | जिन धातुओं का हिस्टेरेसिस नियतांक अधिक होता है उनसे निर्मित क्रोड़ में क्षति भी उतनी ही अधिक होती है | 
क्रोड़ की धातु में सिलिकॉन की मात्रा अधिक करके 
हिस्टेरेसिस हानियाँ कम की जा सकती हैं क्योंकि इससे हिस्टेरेसिस नियतांक (η) का मान कम हो जाता है |

Transformer losses

Transformer losses

b. भंवर धारा क्षति | Eddy current loss

किसी प्रत्यावर्ती चुम्बकीय क्षेत्र में स्थित चालक में विधुत वाहक बल प्रेरित हो जाता है और यह फैराडे के विधुत चुम्बकीय प्रेरण सिद्धांत के कारण होता है | ट्रांसफार्मर की द्वितीय वाइंडिंग में विधुत वाहक बल पैदा हो जाता है क्योंकि वह प्राइमरी वाइंडिंग द्वारा पैदा किये गए प्रत्यावर्ती चुम्बकीय क्षेत्र में स्थित होती है | इसी प्रकार ट्रांसफार्मर की क्रोड़ भी प्रत्यावर्ती चुम्बकीय क्षेत्र में स्थित होती है इसलिए उसमे भी विधुत वाहक बल पैदा हो जाता है इसके साथ ही ट्रांसफार्मर की क्रोड़ के बोल्ट इत्यादि में भी विधुत वाहक बल प्रेरित हो जाता है  | क्रोड़ में पैदा हुआ यह विधुत वाहक बल किसी काम का नहीं होता अर्थात यह अनावश्यक ही विधुत ऊर्जा की क्षति करता है | इस कारण क्रोड़ गर्म होने लगती है |

अतः क्रोड़ में इस प्रकार पैदा होने वाले विधुत वाहक बल के कारण होने वाली विधुत ऊर्जा की क्षति को “भंवर धारा क्षति” कहते हैं |

भंवर धारा क्षति को कम करने के लिए क्रोड़ को पटलित बनाया जाता है अर्थात सिलिकॉन स्टील की पतली चादर के टुकड़ों पर दोनों तरफ वार्निश कर दी जाती है जिससे इसमें कम से कम करंट प्रवाहित हो सके |

नोट- अगर ट्रांसफार्मर की क्रोड़ को ठोस लोहे से बना दिया जाये तो उसमे सेकंडरी वाइंडिंग से भी अधिक विधुत वाहक बल पैदा हो जायेगा जिससे एडी करंट बहुत बढ़ जायेगा तत्पश्चात ट्रांसफार्मर एक लघु परिपथ (Short circuit) की तरह कार्य करेगा और अत्यधिक ऊष्मा उत्पन्न होने से ट्रांसफार्मर जल जायेगा |

भंवर धारा क्षति का सूत्र :-

We=Bmax2 . f2 . t2

 We = भंवर धारा क्षति, वाट में 
 Bmax = क्रोड़ में अधिकतम चुम्बकीय फ्लक्स घनत्व, वेबर प्रति मीटर² में
 f = फ्रीक्वेंसी, Hz में
 t = पटलन (Lemination) की मोटाई, मिमी में

Transformer losses

Transformer losses

2. ताम्र क्षति | Copper loss

ताम्र हानियां ट्रांसफार्मर की वाइंडिंग के प्रतिरोध के कारण होती हैं | अतः वाइंडिंग के प्रतिरोध के कारण होने वाली क्षति ताम्र क्षति कहलाती है | ट्रांसफार्मर पर लोड बढ़ने पर ताम्र क्षति भी बढ़ जाती है | ताम्र क्षति का मान ज्ञात करने के लिए लघु परिपथ परिक्षण (Short circuit test) किया जाता है | निम्न के कारण ताम्र क्षति का मान बढ़ जाता है :-

1. लोड बढ़ने पर (ट्रांसफार्मर पर लोड दोगुना करने पर ताम्र क्षति का मान 4 गुना हो जाता है |)
2. ट्रांसफार्मर का तापमान बढ़ने पर, क्योंकि वाइंडिंग का तापमान बढ़ने पर इसका प्रतिरोध बढ़ जाता है |

ताम्र क्षति का सूत्र :-

Wc=Ip2 . Rp + Is2 . Rs

Wc = ताम्र क्षति, वाट में |
Ip = प्राथमिक वाइंडिंग की विधुत धारा, एम्पियर में |
Rp = प्राथमिक वाइंडिंग का प्रतिरोध, ओम में |
Is = द्वितीयक वाइंडिंग की विधुत धारा, एम्पियर में |
Rs = द्वितीयक वाइंडिंग का प्रतिरोध, ओम में |

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ट्रांसफार्मर तेल की जाँच Testing of Transformer oil

Transformer oil testing

ट्रांसफार्मर तेल की जाँच Testing of Transformer oil

ट्रांसफार्मर तेल, ट्रांसफार्मर टैंक में भरा जाता है | इसे इंसुलेशन ऑइल भी कहा जाता है | ट्रांसफार्मर में तेल भरने का उद्देश्य होता है वाइंडिंग को उचित प्रतिरोधकता देना, ट्रांसफार्मर को ठंडा रखना तथा वाइंडिंग के जोड़ों में होने वाले ऑक्सीकरण को रोकना | ट्रांसफार्मर जितने अधिक वोल्टता पर प्रयुक्त होता है तेल की “डाई-इलेक्ट्रिक-स्ट्रेंथ” उतनी ही अधिक होनी चाहिए |  ट्रांसफार्मर तेल निम्न 2 प्रकार का होता है :-

1. सिंथेटिक तेल (Synthetic oil)- 
2. खनिज तेल (Mineral oil)-
तेल में नमी जाने, पानी जाने, गंदगी जाने, तेल के अन्दर स्पार्किंग होने अथवा लम्बे समय तक उपयोग में रहने से तेल ख़राब हो जाता है अतः ट्रांसफार्मर तेल की जांच आवश्यक रूप से करनी चाहिए |

तेल को ट्रांसफार्मर में भरने से पहले उसकी जाँच आवश्यक रूप से करनी चाहिए | क्योंकि तेल की डाई-इलेक्ट्रिक-स्ट्रेंथ कम होने, तेल में नमी होने, गंदगी होने आदि पर यह ट्रांसफार्मर के लिए नुकसानदायक हो सकता है | अगर जाँच में तेल ठीक ना निकले तो उसे या तो फ़िल्टर करा लेना चाहिए अथवा नया तेल डालना चाहिए |
ट्रांसफार्मर तेल का परीक्षण निम्न 4 विधियों से किया जाता है :-
 

ट्रांसफार्मर तेल की जाँच

1. डाई-इलेक्ट्रिक परीक्षण | Di-Electric test

इस परीक्षण में ट्रांसफार्मर तेल की जाँच के लिए ट्रांसफार्मर से तेल निकालकर एक टेस्टिंग कप में डाला जाता है | यह कप कांच अथवा प्लास्टिक का बना होता है | इस कप में दो एलेक्ट्रोड़ होते है जिनमे 40Hz से 60Hz तक की विधुत सप्लाई दी जाती है |

तेल परीक्षक में एक इलेक्ट्रॉनिक सर्किट लगा होता है जो 60KV तक की AC सप्लाई देता है | टेस्टिंग कप को तेल परीक्षक में लगाकर इसके दोनों एलेक्ट्रोड़ के मध्य AC विधुत सप्लाई दी जाती है | अगर दोनों एलेक्ट्रोड़ के मध्य 30KV से कम पर ही स्पार्किंग उत्पन्न हो जाये तो यह तेल ख़राब तेल माना जाता है अथवा इसकी डाई-इलेक्ट्रिक-स्ट्रेंथ कम होती है | इसे फ़िल्टर करने के बाद फिर से जांच करने पर इसमें 60KV तक स्पार्किंग उत्पन्न नहीं होनी चाहिए |

2. क्रेकल परीक्षण | Creckle test

ट्रांसफार्मर तेल की जाँच में यह परीक्षण तेल में पानी अथवा नमी की उपस्थिति जांचने के लिए किया जाता है | क्रेकल जाँच में एक नमी रहित पात्र में ट्रांसफार्मर तेल लिया जाता है | अब धातु की एक छड़ को 400°C तक गर्म किया जाता है | इस गर्म छड़ को तेल में डालकर जांच की जाती है | अगर तेल में तड़क-तड़क की आवाज सुनाइ दे अथवा बुलबुले बनें तो माना जाता है कि तेल में नमी अथवा पानी है | अगर तेल में किसी प्रकार की आवाज अथवा बुलबुले ना आयें तो तेल में पानी नहीं है |

3. अम्लता परीक्षण | Acidity test

तेल के हवा से संपर्क में आने तथा तेल में उपस्थित लोहा, ताम्बा तथा अन्य धातु योगिकों की उपस्थिति के कारण तेल का ऑक्सीकरण होने लगता है | ऑक्सीकरण के कारण तेल अम्लीय हो जाता है जिससे इसके प्रतिरोध में कमी आ जाती है जिससे वाइंडिंग में स्पार्किंग होने की सम्भावना बन जाती है तथा वाइंडिंग में काम आने वाला कागज भी ख़राब होने लगता है | अतः इससे बचने के लिए ट्रांसफार्मर तेल की जाँच का अम्लता परिक्षण (Acidity test) आवश्यक है |

अम्लता परीक्षण के लिए एक जाँच किट (Testing kit) की आवश्यकता होती है | इस किट में निम्न जाँच सामग्री होती है :-

1. रेक्टिफाइड स्पिरिट की एक पॉलिथीन बोतल
2. एक सोडियम कार्बोनेट की 
पॉलिथीन बोतल
3. यूनिवर्सल इंडिकेटर की बोतल
4. एक पारदर्शी ट्यूब
5. एक सिरिंज
6. कलर चार्ट

ट्रांसफार्मर तेल की जाँच Testing of Transformer oil निम्न प्रकार की जाती है :-
1. इस जाँच के लिए सर्वप्रथम 8 मिली ट्रांसफार्मर तेल लिया जाता है |
2. इस तेल में 1 मिली 
रेक्टिफाइड स्पिरिट मिलाया जाता है |
3. इसे मिलाने के बाद इसमें 1 मिली 
सोडियम कार्बोनेट मिलाया जाता है |
4. इसे फिर से मिलाने के बाद इसमें 
यूनिवर्सल इंडिकेटर की 5 बूंदें डाली जाती हैं |
5. अंत में तेल को मिलाने के बाद निम्न कलर चार्ट के अनुसार mgKOH/g में तेल की अम्लीयता का पता लगाया जाता है |  

ट्रांसफार्मर तेल की जाँच

4. क्षेत्र परीक्षण | Field test

4. क्षेत्र परीक्षण (Field test):-

ट्रांसफार्मर तेल की जाँच के क्षेत्र परीक्षण में एक हीटर में अन्तर्निहित आसुत जल पर जब ट्रांसफार्मर तेल की एक बूंद को एक सूक्ष्म नलीका द्वारा धीरे से गिराया जाता है तो यह तेल की बूंद चपटी हो जाती है | यदि इस बूंद का व्यास 17 mm से कम हो तो यह तेल उपयोग में लेने हेतु ठीक है | यदि तेल की बूंद 17 mm से अधिक फ़ैल जाये तो यह तेल उपयोग में लेने हेतु ठीक नहीं है |

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परिणमन अनुपात Transformation ratio

Transformation ratio, transformation anupat

परिणमन अनुपात / Transformation ratio

परिणमन अनुपात Transformation ratio

ट्रांसफार्मर की द्वितीय वाइंडिंग के लपेटों की संख्या तथा प्राथमिक वाइंडिंग के लपेटों की संख्या का अनुपात “परिणमन अनुपात” (Transformation ratio) कहलाता है |
अथवा 
ट्रांसफार्मर की द्वितीय वोल्टेज तथा प्राथमिक वोल्टेज का अनुपात “परिणमन अनुपात” (Transformation ratio) कहलाता है | क्योंकि जिस वाइंडिंग में अधिक लपेटे (turns) होंगे उसमे वोल्टेज भी अधिक होगी |
अथवा 
ट्रांसफार्मर की प्राथमिक करंट तथा द्वितीय करंट का अनुपात “परिणमन अनुपात” (Transformation ratio) कहलाता है | क्योंकि जिस वाइंडिंग की वोल्टेज अधिक होती है उसकी करंट कम होती है |

 
 
K=NsNp=EsEp=IpIs

K = Transformation ratio
Ns = Secondary turns
Np = Primary turns
Es = Secondary voltage
Ep = Primary voltage
Ip = Primary current
Is = Secondary current  

उक्त सूत्र के अनुसार ट्रांसफार्मर की दोनों वाइंडिंग की वोल्टेज E, लपेट संख्या N अथवा करंट I मे से किसी एक की जानकारी होने पर परिणमन अनुपात निकाला जा सकता है |

माना
1. किसी स्टेप-अप ट्रांसफार्मर की द्वितीयक वाइंडिंग में टर्नों की संख्या = 200
प्राथमिक वाइंडिंग में टर्नों की संख्या = 100

Transformation ratio =200100=2

2. इसी प्रकार किसी स्टेप-डाउन ट्रांसफार्मर की द्वितीयक वाइंडिंग में टर्नों की संख्या = 100
प्राथमिक वाइंडिंग में टर्नों की संख्या = 200

Transformation ratio =100200=0.5

अतः स्टेप-अप ट्रांसफार्मर का ट्रांसफॉर्मेशन अनुपात 1 से अधिक (>1) होता है तथा स्टेप-डाउन ट्रांसफार्मर का ट्रांसफॉर्मेशन अनुपात 1 से कम (<1) होता है |
अर्थात
1. हम यह कह सकते हैं कि जिस ट्रांसफार्मर का ट्रांसफॉर्मेशन अनुपात 1 से अधिक है उसकी आउटपुट वोल्टेज इनपुट वोल्टेज से अधिक होती है अर्थात वह स्टेप-अप ट्रांसफार्मर है |
 2. और जिस ट्रांसफार्मर का ट्रांसफॉर्मेशन अनुपात 1 से कम है उसकी आउटपुट वोल्टेज इनपुट वोल्टेज से कम होती है अर्थात वह स्टेप-डाउन ट्रांसफार्मर है |

 
 
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अथवा 

ट्रांसफार्मर की प्राथमिक करंट तथा द्वितीय करंट का अनुपात “परिणमन अनुपात” (Transformation ratio) कहलाता है | क्योंकि जिस वाइंडिंग की वोल्टेज अधिक होती है उसकी करंट कम होती है |

अतः स्टेप-अप ट्रांसफार्मर का ट्रांसफॉर्मेशन अनुपात 1 से अधिक (>1) होता है तथा स्टेप-डाउन ट्रांसफार्मर का ट्रांसफॉर्मेशन अनुपात 1 से कम (<1) होता है |

अर्थात

1. हम यह कह सकते हैं कि जिस ट्रांसफार्मर का ट्रांसफॉर्मेशन अनुपात 1 से अधिक है उसकी आउटपुट वोल्टेज इनपुट वोल्टेज से अधिक होती है अर्थात वह स्टेप-अप ट्रांसफार्मर है |

 2. और जिस ट्रांसफार्मर का ट्रांसफॉर्मेशन अनुपात 1 से कम है उसकी आउटपुट वोल्टेज इनपुट वोल्टेज से कम होती है अर्थात वह स्टेप-डाउन ट्रांसफार्मर है |

ट्रांसफार्मर की द्वितीय वोल्टेज तथा प्राथमिक वोल्टेज का अनुपात “परिणमन अनुपात” (Transformation ratio) कहलाता है | क्योंकि जिस वाइंडिंग में अधिक लपेटे (turns) होंगे उसमे वोल्टेज भी अधिक होगी | अथवा 

ट्रांसफार्मर की प्राथमिक करंट तथा द्वितीय करंट का अनुपात “परिणमन अनुपात” (Transformation ratio) कहलाता है | क्योंकि जिस वाइंडिंग की वोल्टेज अधिक होती है उसकी करंट कम होती है 

रिणमन अनुपात Transformation ratio

ट्रांसफार्मर की द्वितीय वाइंडिंग के लपेटों की संख्या तथा प्राथमिक वाइंडिंग के लपेटों की संख्या का अनुपात “परिणमन अनुपात” (Transformation ratio) कहलाता है |

अथवा 

ट्रांसफार्मर की द्वितीय वोल्टेज तथा प्राथमिक वोल्टेज का अनुपात “परिणमन अनुपात” (Transformation ratio) कहलाता है | क्योंकि जिस वाइंडिंग में अधिक लपेटे (turns) होंगे उसमे वोल्टेज भी अधिक होगी |

अथवा 

ट्रांसफार्मर की प्राथमिक करंट तथा द्वितीय करंट का अनुपात “परिणमन अनुपात” (Transformation ratio) कहलाता है | क्योंकि जिस वाइंडिंग की वोल्टेज अधिक होती है उसकी करंट कम होती है |परिणमन अनुपात ट्रांसफार्मर की द्वितीय वाइंडिंग के लपेटों की संख्या तथा प्राथमिक वाइंडिंग के लपेटों की संख्या का अनुपात “परिणमन अनुपात” (Transformation ratio) कहलाता है |

ट्रांसफार्मर के भाग Parts of Transformer

Parts of transformer

ट्रांसफार्मर के भाग Parts of Transformer

ट्रांसफार्मर के भाग Parts of Transformer

ट्रांसफार्मर अन्योन्य प्रेरण (Mutual inductance) के सिद्धांत पर कार्य करता है | ट्रांसफार्मर एक स्थिर विधुत मशीन है अर्थात इसमें कोई चलायमान (Movale) भाग नहीं होता अतः इसके सभी भाग स्थिर होते हैं |

ट्रांसफार्मर के कुछ महत्वपूर्ण भाग होते हैं जो सभी ट्रांसफार्मरों में जरुरी होते हैं | ये छोटे से छोटे तथा बड़े से बड़े, सभी ट्रांसफार्मरों में जरुरी होते हैं इनके बिना ट्रांसफार्मर का निर्माण असंभव होता है | तथा कुछ भाग ऐसे भी होते हैं जिनको बड़े ट्रांसफार्मरों अथवा कुछ विशेष ट्रांसफार्मरों में लगाया जाता है | ट्रांसफार्मर के अति महत्त्वपूर्ण भाग (Very important Parts of Transformer) होते हैं- क्रोड़, वाइंडिंग तथा प्रतिरोधक सामग्री, जिनका वर्णन प्रथम तीन बिन्दुओं में किया गया है तथा तापमापी, ब्रीदर, एक्सप्लोजन वेंट, बकोल्ज रिले तथा कंजरवेटर आदि सुरक्षात्मक भाग हैं | अन्य बिन्दुओं में अन्य भागों का वर्णन किया गया है |

 
ट्रांसफार्मर के भाग

ट्रांसफार्मर के भाग Parts of Transformer

ट्रांसफार्मर के भाग

1. क्रोड़ / Core

मुख्य चित्र में बिंदु संख्या 5 में क्रोड़ दर्शाइ गई है |

ट्रांसफार्मर का एक मुख्य भाग है-क्रोड़ | क्रोड़ पर ही ट्रांसफार्मर वाइंडिंग को लपेटा जाता है | बिना क्रोड़ के ट्रांसफार्मर का निर्माण संभव नहीं है | क्रोड़ पर वाइंडिंग करके इसे ट्रांसफार्मर टैंक में रखकर बोल्ट कर दिया जाता है तथा कुछ ट्रांसफार्मरों की क्रोड़ को टैंक में ना रखकर खुला ही रखा जाता है | क्रोड़ कई प्रकार की होती है जैसे- क्रोड़ प्रकार, शैल प्रकार, बेरी प्रकार तथा स्पाइरल प्रकार आदि | 

ट्रांसफार्मर में प्राइमरी वाइंडिंग द्वारा स्थापित चुम्बकीय क्षेत्र के चुम्बकीय पथ को पूर्ण करने, चुम्बकीय फ्लक्स के लिए निम्न प्रतिष्टम्भ (Low reluctance) का पथ उपलब्ध कराने तथा उसे सघन रखने के लिए लोहे की क्रोड़ का प्रयोग किया जाता है |

यदि क्रोड़ को ठोस लोहे का बना दिया जाये तो उसमे एडी धारा क्षति तथा हिस्टेरेसिस क्षति बहुत अधिक हो जाएगी, अतः लैमिनेटेड सिलिकॉन स्टील स्टेम्पिंग से बनी हुई क्रोड़ प्रयोग की जाती है | इन स्टेम्पिंग की मोटाई 0.35 mm से 0.5 mm तक रखी जाती है और इनके एक अथवा दोनों तरफ वार्निश की हुई होती है | सिलिकॉन स्टील की क्रोड़ बनाने के लिए लोहे में 3.8% से 4.5% तक सिलिकॉन धातु मिश्रित की जाती है | क्रोड़ का आकार, ट्रांसफार्मर की संरचना के अनुसार होता है | क्रोड़ के प्रकारों का विस्तृत विवरण हमारी अन्य पोस्ट ” ट्रांसफार्मर के प्रकार ” में किया गया है | 

stepped core and normal core transformer
Transformer core

ट्रांसफार्मर के भाग

ट्रांसफार्मर के भाग

2. वाइंडिंग / Winding

मुख्य चित्र में बिंदु संख्या 6 में वाइंडिंग दर्शाइ गई है |

क्रोड़ पर ताम्बे अथवा एल्युमिनियम के तारों को लपेट कर ट्रांसफार्मर वाइंडिंग की जाती है | वाइंडिंग क्रोड़ के ऊपर की जाती है | क्रोड़ पर वाइंडिंग करने से पहले क्रोड़ को भली प्रकार से प्रतिरोधित कर लिया जाता है जिससे क्रोड़ में करंट प्रवाहित ना हो तथा वाइंडिंग शॉर्ट सर्किट ना हो |

वाइंडिंग, ट्रांसफार्मर का एक जरुरी तथा मुख्य भाग होता है जिसके बिना ट्रांसफार्मर का कोई अस्तित्व नहीं है | ट्रांसफार्मर में दो वाइंडिंग की जाती हैं एक प्राथमिक वाइंडिंग तथा दूसरी द्वितीयक वाइंडिंग | 

1. प्राथमिक वाइंडिंग / Primary winding

प्राथमिक वाइंडिंग वह वाइंडिंग होती है जिसमे विधुत स्रोत से AC सप्लाई दी जाती है | यदि प्राथमिक वाइंडिंग में द्वितीयक वाइंडिंग की तुलना में अधिक घुमाव दिए जाते हैं तो यह स्टेप-डाउन ट्रांसफार्मर कहलाता है तथा यदि प्राथमिक वाइंडिंग में द्वितीयक वाइंडिंग की तुलना में कम घुमाव दिए जाते हैं तो यह स्टेप-अप ट्रांसफार्मर कहलाता है |

2. द्वितीयक वाइंडिंग / Secondary winding

द्वितीयक वाइंडिंग वह वाइंडिंग होती है जिससे लोड को विधुत सप्लाई दी जाती है | यदि द्वितीयक  वाइंडिंग में प्राथमिक वाइंडिंग की तुलना में अधिक घुमाव दिए जाते हैं तो यह स्टेप-अप ट्रांसफार्मर कहलाता है तथा यदि द्वितीयक वाइंडिंग में प्राथमिक वाइंडिंग की तुलना में कम घुमाव दिए जाते हैं तो यह स्टेप-डाउन ट्रांसफार्मर कहलाता है 

ट्रांसफार्मर के भाग

3. प्रतिरोधक सामग्री / Insulating material

प्रतिरोधक भी ट्रांसफार्मर का एक जरुरी भाग है | बिना प्रतिरोधक के ट्रांसफार्मर वाइंडिंग शोर्ट सर्किट होकर जल जाएगी | क्रोड़ पर वाइंडिंग करने से पहले क्रोड़ को भली प्रकार प्रतिरोधक कागज़ द्वारा प्रतिरोधित कर लिया जाता है तथा प्राथमिक, द्वितीयक तथा प्रत्येक फेज की वाइंडिंग के बीच में प्रतिरोधक कागज़ द्वारा प्रतिरोधन किया जाता है |

ट्रांसफार्मर ऑइल भी एक प्रतिरोधक पदार्थ है | कभी-कभी नमी के कारण ऑइल का प्रतिरोधन समाप्त हो जाता है जिससे ट्रांसफार्मर वाइंडिंग जलने की सम्भावना रहती है | इसलिए हमें समय-समय पर ट्रांसफार्मर ऑइल की प्रतिरोधकता जांच अवश्य करवानी चाहिए | ट्रांसफार्मर बुशिंग भी प्रतिरोधक पदार्थ हैं |
ट्रांसफार्मर की वाइंडिंग करते समय निम्न प्रतिरोधक सामग्री का उपयोग होता है :-

1. PVC टेप
2. कॉटन टेप
3. स्लीव
4. बैकेलाइट शीट
5. प्रतिरोधक कागज़ / वार्निश कागज़
6. लकड़ी की फन्नी
7. माइका इत्यादि

ट्रांसफार्मर के भाग

4. टैंक / Tank

मुख्य चित्र में बिंदु संख्या 2 में ट्रांसफार्मर टैंक दर्शाया गया है |

ट्रांसफार्मर टैंक लोहे का बना होता है जिसके अन्दर ट्रांसफार्मर क्रोड़ व वाइंडिंग स्थापित होती हैं तथा तेल भरा होता है | ट्रांसफार्मर के टैंक को रिसाव रहित (Leakage proof) होना चाहिए | कुछ छोटे ट्रांसफार्मर बिना टैंक के भी होते है, इनकी क्रोड़ तथा वाइंडिंग खुली होती है | 

ट्रांसफार्मर के भाग

5. ट्रांसफार्मर तेल / Transformer oil

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मुख्य चित्र में बिंदु संख्या 7 में ट्रांसफार्मर तेल दर्शाया गया है |

ट्रांसफार्मर तेल, ट्रांसफार्मर टैंक में भरा जाता है | ट्रांसफार्मर में तेल भरने का उद्देश्य होता है वाइंडिंग को उचित प्रतिरोधकता देना, ट्रांसफार्मर को ठंडा रखना तथा वाइंडिंग के जोड़ों में होने वाले ऑक्सीकरण को रोकना | ट्रांसफार्मर जितने अधिक वोल्टता पर प्रयुक्त होता है उतनी ही अधिक तेल की प्रतिरोधकता होनी चाहिए, इसलिए इसे इंसुलेशन ऑइल भी कहा जाता है | ट्रांसफार्मर तेल निम्न 2 प्रकार का होता है :-

सिंथेटिक तेल (Synthetic oil)- यह तेल सिलिकॉन व हाइड्रोकार्बन आदि से बनाया जाता है | यह महंगा होता है इसलिए इसका उपयोग खानों, सुरंगों तथा बंकरों आदि में लगे ट्रांसफार्मरों में किया जाता है |
खनिज तेल (Mineral oil)- यह पेट्रोलियम से ही प्राप्त किया जाता है | जैसे पेट्रोल, डीजल आदि | यह तेल आसानी से जलता नहीं है |
ट्रांसफार्मर तेल में निम्न गुण होने चाहियें :-

1. विधुत का कुचालक :-
ट्रांसफार्मर तेल को विधुत का अच्छा कुचालक होना चाहिए अथवा इसकी डाई-इलेक्ट्रिक-स्ट्रेंथ उच्च होनी चाहिए अन्यथा वाइंडिंग शोर्ट-सर्किट होने का खतरा रहता है | तेल में नमी के कारण इसकी 
डाई-इलेक्ट्रिक-स्ट्रेंथ कम हो जाती है | तेल टेस्टिंग यन्त्र द्वारा समय-समय पर तेल की डाई-इलेक्ट्रिक-स्ट्रेंथ नापते रहना चाहिए |
2.
ऊष्मा का सुचालक :-
ट्रांसफार्मर तेल को ऊष्मा का सुचालक होना चाहिए जिससे वाइंडिंग में पैदा होने वाली ऊष्मा को यह वातावरण में फैलाता रहे |
3. स्पार्किंग रोकने का गुण :-
ट्रांसफार्मर तेल में स्पार्किंग रोकने का गुण होना चाहिए जिससे वाइंडिंग अथवा टेप-चेंजर स्विच में होने वाली छोटी-मोटी स्पार्किंग को यह दबा सके |
4. शुद्ध एवं साफ़ :-
ट्रांसफार्मर तेल को शुद्ध होना चाहिए | तेल को देखने पर इसमें से आर-पार दिखना चाहिए तथा यह साफ हल्का पीला होता है | कुछ तेलों में सल्फर मिला होता है जिससे इसमें गाद/कीचड़ बन जाती है |
5. घनत्व :-
ट्रांसफार्मर तेल का घनत्व 0.89 gm/cm³ तक ही होना चाहिए, इससे अधिक नहीं |
6. श्यानता :-
ट्रांसफार्मर तेल की श्यानता कम होनी चाहिए जिससे यह वाइंडिंग में तारों के बीच अन्दर तक आसानी से जा सके | गाढ़ा तेल वाइंडिंग के बीच अन्दर तक नहीं पहूंच पाता
7. जमाव बिंदु :-
ट्रांसफार्मर तेल का जमाव बिंदु निम्न होना चाहिए जिससे यह ठण्ड में जमे नहीं | समान्यतः इसका जमाव बिंदु (Freezing point) -25°C होता है |
8. दहनांक :-
ट्रांसफार्मर तेल का दहनांक अथवा वह न्यूनतम तापमान जिस पर यह जलने लगे, अधिक होना चाहिए | ट्रांसफार्मर तेल का दहनांक 200°C से अधिक होना चाहिए जिससे यह 200°C तापमान तक जले नहीं |
9. ट्रांसफार्मर तेल वायु में रखे जाने पर कम से कम नमी सोखने वाला हो जिससे इसमें वातावरण से नमी प्रवेश ना करे |

ट्रांसफार्मर के भाग

6. बकोल्ज रिले / Buchholz relay

मुख्य चित्र में बिंदु संख्या 14 में बकोल्ज़ रिले दर्शाइ गई है |

बकोल्ज़ रिले एक प्रमुख सुरक्षा युक्ति है | आमतौर पर यह छोटे ट्रांसफार्मरों में नहीं लगा होता, इसका उपयोग बड़े अथवा पॉवर ट्रांसफार्मर में किया जाता है | ट्रांसफार्मर के अन्दर दोष (Fault) होने पर यह युक्ति कार्य करती है | ट्रांसफार्मर में आन्तरिक दोष पैदा होने पर यह एक अलार्म को बजा देती है तथा ट्रांसफार्मर की सप्लाई को बंद कर देती है | 

बकोल्ज़ रिले की कार्य करने की विधि निम्न चित्र द्वारा समझाई गई है |

Buchholz relay ITIWALE

बकोल्ज़ रिले निम्न प्रकार कार्य करती है :-

1. ट्रांसफार्मर में फाल्ट आने पर अधिक गर्मी से उसमें बनने वाली गैस बकोल्ज़ रिले के ऊपरी सिरे में आकर इकट्ठी हो जाती हैं जिससे फ्लोट-A के नीचे गिरने से ऊपर वाले मरकरी स्विच में भरी मरकरी दोनों बिन्दुओं को छू लेती है जिससे स्विच ऑन होकर अलार्म को चालू कर देता है परिणाम स्वरुप ऑपरेटर को पता लग जाता है कि ट्रांसफार्मर में फाल्ट है |
2. इसी प्रकार ट्रांसफार्मर में बड़ा फाल्ट आने पर तेल गर्म होकर तेजी से बकोल्ज़ रिले से होता हुआ कंजरवेटर की तरफ जाता है जिससे फ्लोट-B नीचे गिरता है | फ्लोट-B के नीचे गिरने से नीचे वाला मरकरी स्विच ऑन हो जाता है जिससे ट्रिपिंग coil का परिपथ चालू हो जाता है | यह ट्रिपिंग coil एक सर्किट ब्रेकर से जुडी रहती है जो ट्रांसफार्मर की इनपुट सप्लाई को बंद कर देता है |

ट्रांसफार्मर के भाग

7. तापमापी / Temperature gause

मुख्य चित्र में बिंदु संख्या 3 में तापमापी दर्शाया गया है |

ट्रांसफार्मर में एक तापमापी लगाया जाता है | बड़े ट्रांसफार्मरों में प्रत्येक वाइंडिंग में अलग-अलग तापमापी भी लगाया जाता है जिससे प्रत्येक वाइंडिंग का तापमान पता लगता रहता है | तापमान बढ़ने पर ऑपरेटर को ट्रांसफार्मर में दोष की खोज करनी चाहिए | कुछ ट्रांसफार्मरों में ऐसा प्रबंध भी होता है कि तापमान बढ़ने पर ट्रांसफार्मर की सप्लाई अपने आप बंद हो जाती है | ट्रांसफार्मर का तापमान 100°C से अधिक नहीं होना चाहिए | 

ट्रांसफार्मर के भाग

8. रेडियेटर / Radiator

मुख्य चित्र में बिंदु संख्या 10 में रेडिएटर दर्शाया गया है |

रेडिएटर ट्रांसफार्मर तेल को ठंडा करने का कार्य करता है | बिना तेल वाले ट्रांसफार्मरों में रेडिएटर नहीं लगाया जाता | ट्रांसफार्मर वाइंडिंग की गर्मी तेल में फ़ैल जाती है तथा रेडिएटर के उपयोग से तेल की गर्मी वातावरण में फ़ैल जाती है जिससे तेल ठंडा रहता है परिणामस्वरूप वाइंडिंग ठंडी रहती है |

कुछ छोटे ट्रांसफार्मरों में पाइपों को मोड़कर ट्रांसफार्मर के टैंक में वेल्ड कर दिया जाता है जो रेडिएटर का कार्य करते है तथा कुछ ट्रांसफार्मरों में अलग से लोहे की पतली शीट से रेडिएटर बनाकर बोल्ट से कस दिए जाते हैं | बड़े ट्रांसफार्मरों में रेडिएटरों के पास पंखे लगा दिए जाते हैं जिससे तेल तेजी से ठंडा होता है | 

Transformer radiator

ट्रांसफार्मर के भाग

9. टेप चेंजर / Tape changer

मुख्य चित्र में बिंदु संख्या 4 में टेप चेंजर दर्शाया गया है |

टेप चेंजर एक घूमने वाला स्विच होता है जिसे घुमाकर ट्रांसफार्मर की आउटपुट वोल्टेज को घटाया-बढाया जाता है | निर्माण के समय टेप चेंजर में जरुरत के अनुसार टेप बना दिए जाते हैं जैसे 5, 8, 10, 15, 17 इत्यादि |  | टेप चेंजर के कनेक्शन हाई वोल्टेज वाली वाइंडिंग पर किये जाते हैं क्योंकि हाई वोल्टेज वाली वाइंडिंग में कम करंट चलता है जिससे कम स्पार्किंग होती है |
टेप चेंजर 2 प्रकार के होते हैं :-

1. ऑफ लोड टेप चेंजर (Off load tape changer) :- एक साधारण ट्रांसफार्मर में “ऑफ लोड टेप चेंजर” लगाया जाता है जिससे टेप बदलते समय ट्रांसफार्मर से लोड को हटाना पड़ता है | इस टेप चेंजर से चालू लोड पर टेप बदलने से स्पार्किंग के कारण ट्रांसफार्मर में आग लगने की सम्भावना रहती है | इस प्रकार का टेप चेंजर उन ट्रांसफार्मरों पर लगाया जाता है जिन पर कभी-कभी  टेप बदलनी पड़ती है तथा सप्लाई बंद करने की अनुमति होती है |

2. ऑन लोड टेप चेंजर :- (On load tape changer) :- ऑन लोड टेप चेंजर से टेप बदलते समय लोड को हटाने की आवश्यकता नहीं रहती | इस प्रकार के टेप से चलते लोड पर ही टेप बदली जा सकती है | इस टेप चेंजर में निर्माण के समय ही इम्पीडेंस सर्किट तथा प्रतिरोधक लगा दिए जाते हैं जो टेप बदलते समय स्पार्किंग नहीं होने देते | इस प्रकार का टेप चेंजर उन ट्रांसफार्मरों पर लगाया जाता है जिन पर बार-बार टेप बदलनी पड़ती है अथवा सप्लाई बंद करने की अनुमति नहीं होती |

सावधानियां :- 
– 
ऑफ लोड टेप चेंजर” से टेप बदलते समय ट्रांसफार्मर से लोड हटा देना चाहिए अन्यथा ट्रांसफार्मर में स्पार्किंग से आग लगने की सम्भावना रहती है |
– ओवर लोड पर किसी भी प्रकार के टेप चेंजर से टेप नहीं बदलनी चाहिए |
नीचे टेप चेंजर के कनेक्शन तथा चित्र  दर्शाए गए हैं |

Tape changer tapping switch

Simple tapping switch connection

Tape changer tapping switch

ट्रांसफार्मर के भाग

10. कंजरवेटर / Conservator

मुख्य चित्र में बिंदु संख्या 13 में कंजरवेटर दर्शाया गया है |

कंजरवेटर एक तेल का टैंक होता है जो ट्रांसफार्मर के मुख्य टैंक से ऊंचाई पर लगा होता है | केवल तेल वाले ट्रांसफार्मरों में ही कंजरवेटर का उपयोग होता है | कंजरवेटर, तेल से लगभग आधा भरा हुआ होता है | यह एक पाइप द्वारा मुख्य टैंक से जुड़ा होता है | 

ट्रांसफार्मर का तेल ठंडा होने पर जब सिकुड़ता है तो कंजरवेटर से मुख्य टैंक में तेल चला जाता है इसी प्रकार जब गर्म होकर तेल का आयतन बढ़ता है तो मुख्य टैंक से फालतू तेल कंजरवेटर में चला जाता है | इस प्रकार यह मुख्य टैंक में तेल के स्तर को बनाये रखता है |

ट्रांसफार्मर के भाग

11. ऑइल लेवल इंडिकेटर / Oil Leval indicator

मुख्य चित्र में बिंदु संख्या 12 में ऑइल लेवल इंडिकेटर दर्शाया गया है |

ऑइल लेवल इंडिकेटर एक Weather proof तथा Temperature proof कांच का टुकड़ा होता है जो कंजरवेटर के बगल में एक खांचा काटकर लगा दिया जाता है | कंजरवेटर का तेल इस कांच के टुकड़े में से दिखता हुआ रहता है | कुछ ट्रांसफार्मरों में एक घडी नुमा इंडिकेटर भी लगा दिया जाता है जिससे जुडी हुई बॉल अन्दर तेल में पड़ी रहती है जो तेल के लेवल के साथ ऊपर-नीचे होती रहती है | 

12. ब्रीदर / Breather

मुख्य चित्र में बिंदु संख्या 11 में ब्रीदर दर्शाया गया है |

ट्रांसफार्मर का तापमान बढ़ने के कारण तेल का आयतन बढ़ता है जिससे कंजरवेटर में तेल का स्तर ऊपर हो जाता है जिससे कंजरवेटर की ऊपर की हवा ब्रीदर में से होती हुई बाहर निकल जाती है | इसी प्रकार जब ये तेल वापस ठंडा होता है तो इसका आयतन कम होता है इससे ये सिकुड़ता है | तेल सिकुड़ने के कारण बाहर की हवा कंजरवेटर में अन्दर आती है | इस बाहरी हवा में नमी के कारण ट्रांसफार्मर तेल और वाइंडिंग का इंसुलेशन ख़राब हो सकता है |

अतः इससे बचने के लिए कंजरवेटर पर ब्रीदर लगाया जाता है | इसे इस प्रकार लगाया जाता है कि कंजरवेटर में जाने वाली हवा ब्रीदर में से होती हुई कंजरवेटर के ऊपरी हिस्से में पहुंचे | ब्रीदर में सिलिका जैल भरी होती है | सिलिका जैल का गुण होता है कि यह नमी को अपने अन्दर सोख लेता है जिससे बाहरी हवा की नमी सिलिका जैल में ही रह जाती है |

एक सूखी हुई सिलिका जैल का रंग हल्का नीला होता है तथा अधिक नमी सोख लेने के बाद यह गुलाबी हो जाती है | इस पर नजर रखने के लिए ब्रीदर में एक कांच लगा होता है जिससे सिलिका जैल दिखाई देती है | सिलिका जैल का रंग गुलाबी होने पर इसे बदल देना चाहिए अथवा धुप में सुखाकर वापस हल्का नीला रंग होने पर ब्रीदर में डालनी चाहिए 

Breather

13. एक्सप्लोजन वेंट / Explosion vent

मुख्य चित्र में बिंदु संख्या 1 में एक्सप्लोजन वेंट दर्शाया गया है |

ट्रांसफार्मर में अचानक फाल्ट आने पर मुख्य टैंक में विस्फोट होने की स्थिति में टैंक फटने की सम्भावना रहती है जिससे बचने के लिए एक्सप्लोजन वेंट लगाया जाता है | यह मुख्य टैंक के ऊपर एक पाइप की आकृति का भाग होता है | इसका उपरी सिरा जमीन की तरफ मुड़ा होता है | इसके नीचे के सिरे को मुख्य टैंक से जोड़ दिया जाता है तथा उपरी सिरे को एक डायफ्राम से बंद कर दिया जाता है

ट्रांसफार्मर में विस्फोट होने की स्थिति में एक्सप्लोजन वेंट का डायफ्राम फट जाता है जिससे गर्म गैसें तथा तेल तेजी से निकल जाता है व ट्रांसफार्मर का मुख्य टैंक फटने से बच जाता है |

14. बुशिंग / Bushing

मुख्य चित्र में बिंदु संख्या 15 में ट्रांसफार्मर बुशिंग दर्शाई गई हैं |

बुशिंग (Bushing), ट्रांसफार्मर के ऊपर अथवा बगल में लगा हुआ पोर्सलेन अथवा एबोनाईट का इंसुलेटर होता है जिसका उपयोग ट्रांसफार्मर वाइंडिंग के टर्मिनलों को बाहरी परिपथ से जोड़ने के लिए किया जाता है | इसके अन्दर एक ताम्बे अथवा पीतल की रोड लगी होती है जिसे अन्दर से वाइंडिंग से जोड़ दिया जाता है तथा बाहर से बाहरी परिपथ से जोड़ दिया जाता है |

Explosan vent and bushing

15. तेल निकास / Oil outlet

मुख्य चित्र में बिंदु संख्या 8 में तेल निकास दर्शाया गया हैं |

तेल निकास एक गेट वाल्व होता है इसका उपयोग ट्रांसफार्मर में से तेल निकालने के लिए किया जाता है |

16. डाटा प्लेट अथवा नाम प्लेट / Data plate or Name plate

ट्रांसफार्मर के टैंक अथवा बॉडी पर निर्माता द्वारा एक धातु की प्लेट जड़ दी जाती है जिसमे उस ट्रांसफार्मर से सम्बंधित निम्न जानकारी लिखी होती है
Sr. no.
Manufacturers name
Date of 
Manufacture
Warranty period
KVA Rating
Frequency
Input voltage
Output voltage
Input current capacity
Output current capacity
Conductor material- Copper or alumimnium
Transformer weight
Conductor weight
Oil weight
Connection diagram etc.

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ट्रांसफार्मर के प्रकार | Types of Transformer

Types of transformer

ट्रांसफार्मर के प्रकार | Types of transformers

वैधुतिक कार्य में प्रयोग किये जाने वाले ट्रांसफार्मर्स का वर्गीकरण विभिन्न प्रकार से किया जा सकता है :-

ट्रांसफार्मर के प्रकार

-क्रोड की संरचना के आधार पर ट्रांसफार्मर के प्रकार :-

  1. क्रोड प्रकार ट्रांसफार्मर (Core type transformer)
  2. शैल प्रकार ट्रांसफार्मर (Shell type transformer)
  3. बैरी प्रकार ट्रांसफार्मर (Berry type tranformer)
  4. स्पाइरल प्रकार ट्रांसफार्मर (Spiral type transformer)

ट्रांसफार्मर के प्रकार

-वोल्टता के आधार पर ट्रांसफार्मर के प्रकार :-

  1. स्टेप-अप ट्रांसफार्मर (Step-up transformer)
  2. स्टेप-डाउन ट्रांसफार्मर  (Step-down transformer)

ट्रांसफार्मर के प्रकार

-स्थान के आधार पर ट्रांसफार्मर के प्रकार :-

  1. इनडोर ट्रांसफार्मर (Indoor transformer)
  2. आउटडोर ट्रांसफार्मर (Outdoor transformer)

ट्रांसफार्मर के प्रकार

-फेज की संख्या के आधार पर ट्रांसफार्मर के प्रकार :-

  1. एक फेज ट्रांसफार्मर (Single phase transformer)
  2. तीन फेज ट्रांसफार्मर (Three phase transformer)
 

ट्रांसफार्मर के प्रकार

-आउटपुट क्षमता के आधार पर ट्रांसफार्मर के प्रकार :-

  1. ऑटो ट्रांसफार्मर (Auto transformer)
  2. इंस्ट्रूमेंट ट्रांसफार्मर  (a) करंट ट्रांसफार्मर (b) पोटेंशियल ट्रांसफार्मर / Instrument transformer (a) Current transformer (b) Potential transformer
  3. वितरण ट्रांसफार्मर (Distribution transformer)
  4. पॉवर ट्रांसफार्मर (Power transformer)
 

ट्रांसफार्मर के प्रकार

-क्रोड़ को ठंडा रखने के आधार पर ट्रांसफार्मर के प्रकार :-

  1. तेल द्वारा ठन्डे होने वाले ट्रांसफार्मर (Oil cooled transformer)
  2. प्राकृतिक रूप से ठन्डे होने वाले ट्रांसफार्मर (Naturally cooled transformer)
  3. जल द्वारा ठन्डे होने वाले ट्रांसफार्मर (Water cooled transformer)
  4. वायु दाब द्वारा ठन्डे होने वाले ट्रांसफार्मर (Forced air cooled transformer)
 
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ट्रांसफार्मर के प्रकार

क्रोड़ की संरचना के आधार पर ट्रांसफार्मर के प्रकार :-

ट्रांसफार्मर में प्राइमरी वाइंडिंग द्वारा स्थापित चुम्बकीय क्षेत्र के चुम्बकीय पथ को पूर्ण करने, चुम्बकीय फ्लक्स के लिए निम्न प्रतिष्टम्भ (Low reluctance) का पथ उपलब्ध कराने तथा उसे सघन रखने के लिए लोहे की क्रोड़ का प्रयोग किया जाता है | लोहे की क्रोड़ C, E, I, J, L, U आदि आकार की होती हैं | यदि क्रोड़ को ठोस लोहे का बना दिया जाये तो उसमे एडी धारा क्षति तथा हिस्टेरेसिस क्षति बहुत अधिक हो जाएगी |

अतः लैमिनेटेड सिलिकॉन स्टील की क्रोड़ प्रयोग की जाती है | ये सिलिकॉन स्टील की चादर को काटकर बनाई जाती हैं | इनकी मोटाई 0.35 mm से 0.5 mm तक रखी जाती है और इनके एक अथवा दोनों तरफ वार्निश की हुई होती है | सिलिकॉन स्टील की क्रोड़ बनाने के लिए लोहे में 3.8% से 4.5% तक सिलिकॉन धातु मिश्रित की जाती है | क्रोड़ का आकार, ट्रांसफार्मर की संरचना के अनुसार होता है | 

 
 
ट्रांसफार्मर के प्रकार | Types of transformers

क्रोड की संरचना के आधार पर ट्रांसफार्मर के प्रकार 4 होते हैं जो निम्न हैं :-

1. क्रोड़ प्रकार ट्रांसफार्मर / Core type transformer

इस प्रकार के ट्रांसफार्मर की क्रोड़ L आकार, U आकार अथवा I आकार की पटलनों से वर्गाकार, आयताकार अथवा अंडाकार आकार में बनी होती है | इस क्रोड़ की चित्रानुसार 2 भुजा होती हैं जिन पर प्राइमरी व सेकेंडरी वाइंडिंग लिपटी रहती हैं |

क्रोड़ प्रकार ट्रांसफार्मर की क्रोड़ का सरल आरेख निम्न चित्र में दिखाया गया है | इसमें चुम्बकीय फ्लक्स का केवल एक मार्ग होता है |

ट्रांसफार्मर के प्रकार | Types of transformers

चित्र में जो डॉटेड लाइन दिखाई गई हैं वह चुम्बकीय फ्लक्स मार्ग है | कम आउटपुट वाले छोटे ट्रांसफार्मरों में क्रोड़ का रूप आयताकार या वर्गाकार होता है और कुंडलियाँ (Coils) भी आयताकार या वर्गाकार बनाई जाती हैं | बड़े व अधिक आउटपुट वाले ट्रांसफार्मरों के क्रोड़ को स्टेप्ड (Stepped) क्रोड़ वाला बनाया जाता है | और इस कारण इनकी कुंडलियां गोल बनाई जा सकती हैं |

(निम्न चित्रों में स्टेप्ड कोर तथा साधारण कोर में अंतर दर्शाया गया है)

Stapped core and normal transformer
Stepped core and normal core ITIWALE

पट्लनों को जोड़ते समय यह ध्यान रखा जाता है कि चुम्बकीय मार्ग में वायु अन्तराल (Air gap) ना रहे, यदि वायु अन्तराल रह जाता है तो इस वायु अन्तराल में फ्लक्स का क्षय (Loss) हो जाता है जिसके कारण क्रोड़ में जरुरी फ्लक्स कम पड़ जाती है, इस कमी को पूरा करने के लिए बहुत अधिक एम्पीयर टर्नों की आवश्यकता पड़ती है जिससे अधिक तार की आवश्यकता पड़ती है |

क्रोड़ काफी मजबूती से रिवेट अथवा बोल्ट से कसी हुई होनी चाहिए | यदि ढीली रह जाए तो AC धारा के कारण क्रोड़ों में कभी आकर्षण तथा कभी विकर्षण होगा जिससे टकराहट के कारण शोर उत्पन्न होगा तथा क्रोड़ गर्म होंगी |

2. शैल प्रकार ट्रांसफार्मर / Shell type transformer

शैल प्रकार ट्रांसफार्मर में प्रयुक्त क्रोड़ चित्रानुसार E तथा I अथवा U तथा T प्रकार के होते हैं अर्थात एक ट्रांसफार्मर चित्रानुसार E व I आकार के पट्लनों को जोड़कर अथवा U व T आकार के पट्लनों को जोड़कर बनाया जा सकता है | छोटे ट्रांसफार्मर शैल प्रकार के होते है | इस प्रकार के ट्रांसफार्मरों में तीन भुजाएं होती हैं, एक आंतरिक अथवा केंद्रीय भुजा जिस पर वाइंडिंग लपेटी होती है तथा दो बाह्य भुजाएं जो चुम्बकीय मार्ग पूरा करती हैं | आंतरिक अथवा केंद्रीय भुजा का अनुप्रस्थ क्षेत्रफल बाहर की भुजाओं से लगभग दोगुना होता हैं |

Shell type transformer

Shell type transformer core

shell type transformer silicon spempings and core

ट्रांसफार्मर की प्राइमरी तथा सेकेंडरी वाइंडिंग उक्त चित्रानुसार क्रोड़ के मध्य वाले लिंब (Limb) पर लिपटी होती है | इसमें निम्न वोल्टता वाली वाइंडिंग को क्रोड़ के पास अथवा नीचे लपेटा जाता है तथा उसके ऊपर उच्च वोल्टता वाली वाइंडिंग को लपेटा जाता है | लगभग सभी एक फेज ट्रांसफार्मर शैल प्रकार के होते हैं |

निम्न चित्र में शैल प्रकार ट्रांसफार्मर की क्रोड़ का क्रॉस सेक्शन एरिया दिखाया गया है |

Cross section area of shell type transformer

शैल प्रकार ट्रांसफार्मर में चित्रानुसार दो चुम्बकीय मार्ग बनते हैं जिससे इस प्रकार के ट्रांसफार्मर, स्टेप-अप (कम वोल्टेज को अधिक करने) तथा स्टेप-डाउन (अधिक वोल्टेज को कम करने) दोनों प्रकार के होते हैं | दो चुम्बकीय पथ होने से इस ट्रांसफार्मर में फ्लक्स का क्षय (Leakage) भी बहुत कम होता है | अतः इसका वोल्टेज नियमन (Voltage regulation) क्रोड़ प्रकार ट्रांसफार्मर की तुलना में अधिक अर्थात ठीक होता है | ट्रांसफार्मर की कुंडलियां दोनों तरफ से क्रोड़ के बाहरी लिंब से घिरी होने के कारण यह ट्रांसफार्मर शैल प्रकार ट्रांसफार्मर कहलाता है | इस प्रकार के ट्रांसफार्मरों का भार क्रोड़ प्रकार ट्रांसफार्मर की तुलना में अधिक होता है |

क्रोड़ प्रकार तथा शैल प्रकार ट्रांसफार्मर में अंतर

क्रोड़ प्रकार ट्रांसफार्मर

core type transformer
  1. क्रोड़ प्रकार ट्रांसफार्मर में वाइंडिंग, क्रोड़ के बाहरी हिस्से पर होने के कारण आसानी से दिखाई देती है, जिससे रख-रखाव आसानी से हो जाता है |
  2. क्रोड़ प्रकार ट्रांसफार्मर में वाइंडिंग बाहर की तरफ होने से हवा से वाइंडिंग ठंडी रखने में मदद मिलती है |
  3. क्रोड़ प्रकार ट्रांसफार्मर में क्रोड़ की औसत लम्बाई अधिक होती है |
  4. क्रोड़ प्रकार ट्रांसफार्मर में फ्लक्स के बहने का केवल एक मार्ग होता है |
  5. क्रोड़ प्रकार ट्रांसफार्मर में क्रोड़ का क्रॉस सेक्शन क्षेत्रफल कम होता है |
  6.  क्रोड़ प्रकार ट्रांसफार्मर आम तौर पर हाई वोल्टेज में उपयुक्त होता है |

शैल प्रकार ट्रांसफार्मर

shell type transformer
  1. शैल प्रकार ट्रांसफार्मर में वाइंडिंग, क्रोड़ में आंतरिक हिस्से पर होने के कारण आसानी से दिखाई नहीं देती है जिससे रख-रखाव आसान नहीं होता है 
  2. शैल प्रकार  ट्रांसफार्मर में वाइंडिंग बीच के लिंब पर होने के कारण क्रोड़ ठंडा रहता है | इसमें क्रोड़ ठंडा होने से वाइंडिंग ठंडी होती है |
  3. शैल प्रकार ट्रांसफार्मर में क्रोड़ की औसत लम्बाई कम होती है |
  4. शैल प्रकार ट्रांसफार्मर में फ्लक्स के बहने के लिए दो मार्ग होते हैं |
  5. शैल प्रकार ट्रांसफार्मर में क्रोड़ का क्रॉस सेक्शन क्षेत्रफल ज्यादा होता है इसलिए कम टर्न लगते हैं |
  6. शैल प्रकार ट्रांसफार्मर आम तौर पर लो वोल्टेज में उपयुक्त होता है |

3. बेरी प्रकार ट्रांसफार्मर / Berry type transformer

इस ट्रांसफार्मर का नाम इसके खोजकर्ता के नाम पर रखा गया है | साधारणतया इस प्रकार के ट्रांसफार्मर का उपयोग कम किया जाता है क्योंकि इसकी वाइंडिंग करना एक कठिन कार्य है | ट्रांसफार्मर में क्रोड़ कई आयताकार फ्रेमों द्वारा बनी होती है | सभी फ्रेमों की एक-एक भुजा को पास में रखकर क्रोड़ की केंद्रीय भुजा बनाई जाती है और दूसरी भुजाएं वाइंडिंग को चारों और से ढक  लेती हैं | इस प्रकार कई चुम्बकीय मार्ग बन जाते हैं जिससे चुम्बकीय फ्लक्स का लीकेज न्यूनतम रहता है |

बेरी प्रकार के ट्रांसफार्मर को निम्न चित्र में दर्शाया गया हैं |

Berry type transformer

क्रोड़ में अनेक चुम्बकीय मार्ग होने के कारण वाइंडिंग की ऊष्मा का विकिरण होता रहता है जिससे वे अन्य प्रकार के ट्रांसफार्मर की अपेक्षा ठंडी रहती है | इस प्रकार के ट्रांसफार्मर कम शक्ति क्षमता वाले होते हैं व इनका प्रयोग ध्वनी यंत्रों, विधुत नियंत्रण, चिकित्सा उपकरणों, इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों तथा अन्य विशेष कार्यों के लिए किया जाता है |

4. स्पाइरल प्रकार ट्रांसफार्मर / Spiral type transformer

क्रोड़ की संरचना की द्रष्टि से यह एक नया अविष्कार है | इस प्रकार के ट्रांसफार्मर की क्रोड़ को बनाने के लिए एक लम्बे सिलिकॉन स्टील की रिबन का उपयोग किया जाता है जिसे निम्न चित्र में दर्शाया गया है |

Lamination of spiral type transformer

उक्त सिलिकॉन स्टील की रिबन को गोलाकार व दीर्घवृत्त रूप में निम्न चित्रानुसार वाइंड किया जाता है और फिर उसे विधुत रोधी (Insulated) कर उस पर ताम्र या एल्युमीनियम चालकों से वाइंडिंग की जाती है | इस प्रकार की संरचना के कारण इस ट्रांसफार्मर के क्रोड़ में फ्लक्स का क्षय कम होता है | इसमें ठंडी अवस्था की रोलिंग स्पात (Rolling steel) का उपयोग किया जाता है जिसमें सिलिकॉन की मात्रा अधिक होती है इस कारण इसमें फ्लक्स घनत्व अधिक होता है |

spiral type transformer
Spiral type transformer

सामान्यतः प्राथमिक कुंडलन का कुछ भाग एक भुजा पर तथा शेष भाग दूसरी भुजा पर और इसी प्रकार द्वितीयक कुंडलन का कुछ भाग एक भुजा पर तथा शेष भाग दूसरी भुजा पर लपेटा जाता है | ऐसा करने से क्षरण फ्लक्स ( Leakage flux) कम हो जाता है और कुंडलन के अधिक विधुत वाहक बल प्रेरित होता है | आमतौर पर निम्न वोल्टता कुंडलन क्रोड़  पर नीचे की तरफ और उच्च वोल्टता कुंडलन उसके ऊपर वाइंड की जाती है | उससे उच्च वोल्टता कुंडलन को पर्याप्त विधुत विरोधन मिल जाता है |

 

लाभ

स्पाइरल प्रकार ट्रांसफार्मर के निम्नलिखित लाभ हैं :-
  1.  क्रोड़ अधिक ठोस बनती है |
  2. इसका भार कम होता है |
  3. लोह हानियां कम होती हैं |
  4. निर्माण लागत कम आती है |

नोट – ट्रांसफार्मर में कुंडलन एक महत्वपूर्ण भाग होता है | इसमें दो विधुतरोधी / एनेमल (Enamel) ताम्र या एल्युमीनियम तार की प्राथमिक व द्वितीयक कुंडली (Coil) होती हैं, दोनों कुंडली तथा क्रोड़ आपस में विधुत-रोधित रहती हैं | हमें चित्रानुसार प्राथमिक कुंडलन का आधा भाग एक भुजा पर तथा शेष आधा भाग दूसरी भुजा पर और इसी प्रकार द्वितीय कुंडली का आधा भाग एक भुजा पर तथा शेष आधा भाग दूसरी भुजा पर लपेटना चाहिए | ऐसा करने से क्षरण फ्लक्स (Leakage flux) अधिक नहीं होती है व दोनों कुंडलियों में ज्यादा विधुत वाहक बल प्रेरित होता है | हमें इस प्रकार से कुंडलन नहीं करना चाहिए कि केवल एक भुजा पर प्राथमिक व दूसरी भुजा पर द्वितीयक कुंडलन लपेटी जाये |

हमें निम्न वोल्टता कुंडली (L.T. Coil), क्रोड़ पर“ पहले अर्थात नीचे और उच्च वोल्टता कुंडली उसके ऊपर अर्थात बाद में रखी जानी चाहिए | जिसका क्रॉस सेक्शन एरिया निम्न चित्र में दर्शाया गया है | उच्च वोल्टता कुंडली को ऊपर अर्थात क्रोड़ से दूर रखने से इसे पर्याप्त विधुत रोधन अथवा इंसुलेशन मिल जाता है | कुंडलियों को यांत्रिक रूप से भी क्रोड़ के साथ मजबूती से बांधना चाहिए क्योंकि उच्च वोल्टता वाले ट्रांसफार्मर में उच्च वोल्टता प्रतिबल उत्पन्न होता है, जिससे कुंडलन की वर्तों (Turns) पर दबाव पड़ता है इससे कुंडलन के वर्त टूटने का खतरा रहता है |

cross section area of spiral type transformer

ट्रांसफार्मर के प्रकार

वोल्टता के आधार पर ट्रांसफार्मर के प्रकार :-

हम यह जानते हैं कि ट्रांसफार्मर का उपयोग वोल्टेज को अधिक या कम करने (स्टेप-अप तथा स्टेप-डाउन) के लिए किया जाता है | वोल्टता के आधार पर ट्रांसफार्मर के प्रकार 2 होते हैं जो निम्न हैं :- 

1. स्टेप-अप ट्रांसफार्मर -

वह ट्रांसफार्मर जो इनपुट में दी गई वोल्टेज को आउटपुट में बढ़ा देता है अर्थात आउटपुट में अधिक वोल्टेज प्रदान करता है, स्टेप-अप ट्रांसफार्मर कहलाता है | स्टेप-अप ट्रांसफार्मर की प्राइमरी वाइंडिंग में तुलनात्मक रूप से सेकेंडरी वाइंडिंग से मोटे तार का उपयोग किया जाता है तथा कम टर्न दिए जाते हैं तथा सेकेंडरी वाइंडिंग तुलनात्मक रूप से पतले तार का उपयोग किया जाता है तथा अधिक टर्न दिए जाते हैं | अर्थात अधिक टर्न से अधिक वोल्टेज |

इसका उपयोग विधुत उत्पादन केन्द्रों पर पैदा की गई वोल्टेज को उच्च वोल्टेज में परिवर्तित करने के लिए किया जाता है क्योंकि विधुत उत्पादन केन्द्रों पर आल्टरनेटर द्वारा पैदा की गई वोल्टेज सामान्यतः 11000 वोल्ट होती है | इस वोल्टेज को लम्बी दूरी पर पारेषण करने हेतु उच्च वोल्टेज में परिवर्तित किया जाता है जिसके लिए स्टेप-अप ट्रांसफार्मर का उपयोग किया जाता है |

2. स्टेप-डाउन ट्रांसफार्मर -

वह ट्रांसफार्मर जो इनपुट में दी गई वोल्टेज को आउटपुट में कम कर देता है अर्थात आउटपुट में निम्न वोल्टेज प्रदान करता है, स्टेप-डाउन ट्रांसफार्मर कहलाता है | स्टेप-डाउन ट्रांसफार्मर की प्राइमरी वाइंडिंग में तुलनात्मक रूप से पतले तार का उपयोग किया जाता है तथा अधिक टर्न दिए जाते हैं तथा सेकेंडरी वाइंडिंग में तुलनात्मक रूप से मोटे तार का उपयोक किया जाता है तथा कम टर्न दिए जाते हैं | 

इसका उपयोग विधुत ग्रिड उप केन्द्रों (GSS) पर किया जाता है क्योंकि शहरी अथवा ग्रामीण क्षेत्रों में डिस्ट्रीब्यूशन वोल्टेज का मान सामान्यतः 11000V होता है जिसे घरों, दुकानों अथवा कारखानों में उपयोग लेने हेतु 240V अथवा 440V में परिवर्तित करना आवश्यक होता है अर्थात 11000V को 220V अथवा 440V में परिवर्तित करने के लिए स्टेप-डाउन ट्रांसफार्मर का उपयोग किया जाता है | ये ट्रांसफार्मर प्राय: तीन फेज डेल्टा-स्टार प्रकार तथा एक फेज  के होते हैं |

step up vs step down transformer

ट्रांसफार्मर की विधुत वाहक बल समीकरण :-

Transformer ratio

यहां :-
E1 = ट्रांसफार्मर की प्राइमरी वोल्टेज 
E2 = ट्रांसफार्मर की सेकेंडरी वोल्टेज 
N1 = प्राइमरी वाइंडिंग में टर्नों की संख्या 
N2 = सेकेंडरी वाइंडिंग में टर्नों की संख्या 

ट्रांसफार्मर के प्रकार

स्थान के आधार पर ट्रांसफार्मर के प्रकार :-

स्थान के आधार पर ट्रांसफार्मर के प्रकार 2 होते हैं जो निम्न हैं :-
1. इनडोर ट्रांसफार्मर / Indoor transformer
2. आउटडोर ट्रांसफार्मर / Outdoor transformer

1. इनडोर ट्रांसफार्मर / Indoor transformer

इनडोर ट्रांसफार्मर प्रायः वे ट्रांसफार्मर होते हैं जिन्हें किसी भवन में अथवा छत के नीचे रखा जाता है | ये वे छोटे ट्रांसफार्मर होते हैं जिन्हें स्थापना करते समय अथवा बदलते समय आसानी से अन्दर-बाहर किया जा सकता है | करंट ट्रांसफार्मर (Current transformer) तथा पोटेंशियल ट्रांसफार्मर (Potential transformer) भी इनडोर ट्रांसफार्मर होते हैं | करंट ट्रांसफार्मर तथा पोटेंशियल ट्रांसफार्मर को आगे इसी पोस्ट में हम विस्तार से समझायेंगे |

2. आउटडोर ट्रांसफार्मर / Outdoor transformer

आउटडोर ट्रांसफार्मर प्रायः वे ट्रांसफार्मर होते हैं जिन्हें खुली जगह में रखना आवश्यक है अथवा खुली जगह में रखा जाता हैं | ये वे बड़े ट्रांसफार्मर होते हैं जिन्हें स्थापना करते समय अथवा बदलते समय किसी भवन के अन्दर लाना तथा ले जाना बहुत मुश्किल कार्य होता है अतः इन्हें खुली जगह में रखना आवश्यक होता है | शक्ति ट्रांसफार्मर (Power transformer) तथा वितरण ट्रांसफार्मर ( Distribution transformer) आमतौर पर  आउटडोर ट्रांसफार्मर होते हैं | शक्ति ट्रांसफार्मर तथा वितरण ट्रांसफार्मर को आगे इस पोस्ट में हम विस्तार से समझेंगे |

itiale.in

ट्रांसफार्मर के प्रकार

फेज की संख्या के आधार पर ट्रांसफार्मर के प्रकार :-

फेज की संख्या के आधार पर ट्रांसफार्मर के प्रकार 2 होते हैं जो निम्न हैं :-

 

1. एक फेज / एक कला ट्रांसफार्मर / Single phase transformer

एक फेज विधुत सप्लाई पर कार्य करने वाले ट्रांसफार्मर, एक फेज ट्रांसफार्मर अथवा एक कला ट्रांसफार्मर कहलाते हैं | इनमे एक प्राइमरी वाइंडिंग तथा एक सेकेंडरी वाइंडिंग होती है | ये ट्रांसफार्मर आम तौर पर 250 वोल्ट अथवा इससे नीचे के वोल्टेज पर कार्य करने वाले होते हैं और क्रोड प्रकार के तथा शैल प्रकार के होते हैं | इनका उपयोग प्रायः घरेलू उपकरणों में किया जाता है, जैसे- वोल्टेज स्टेबलाइजर, टीवी, रेडियो, मोबाइल चार्जर, इन्वर्टर आदि | ग्रामीण क्षेत्रों में विधुत डिस्ट्रीब्यूशन के लिए भी इनका उपयोग किया जाता है |

2. तीन फेज / तीन कला ट्रांसफार्मर / Three phase transformer

तीन फेज विधुत सप्लाई पर कार्य करने वाले ट्रांसफार्मर, थ्री फेज ट्रांसफार्मर अथवा तीन कला ट्रांसफार्मर कहलाते हैं | इनमे तीन प्राइमरी और तीन सेकेंडरी वाइंडिंग होती हैं तथा ये आम तौर पर शैल प्रकार के होते हैं | इनका उपयोग विधुत उत्पादन केन्द्रों पर उत्पन्न की गई 11 KV विधुत सप्लाई को 66KV, 110KV, 132KV, 220KV, 440KV तक स्टेप-अप करके पारेषण करने हेतु किया जाता है | इसके अतिरिक्त ग्रिड सब स्टेशनों तथा डिस्ट्रीब्यूशन सब स्टेशनों पर प्राप्त विधुत सप्लाई की वोल्टेज कम करके वितरण करने के लिए उपयोग किया जाता है |

उक्त दोनों ट्रांसफार्मरों की आंतरिक संरचना निम्न चित्रों में दर्शाई गई है :-

3 Phase vs 1 phase transformer

ट्रांसफार्मर के प्रकार

आउटपुट क्षमता के आधार पर ट्रांसफार्मर के प्रकार :-

आउटपुट क्षमता के आधार पर ट्रांसफार्मर के प्रकार 4 होते हैं जो निम्न हैं :-

1. ऑटो ट्रांसफार्मर / स्वः परिणामित्र / Auto transformer

जिस ट्रांसफार्मर में केवल एक वाइंडिंग होती है, ऑटो ट्रांसफार्मर कहलाता है | एक ही वाइंडिंग प्राइमरी वाइंडिंग तथा सेकेंडरी वाइंडिंग दोनों का कार्य करती है | स्वःपरिणामित्र का कार्य सिद्धांत दो वाइंडिंग वाले साधारण परिणामित्र जैसा ही है परन्तु इसमें प्राथमिक तथा द्वितीयक कुंडलन विधुतीय द्रष्टि से तथा चुम्बकीय द्रष्टि से आपस में जुडी रहती है इसलिए हम मान सकते हैं कि दोनों वाइंडिंग एक ही होती हैं | जबकि साधारण ट्रांसफार्मर में प्राथमिक व द्वितीयक कुंडलन विधुतीय द्रष्टि से अलग परन्तु चुम्बकीय द्रष्टि से जुडी रहती हैं |

नोट- विधुतीय द्रष्टि से जुड़ा होना अर्थात दोनों वाइंडिंग के तारों का आपस में जुड़ा हुआ होना |
चुम्बकीय द्रष्टि से जुडी होना अर्थात एक वाइंडिंग द्वारा पैदा चुम्बकीय फ्लक्स दूसरी वाइंडिंग में से गुजरती हैं |

निम्न चित्रानुसार यदि पूरी वाइंडिंग को प्राइमरी बना दिया जाये तथा उसी वाइंडिंग के कुछ भाग को सेकेंडरी वाइंडिंग बना दिया जाये तो यह “स्टेप-डाउन ट्रांसफार्मर” बन जाता है | इसी प्रकार, यदि वाइंडिंग के कुछ भाग को प्राइमरी वाइंडिंग बना दिया जाये तथा उसी पूरी वाइंडिंग को सेकेंडरी बना दिया जाये तो यह “स्टेप-अप ट्रांसफार्मर” बन जाता है |

Auto transformer diagram

ऑटो ट्रांसफार्मर, स्व-प्रेरण (Self induction) के सिद्धांत पर कार्य करता है | इसका ट्रांस्फोर्मेशन रेशो का वही सूत्र रहता है जो सामान्य ट्रांसफार्मर का होता है | अर्थात :-

Transformer ratio

E1 = ट्रांसफार्मर की प्राइमरी वोल्टेज
E2 = ट्रांसफार्मर की सेकेंडरी वोल्टेज 
N1 = प्राइमरी वाइंडिंग में टर्नों की संख्या 
N2 = सेकेंडरी वाइंडिंग में टर्नों कि संख्या 

ऑटो ट्रांसफार्मर के उपयोग

  •  इंडक्शन मोटर के गति नियंत्रण में |
  • वोल्टेज स्टेबलाइजर में |
  • बूस्टर में |
  • इलेक्ट्रिकल तथा इलेक्ट्रॉनिक प्रयोगशालाओं में |

ऑटो ट्रांसफार्मर के लाभ तथा हानियां

लाभ

  1. ऑटो ट्रांसफार्मर को स्टार्टर के रूप में तीन फेज प्रेरण मोटर को चलाने में काम में लिया जा सकता है | इससे ताम्बे की बचत होती है |
  2. इसको विधुत लाइन के श्रेणी में जोड़कर बूस्टर की तरह काम में लेकर लाइन की वोल्टेज को बढाया जा सकता है |
  3. इसका वोल्टेज रेगुलेशन भी सामान्य ट्रांसफार्मर की अपेक्षा अधिक होता है (निम्न वोल्टेज परिवर्तनों पर)
  4. एक ही वाइंडिंग होने के कारण यह सामान्य ट्रांसफार्मर की अपेक्षा आकार में छोटा होता है जिससे ताम्बे की बचत होती है |
  5. एक ही वाइंडिंग होने के कारण लोह तथा ताम्र क्षति कम होती है |
  6. विधुत शक्ति नियत रहती है |
  7. सामान्य ट्रांसफार्मर की अपेक्षा कम लागत वाला होता है |

हानियां

  1. ऑटो ट्रांसफार्मर की सेकेंडरी वाइंडिंग में बहुत कम वोल्टेज होने पर भी इस पर जुड़े हुए उपकरणों की मरम्मत करते समय कारीगर को विधुत झटका लग सकता है क्योंकि इसकी सेकेंडरी तथा प्राइमरी एक ही होती है |
  2. दोनों वाइंडिंग जुडी होने के कारण इसमें एक अच्छी इंसुलेशन की आवश्यकता होती है |
  3. ऑटो ट्रांसफार्मर में न्यूट्रल बिंदु (Neutral point) नहीं होता है क्योंकि इसकी वाइंडिंग विधुतीय रूप तथा चुम्बकीय रूप दोनों प्रकार से जुडी होती है |
  4. इसका उपयोग केवल लो-वोल्टेज पर ही किया जाता है |

वैरीएक / Variac

वैरीएक भी एक प्रकार का ऑटो ट्रांसफार्मर ही होता है | यदि ऑटो ट्रांसफार्मर में से निम्न चित्रानुसार कुछ टैपिंग निकाल दी जायें तो उससे प्राप्त AC सप्लाई में हम कई वोल्टेज निकाल सकते हैं | ऐसा उपकरण वैरीएक कहलाता है |

वैरीएक का उपयोग विभिन्न वोल्टता की AC सप्लाई प्रदान करने वाले उपकरण के रूप में किया जाता है | यदि AC वोल्टता के बढ़ने/घटने की न्यूनतम सीमा 1 वोल्ट तक रखनी हो तो टैपिंग स्विच (Tapping switch) के श्रेणी क्रम में एक वायर वाउंड प्रकार का पोटेन्शियोमीटर (Potentio meter) भी संयोजित कर दिया जाता है | पोटेन्शियोमीटर का उपयोग समान्यतः 5 से 10 अम्पीयर की दर पर विधुत धारा प्रदान करने वाले वैरीएक में ही किया जा सकता है | साधारण ट्रांसफार्मर के समान ही वैरीएक का उपयोग DC सप्लाई में नहीं किया जा सकता | DC सप्लाई को कम करने के लिए रिहोस्टेट (Rheostat) का उपयोग किया जाता है |

Variac auto transformer
variac

2. इंस्ट्रूमेंट ट्रांसफार्मर / Instrument transformer

उच्च मान के वोल्टेज तथा विधुत धारा मापक यंत्रों में प्रयोग किया जाने वाला ट्रांसफार्मर, इंस्ट्रूमेंट ट्रांसफार्मर कहलाता है | उच्च प्रत्यावर्ती वोल्टेज एवं धाराओं के मापन के लिए सीधे ही परिपथ में वोल्ट मीटर अथवा एम्मीटर लगाकर उच्च वोल्टेज अथवा धारा को मापना संभव नहीं है | ऐसा करने पर उपकरण जल जायेगा व पैनल बोर्ड पर कार्य करने वाले व्यक्ति के लिए भी घातक हो सकता है |

इंस्ट्रूमेंट ट्रांसफार्मर का कार्य होता है परिपथ की प्रत्यावर्ती धारा अथवा वोल्टता को निर्धारित अनुपात में कम करके मापन उपकरण ( वोल्टमीटर, एम्मीटर, वाट मीटर, एनर्जी मीटर अथवा पॉवर फैक्टर मीटर आदि) को देना जिससे परिपथ की धारा, वोल्टता, शक्ति, ऊर्जा अथवा पॉवर फैक्टर को मापा जा सके | इंस्ट्रूमेंट ट्रांसफार्मर में भी साधारण ट्रांसफार्मर की तरह सिलिकॉन स्टील से निर्मित क्रोड का उपयोग किया जाता है | 7000 वोल्ट से अधिक वोल्टेज पर कार्य करने वाले इंस्ट्रूमेंट ट्रांसफार्मर में ट्रांसफार्मर ऑइल का उपयोग किया जाता है |

अतः प्रत्यावर्ती धारा परिपथ (AC Circuit) के मापन के लिए इंस्ट्रूमेंट ट्रांसफार्मर का प्रयोग किया जाता है | यह मुख्यतः 2 प्रकार का होता है :-

1. करंट ट्रांसफार्मर (CT)
2. पोटेंशियल ट्रांसफार्मर (PT)

Instrument transformer CT PT

करंट ट्रांसफार्मर ( Current transformer) / CT

करंट ट्रांसफार्मर (CT) का उपयोग उच्च प्रत्यावर्ती धारा को मापने के लिए किया जाता है | यह एक “करंट स्टेप-डाउन” अर्थात “वोल्टेज स्टेप-अप” प्रकार का छोटा ट्रांसफार्मर होता है | निम्न चित्रानुसार इसकी प्राइमरी में एक-दो लपेट अथवा एक सीधा व मोटा तार होता है | जबकि सेकेंडरी वाइंडिंग पलते तार की तथा पूर्व निर्धारित अनेक लपेट वाली बनाई जाती है | 

अधिकतर करंट ट्रांसफार्मर की क्रोड पर केवल सेकेंडरी वाइंडिंग ही की जाती है तथा इसके बीच में से लोड वाले तार को सीधा ही निकाल दिया जाता है जो प्राइमरी वाइंडिंग का कार्य करता है ( निम्न चित्र में दर्शाए अनुसार ) | इस प्रकार परिपथ की 200-300 A विधुत धारा को केवल 2-3 A विधुत धारा में परिवर्तित किया जाता है और उसे करंट ट्रांसफार्मर की सेकेंडरी वाइंडिंग से संयोजित 0-5 एम्पियर के अमीटर के द्वारा माप लिया जाता है | अमीटर का स्केल 0-300 A मापसीमा के लिए अनुपातिक आधार पर अंकित कर दिया जाता है |

करंट ट्रांसफार्मर की सेकेंडरी वाइंडिंग को अर्थ से कनेक्ट रखा जाना चाहिए जिससे इस पर कार्य करते समय ऑपरेटर को विधुत झटका ना लगे | 

CT connection

उदहारण- यदि हमें 1000A की प्रत्यावर्ती विधुत धारा 10 A के अमीटर से मापनी हो तो इसके लिए हमें 100:1  के अनुपात वाला करंट ट्रांसफार्मर (CT) तथा 10A के अमीटर (जिसके स्केल पर 10A के लिए 1000 A दर्शाया गया हो) का उपयोग करना होगा | उक्त करंट ट्रांसफार्मर की प्राथमिक वाइंडिंग में एक लपेट अथवा परिपथ के तार को सीधे ही ट्रांसफार्मर की कोर के अन्दर से निकालना होता है तथा द्वितीय वाइंडिंग में 100 लपेट होती हैं | द्वितीय वाइंडिंग से सीधे ही 10A के करंट ट्रांसफार्मर को जोड़ दिया जाता हैं | अब परिपथ में 1000 A की विधुत धारा बहने पर करंट ट्रांसफार्मर की सेकेंडरी वाइंडिंग में 10 A करंट बहेगा, इस 10 A करंट को एम्मीटर 1000 A दर्शायेगा |

पोटेंशियल ट्रांसफार्मर ( Potential transformer) PT

पोटेंशियल ट्रांसफार्मर (PT) का उपयोग उच्च प्रत्यावर्ती वोल्टता को मापने के लिए किया जाता है | यह एक वोल्टेज स्टेप-डाउन प्रकार का छोटा ट्रांसफार्मर होता है जो उच्च वोल्टेज को निम्न वोल्टेज में परिवर्तित कर देता है | इसकी प्राइमरी वाइंडिंग पतले तार की तथा अनेक लपेट वाली बनाई जाती है जबकि सेकेंडरी वाइंडिंग मोटे तार की व कम लपेट वाली बनाई जाती है |

इस प्रकार प्राइमरी परिपथ के सामान्यतः 11000-33000 वोल्ट को केवल 50-100 वोल्ट स्टेप डाउन किया जाता है और उसे सेकेंडरी से संयोजित 0-100 वोल्ट मान वाले वोल्टमीटर के द्वारा माप लिया जाता है | इस वोल्टमीटर का स्केल 0-35000 वोल्ट मापसीमा के लिए अनुपातिक आधार पर अंकित कर दिया जाता है | पोटेंशियल ट्रांसफार्मर की सेकेंडरी वाइंडिंग के एक टर्मिनल को अर्थ से कनेक्ट रखा जाना चाहिये जिससे इस पर कार्य करते समय ऑपरेटर को उच्च वोल्टेज का विधुत झटका ना लगे | 

PT connection

3. वितरण ट्रांसफार्मर / Distribution transformer

वितरण ट्रांसफार्मर की क्षमता समान्यतः  5KVA से 2000 KVA तक होती है और इसकी प्राइमरी वाइंडिंग डेल्टा संयोजन में तथा सेकेंडरी वाइंडिंग स्टार संयोजन में संयोजित होती है | डिस्ट्रीब्यूशन ट्रांसफार्मर की सेकेंडरी वाइंडिंग को स्टार संयोजन में संयोजित करने का मुख्य लाभ यह है कि इससे 3 फेज सप्लाई के साथ-साथ 1 फेज सप्लाई भी प्राप्त की जा सकती है क्योंकि स्टार संयोजन के मध्य बिंदु को अर्थ से जोड़ दिया जाता है |

डिस्ट्रीब्यूशन ट्रांसफार्मर की संरचना, पॉवर ट्रांसफार्मर के लगभग समान होती है | शहरों तथा कस्बों में रास्तों के पास लगे घनाभ के आकार के ट्रांसफार्मर जिनमे से घरों, दुकानों अथवा संस्थानों में विधुत सप्लाई दी जाती है वे वितरण ट्रांसफार्मर ही होते हैं | इस ट्रांसफार्मर से उपभोक्ता को अंतिम रूप से विधुत सप्लाई दी जाती है | गांवों में  जहां 1 फेज विधुत सप्लाई की आपूर्ति होती है वहां ड्रम के आकार के ट्रांसफार्मर लगे होते है वो भी वितरण ट्रांसफार्मर ही होते हैं |

वितरण ट्रांसफार्मर में विधुत सप्लाई, पॉवर ट्रांसफार्मर से दी जाती है | आमतौर पर वितरण ट्रांसफार्मर की प्राथमिक कुंडलन हमेशा लाइन से जुडी रहती है जिससे इनमे लोह हानियां अधिक होती हैं इसलिए इनकी क्रोड़, क्रोड़ प्रकार की बनाई जाती है | | इनकी दक्षता पूर्ण दिवस दक्षता से ज्ञात की जाती है | वितरण ट्रांसफार्मर का चित्र नीचे दिखाया गया है :-

3 phase transformer 2

3 Phase distribution transformer

1 Phase distributuion transformer

1 Phase distribution transformer

4. पॉवर ट्रांसफार्मर / Power transformer

समान्यतः जिस ट्रांसफार्मर से वितरण ट्रांसफार्मर को विधुत सप्लाई दी जाती है वह पॉवर ट्रांसफार्मर होता है | पॉवर ट्रांसफार्मर की क्षमता 2000 KVA से 20000 KVA तक होती है | इसका आकार डिस्ट्रीब्यूशन ट्रांसफार्मर से बड़ा होता है | इसकी प्राइमरी वाइंडिंग स्टार-संयोजन में तथा सेकेंडरी वाइंडिंग डेल्टा-संयोजन में संयोजित होती है |

ये ट्रांसफार्मर प्रसारण लाइन के वोल्टेज को घटाकर वितरण ट्रांसफार्मर को विधुत सप्लाई देने के काम में लिए जाते हैं | ग्रिड सब स्टेशनों (GSS), सब स्टेशनों तथा उधोगों में विधुत स्टेशनों पर इनका उपयोग किया जाता है | पूर्ण लोड पर इसकी दक्षता उच्च होती है | शक्ति ट्रांसफार्मर हमेशा भार से जुड़े रहते है इसलिए इनमे ताम्र क्षति अधिक होती है इसलिए इनकी क्रोड़ शैल प्रकार की बनाई जाती है | पॉवर ट्रांसफार्मर का चित्र नीचे दर्शाया गया है :-

Power transformer

Power Transformer

वितरण ट्रांसफार्मर तथा पॉवर ट्रांसफार्मर में अंतर
  1. वितरण ट्रांसफार्मर की क्षमता 5 KVA से 2000 KVA तक होती है तथा पॉवर ट्रांसफार्मर की क्षमता 2000 KVA से 20000 KVA तक होती है |
  2. वितरण ट्रांसफार्मर स्टेप-डाउन प्रकार के होते हैं तथा पॉवर ट्रांसफार्मर स्टेप-डाउन व स्टेप-अप, दोनों प्रकार के होते हैं |
  3. वितरण ट्रांसफार्मर का उपयोग उपभोक्ताओं को विधुत के वितरण के लिए किया जाता है तथा पॉवर ट्रांसफार्मर का उपयोग विधुत के प्रसारण में किया जाता है |
  4. वितरण ट्रांसफार्मर तुलनात्मक रूप से छोटा होता है तथा पॉवर ट्रांसफार्मर बड़ा होता है |
  5. वितरण ट्रांसफार्मर आमतौर पर गांव अथवा शहरों में खुले में लगे होते है तथा पॉवर ट्रांसफार्मर बिजली घरों तथा बड़ी फक्ट्रियों में लगाये जाते हैं |
  6. वितरण ट्रांसफार्मर से विधुत सप्लाई सीधे उपभोक्ता को दी जाती है जबकि पॉवर ट्रांसफार्मर का उपयोग विधुत सप्लाई को एक जगह से दूसरी जगह पहुँचाने में किया जाता है |
  7. वितरण ट्रांसफार्मर का लोड कम-ज्यादा होता रहता है तथा पॉवर ट्रांसफार्मर के लोड में बहुत कम उतार-चढाव होता है |
  8.  वितरण ट्रांसफार्मर में वोल्टेज में उतार-चढाव करने के लिए विकल्प नहीं होता जबकि पॉवर ट्रांसफार्मर में वोल्टेज उतार-चढाव के लिए टैपिंग-स्विच का विकल्प होता है |
  9. वितरण ट्रांसफार्मर में फ्लक्स घनत्व कम होता है तथा पॉवर ट्रांसफार्मर में तुलनात्मक रूप से फ्लक्स घनत्व अधिक होता है |
  10. वितरण ट्रांसफार्मर की प्राथमिक वाइंडिंग डेल्टा संयोजित होती है तथा पॉवर ट्रांसफार्मर की प्राथमिक वाइंडिंग स्टार संयोजित होती है |
  11. वितरण ट्रांसफार्मर की द्वितीयक वाइंडिंग स्टार संयोजित होती है तथा पॉवर ट्रांसफार्मर की द्वितीयक वाइंडिंग डेल्टा संयोजित होती है |
  12. वितरण ट्रांसफार्मर 1 फेज व 3 फेज दोनों प्रकार के होते है तथा पॉवर ट्रांसफार्मर केवल 3 फेज के ही होते हैं |

ट्रांसफार्मर के प्रकार

क्रोड़ को ठंडा रखने के आधार पर ट्रांसफार्मर के प्रकार :-

घूमने वाली मशीनों की शाफ़्ट पर निर्माण के समय पंखे लगा दिए जाते है जिनसे इनकी वाइंडिंग ठंडी होती रहती है लेकिन ट्रांसफार्मर में ऐसा नहीं होता, ट्रांसफार्मर में ताम्र तथा लोह हानियों से वाइंडिंग गर्म हो जाती है तत्पश्चात क्रोड़ भी गर्म हो जाती है | अधिक गर्मी से वाइंडिंग का अचालक आवरण ख़राब हो जाता है जिससे वाइंडिंग शोर्ट-सर्किट हो जाती है | क्रोड़ को ठंडा रखने के आधार पर ट्रांसफार्मर के प्रकार 4 होते हैं जो निम्न हैं :-
 
  1. तेल द्वारा ठन्डे होने वाले ट्रांसफार्मर (Oil cooled transformer)
  2. प्राकृतिक रूप से ठन्डे होने वाले ट्रांसफार्मर (Naturally cooled transformer)
  3. जल द्वारा ठन्डे होने वाले ट्रांसफार्मर (Water cooled transformer)
  4. वायु दाब द्वारा ठन्डे होने वाले ट्रांसफार्मर (Forced air cooled transformer)

1. तेल द्वारा ठन्डे होने वाले ट्रांसफार्मर / Oil cooled transformer

तेल द्वारा ट्रांसफार्मर को दो प्रकार से ठंडा किया जा सकता है |
A. प्राकृतिक रूप से तेल द्वारा ठंडा किये जाने वाले ट्रांसफार्मर 
B. वायु दबाव से ठंडा होने वाले तेल से भरे ट्रांसफार्मर 

A. प्राकृतिक रूप से तेल द्वारा ठंडा किये जाने वाले ट्रांसफार्मर 

इस प्रकार के ट्रांसफार्मर में एक टैंक होता है, जिसमें ट्रांसफॉर्मर ऑयल भरा होता है। ट्रांसफार्मर की वाइंडिंग व कोर तेल में डूबी रहती हैं। तेल, वाइण्डिग्स को ठण्डा रखने के साथ-साथ एक अचालक आवरण का कार्य भी करता है ।

इन ट्रांसफार्मरों में टैंक की दीवारों के साथ लोहे के पाइप जोड़ दिए जाते हैं जिससे तेल की ऊष्मा वातावरण में आसानी से फ़ैल सके | इन पाइपों को रेडियेटर का रूप देकर ऊष्मा को अधिक दक्षता से वातावरण में फैलाया जा सकता है | 

टैंक का ऑयल गर्म होकर ऊपर उठता रहता है तथा पाइपों/रेडियेटर का तेल हवा से ठंडा होकर नीचे बैठता रहता है | टैंक का तेल पाईप/रेडियेटर के ऊपरी हिस्से से प्रवेश कर वापस नीचे वाले हिस्से से टैंक में प्रवेश कर जाता है | इस प्रकार ट्रांसफार्मर तेल, टैंक से रेडियेटर तथा रेडियेटर से टैंक में स्वतः ही चक्कर लगाता रहता है जिससे तेल की ऊष्मा वातावरण में फैलती रहती है |

प्राकृतिक रूप से तेल द्वारा शीतलन प्रणाली निम्न चित्र में दर्शाई गई है :-

Naturally oil cooled transformer

Naturally cooled, oil filled transformer

B. वायु दबाव से ठंडा होने वाले तेल से भरे ट्रांसफार्मर / Force air cooled, oil filled transformer

इस विधि में ट्रांसफार्मर तेल को रेडियेटर में से तेजी से घुमाने के लिए एक पम्प का इस्तेमाल किया जाता है जिससे तेल तेजी से रेडियेटर व टैंक के बीच घूमता रहता है तथा एक तेज हवा फैंकने वाले पंखे से इसके रेडियेटर ठन्डे होते रहते हैं | जबकि प्राकृतिक रूप से तेल द्वारा ठंडा किये जाने वाले ट्रांसफार्मरों में तेल स्वतः ही घूमता रहता है | इस प्रकार का शीतलन 500 KVA से अधिक क्षमता वाले ट्रांसफार्मरों में किया जाता है |

Forced air cooled, oil filled transformer

Force air cooled, oil filled transformer                                                                  

2. प्राकृतिक रूप से ठन्डे होने वाले ट्रांसफार्मर / Naturally cooled transformer

इस विधि को शुष्क विधि भी कहा जाता है | कुछ परिस्थितियों में 15 KVA तक के ट्रांसफार्मरों में इस विधि का प्रयोग किया जाता है | इस प्रकार के ट्रांसफार्मरों में क्रोड़ का क्षेत्रफल अधिक रखा जाता है जिससे ये वाइंडिंग से ऊष्मा को अवशोषित कर हवा में विसरित कर सके | इसके आलावा इस ट्रांसफार्मर की क्रोड़ में हवा निकलने के लिए मार्ग/छेद (Ducts) भी छोड़ दिए जाते हैं | इस प्रकार बिना किसी अतिरिक्त शीतलन प्रणाली के इस प्रकार के ट्रांसफार्मर ठन्डे होते रहते हैं |

Naturally cooled transformer

Naturally coole dtransformer

3. जल द्वारा ठन्डे होने वाले ट्रांसफार्मर / Water cooled transformer

इस प्रकार के ट्रांसफार्मरों में साधारण प्राकृतिक रूप से ठन्डे होने वाले तेल से भरे ट्रांसफार्मर की तरह ही तेल भरा रहता है लेकिन इनमे टैंक के ऊपरी हिस्से में से एक स्प्रिंग की आकृति का लोह पाइप गुजारा जाता है जिसके दोनों सिरे ट्रांसफार्मर टैंक से बाहर निकले रहते हैं यह पाइप टैंक के अन्दर पूरी तरह से तेल में डूबा रहता है | पाइप को ऊपरी हिस्से में से इसलिए गुजारा जाता है क्योंकि तेल गर्म होकर ऊपर उठता रहता है इसलिए ऊपरी हिस्से में तेल अधिक गर्म रहता है |

टैंक से बाहर निकले पाइप के एक सिरे में से पम्प द्वारा ठंडा पानी प्रवेश कराया जाता है, यह पानी तेल की गर्मी को अवशोषित करता हुआ दूसरे सिरे से बाहर निकल जाता है इसी प्रकार यह पानी टैंक के अन्दर पाइप में चक्कर लगाता रहता है | इस पाइप में एक रेडियेटर लगाकर पानी को ठंडा किया जाता है |

आम तौर पर 500 KVA व इससे अधिक क्षमता के ट्रांसफार्मरों में यह विधि प्रयोग की जाती है | इस प्रकार के ट्रांसफार्मर का नुकसान यह है कि पाइप लीक होने की स्थिति में ट्रांसफार्मर के टैंक में पानी जाने की सम्भावना रहती है जिससे वाइंडिंग का इंसुलेशन ख़राब होकर ट्रांसफार्मर जल सकता है |
सावधानी- पाइप में पानी का प्रेशर टैंक में तेल के प्रेशर से कम रहना चाहिए जिससे पाइप लीक होने की स्थिति में तेल में पानी ना जाए |

Water cooled transformer

Water cooled transformer

4. वायु दाब द्वारा ठन्डे होने वाले ट्रांसफार्मर / Forced air cooled transformer

इसे वायु ब्लास्ट विधि भी कहा जाता है | इस विधि में ट्रांसफार्मर की बॉडी तथा क्रोड़ में से हवा निकलने के लिए पर्याप्त मार्ग रखा जाता है | इन वायु मार्गों को इस प्रकार रखा जाता है कि इनमे से हवा नीचे से ऊपर की और निकल सके | एक तेज हवा देने वाले पंखे को इस प्रकार लगाया जाता है की यह ट्रांसफार्मर के वायु मार्गों में नीचे से हवा दें, जिससे हवा ऊपर निकल सके | इस प्रकार के ट्रांसफार्मर में पानी व तेल की आवश्यकता नहीं होती |

Forced air cooled transformer
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ट्रांसफार्मर क्या है What is transformer

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परिचय- ट्रांसफॉर्मर अन्योन्य प्रेरण (Mutual induction) के सिद्धांत पर कार्य करने वाली ऐसी युक्ति है जो प्रत्यावर्ती वोल्टेज को उच्च वोल्टेज से निम्न वोल्टेज में तथा निम्न वोल्टेज से उच्च वोल्टेज में परिवर्तित करती है |

ट्रांसफार्मर की परिभाषा /Definition of Transformer

ट्रांसफॉर्मर एक ऐसी मशीन है जो विधुत शक्ति को किसी एक परिपथ से दूसरे परिपथ में स्थानांतर कर देती है |

ट्रांसफार्मर का कार्य सिद्धांत / Principle of Tranformer

ट्रांसफॉर्मर अन्योन्य प्रेरण (Mutual inductance) के सिद्धांत पर कार्य करता है | प्रेरण (Inductance) केवल AC परिपथ में विधमान होता है DC में नहीं | अतः ट्रांसफॉर्मर भी केवल AC सप्लाई पर कार्य करता है DC पर नहीं |

Transformer symbol

Transformer symol

Core type transformer
सरल ट्रांसफार्मर

नोट- कुछ लोगों की यह गलत धारणा होती है कि ट्रांसफॉर्मर AC को DC में बदलता है , लेकिन ऐसा नहीं है | ट्रांसफॉर्मर केवल वोल्टेज तथा करंट को कम या अधिक करने के काम करता है तथा DC सप्लाई पर ट्रांसफॉर्मर कार्य नहीं करता है | यह फ्रीक्वेंसी को समान रखता है अर्थात फ्रीक्वेंसी को नहीं बदलता है | आपने देखा होगा कि कुछ छोटे ट्रांसफार्मरों की आउटपुट के साथ कुछ डायोड लगे होते हैं, ये डायोड AC को DC में बदलने का कार्य करते हैं |

निम्न दो चित्रों में से पहले चित्र में आप देखेंगे कि आउटपुट में हमें AC सप्लाई मिल रही है तथा दुसरे चित्र में आप देखेंगे कि ट्रांसफॉर्मर की आउटपुट के साथ एक डायोड लगा होने के कारण हमें DC सप्लाई मिल रही है | अर्थात ट्रांसफॉर्मर AC सप्लाई को DC में परिवर्तित नहीं करता तथा ना ही DC सप्लाई पर काम करता है |

Transformer diagram with ac output and dc output
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ट्रांसफार्मर का विवरण / Description of Transformer

ट्रांसफॉर्मर  क्या  है What is transformer

ट्रांसफॉर्मर एक स्थिर विधुत मशीन है जिसमे कोई घूमने वाला अथवा हिलने डुलने वाला भाग (Movable part) नहीं होता (घूमने वाला भाग मोटर, जनरेटर इत्यादि में होता है) स्थिर मशीन होने के कारण इसमें क्षति बहुत कम  होती हैं | ( जैसे अगर हमारे पास 11000 वोल्ट की विधुत सप्लाई है जिसे हम 440 वोल्ट में परिवर्तित करना चाहते हैं तो यह काम बहुत कम क्षति के साथ हम ट्रांसफॉर्मर से कर सकते हैं तथा इसका उल्टा अर्थात 440 वोल्ट से 11000 वोल्ट भी आसानी से किया जा सकता है ) |

जिस कुंडली को प्रदाय (Input supply) से जोड़ते हैं वह प्राथमिक कुंडली (Primary winding) तथा जिस कुंडली को हम भार (Load) से जोड़ते हैं वह द्वितीयक कुंडली (Secondary winding) कहलाती है | 

प्राथमिक कुंडली से द्वितीयक कुंडली में शक्ति स्थानांतरित करने के लिए ट्रांसफॉर्मर में इन कुंडलियों को एक लोह क्रोड़ (Iron core) पर लपेटा जाता है | एक आदर्श ट्रांसफॉर्मर में वोल्टेज परिवर्तन की क्रिया में ट्रांसफॉर्मर की इनपुट शक्ति (Input power) तथा ट्रांसफॉर्मर से प्राप्त आउटपुट शक्ति (Output power) बराबर रहती है | ट्रांसफॉर्मर, आउटपुट में वोल्टेज बढ़ा रहा है तो धारा घटा देगा और वोल्टेज घटा रहा है तो धारा बढ़ा देगा अर्थात ट्रांसफॉर्मर विधुत शक्ति में कोई परिवर्तन नहीं करता है

Power formula

उदाहरण – यदि किसी ट्रांसफार्मर की इनपुट वोल्टेज = 200V व इनपुट करंट = 1A, इसी प्रकार आउटपुट वोल्टेज = 50V व आउटपुट करंट = 4A तो इसकी इनपुट शक्ति तथा आउटपुट शक्ति बराबर होगी क्योंकि इनपुट शक्ति = 200 x 1 = 200 वाट व आउटपुट शक्ति = 50 x 4 = 200 वाट

शक्ति W = वोल्टेज V  x  धारा  I

V1V2=I2I1     or        Input voltageOutput voltage=Output currentInput current

(लेकिन ऊपर दी गई  शर्त केवल आदर्श ट्रांसफार्मर पर लागू होती है | आदर्श ट्रांसफार्मर वह होता है  जिसमे किसी प्रकार की क्षति ना हो, लेकिन ऐसा कोई ट्रांसफार्मर नहीं है जिसमे किसी प्रकार की क्षति नहीं होती | हां, क्षति को कम किया जा सकता है लेकिन बिलकुल समाप्त नहीं किया जा सकता | )
अतः ट्रांसफार्मर की आउटपुट शक्ति = इनपुट शक्ति – क्षति

उदाहरण – अगर किसी ट्रांसफार्मर की इनपुट वोल्टेज 100 V, इनपुट करंट 10 A तथा आउटपुट वोल्टेज 10 V हो तथा क्षतियों को शुन्य माना जाये तो ट्रांसफार्मर की आउटपुट करंट क्या होगी |
हल- (विधि -1)
इनपुट वोल्टेज V1          = 100V
 इनपुट करंट I1             = 10A
आउटपुट वोल्टेज V2     = 10V
आउटपुट करंट   I2       = ? 

V1V2=I2I1
10010=I210
I2=1001010
I2=100Amp.

(विधि -2)- जैसा कि हमें पता है की शक्ति = वोल्टेज x करंट

अतः इनपुट शक्ति = 100 x 10 = 1000 watt
अब हमें आउटपुट करंट निकालनी है | 
चूंकि आउटपुट शक्ति तथा इनपुट शक्ति सामान है
इसलिए आउटपुट करंट = शक्ति / आउटपुट वोल्टेज 
आउटपुट करंट i2 = 1000 / 10 
i2= 100A

 

दिष्ट धारा पर ट्रांसफार्मर / Transformer on DC

क्योंकि ट्रांसफार्मर की प्राथमिक कुंडली में AC सप्लाई अथवा प्रत्यावर्ती धारा देने पर फ्लक्स में भी लगातार परिवर्तन (Fluctuate) होने के कारण द्वितीय कुंडली में Mutual inductian के कारण विधुत वाहक बल उत्पन्न होता है जिसे हम लोड को देते हैं | फ्लक्स परिवर्तन से स्वयं प्राथमिक कुंडली में भी एक अतिरिक्त प्रेरित विधुत वाहक बल पैदा होता है जिसे हम विरोधी विधुत वाहक बल (Back e.m.f.) कहते हैं | यह विरोधी विधुत वाहक बल प्राथमिक कुंडलन में प्रवाहित धारा को सीमित अथवा कम कर देता है जिससे कुंडलन ओवर हीट से जलती नहीं है |

यदि प्राथमिक कुंडलन को दिस्ट धारा (DC) से जोड़ दिया जाये तो धारा का प्रत्यावर्तन नहीं होने के कारण फ्लक्स का परिवर्तन नहीं होता है जिसके कारण प्राथमिक कुंडलन में विरोधि विधुत वाहक बल उत्पन्न नहीं होता है फलस्वरूप प्राथमिक कुंडली में अधिक धारा बहने से कुंडलन जल जाती है | अतः DC पर ट्रांसफार्मर के कार्य नहीं करने का सबसे बड़ा कारण है कुंडली में DC सप्लाई से, प्रेरित विधुत वाहक बल पैदा नहीं होना |

ट्रांसफार्मर की कार्य प्रणाली / Working of Transformer

जब ट्रांसफार्मर की प्राइमरी वाइंडिंग को ए.सी. स्त्रोत से जोड़ा जाता है तो प्रत्यावर्ती विधुत धारा बहने के कारण प्राइमरी वाइंडिंग के चारों और एक प्रत्यावर्ती ( Alternating ) स्वभाव का चुम्बकीय क्षेत्र पैदा हो जाता है | सेकेंडरी वाइंडिंग के चालक प्राइमरी वाइंडिंग द्वारा स्थापित चुम्बकीय क्षेत्र की चुम्बकीय बल रेखाओं का छेदन करते हैं और फैराडे के विधुत चुम्बकीय प्रेरण सिद्धांत के अनुसार सेकेंडरी वाइंडिंग के चालकों में एक विधुत वाहक बल पैदा हो जाता है |

माना की हमारे पास दो कुंडलियां (coils) हैं जिनमे से कुंडली A में 10 लपेट  (turns) हैं तथा कुंडली B में 20 लपेट हैं | इन दोनों कुंडलियों को हम चित्र के अनुसार पास-पास रखते हैं | अब कुंडली A में 12वोल्ट की प्रत्यावर्ती धारा (AC) देने पर कुंडली B में वोल्ट मीटर से जांच करने पर पाएंगे कि इसमें लगभग 24 वोल्ट पैदा हो रहे हैं |

Transformer coil diagram

अब दिए गए चित्र के अनुसार इन दोनों कुंडलियों को अगर सिलिकॉन स्टील से निर्मित पटलित क्रोड (Laminated core) पर इंसुलेशन करके स्थापित कर दिया जाए तो कुंडली A द्वारा स्थापित अधिकतम चुम्बकीय बल रेखायें कुंडली B में से होकर गुजरेंगी  जिससे ट्रांसफार्मर में कम से कम क्षति (Loss) हो | 

इस प्रकार दोनों कुंडलियां विधुत रूप से ना जुड़कर चुम्बकीय रूप से जुडी होती हैं क्योंकि कुंडली A कुंडली B से आपस में संपर्क नहीं करती है

Simple transformer

सिलिकॉन स्टील- सिलिकॉन स्टील में सिलिकॉन की मात्रा. 3.8 से 4.5 प्रतिशत होती है तथा सिलिकॉन स्टील से निर्मित पटलनों  को विधुत रोधी ( Laminated ) बनाने के लिए सिलिकॉन स्टील की चादर के टुकड़ों पर विधुत रोधी वार्निश का लेप कर दिया जाता है | क्रोड को लैमिनेटेड इसलिए बनाया जाता है ताकि ट्रांसफार्मर की क्रोड में भंवर धारा क्षति ( Eddy current loss ) कम से कम हों | भंवर धारा क्षति, पटलनों की मोटाई के वर्ग के समानुपाती होती है इसलिए उच्च आवृति वाले ट्रांसफार्मरों में पटलनों की मोटाई कम से कम रखी जाती है | क्योंकि पटलन जितनी पतली होंगी उतनी ही भंवर धारा क्षति कम होगी |

Transformer laminated core

Silicon steel laminations

ट्रांसफार्मर के प्रकार | Types of transformers

Pieces of Silicon steel lamination

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ट्रांसफार्मर का उपयोग / Usage of Transformer

ट्रांसफार्मर का उपयोग बताने से पहले हम आपको निम्न सामान्य जानकारी देंगे :-

आम तौर पर 3 फेज विधुत सप्लाई के उपयोग में 1 फेज विधुत सप्लाई  से अधिक लाभ होते हैं | इसलिए आजकल जनरेशन, ट्रांसमिशन और डिस्ट्रीब्यूशन में 3 फेज विधुत सप्लाई सिस्टम का उपयोग अधिक किया जाता है | इस सप्लाई सिस्टम को अधिक क्षमतावान बनाने के लिए भारतीय मानक संस्था द्वारा हर एक सप्लाई वोल्टेज स्टेप के लिए एक मानक वोल्टेज तय किया गया है | जैसे  :-

  • किसी विधुत उत्पादन केंद्र पर विधुत का उत्पादन 11000 वोल्ट पर होता है |
  • उत्पादन के बाद इस विधुत सप्लाई को स्टेप-अप ट्रांसफार्मर द्वारा आवश्यकतानुसार 440KV, 220KV तथा 132KV में परिवर्तित करके प्रसारण किया जाता है |
  • प्रसारण के बाद इस विधुत सप्लाई को ग्रिड सब स्टेशन (GSS) पर स्टेप-डाउन ट्रांसफार्मर लगाकर इसका वितरण 66KV, 33KV तथा 11KV पर किया जाता है |
  • डिस्ट्रीब्यूशन ट्रांसफार्मर लगाकर इसका उपयोग 440 वोल्ट तथा 230 वोल्ट पर किया जाता है |
उपयोग – इस समय हमारे लिए बिजली के बिना रहना लगभग नामुमकिन है | हर जगह हर काम में विधुत का उपयोग होता है जिसमे ट्रांसफार्मर एक बहुत जरुरी तथा उपयोगी मशीन है |
ट्रांसफार्मर के निम्न अनुप्रयोग हैं :-
  • बिजली बनाने वाले उत्पादन केंद्र पर ट्रांसफार्मर का उपयोग विधुत सप्लाई को स्टेप-अप करने के लिए किया जाता है |
  • विधुत सब-स्टेशन पर प्राप्त होने वाली विधुत सप्लाई को स्टेप-डाउन करने अथवा कम करने (33000/11000 वोल्ट को 440 वोल्ट अथवा 230वोल्ट करने के लिए ट्रांसफार्मर का उपयोग किया जाता है जिससे इस विधुत को उपयोग के लिए उपभोक्ताओं को दिया जा सके |
  • TV तथा अन्य दैनिक उपयोग होने वाले इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों में ट्रांसफार्मर का उपयोग किया जाता है |
  • विभिन्न कारखानों में उपयोग होने वाली वेल्डिंग मशीन में ट्रांसफार्मर का उपयोग होता है |
  • जीवन का अभिन्न अंग माने जाने वाले मोबाइल की चार्जिंग में काम आने वाले चार्जर में ट्रांसफार्मर का उपयोग किया जाता है |
  • उधोगों में काम आने वाली अधिकतर मशीनों में ट्रांसफार्मर का उपयोग किया जाता है |

ट्रांसफार्मर की संरचना / Transformer structure

  1.  ट्रांसफार्मर की बॉडी अथवा टैंक में स्टील स्टैम्पिंग से निर्मित क्रोड़ (core ) स्थापित की जाती है | क्रोड़ का मुख्य कार्य है (A) प्राइमरी वाइंडिंग द्वारा बनाये गए चुम्बकीय क्षेत्र की चुम्बकीय बल रेखाओं का मार्ग पूर्ण करना तथा (B) प्राइमरी वाइंडिंग द्वारा बनाये गए चुम्बकीय क्षेत्र की अधिकाधिक चुम्बकीय बल रेखाओं को सेकेंडरी वाइंडिंग में से गुजारना |
  2. क्रोड पर ट्रांसफार्मर वाइंडिंग स्थापित की जाती हैं |
  3. ट्रांसफार्मर में 2 प्रकार की वाइंडिंग्स स्थापित की जाती हैं, प्राइमरी तथा सेकेंडरी |
  4. प्राइमरी वाइंडिंग वह होती है जिसे विधुत स्त्रोत से संयोजित किया जाता है अर्थात जिसे विधुत सप्लाई दी जाती है |
  5. सेकेंडरी वाइंडिंग वह होती है जिसे लोड से संयोजित किया जाता है अर्थात जिससे विधुत सप्लाई ली जाती है |
  6. ट्रांसफार्मर में वाइंडिंग एवं क्रोड़ के अतिरिक्त अन्य युक्तियाँ भी प्रयोग की जाती है, जिनका वर्णन एक अन्य पोस्ट में किया गया है |

ट्रांसफार्मर के लाभ / Advantages of transformer

  1. ट्रांसफार्मर बहुत अधिक वोल्टेज पर भी सामान्य रूप से कार्य कर सकता है जबकि अन्य मशीनें अति उच्च वोल्टेज पर सामान्य रूप से कार्य नहीं कर पाती | जैसे 440 KV पर |
  2. ट्रांसफार्मर द्वारा वोल्टेज घटाने अथवा बढ़ाने का कार्य उच्च दक्षता से किया जाता है जबकि DC में वोल्टेज घटाने का कार्य रिहोस्टेट अथवा प्रतिरोधक से किया जाता है जिसमें बहुत अधिक क्षति होती है |
  3. ट्रांसफार्मर की दक्षता 90% से 98% तक होती है क्योंकि यह एक स्थेतिक मशीन है जबकि अन्य मशीनें स्थेतिक नहीं होने के कारण उनकी दक्षता काफी कम होती है |
  4. ध्वनि प्रदुषण नहीं होता |
  5. ट्रांसफार्मर के कारण AC का पारेषण तथा वितरण बहुत कम लागत पर होने लगा है जबकि DC का वितरण में बहुत अधिक लागत लगती है क्योंकि इसमें ट्रांसफार्मर के स्थान पर बूस्टर मोटर जनित्र प्रयोग करने पड़ते है |
  6. ट्रांसफार्मर में कोई सचल पुर्जा ना होने के कारण लुब्रिकेंट अथवा किसी प्रकार के रखरखाव की आवश्यकता नहीं होती |
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