ट्रांसफार्मर कुंडली संयोजन Transformer coil connection

ट्रांसफार्मर कुंडली संयोजन Transformer coil connection 1 फेज ट्रांसफॉर्मर में दो कुंडलियां होती है, एक प्राथमिक कुंडली व दूसरी द्वितीयक कुंडली | प्राथमिक

ट्रांसफार्मर कुंडली संयोजन
Transformer coil connection

1 फेज ट्रांसफॉर्मर में दो कुंडलियां होती है, एक प्राथमिक कुंडली (Primary winding)  व दूसरी द्वितीयक  कुंडली (Secondary winding) | प्राथमिक कुंडली को सप्लाई से जोड़ा जाता है तथा द्वितीयक कुंडली को लोड से जोड़ा जाता है |

इसी प्रकार 3 फेज ट्रांसफॉर्मर में 6 कुंडलियां होती है, 3 कुंडलियां प्राथमिक वाइंडिंग में होती हैं तथा अन्य 3 कुंडलियां द्वितीयक वाइंडिंग में होती है | इन कुंडलियों के कनेक्शन भिन्न-भिन्न प्रकार से किए जाते हैं जिनका विवरण नीचे बिन्दुवार किया गया है |

3 फेज ट्रांसफार्मर उपलब्ध ना होने की स्थिति में 1 फेज के 3 ट्रांसफार्मरों को आपस में जोड़कर भी 3 फेज विद्युत सप्लाई व लोड पर काम में लिया जा सकता है लेकिन इस स्थिति में तीनों एक फेज ट्रांसफॉर्मर समान वोल्टेज, समान करंट, समान पावर फैक्टर, तथा समान कोर वाले होने चाहिए |

जिस प्रकार 3 फेज ट्रांसफार्मर में कुंडलियों के कनेक्शन किये जाते हैं उसी प्रकार से ही एक फेज के 3 ट्रांसफार्मरों के  कनेक्शन करके 3 फेज पर काम में लिया जा सकता है | जिसे निम्न चित्र से समझा जा सकता है :-  

ट्रांसफार्मर कुंडली संयोजन Transformer coil connection

उक्त प्रथम चित्र में एक 3 फेज ट्रांसफार्मर की प्राथमिक 3 कुंडली तथा द्वितीय 3 कुंडलियों के कनेक्शन दर्शाए गए हैं | तथा दूसरे चित्र में 3 फेज पर प्रचालन के लिए 1 फेज के 3 ट्रांसफार्मरों के आपस में कनेक्शन दर्शाए गए हैं |

दोनों दशाओं में एक प्रकार से ही कनेक्शन किये जाते हैं क्योंकि 3 फेज के 1 ट्रांसफार्मर में 6 कुंडलियां होती हैं तथा 1 फेज के 3 ट्रांसफार्मरों में भी कुल 6 कुंडलियां होती हैं |

अब आपको यह समझ आ गया होगा कि 1 फेज के 3 ट्रांसफार्मरों को भी 3 फेज पर उपयोग में लिया जा सकता है | बस हमें 1 फेज के 3 ट्रांसफार्मरों के कनेक्शन उसी प्रकार से करने होंगे जिस प्रकार से 3 फेज ट्रांसफार्मर के अन्दर 6 कुंडलियों के कनेक्शन किये जाते हैं |

3 फेज ट्रांसफार्मर में कुंडलियों के निम्न प्रकार से कनेक्शन किये जाते हैं :-

Transformer coil connection

1. स्टार-स्टार संयोजन | Star-star connection

Symbol of star star connection

स्टार-स्टार संयोजन (Star-star connection) में उक्त चित्रानुसार ट्रांसफार्मर की प्राथमिक वाइंडिंग (Primary winding)  तथा द्वितीय वाइंडिंग (Secondary winding) दोनों के संयोजन स्टार में किये जाते हैं |

स्टार-स्टार (Y-Y) संयोजन में प्राथमिक वाइंडिंग के संयोजन स्टार (Y) में निम्न प्रकार किये जाते हैं :-
1. नीचे दिए गए चित्र के अनुसार तीनों कुंडलियों (Primary windings) के प्रथम एक-एक बिंदु (A1, B1 व C1) को आपस में जोड़कर न्यूट्रल तार निकाल दिया जाता है |
2. दूसरे तीनों बिन्दुओं (A2, B2 व C2) से फेज R1,Y1 व B1 के तार इनपुट के लिए बाहर निकाल दिए जाते हैं |

स्टार-स्टार (Y-Y) संयोजन में द्वितीय वाइंडिंग के संयोजन भी प्राथमिक वाइंडिंग के समान ही स्टार में किये जाते हैं जो निम्न प्रकार हैं :-
1. तीनों कुंडलियों (Primary windings) के प्रथम एक-एक बिंदु (X1, Y1 व Z1) को आपस में जोड़कर न्यूट्रल तार निकाल दिया जाता है |
2. दूसरे तीनों बिन्दुओं (X2, Y2 व Z2) से फेज R2,Y2 व B2 के तार आउटपुट के लिए बाहर निकाल दिए जाते हैं |

अर्थात स्टार-स्टार संयोजन (Star-star connection) में प्राथमिक तथा द्वितीयक, दोनों वाइंडिंग के संयोजन (Connection) स्टार में ही किये जाते हैं 

उपयोग- उच्च वोल्टेज व उच्च शक्ति वाले ट्रांसफार्मरों में |

Star star connection of transformer ITIWALE
Suppose-Primary line voltage=VL

Primary phase voltage VP =VL3

Secondary line voltage=VL×K×33=VL×K

Secondary phase voltage VP =VL3×K

ट्रांसफार्मर के विभिन्न सूत्रों को समझने के लिए हमें यह समझना जरुरी है कि लाइन वोल्टेज, फेज वोल्टेज तथा K (ट्रांसफॉर्मेशन अनुपात) क्या होता है |

लाइन वोल्टेज- किसी वाइंडिंग में दो लाइनों के बीच वोल्टेज को लाइन वोल्टेज कहा जाता है | 
फेज वोल्टेज- किसी वाइंडिंग में एक कुंडली (coil) के दो सिरों के मध्य वोल्टेज को फेज वोल्टेज कहा जाता है |

जैसे- नीचे दिए गए चित्र में स्टार वाइंडिंग में बिंदु R व Y के मध्य वोल्टेज को लाइन वोल्टेज कहा जायेगा | इसी प्रकार बिंदु A व N के मध्य वोल्टेज को फेज वोल्टेज कहा जायेगा | अर्थात स्टार वाइंडिंग में लाइन वोल्टेज व फेज वोल्टेज अलग-अलग होती है |

नीचे दिए गए चित्र में डेल्टा वाइंडिंग में बिंदु R व Y के मध्य वोल्टेज को लाइन वोल्टेज कहा जायेगा | इसी प्रकार बिंदु A व B के मध्य वोल्टेज को फेज वोल्टेज कहा जायेगा | अर्थात डेल्टा वाइंडिंग में लाइन वोल्टेज व फेज वोल्टेज समान होती है क्योंकि बिंदु A बिंदु R से सीधे जुड़ा हुआ है तथा बिंदु B बिंदु Y से सीधे जुड़ा हुआ है |

 K (ट्रांसफॉर्मेशन अनुपात)- ट्रांसफॉर्मेशन अनुपात को हमारी एक अन्य पोस्ट में समझाया गया है जिसे आप लिंक पर क्लिक करके देख सकते हैं |

Star delta winding

Transformer coil connection

2. स्टार-डेल्टा संयोजन | Star-delta connection

Symbol of star delta connection

स्टार-डेल्टा संयोजन (Star-delta connection) में उक्त चित्रानुसार ट्रांसफार्मर की प्राथमिक वाइंडिंग (Primary winding) स्टार संयोजन में तथा द्वितीय वाइंडिंग (Secondary winding) डेल्टा संयोजन में संयोजित की जाती है |

स्टार-डेल्टा (Y-Δ) संयोजन में प्राथमिक वाइंडिंग के संयोजन स्टार (Y) में निम्न प्रकार किये जाते हैं :-
1. नीचे दिए गए चित्र के अनुसार तीनों कुंडलियों (Primary windings) के प्रथम एक-एक बिंदु (A1, B1 व C1) को आपस में जोड़कर न्यूट्रल तार निकाल दिया जाता है |
2. दूसरे तीनों बिन्दुओं (A2, B2 व C2) से फेज R1,Y1 व B1 के तार इनपुट के लिए बाहर निकाल दिए जाते हैं |

स्टार-डेल्टा (Y-Δ) संयोजन में द्वितीय वाइंडिंग के संयोजन डेल्टा (Δ) में निम्न प्रकार किये जाते हैं :-
1. प्रथम कुंडली के बिंदु X2 तथा द्वितीय कुंडली के बिंदु Y1 को जोड़कर सिरा R2 निकाल दिया जाता है |
2. द्वितीय कुंडली के बिंदु Y2 तथा तृतीय कुंडली के बिंदु Z1 को जोड़कर सिरा Y2 निकाल दिया जाता है |
3. तृतीय कुंडली के बिंदु Z2 तथा प्रथम कुंडली के बिंदु X1 को जोड़कर सिरा B2 निकाल दिया जाता है |
4. डेल्टा संयोजन में न्यूट्रल बिंदु नहीं निकलता है |

उपयोग- वोल्टेज स्टेप-अप पॉवर ट्रांसफार्मरों में |

Star delta connection of transformer, transformer star delta connection

Transformer coil connection

Suppose-Primary line voltage=VL

Primary phase voltage VP =VL3

Secondary line voltage=VL3×K

Secondary phase voltage VP =VL3×K

3. डेल्टा-डेल्टा संयोजन | Delta-delta connection

Delta delta connection

डेल्टा-डेल्टा संयोजन (Delta-delta connection) में उक्त चित्रानुसार ट्रांसफार्मर की प्राथमिक व द्वितीयक दोनों वाइंडिंग डेल्टा संयोजन में संयोजित की जाती है |

डेल्टा-डेल्टा (ΔΔ) संयोजन में प्राथमिक वाइंडिंग के संयोजन (Connection) निम्न प्रकार किये जाते हैं :-
1. नीचे दिए गए चित्र के अनुसार प्रथम कुंडली के बिंदु A2 तथा द्वितीय कुंडली के बिंदु B1 को जोड़कर सिरा R1 निकाल दिया जाता है |
2. द्वितीय कुंडली के बिंदु B2 तथा तृतीय कुंडली के बिंदु C1 को जोड़कर सिरा Y1 निकाल दिया जाता है |     
3. तृतीय कुंडली के बिंदु C2 तथा प्रथम कुंडली के बिंदु A1 को जोड़कर सिरा B1 निकाल दिया जाता है |
4. डेल्टा संयोजन में न्यूट्रल बिंदु नहीं निकलता है |

डेल्टा-डेल्टा (ΔΔ) संयोजन में द्वितीयक वाइंडिंग के संयोजन (Connection) भी प्राथमिक वाइंडिंग के समान ही डेल्टा में ही किये जाते हैं जो निम्न प्रकार हैं :-
1. प्रथम कुंडली के बिंदु X2 तथा द्वितीय कुंडली के बिंदु Y1 को जोड़कर सिरा R2 निकाल दिया जाता है |
2. द्वितीय कुंडली के बिंदु Y2 तथा तृतीय कुंडली के बिंदु Z1 को जोड़कर सिरा Y2 निकाल दिया जाता है |
3. तृतीय कुंडली के बिंदु Z2 तथा प्रथम कुंडली के बिंदु X1 को जोड़कर सिरा B2 निकाल दिया जाता है |
4. डेल्टा संयोजन में न्यूट्रल बिंदु नहीं निकलता है |

उपयोग- उच्च शक्ति तथा निम्न वोल्टेज वाले ट्रांसफार्मरों में |

Delta delta connection of 3 phase transformer
Suppose-Primary line voltage=VL

Primary phase voltage VP =VL

(Because in delta connection VP=VL)

Secondary line voltage=VL×K

Secondary phase voltage VP =VL×K

Transformer coil connection

4. डेल्टा-स्टार संयोजन | Delta-star connection

Delta star connection

डेल्टा-स्टार संयोजन (Delta-star connection) में उक्त चित्रानुसार ट्रांसफार्मर की प्राथमिक वाइंडिंग के कनेक्शन डेल्टा में तथा द्वितीयक वाइंडिंग के संयोजन स्टार में किये जाते हैं |

डेल्टा- स्टार  (Δ-Y) संयोजन में प्राथमिक वाइंडिंग के संयोजन (Connection) निम्न प्रकार किये जाते हैं :-
1. नीचे दिए गए चित्र के अनुसार प्रथम कुंडली के बिंदु A2 तथा द्वितीय कुंडली के बिंदु B1 को जोड़कर सिरा R1 निकाल दिया जाता है |
2. द्वितीय कुंडली के बिंदु B2 तथा तृतीय कुंडली के बिंदु C1 को जोड़कर सिरा Y1 निकाल दिया जाता है |
3. तृतीय कुंडली के बिंदु C2 तथा प्रथम कुंडली के बिंदु A1 को जोड़कर सिरा B1 निकाल दिया जाता है |
4. डेल्टा संयोजन में न्यूट्रल बिंदु नहीं निकलता है |

डेल्टा-स्टार (Δ-Y) संयोजन में द्वितीय वाइंडिंग के संयोजन स्टार में निम्न प्रकार किये जाते हैं :-
1. तीनों कुंडलियों (Primary windings) के प्रथम एक-एक बिंदु (X1, Y1 व Z1) को आपस में जोड़कर न्यूट्रल तार निकाल दिया जाता है |
2. दूसरे तीनों बिन्दुओं (X2, Y2 व Z2) से फेज R2,Y2 व B2 के तार आउटपुट के लिए बाहर निकाल दिए जाते हैं |

उपयोग- स्टेप-डाउन पॉवर ट्रांसफार्मरों में |

Delta star connection of transformer
Suppose-Primary line voltage=VL

Primary phase voltage VP =VL

(Because in delta connection VP=VL)

Secondary line voltage=VL×3×K

Secondary phase voltage VP =VL×K

Transformer coil connection

5. वी-वी संयोजन | V-V connection

v v connection

डेल्टा-डेल्टा संयोजन (Connection) के समान ही वी-वी (V-V) संयोजन किये जाते हैं | इसमें प्राथमिक तथा द्वितीयक वाइंडिंग में 2-2 कुंडलियां (Coils) होती हैं जबकि डेल्टा-डेल्टा संयोजन में 3-3 कुंडलियां होती हैं | इस संयोजन विधि में डेल्टा संयोजन की तुलता में 58% लपेट (Turns) रखे जाते हैं | इसे खुला डेल्टा भी कहा जाता है |

वी-वी (V-V) संयोजन विधि में प्राथमिक वाइंडिंग के संयोजन (Connection) निम्न प्रकार किये जाते हैं :-
1. नीचे दिए गए चित्र के अनुसार प्रथम कुंडली के बिंदु A1 से इनपुट के लिए फेज R1 निकाल दिया जाता है |
2. प्रथम कुंडली के बिंदु A2 तथा द्वितीय कुंडली के बिंदु B1 को जोड़कर इनपुट के लिए फेज Y1 निकाल दिया जाता है |
3. द्वितीय कुंडली के बिंदु B2 से इनपुट के लिए फेज B1 निकाल दिया जाता है |

वी-वी (V-V) संयोजन विधि में द्वितीयक वाइंडिंग के संयोजन (Connection) भी प्राथमिक वाइंडिंग के समान ही निम्न प्रकार किये जाते हैं :-
1. प्रथम कुंडली के बिंदु X1 से आउटपुट के लिए फेज R2 निकाल दिया जाता है |
2. प्रथम कुंडली के बिंदु X2 तथा द्वितीय कुंडली के बिंदु Y1 को जोड़कर आउटपुट के लिए फेज Y2 निकाल दिया जाता है |
3. द्वितीय कुंडली के बिंदु Y2 से आउटपुट के लिए फेज B2 निकाल दिया जाता है |

उपयोग- निम्न शक्ति तथा निम्न वोल्टेज वाले ट्रांसफार्मरों में |

VV connection of 3 phase transformer

Transformer coil connection

6. टी-टी संयोजन | T-T connection

टी-टी संयोजन (T-T  Connection) विधि को स्कॉट कनेक्शन भी कहा जाता है | इस विधि का उपयोग वहां किया जाता है जहां 3 फेज सप्लाई को 2 फेज में परिवर्तित करना हो क्योंकि इस प्रकार के ट्रांसफार्मर में इनपुट में 3 फेज सप्लाई दी जाती है तथा आउटपुट से 2 फेज सप्लाई प्राप्त की जाती है | इस संयोजन में एक फेज के 2 ट्रांसफार्मरों का उपयोग किया जाता है जिन्हें मुख्य ट्रांसफार्मर तथा टीज़र ट्रांसफार्मर कहा जाता है | मुख्य ट्रांसफार्मर की प्राइमरी वाइंडिंग में एक मध्य सिरा निकला होता है तथा टीज़र ट्रांसफार्मर की प्राइमरी वाइंडिंग में टर्नों की संख्या मुख्य ट्रांसफार्मर की प्राइमरी वाइंडिंग से 87% ही होती है | दोनों ट्रांसफार्मर की सेकेंडरी वाइंडिंग में टर्नों की संख्या बराबर होती है |

मुख्य ट्रांसफार्मर विधुतीय रूप से जुड़े होते हैं लेकिन चुम्बकीय रूप से अलग-अलग होते हैं (अर्थात दोनों 1 फेज ट्रांसफार्मरों के कनेक्शन आपस में जुड़े होते हैं लेकिन कोर अलग-अलग होती हैं |

उपयोग- इसका उपयोग 2 फेज से कार्य करने वाली विधुत भट्टी को 3 फेज से चलाने के लिए किया जाता है 

Scott connection of transformer

Transformer coil connection

7. स्टार-इंटरस्टार | Star-interstar connection

स्टार-इंटरस्टार का अर्थ है प्राथमिक वाइंडिंग स्टार में तथा द्वितीयक वाइंडिंग इंटरस्टार में |

इंटरस्टार संयोजन में स्टार वाइंडिंग की प्रत्येक कुंडली (coil) के श्रेणी में एक-एक अन्य कुंडली भी निम्न चित्र में दिखाए अनुसार संयोजित कर दी जाती है | इंटरस्टार की मदद से न्यूट्रल बिंदु इधर-उधर नहीं खिसकता है जिससे ट्रांसफार्मर के न्यूट्रल बिंदु को अर्थ करने की आवश्यकता नहीं होती है |

उपयोग- ऐसे रेतीले और पहाड़ी स्थानों पर जहां अर्थ की स्थापना नहीं की जा सकती अथवा अर्थ की स्थापना कर भी दी जाती है तो वह ठीक ढंग से नहीं होता है |

Star-interstar connection of transformer

Transformer coil connection

8. डेल्टा-इंटरस्टार संयोजन | Delta-interstar connection

डेल्टा-इंटरस्टार का अर्थ है प्राथमिक वाइंडिंग डेल्टा में तथा द्वितीयक वाइंडिंग इंटरस्टार में |

इंटरस्टार संयोजन में स्टार वाइंडिंग की प्रत्येक कुंडली (coil) के श्रेणी में एक-एक अन्य कुंडली भी निम्न चित्र में दिखाए अनुसार संयोजित कर दी जाती है |

 उपयोग- इसका उपयोग भी ऐसे रेतीले और पहाड़ी स्थानों पर किया जाता है जहां अर्थ की स्थापना नहीं की जा सकती अथवा अर्थ की स्थापना कर भी दी जाती है तो वह ठीक ढंग से नहीं होता है |

Delta interstar connection

Transformer coil connection

9. डेल्टा संयोजित टर्शियरी संयोजन | Delta connected tertiary connection

डेल्टा संयोजित टर्शियरी संयोजन एक प्रकार का स्टार-स्टार कनेक्शन ही है बस इसकी प्राथमिक तथा द्वितीयक वाइंडिंग के बीच में एक डेल्टा वाइंडिंग स्थापित कर दी जाती है जिसे टर्शियरी वाइंडिंग कहते हैं | स्टार-स्टार कनेक्शन में यह दोष होता है कि अधिक लोड होने पर इसका न्यूट्रल बिंदु इधर-उधर खिसकता रहता है | इस दोष को दूर करने के लिए टर्शियरी वाइंडिंग की स्थापना की जाती है | टर्शियरी वाइंडिंग की स्थापना से अधिक लोड पर भी न्यूट्रल बिंदु इधर-उधर नहीं खिसकता है | 

उपयोग- स्टार-स्टार कनेक्शन वाले ट्रांसफार्मर में जहां अर्थ कमजोर होता है तथा अधिक लोड होने के कारण न्यूट्रल बिंदु इधर-उधर खिसकता रहता है |

निम्न चित्र में डेल्टा संयोजित टर्शियरी संयोजन दर्शाया गया है |

Tertiary winding tertiary connection
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ट्रांसफार्मर में क्षरण फ्लक्स Leakage flux in transformer

ट्रांसफार्मर में क्षरण फ्लक्स Leakage flux in transformer

ट्रांसफार्मर में क्षरण फ्लक्स Leakage flux in transformer

ट्रांसफार्मर में प्राथमिक कुंडलन (Primary winding) में विधुत धारा प्रवाहित होने पर क्रोड़ (core) में चुम्बकीय फ्लक्स उत्पन्न होता है | ट्रांसफार्मर क्रोड़ की संरचना इस प्रकार की होती है कि प्राथमिक कुंडलन में उत्पन्न सम्पूर्ण फ्लक्स द्वितीय कुंडलन में से नहीं गुजरता, कुछ फ्लक्स वायु (Air gap) में से होते हुए अपना मार्ग पूर्ण करता है | जो फ्लक्स क्रोड़ में से होते हुए दूसरी कुंडलन में गुजरता है वह उपयोगी फ्लक्स (Useful flux) कहलाता है तथा जो फ्लक्स क्रोड़ में से ना गुजरकर हवा, तेल अथवा इंसुलेशन में से अपना मार्ग पूर्ण करता है, क्षरण फ्लक्स (Leakage flux) कहलाता है |  इस फ्लक्स की कोई उपयोगिता नहीं होती है।

इसी प्रकार ट्रांसफार्मर पर लोड देने पर द्वितीय कुंडलन (Secondary winding) में भी चुम्बकीय फ्लक्स उत्पन्न होता है अतः प्राथमिक कुंडलन की तरह द्वितीय कुंडलन से भी क्षरण फ्लक्स की हानि होती है |

Leakage flux in transformer

ट्रांसफार्मर में क्षरण फ्लक्स Leakage flux in transformer
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पूर्ण लोड तथा शुन्य लोड पर ट्रांसफार्मर का प्रचालन Running transformer on full load and zero load

Transformer on full and zero load full load par transformer zero load par transformer

पूर्ण लोड तथा शुन्य लोड पर ट्रांसफार्मर का प्रचालन Running transformer on full load and zero load

किसी भी ट्रांसफार्मर का व्यवहार पूर्ण लोड तथा शून्य लोड पर अलग-अलग होता है | इस पोस्ट में हम आपको समझायेंगे कि पूर्ण लोड (Full load) तथा शून्य लोड(Zero load / No load) पर ट्रांसफार्मर का कैसा व्यवहार होता है |

पूर्ण लोड तथा शुन्य लोड पर ट्रांसफार्मर का प्रचालन

पूर्ण लोड पर ट्रांसफार्मर | Transformer on full load

पूर्ण लोड पर ट्रांसफार्मर के प्रचालन को हम निम्न बुन्दुओं द्वारा आसानी से समझ सकते हैं :-

  • बिना लोड (No load) के ट्रांसफार्मर की प्राथमिक वाइंडिंग (Primary winding) में विधुत सप्लाई देने पर प्राथमिक वाइंडिंग में लोह क्षति को वहन करने के लिए कुछ धारा (i1) का प्रवाह होता हैं | लोड ना होने के कारण द्वितीय वाइंडिंग (Secondary winding) में धारा का प्रवाह नहीं होता है |
  • द्वितीय वाइंडिंग (Secondary winding) पर लोड जोड़ने पर इसमें धारा (i2) का प्रवाह होने लगता है | जिससे ईसमे चुम्बकीय फ्लक्स का प्रवाह होने लगता है |
  • द्वितीय वाइंडिंग (Secondary winding) में पैदा होने वाला चुम्बकीय फ्लक्स प्राथमिक वाइंडिंग (Primary winding) में पैदा होने वाले चुम्बकीय फ्लक्स के विपरीत स्वभाव वाला होता है जिससे यह प्राथमिक वाइंडिंग के चुम्बकीय फ्लक्स को कम कर देता है |
  • प्राथमिक वाइंडिंग (Primary winding) का चुम्बकीय फ्लक्स कम होने पर इसमें पैदा हो रहा बैक वि.वा.ब. (Back e.m.f.) भी कम हो जाता है |
  • प्राथमिक वाइंडिंग (Primary winding) का बैक वि.वा.ब. कम होने के कारण इसमें करंट का मान बढ़ जाता है | (क्योंकि किसी वाइंडिंग में बैक वि.वा.ब. ही करंट को कम करता है |)
  • तत्पश्चात प्राथमिक वाइंडिंग में करंट बढ़ने पर चुम्बकीय फ्लक्स का मान बढ़ जाता है |

पूर्ण लोड तथा शुन्य लोड पर ट्रांसफार्मर का प्रचालन

अत: शून्य लोड से फुल लोड तक चुम्बकीय फ्लक्स का मान लगभग समान रहता है तथा लोड बढ़ने पर प्राथमिक तथा द्वितीय, दोनों वाइंडिंग का करंट बढ़ जाता है |

प्राइमरी वाइंडिंग में धारा (ip) का मान, प्राइमरी वाइंडिंग बैलेन्सिंग धारा (ip) तथा लोड रहित प्राइमरी धारा (i0) को वेक्टर्स डायग्राम द्वारा दर्शाया गया है | जिसे निम्न चित्र में दर्शाया गया है। अत: कुल धारा, i = (iw + ip) + i0 (वेक्टर योग) प्राइमरी वाइंडिंग बैलेन्सिंग धारा (ip) तथा सेकेण्डरी वाइंडिंग धारा (is) की दिशाएँ एक-दूसरे के विपरीत होती हैं |

Vector diagram of transformer on full load

पूर्ण लोड तथा शुन्य लोड पर ट्रांसफार्मर का प्रचालन

शून्य लोड पर ट्रांसफार्मर | Transformer on no load

जब ट्रांसफार्मर पर कोई भार नहीं होता तो इसे भार विहीन अवस्था कहते हैं | भार विहीन अवस्था में ट्रांसफार्मर की प्राथमिक वाइंडिंग (Primary winding) में बहुत कम धारा (i0) का प्रवाह होता है जिसे शून्य लोड धारा (No load current) कहते हैं | इसका मान फुल लोड धारा का लगभग 2% से 5% होता है | उक्त 2% से 5% धारा निम्न के कारण प्रवाहित होती है :-

1. शून्य लोड (No load) पर लोह क्षतियों के कारण |
2. क्रोड़ (core) में चुम्बकीय क्षेत्र पैदा करने के कारण |

शून्य लोड (No load) पर द्वितीय वाइंडिंग में धारा का प्रवाह नहीं होता तथा ना ही चुम्बकीय क्षेत्र पैदा होता है | निम्न चित्र में शून्य लोड पर ट्रांसफार्मर का वेक्टर डायग्राम दर्शाया गया है :-

पूर्ण लोड तथा शुन्य लोड पर ट्रांसफार्मर का प्रचालन

पूर्ण लोड तथा शुन्य लोड पर ट्रांसफार्मर का प्रचालन Running transformer on full load and zero load​ Vector diagram of no load transformer

शुन्य लोड पर ट्रांसफार्मर द्वारा ली जाने वाली शक्ति का शूत्र :-

W0=VP.I0.COSϕ
W0=Power of Transformer on no load 
VP=Primary voltage on no load
I0=Primary current on no load
cosϕ=Power factor on no load
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ट्रांसफार्मर क्षति का मान ज्ञात करना Calculate the value of transformer loss

calculate transformer loss

ट्रांसफार्मर क्षति का मान ज्ञात करना Calculate the value of transformer loss

ट्रांसफार्मर क्षतियों का मान ज्ञात करके हम ट्रांसफार्मर की दक्षता भी ज्ञात कर सकते हैं निम्न दो विधियों द्वारा ट्रांसफार्मर क्षति का मान ज्ञात किया जा सकता है |

1. खुला परिपथ परीक्षण (Open circuit test)
2. लघु परिपथ परिक्षण (Short circuit test)

ट्रांसफार्मर क्षति का मान ज्ञात करना

1. खुला परिपथ परीक्षण | Open circuit test

खुला परिपथ परिक्षण द्वारा लोह क्षतियों (हिस्टेरेसिस तथा भंवर धारा क्षतियां) का मान ज्ञात किया जाता है | इसे शुन्य लोड परिक्षण (Zero load test) भी कहते हैं 

खुला परिपथ टेस्ट को करने लिए ट्रांसफार्मर की द्वितीय वाइंडिंग के सिरे खुले रखे जाते हैं अर्थात उस पर कोई लोड जुड़ा नहीं होता | प्राथमिक वाइंडिंग पर वाट मीटर लगा दिया जाता है |अब प्राथमिक वाइंडिंग को उसकी सामान्य AC  वोल्टेज से जोड़ा जाता है अर्थात जितने वोल्टेज की यह वाइंडिंग होती है उतनी वोल्टेज से जोड़ा जाता है |

द्वितीय वाइंडिंग को विधुत स्त्रोत से जोड़कर भी यह परीक्षण किया जा सकता है |

प्राथमिक वाइंडिंग को विधुत स्त्रोत से जोड़ने पर ट्रांसफार्मर की द्वितीय वाइंडिंग खुली होने के कारण द्वितीय वाइंडिंग में धारा का प्रवाह नहीं होता है तथा प्राथमिक वाइंडिंग में जो धारा का प्रवाह होता है वह ट्रांसफार्मर की लोह क्षति के कारण होता है | लोह क्षति में हिस्टेरेसिस तथा भंवर धारा क्षतियां सम्मिलित होती हैं | इस अवस्था में बहने वाली धारा, पूर्ण धारा का लगभग 5% होती है | 

उक्त अवस्था में प्राथमिक वाइंडिंग पर लगा वाट मीटर लोह क्षति का मान watt में दर्शाता है | वाट मीटर  के स्थान पर वोल्टमीटर, एम्पियर मीटर तथा पॉवर फैक्टर मीटर भी लगाये जा सकते है | वोल्ट मीटर, एम्पियर मीटर तथा पॉवर फैक्टर मीटर के मानों को गुणा करके वाट में लोह क्षति का मान निकाला जा सकता है | अर्थात W = V x I x COSΦ

खुला परिपथ परिक्षण विधि का डायग्राम निम्न चित्र में दर्शाया गया है :-

ट्रांसफार्मर क्षति का मान ज्ञात करना Calculate the value of transformer loss open circuit test

ट्रांसफार्मर क्षति का मान ज्ञात करना

2. लघु परिपथ परीक्षण | Short circuit test

लघु परिपथ परीक्षण द्वारा ताम्र क्षतियों का मान ज्ञात किया जाता है | इसे पूर्ण लोड परीक्षण (Full load test) भी कहते हैं |

इस परीक्षण में ट्रांसफार्मर की निम्न वोल्ट वाइंडिंग को लघु परिपथ कर दिया जाता है | तथा उच्च वोल्ट वाइंडिंग पर वाट मीटर लगाकर इसे AC स्त्रोत से जोड़ दिया जाता है | लघु परिपथ होने के कारण ट्रांसफार्मर की वाइंडिंग में उच्च धारा बहती है जिससे ट्रांसफार्मर जल सकता है इससे बचने के लिए वाइंडिंग की रेटेड वोल्टेज का 5% ही दिया जाता है | कम वोल्टेज देने के लिए ऑटो ट्रांसफार्मर का उपयोग किया जा सकता है |

अब ट्रांसफार्मर पर लगा वाट मीटर कुल ताम्र हानियां दर्शाता है |

नोट- इस परीक्षण में उच्च वोल्ट वाली वाइंडिंग में ही सप्लाई इसलिए दी जाती है क्योंकि उच्च वोल्टेज मान के घटाए गए मान (5%) पर वोल्टेज देना अपेक्षाकृत आसान होता है | जैसे एक ट्रांसफार्मर जिसका वोल्टता मान 3300/220 है | इसके निम्न वोल्टेज मान का 5% (अर्थात 11 वोल्ट) देना कठिन है जबकि उच्च वोल्टेज मान 3300 का 5% (अर्थात 165 वोल्ट) देना अपेक्षाकृत आसान है |

लघु परिपथ परिक्षण विधि का डायग्राम निम्न चित्र में दर्शाया गया है :-

ट्रांसफार्मर क्षति का मान ज्ञात करना Calculate the value of transformer loss Short circuit test

ट्रांसफार्मर क्षति का मान ज्ञात करना

itiale.in

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ट्रांसफार्मर की दक्षता Efficiency of Transformer

ट्रांसफार्मर की दक्षता Efficiency of Transformer

ट्रांसफार्मर की दक्षता Efficiency of Transformer

परिभाषा- किसी ट्रांसफार्मर की आउटपुट शक्ति तथा इनपुट शक्ति का अनुपात ट्रांसफार्मर की दक्षता (Efficiency) कहलाता है | 

दक्षता का प्रतीक η है | दक्षता को प्रतिशत (%) में व्यक्त किया जाता है | 

यदि किसी ट्रांसफार्मर की आउटपुट शक्ति तथा इनपुट शक्ति बराबर है तो उसकी दक्षता 100% होगी अर्थात ट्रांसफार्मर ने जितनी शक्ति इनपुट में ली उतनी ही शक्ति आउटपुट में दे दी |

100% दक्षता वाले ट्रांसफार्मर को आदर्श ट्रांसफार्मर कहते हैं लेकिन वास्तविकता में इस प्रकार का कोई ट्रांसफार्मर नहीं है क्योंकि ट्रांसफार्मर में कुछ ना कुछ क्षति अवश्य होती है जिससे ट्रांसफार्मर जितनी शक्ति इनपुट में लेता है उतनी शक्ति आउटपुट में नहीं देता | 

ट्रांसफार्मर की दक्षता अन्य मशीनों (जैसे मोटर, जनरेटर इत्यादि) से उच्च होती है क्योंकि मोटर, जनरेटर इत्यादि में घूमने वाले भाग होने के कारण इनमे क्षति अधिक होती है | किसी मशीन में जितनी अधिक क्षति होती है उतनी ही कम उसकी दक्षता होती है |

ट्रांसफार्मर की दक्षता का सूत्र निम्न प्रकार है :-

efficiency of transformer

ट्रांसफार्मर की दक्षता

पूर्ण दिवस दक्षता | All day efficiency

ट्रांसफार्मर पर पूरे दिन समान लोड नहीं रहता इस कारण ट्रांसफार्मर की द्वितीयक वाइंडिंग में करंट का प्रवाह कभी कम तथा कभी अधिक होता रहता है जिससे ताम्र क्षति घटती-बढती रहती है | ताम्र क्षति घटने-बढ़ने के कारण ट्रांसफार्मर की दक्षता भी घटती-बढती रहती है |

अतः ट्रांसफार्मर की पूरे दिन (24 घंटे) की ओसत दक्षता पूर्ण दिवस दक्षता कहलाती है | अर्थात पूरे दिन में ट्रांसफार्मर द्वारा आउटपुट में दी गई ऊर्जा तथा इनपुट में ली गई ऊर्जा का अनुपात पूर्ण दिवस दक्षता कहलाता है |

पूर्ण दिवस दक्षता का सूत्र निम्न प्रकार है :-

All day efficiency of transformer
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ट्रांसफार्मर की वि वा ब समीकरण EMF Equation of transformer

ट्रांसफार्मर की वि वा ब समीकरण EMF Equation of transformer

ट्रांसफार्मर की वि वा ब समीकरण EMF Equation of transformer

ट्रांसफार्मर की प्राथमिक वाइंडिंग को विधुत स्त्रोत से जोड़ने पर द्वितीयक वाइंडिंग में एक विधुत वाहक बल पैदा हो जाता है तथा प्राथमिक वाइंडिंग में भी एक विरोधी विधुत वाहक बल (Back E.M.F.) पैदा हो जाता है | ये दोनों विधुत वाहक बल फैराडे के विधुत चुम्बकीय प्रेरण सिद्धांत पर आधारित होते हैं |

ट्रांसफार्मर की वाइंडिंग में पैदा हुआ विधुत वाहक बल निम्न कारकों पर निर्भर करता है :-

  • वाइंडिंग में तारों की लपेट संख्या- N
  • विधुत सप्लाई की आवृति (Frequency)- f
  • क्रोड़ में पैदा हुआ अधिकतम चुम्बकीय फ्लक्स- Φm

ट्रांसफार्मर में प्रेरित विधुत वाहक बल की समीकरण निम्न प्रकार है :-

E=4.44.Φm.f.N Volts

यहां :-
Φm = अधिकतम चुम्बकीय फ्लक्स घनत्व
f = फ्रीक्वेंसी (Hz में)
N = वाइंडिंग में लपेटों की संख्या 

अब इस समीकरण को हम विस्तार से समझेंगे :-
प्रत्यावर्ती धारा की प्रत्येक साइकिल में चुम्बकीय फ्लक्स 4 बार अधिकतम तथा 0 के बीच परिवर्तित होता है इसलिए 

E  4.Φm.f.N
Because  Erms= Eaverage × form factor
or  Erms= Eaverage × 1.11 
E=(4×1.11) Φm.f.N
  • 4 = इस सूत्र में 4 इसलिए दिया गया है क्योंकि प्रत्यावर्ती धारा की प्रत्येक साइकिल में चुम्बकीय फ्लक्स 4 बार अधिकतम तथा 0 के मध्य परिवर्तित होता है |
  • 1.11 = इस सूत्र में 1.11 इसलिए दिया गया है क्योंकि AC में फॉर्म फैक्टर का मान 1.11 होता है |
Therefore  E=4.44.Φm.f.N  Volts

ट्रांसफार्मर की वि वा ब समीकरण

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ट्रांसफार्मर की वि वा ब समीकरण

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ट्रांसफार्मर क्षतियां Transformer losses

transformer loss

ट्रांसफार्मर क्षतियां Transformer losses

Transformer losses

कोई भी ट्रांसफार्मर इनपुट में दी गई ऊर्जा को 100 प्रतिशत आउटपुट में नहीं दे सकता | जैसे सभी मशीनों में क्षतियां होती हैं उसी प्रकार ट्रांसफार्मर में भी क्षतियां होती हैं | जितनी ऊर्जा हम ट्रांसफार्मर को इनपुट में देते हैं उससे कम ऊर्जा हमें आउटपुट में मिल पाती है | हालाँकि जिन मशीनों में चलायमान पुर्जे होते हैं उनकी तुलना में ट्रांसफार्मर में कम क्षति होती है क्योंकि ट्रांसफार्मर में वायु क्षति तथा घर्षण क्षति नहीं होती |
ट्रांसफार्मर में निम्न 2 प्रकार की क्षतियां / हानियां होती हैं :-

1. लोह क्षति (Iron loss)
(a) हिस्टेरेसिस क्षति (Hysteresis loss)
(b) भंवर धारा क्षति (Eddy current loss)
2. ताम्र क्षति (Copper loss)

Transformer losses

1. लोह क्षति | Iron loss

ट्रांसफार्मर की वाइंडिंग लोहे की क्रोड़ पर की जाती है | अतः इस क्रोड़ में होने वाली विधुत शक्ति की क्षति लोह क्षति कहलाती है | लोह क्षति जीरो लोड से फुल लोड तक अर्थात प्रत्येक लोड पर समान रहती है | इसे नो-लोड-क्षति (No load loss) भी कहते हैं |

लोह क्षति का मान ज्ञात करने के लिए खुला परिपथ परिक्षण (Open circuit test) किया जाता है | लोह क्षति निम्न दो प्रकार की होती है :-

(a) हिस्टेरेसिस क्षति (Hysteresis loss)
(b) भंवर धारा क्षति (Eddy current loss)

Transformer losses

a. हिस्टेरेसिस क्षति | Hysteresis loss

किसी चुम्बकीय पदार्थ के बार-बार चुम्बकित व अचुम्बकित होने के कारण जो विधुत शक्ति की क्षति होती है उसे हिस्टेरेसिस क्षति कहते हैं | प्रत्यावर्ती धारा द्वारा किसी चुम्बकीय पदार्थ को चुम्बकित करने पर प्रत्यावर्ती साईकल के धनात्मक होने पर चुम्बकीय पदार्थ के अणु एक दिशा में चुम्बकित होने हैं तथा साईकल के नकारात्मक होने पर चुम्बकीय पदार्थ के अणु दूसरी दिशा में चुम्बकित होने हैं | इस दिशा बदलने की प्रक्रिया के कारण चुम्बकीय अणु आपस में टकराते हैं जिससे ऊष्मा उत्पन्न होने के कारण चुम्बकीय पदार्थ अथवा लोहा गर्म होने लगता है | इस पूरी प्रक्रिया में विधुत उर्जा की क्षति होती है | 

हिस्टेरेसिस क्षति का सूत्र :- 

 
Wh=η . Bmax1.6 . f . V

Wh = हिस्टेरेसिस क्षति, वाट में 
η = हिस्टेरेसिस नियतांक
Bmax = क्रोड़ में अधिकतम चुम्बकीय फ्लक्स घनत्व, वेबर प्रति मीटर² में
f = फ्रीक्वेंसी, Hz में
V = क्रोड़ का आयतन, मीटर³ में

नोट- हिस्टेरेसिस नियतांक (η) का मान प्रत्येक धातु के लिए अलग-अलग होता है जैसे सिलिकॉन स्टील के लिए हिस्टेरेसिस नियतांक का मान 191 होता है | जिन धातुओं का हिस्टेरेसिस नियतांक अधिक होता है उनसे निर्मित क्रोड़ में क्षति भी उतनी ही अधिक होती है | 
क्रोड़ की धातु में सिलिकॉन की मात्रा अधिक करके 
हिस्टेरेसिस हानियाँ कम की जा सकती हैं क्योंकि इससे हिस्टेरेसिस नियतांक (η) का मान कम हो जाता है |

Transformer losses

Transformer losses

b. भंवर धारा क्षति | Eddy current loss

किसी प्रत्यावर्ती चुम्बकीय क्षेत्र में स्थित चालक में विधुत वाहक बल प्रेरित हो जाता है और यह फैराडे के विधुत चुम्बकीय प्रेरण सिद्धांत के कारण होता है | ट्रांसफार्मर की द्वितीय वाइंडिंग में विधुत वाहक बल पैदा हो जाता है क्योंकि वह प्राइमरी वाइंडिंग द्वारा पैदा किये गए प्रत्यावर्ती चुम्बकीय क्षेत्र में स्थित होती है | इसी प्रकार ट्रांसफार्मर की क्रोड़ भी प्रत्यावर्ती चुम्बकीय क्षेत्र में स्थित होती है इसलिए उसमे भी विधुत वाहक बल पैदा हो जाता है इसके साथ ही ट्रांसफार्मर की क्रोड़ के बोल्ट इत्यादि में भी विधुत वाहक बल प्रेरित हो जाता है  | क्रोड़ में पैदा हुआ यह विधुत वाहक बल किसी काम का नहीं होता अर्थात यह अनावश्यक ही विधुत ऊर्जा की क्षति करता है | इस कारण क्रोड़ गर्म होने लगती है |

अतः क्रोड़ में इस प्रकार पैदा होने वाले विधुत वाहक बल के कारण होने वाली विधुत ऊर्जा की क्षति को “भंवर धारा क्षति” कहते हैं |

भंवर धारा क्षति को कम करने के लिए क्रोड़ को पटलित बनाया जाता है अर्थात सिलिकॉन स्टील की पतली चादर के टुकड़ों पर दोनों तरफ वार्निश कर दी जाती है जिससे इसमें कम से कम करंट प्रवाहित हो सके |

नोट- अगर ट्रांसफार्मर की क्रोड़ को ठोस लोहे से बना दिया जाये तो उसमे सेकंडरी वाइंडिंग से भी अधिक विधुत वाहक बल पैदा हो जायेगा जिससे एडी करंट बहुत बढ़ जायेगा तत्पश्चात ट्रांसफार्मर एक लघु परिपथ (Short circuit) की तरह कार्य करेगा और अत्यधिक ऊष्मा उत्पन्न होने से ट्रांसफार्मर जल जायेगा |

भंवर धारा क्षति का सूत्र :-

We=Bmax2 . f2 . t2

 We = भंवर धारा क्षति, वाट में 
 Bmax = क्रोड़ में अधिकतम चुम्बकीय फ्लक्स घनत्व, वेबर प्रति मीटर² में
 f = फ्रीक्वेंसी, Hz में
 t = पटलन (Lemination) की मोटाई, मिमी में

Transformer losses

Transformer losses

2. ताम्र क्षति | Copper loss

ताम्र हानियां ट्रांसफार्मर की वाइंडिंग के प्रतिरोध के कारण होती हैं | अतः वाइंडिंग के प्रतिरोध के कारण होने वाली क्षति ताम्र क्षति कहलाती है | ट्रांसफार्मर पर लोड बढ़ने पर ताम्र क्षति भी बढ़ जाती है | ताम्र क्षति का मान ज्ञात करने के लिए लघु परिपथ परिक्षण (Short circuit test) किया जाता है | निम्न के कारण ताम्र क्षति का मान बढ़ जाता है :-

1. लोड बढ़ने पर (ट्रांसफार्मर पर लोड दोगुना करने पर ताम्र क्षति का मान 4 गुना हो जाता है |)
2. ट्रांसफार्मर का तापमान बढ़ने पर, क्योंकि वाइंडिंग का तापमान बढ़ने पर इसका प्रतिरोध बढ़ जाता है |

ताम्र क्षति का सूत्र :-

Wc=Ip2 . Rp + Is2 . Rs

Wc = ताम्र क्षति, वाट में |
Ip = प्राथमिक वाइंडिंग की विधुत धारा, एम्पियर में |
Rp = प्राथमिक वाइंडिंग का प्रतिरोध, ओम में |
Is = द्वितीयक वाइंडिंग की विधुत धारा, एम्पियर में |
Rs = द्वितीयक वाइंडिंग का प्रतिरोध, ओम में |

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ट्रांसफार्मर तेल की जाँच Testing of Transformer oil

Transformer oil testing

ट्रांसफार्मर तेल की जाँच Testing of Transformer oil

ट्रांसफार्मर तेल, ट्रांसफार्मर टैंक में भरा जाता है | इसे इंसुलेशन ऑइल भी कहा जाता है | ट्रांसफार्मर में तेल भरने का उद्देश्य होता है वाइंडिंग को उचित प्रतिरोधकता देना, ट्रांसफार्मर को ठंडा रखना तथा वाइंडिंग के जोड़ों में होने वाले ऑक्सीकरण को रोकना | ट्रांसफार्मर जितने अधिक वोल्टता पर प्रयुक्त होता है तेल की “डाई-इलेक्ट्रिक-स्ट्रेंथ” उतनी ही अधिक होनी चाहिए |  ट्रांसफार्मर तेल निम्न 2 प्रकार का होता है :-

1. सिंथेटिक तेल (Synthetic oil)- 
2. खनिज तेल (Mineral oil)-
तेल में नमी जाने, पानी जाने, गंदगी जाने, तेल के अन्दर स्पार्किंग होने अथवा लम्बे समय तक उपयोग में रहने से तेल ख़राब हो जाता है अतः ट्रांसफार्मर तेल की जांच आवश्यक रूप से करनी चाहिए |

तेल को ट्रांसफार्मर में भरने से पहले उसकी जाँच आवश्यक रूप से करनी चाहिए | क्योंकि तेल की डाई-इलेक्ट्रिक-स्ट्रेंथ कम होने, तेल में नमी होने, गंदगी होने आदि पर यह ट्रांसफार्मर के लिए नुकसानदायक हो सकता है | अगर जाँच में तेल ठीक ना निकले तो उसे या तो फ़िल्टर करा लेना चाहिए अथवा नया तेल डालना चाहिए |
ट्रांसफार्मर तेल का परीक्षण निम्न 4 विधियों से किया जाता है :-
 

ट्रांसफार्मर तेल की जाँच

1. डाई-इलेक्ट्रिक परीक्षण | Di-Electric test

इस परीक्षण में ट्रांसफार्मर तेल की जाँच के लिए ट्रांसफार्मर से तेल निकालकर एक टेस्टिंग कप में डाला जाता है | यह कप कांच अथवा प्लास्टिक का बना होता है | इस कप में दो एलेक्ट्रोड़ होते है जिनमे 40Hz से 60Hz तक की विधुत सप्लाई दी जाती है |

तेल परीक्षक में एक इलेक्ट्रॉनिक सर्किट लगा होता है जो 60KV तक की AC सप्लाई देता है | टेस्टिंग कप को तेल परीक्षक में लगाकर इसके दोनों एलेक्ट्रोड़ के मध्य AC विधुत सप्लाई दी जाती है | अगर दोनों एलेक्ट्रोड़ के मध्य 30KV से कम पर ही स्पार्किंग उत्पन्न हो जाये तो यह तेल ख़राब तेल माना जाता है अथवा इसकी डाई-इलेक्ट्रिक-स्ट्रेंथ कम होती है | इसे फ़िल्टर करने के बाद फिर से जांच करने पर इसमें 60KV तक स्पार्किंग उत्पन्न नहीं होनी चाहिए |

2. क्रेकल परीक्षण | Creckle test

ट्रांसफार्मर तेल की जाँच में यह परीक्षण तेल में पानी अथवा नमी की उपस्थिति जांचने के लिए किया जाता है | क्रेकल जाँच में एक नमी रहित पात्र में ट्रांसफार्मर तेल लिया जाता है | अब धातु की एक छड़ को 400°C तक गर्म किया जाता है | इस गर्म छड़ को तेल में डालकर जांच की जाती है | अगर तेल में तड़क-तड़क की आवाज सुनाइ दे अथवा बुलबुले बनें तो माना जाता है कि तेल में नमी अथवा पानी है | अगर तेल में किसी प्रकार की आवाज अथवा बुलबुले ना आयें तो तेल में पानी नहीं है |

3. अम्लता परीक्षण | Acidity test

तेल के हवा से संपर्क में आने तथा तेल में उपस्थित लोहा, ताम्बा तथा अन्य धातु योगिकों की उपस्थिति के कारण तेल का ऑक्सीकरण होने लगता है | ऑक्सीकरण के कारण तेल अम्लीय हो जाता है जिससे इसके प्रतिरोध में कमी आ जाती है जिससे वाइंडिंग में स्पार्किंग होने की सम्भावना बन जाती है तथा वाइंडिंग में काम आने वाला कागज भी ख़राब होने लगता है | अतः इससे बचने के लिए ट्रांसफार्मर तेल की जाँच का अम्लता परिक्षण (Acidity test) आवश्यक है |

अम्लता परीक्षण के लिए एक जाँच किट (Testing kit) की आवश्यकता होती है | इस किट में निम्न जाँच सामग्री होती है :-

1. रेक्टिफाइड स्पिरिट की एक पॉलिथीन बोतल
2. एक सोडियम कार्बोनेट की 
पॉलिथीन बोतल
3. यूनिवर्सल इंडिकेटर की बोतल
4. एक पारदर्शी ट्यूब
5. एक सिरिंज
6. कलर चार्ट

ट्रांसफार्मर तेल की जाँच Testing of Transformer oil निम्न प्रकार की जाती है :-
1. इस जाँच के लिए सर्वप्रथम 8 मिली ट्रांसफार्मर तेल लिया जाता है |
2. इस तेल में 1 मिली 
रेक्टिफाइड स्पिरिट मिलाया जाता है |
3. इसे मिलाने के बाद इसमें 1 मिली 
सोडियम कार्बोनेट मिलाया जाता है |
4. इसे फिर से मिलाने के बाद इसमें 
यूनिवर्सल इंडिकेटर की 5 बूंदें डाली जाती हैं |
5. अंत में तेल को मिलाने के बाद निम्न कलर चार्ट के अनुसार mgKOH/g में तेल की अम्लीयता का पता लगाया जाता है |  

ट्रांसफार्मर तेल की जाँच

4. क्षेत्र परीक्षण | Field test

4. क्षेत्र परीक्षण (Field test):-

ट्रांसफार्मर तेल की जाँच के क्षेत्र परीक्षण में एक हीटर में अन्तर्निहित आसुत जल पर जब ट्रांसफार्मर तेल की एक बूंद को एक सूक्ष्म नलीका द्वारा धीरे से गिराया जाता है तो यह तेल की बूंद चपटी हो जाती है | यदि इस बूंद का व्यास 17 mm से कम हो तो यह तेल उपयोग में लेने हेतु ठीक है | यदि तेल की बूंद 17 mm से अधिक फ़ैल जाये तो यह तेल उपयोग में लेने हेतु ठीक नहीं है |

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परिणमन अनुपात Transformation ratio

Transformation ratio, transformation anupat

परिणमन अनुपात / Transformation ratio

परिणमन अनुपात Transformation ratio

ट्रांसफार्मर की द्वितीय वाइंडिंग के लपेटों की संख्या तथा प्राथमिक वाइंडिंग के लपेटों की संख्या का अनुपात “परिणमन अनुपात” (Transformation ratio) कहलाता है |
अथवा 
ट्रांसफार्मर की द्वितीय वोल्टेज तथा प्राथमिक वोल्टेज का अनुपात “परिणमन अनुपात” (Transformation ratio) कहलाता है | क्योंकि जिस वाइंडिंग में अधिक लपेटे (turns) होंगे उसमे वोल्टेज भी अधिक होगी |
अथवा 
ट्रांसफार्मर की प्राथमिक करंट तथा द्वितीय करंट का अनुपात “परिणमन अनुपात” (Transformation ratio) कहलाता है | क्योंकि जिस वाइंडिंग की वोल्टेज अधिक होती है उसकी करंट कम होती है |

 
 
K=NsNp=EsEp=IpIs

K = Transformation ratio
Ns = Secondary turns
Np = Primary turns
Es = Secondary voltage
Ep = Primary voltage
Ip = Primary current
Is = Secondary current  

उक्त सूत्र के अनुसार ट्रांसफार्मर की दोनों वाइंडिंग की वोल्टेज E, लपेट संख्या N अथवा करंट I मे से किसी एक की जानकारी होने पर परिणमन अनुपात निकाला जा सकता है |

माना
1. किसी स्टेप-अप ट्रांसफार्मर की द्वितीयक वाइंडिंग में टर्नों की संख्या = 200
प्राथमिक वाइंडिंग में टर्नों की संख्या = 100

Transformation ratio =200100=2

2. इसी प्रकार किसी स्टेप-डाउन ट्रांसफार्मर की द्वितीयक वाइंडिंग में टर्नों की संख्या = 100
प्राथमिक वाइंडिंग में टर्नों की संख्या = 200

Transformation ratio =100200=0.5

अतः स्टेप-अप ट्रांसफार्मर का ट्रांसफॉर्मेशन अनुपात 1 से अधिक (>1) होता है तथा स्टेप-डाउन ट्रांसफार्मर का ट्रांसफॉर्मेशन अनुपात 1 से कम (<1) होता है |
अर्थात
1. हम यह कह सकते हैं कि जिस ट्रांसफार्मर का ट्रांसफॉर्मेशन अनुपात 1 से अधिक है उसकी आउटपुट वोल्टेज इनपुट वोल्टेज से अधिक होती है अर्थात वह स्टेप-अप ट्रांसफार्मर है |
 2. और जिस ट्रांसफार्मर का ट्रांसफॉर्मेशन अनुपात 1 से कम है उसकी आउटपुट वोल्टेज इनपुट वोल्टेज से कम होती है अर्थात वह स्टेप-डाउन ट्रांसफार्मर है |

 
 
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अथवा 

ट्रांसफार्मर की प्राथमिक करंट तथा द्वितीय करंट का अनुपात “परिणमन अनुपात” (Transformation ratio) कहलाता है | क्योंकि जिस वाइंडिंग की वोल्टेज अधिक होती है उसकी करंट कम होती है |

अतः स्टेप-अप ट्रांसफार्मर का ट्रांसफॉर्मेशन अनुपात 1 से अधिक (>1) होता है तथा स्टेप-डाउन ट्रांसफार्मर का ट्रांसफॉर्मेशन अनुपात 1 से कम (<1) होता है |

अर्थात

1. हम यह कह सकते हैं कि जिस ट्रांसफार्मर का ट्रांसफॉर्मेशन अनुपात 1 से अधिक है उसकी आउटपुट वोल्टेज इनपुट वोल्टेज से अधिक होती है अर्थात वह स्टेप-अप ट्रांसफार्मर है |

 2. और जिस ट्रांसफार्मर का ट्रांसफॉर्मेशन अनुपात 1 से कम है उसकी आउटपुट वोल्टेज इनपुट वोल्टेज से कम होती है अर्थात वह स्टेप-डाउन ट्रांसफार्मर है |

ट्रांसफार्मर की द्वितीय वोल्टेज तथा प्राथमिक वोल्टेज का अनुपात “परिणमन अनुपात” (Transformation ratio) कहलाता है | क्योंकि जिस वाइंडिंग में अधिक लपेटे (turns) होंगे उसमे वोल्टेज भी अधिक होगी | अथवा 

ट्रांसफार्मर की प्राथमिक करंट तथा द्वितीय करंट का अनुपात “परिणमन अनुपात” (Transformation ratio) कहलाता है | क्योंकि जिस वाइंडिंग की वोल्टेज अधिक होती है उसकी करंट कम होती है 

रिणमन अनुपात Transformation ratio

ट्रांसफार्मर की द्वितीय वाइंडिंग के लपेटों की संख्या तथा प्राथमिक वाइंडिंग के लपेटों की संख्या का अनुपात “परिणमन अनुपात” (Transformation ratio) कहलाता है |

अथवा 

ट्रांसफार्मर की द्वितीय वोल्टेज तथा प्राथमिक वोल्टेज का अनुपात “परिणमन अनुपात” (Transformation ratio) कहलाता है | क्योंकि जिस वाइंडिंग में अधिक लपेटे (turns) होंगे उसमे वोल्टेज भी अधिक होगी |

अथवा 

ट्रांसफार्मर की प्राथमिक करंट तथा द्वितीय करंट का अनुपात “परिणमन अनुपात” (Transformation ratio) कहलाता है | क्योंकि जिस वाइंडिंग की वोल्टेज अधिक होती है उसकी करंट कम होती है |परिणमन अनुपात ट्रांसफार्मर की द्वितीय वाइंडिंग के लपेटों की संख्या तथा प्राथमिक वाइंडिंग के लपेटों की संख्या का अनुपात “परिणमन अनुपात” (Transformation ratio) कहलाता है |

ट्रांसफार्मर के भाग Parts of Transformer

Parts of transformer

ट्रांसफार्मर के भाग Parts of Transformer

ट्रांसफार्मर के भाग Parts of Transformer

ट्रांसफार्मर अन्योन्य प्रेरण (Mutual inductance) के सिद्धांत पर कार्य करता है | ट्रांसफार्मर एक स्थिर विधुत मशीन है अर्थात इसमें कोई चलायमान (Movale) भाग नहीं होता अतः इसके सभी भाग स्थिर होते हैं |

ट्रांसफार्मर के कुछ महत्वपूर्ण भाग होते हैं जो सभी ट्रांसफार्मरों में जरुरी होते हैं | ये छोटे से छोटे तथा बड़े से बड़े, सभी ट्रांसफार्मरों में जरुरी होते हैं इनके बिना ट्रांसफार्मर का निर्माण असंभव होता है | तथा कुछ भाग ऐसे भी होते हैं जिनको बड़े ट्रांसफार्मरों अथवा कुछ विशेष ट्रांसफार्मरों में लगाया जाता है | ट्रांसफार्मर के अति महत्त्वपूर्ण भाग (Very important Parts of Transformer) होते हैं- क्रोड़, वाइंडिंग तथा प्रतिरोधक सामग्री, जिनका वर्णन प्रथम तीन बिन्दुओं में किया गया है तथा तापमापी, ब्रीदर, एक्सप्लोजन वेंट, बकोल्ज रिले तथा कंजरवेटर आदि सुरक्षात्मक भाग हैं | अन्य बिन्दुओं में अन्य भागों का वर्णन किया गया है |

 
ट्रांसफार्मर के भाग

ट्रांसफार्मर के भाग Parts of Transformer

ट्रांसफार्मर के भाग

1. क्रोड़ / Core

मुख्य चित्र में बिंदु संख्या 5 में क्रोड़ दर्शाइ गई है |

ट्रांसफार्मर का एक मुख्य भाग है-क्रोड़ | क्रोड़ पर ही ट्रांसफार्मर वाइंडिंग को लपेटा जाता है | बिना क्रोड़ के ट्रांसफार्मर का निर्माण संभव नहीं है | क्रोड़ पर वाइंडिंग करके इसे ट्रांसफार्मर टैंक में रखकर बोल्ट कर दिया जाता है तथा कुछ ट्रांसफार्मरों की क्रोड़ को टैंक में ना रखकर खुला ही रखा जाता है | क्रोड़ कई प्रकार की होती है जैसे- क्रोड़ प्रकार, शैल प्रकार, बेरी प्रकार तथा स्पाइरल प्रकार आदि | 

ट्रांसफार्मर में प्राइमरी वाइंडिंग द्वारा स्थापित चुम्बकीय क्षेत्र के चुम्बकीय पथ को पूर्ण करने, चुम्बकीय फ्लक्स के लिए निम्न प्रतिष्टम्भ (Low reluctance) का पथ उपलब्ध कराने तथा उसे सघन रखने के लिए लोहे की क्रोड़ का प्रयोग किया जाता है |

यदि क्रोड़ को ठोस लोहे का बना दिया जाये तो उसमे एडी धारा क्षति तथा हिस्टेरेसिस क्षति बहुत अधिक हो जाएगी, अतः लैमिनेटेड सिलिकॉन स्टील स्टेम्पिंग से बनी हुई क्रोड़ प्रयोग की जाती है | इन स्टेम्पिंग की मोटाई 0.35 mm से 0.5 mm तक रखी जाती है और इनके एक अथवा दोनों तरफ वार्निश की हुई होती है | सिलिकॉन स्टील की क्रोड़ बनाने के लिए लोहे में 3.8% से 4.5% तक सिलिकॉन धातु मिश्रित की जाती है | क्रोड़ का आकार, ट्रांसफार्मर की संरचना के अनुसार होता है | क्रोड़ के प्रकारों का विस्तृत विवरण हमारी अन्य पोस्ट ” ट्रांसफार्मर के प्रकार ” में किया गया है | 

stepped core and normal core transformer
Transformer core

ट्रांसफार्मर के भाग

ट्रांसफार्मर के भाग

2. वाइंडिंग / Winding

मुख्य चित्र में बिंदु संख्या 6 में वाइंडिंग दर्शाइ गई है |

क्रोड़ पर ताम्बे अथवा एल्युमिनियम के तारों को लपेट कर ट्रांसफार्मर वाइंडिंग की जाती है | वाइंडिंग क्रोड़ के ऊपर की जाती है | क्रोड़ पर वाइंडिंग करने से पहले क्रोड़ को भली प्रकार से प्रतिरोधित कर लिया जाता है जिससे क्रोड़ में करंट प्रवाहित ना हो तथा वाइंडिंग शॉर्ट सर्किट ना हो |

वाइंडिंग, ट्रांसफार्मर का एक जरुरी तथा मुख्य भाग होता है जिसके बिना ट्रांसफार्मर का कोई अस्तित्व नहीं है | ट्रांसफार्मर में दो वाइंडिंग की जाती हैं एक प्राथमिक वाइंडिंग तथा दूसरी द्वितीयक वाइंडिंग | 

1. प्राथमिक वाइंडिंग / Primary winding

प्राथमिक वाइंडिंग वह वाइंडिंग होती है जिसमे विधुत स्रोत से AC सप्लाई दी जाती है | यदि प्राथमिक वाइंडिंग में द्वितीयक वाइंडिंग की तुलना में अधिक घुमाव दिए जाते हैं तो यह स्टेप-डाउन ट्रांसफार्मर कहलाता है तथा यदि प्राथमिक वाइंडिंग में द्वितीयक वाइंडिंग की तुलना में कम घुमाव दिए जाते हैं तो यह स्टेप-अप ट्रांसफार्मर कहलाता है |

2. द्वितीयक वाइंडिंग / Secondary winding

द्वितीयक वाइंडिंग वह वाइंडिंग होती है जिससे लोड को विधुत सप्लाई दी जाती है | यदि द्वितीयक  वाइंडिंग में प्राथमिक वाइंडिंग की तुलना में अधिक घुमाव दिए जाते हैं तो यह स्टेप-अप ट्रांसफार्मर कहलाता है तथा यदि द्वितीयक वाइंडिंग में प्राथमिक वाइंडिंग की तुलना में कम घुमाव दिए जाते हैं तो यह स्टेप-डाउन ट्रांसफार्मर कहलाता है 

ट्रांसफार्मर के भाग

3. प्रतिरोधक सामग्री / Insulating material

प्रतिरोधक भी ट्रांसफार्मर का एक जरुरी भाग है | बिना प्रतिरोधक के ट्रांसफार्मर वाइंडिंग शोर्ट सर्किट होकर जल जाएगी | क्रोड़ पर वाइंडिंग करने से पहले क्रोड़ को भली प्रकार प्रतिरोधक कागज़ द्वारा प्रतिरोधित कर लिया जाता है तथा प्राथमिक, द्वितीयक तथा प्रत्येक फेज की वाइंडिंग के बीच में प्रतिरोधक कागज़ द्वारा प्रतिरोधन किया जाता है |

ट्रांसफार्मर ऑइल भी एक प्रतिरोधक पदार्थ है | कभी-कभी नमी के कारण ऑइल का प्रतिरोधन समाप्त हो जाता है जिससे ट्रांसफार्मर वाइंडिंग जलने की सम्भावना रहती है | इसलिए हमें समय-समय पर ट्रांसफार्मर ऑइल की प्रतिरोधकता जांच अवश्य करवानी चाहिए | ट्रांसफार्मर बुशिंग भी प्रतिरोधक पदार्थ हैं |
ट्रांसफार्मर की वाइंडिंग करते समय निम्न प्रतिरोधक सामग्री का उपयोग होता है :-

1. PVC टेप
2. कॉटन टेप
3. स्लीव
4. बैकेलाइट शीट
5. प्रतिरोधक कागज़ / वार्निश कागज़
6. लकड़ी की फन्नी
7. माइका इत्यादि

ट्रांसफार्मर के भाग

4. टैंक / Tank

मुख्य चित्र में बिंदु संख्या 2 में ट्रांसफार्मर टैंक दर्शाया गया है |

ट्रांसफार्मर टैंक लोहे का बना होता है जिसके अन्दर ट्रांसफार्मर क्रोड़ व वाइंडिंग स्थापित होती हैं तथा तेल भरा होता है | ट्रांसफार्मर के टैंक को रिसाव रहित (Leakage proof) होना चाहिए | कुछ छोटे ट्रांसफार्मर बिना टैंक के भी होते है, इनकी क्रोड़ तथा वाइंडिंग खुली होती है | 

ट्रांसफार्मर के भाग

5. ट्रांसफार्मर तेल / Transformer oil

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मुख्य चित्र में बिंदु संख्या 7 में ट्रांसफार्मर तेल दर्शाया गया है |

ट्रांसफार्मर तेल, ट्रांसफार्मर टैंक में भरा जाता है | ट्रांसफार्मर में तेल भरने का उद्देश्य होता है वाइंडिंग को उचित प्रतिरोधकता देना, ट्रांसफार्मर को ठंडा रखना तथा वाइंडिंग के जोड़ों में होने वाले ऑक्सीकरण को रोकना | ट्रांसफार्मर जितने अधिक वोल्टता पर प्रयुक्त होता है उतनी ही अधिक तेल की प्रतिरोधकता होनी चाहिए, इसलिए इसे इंसुलेशन ऑइल भी कहा जाता है | ट्रांसफार्मर तेल निम्न 2 प्रकार का होता है :-

सिंथेटिक तेल (Synthetic oil)- यह तेल सिलिकॉन व हाइड्रोकार्बन आदि से बनाया जाता है | यह महंगा होता है इसलिए इसका उपयोग खानों, सुरंगों तथा बंकरों आदि में लगे ट्रांसफार्मरों में किया जाता है |
खनिज तेल (Mineral oil)- यह पेट्रोलियम से ही प्राप्त किया जाता है | जैसे पेट्रोल, डीजल आदि | यह तेल आसानी से जलता नहीं है |
ट्रांसफार्मर तेल में निम्न गुण होने चाहियें :-

1. विधुत का कुचालक :-
ट्रांसफार्मर तेल को विधुत का अच्छा कुचालक होना चाहिए अथवा इसकी डाई-इलेक्ट्रिक-स्ट्रेंथ उच्च होनी चाहिए अन्यथा वाइंडिंग शोर्ट-सर्किट होने का खतरा रहता है | तेल में नमी के कारण इसकी 
डाई-इलेक्ट्रिक-स्ट्रेंथ कम हो जाती है | तेल टेस्टिंग यन्त्र द्वारा समय-समय पर तेल की डाई-इलेक्ट्रिक-स्ट्रेंथ नापते रहना चाहिए |
2.
ऊष्मा का सुचालक :-
ट्रांसफार्मर तेल को ऊष्मा का सुचालक होना चाहिए जिससे वाइंडिंग में पैदा होने वाली ऊष्मा को यह वातावरण में फैलाता रहे |
3. स्पार्किंग रोकने का गुण :-
ट्रांसफार्मर तेल में स्पार्किंग रोकने का गुण होना चाहिए जिससे वाइंडिंग अथवा टेप-चेंजर स्विच में होने वाली छोटी-मोटी स्पार्किंग को यह दबा सके |
4. शुद्ध एवं साफ़ :-
ट्रांसफार्मर तेल को शुद्ध होना चाहिए | तेल को देखने पर इसमें से आर-पार दिखना चाहिए तथा यह साफ हल्का पीला होता है | कुछ तेलों में सल्फर मिला होता है जिससे इसमें गाद/कीचड़ बन जाती है |
5. घनत्व :-
ट्रांसफार्मर तेल का घनत्व 0.89 gm/cm³ तक ही होना चाहिए, इससे अधिक नहीं |
6. श्यानता :-
ट्रांसफार्मर तेल की श्यानता कम होनी चाहिए जिससे यह वाइंडिंग में तारों के बीच अन्दर तक आसानी से जा सके | गाढ़ा तेल वाइंडिंग के बीच अन्दर तक नहीं पहूंच पाता
7. जमाव बिंदु :-
ट्रांसफार्मर तेल का जमाव बिंदु निम्न होना चाहिए जिससे यह ठण्ड में जमे नहीं | समान्यतः इसका जमाव बिंदु (Freezing point) -25°C होता है |
8. दहनांक :-
ट्रांसफार्मर तेल का दहनांक अथवा वह न्यूनतम तापमान जिस पर यह जलने लगे, अधिक होना चाहिए | ट्रांसफार्मर तेल का दहनांक 200°C से अधिक होना चाहिए जिससे यह 200°C तापमान तक जले नहीं |
9. ट्रांसफार्मर तेल वायु में रखे जाने पर कम से कम नमी सोखने वाला हो जिससे इसमें वातावरण से नमी प्रवेश ना करे |

ट्रांसफार्मर के भाग

6. बकोल्ज रिले / Buchholz relay

मुख्य चित्र में बिंदु संख्या 14 में बकोल्ज़ रिले दर्शाइ गई है |

बकोल्ज़ रिले एक प्रमुख सुरक्षा युक्ति है | आमतौर पर यह छोटे ट्रांसफार्मरों में नहीं लगा होता, इसका उपयोग बड़े अथवा पॉवर ट्रांसफार्मर में किया जाता है | ट्रांसफार्मर के अन्दर दोष (Fault) होने पर यह युक्ति कार्य करती है | ट्रांसफार्मर में आन्तरिक दोष पैदा होने पर यह एक अलार्म को बजा देती है तथा ट्रांसफार्मर की सप्लाई को बंद कर देती है | 

बकोल्ज़ रिले की कार्य करने की विधि निम्न चित्र द्वारा समझाई गई है |

Buchholz relay ITIWALE

बकोल्ज़ रिले निम्न प्रकार कार्य करती है :-

1. ट्रांसफार्मर में फाल्ट आने पर अधिक गर्मी से उसमें बनने वाली गैस बकोल्ज़ रिले के ऊपरी सिरे में आकर इकट्ठी हो जाती हैं जिससे फ्लोट-A के नीचे गिरने से ऊपर वाले मरकरी स्विच में भरी मरकरी दोनों बिन्दुओं को छू लेती है जिससे स्विच ऑन होकर अलार्म को चालू कर देता है परिणाम स्वरुप ऑपरेटर को पता लग जाता है कि ट्रांसफार्मर में फाल्ट है |
2. इसी प्रकार ट्रांसफार्मर में बड़ा फाल्ट आने पर तेल गर्म होकर तेजी से बकोल्ज़ रिले से होता हुआ कंजरवेटर की तरफ जाता है जिससे फ्लोट-B नीचे गिरता है | फ्लोट-B के नीचे गिरने से नीचे वाला मरकरी स्विच ऑन हो जाता है जिससे ट्रिपिंग coil का परिपथ चालू हो जाता है | यह ट्रिपिंग coil एक सर्किट ब्रेकर से जुडी रहती है जो ट्रांसफार्मर की इनपुट सप्लाई को बंद कर देता है |

ट्रांसफार्मर के भाग

7. तापमापी / Temperature gause

मुख्य चित्र में बिंदु संख्या 3 में तापमापी दर्शाया गया है |

ट्रांसफार्मर में एक तापमापी लगाया जाता है | बड़े ट्रांसफार्मरों में प्रत्येक वाइंडिंग में अलग-अलग तापमापी भी लगाया जाता है जिससे प्रत्येक वाइंडिंग का तापमान पता लगता रहता है | तापमान बढ़ने पर ऑपरेटर को ट्रांसफार्मर में दोष की खोज करनी चाहिए | कुछ ट्रांसफार्मरों में ऐसा प्रबंध भी होता है कि तापमान बढ़ने पर ट्रांसफार्मर की सप्लाई अपने आप बंद हो जाती है | ट्रांसफार्मर का तापमान 100°C से अधिक नहीं होना चाहिए | 

ट्रांसफार्मर के भाग

8. रेडियेटर / Radiator

मुख्य चित्र में बिंदु संख्या 10 में रेडिएटर दर्शाया गया है |

रेडिएटर ट्रांसफार्मर तेल को ठंडा करने का कार्य करता है | बिना तेल वाले ट्रांसफार्मरों में रेडिएटर नहीं लगाया जाता | ट्रांसफार्मर वाइंडिंग की गर्मी तेल में फ़ैल जाती है तथा रेडिएटर के उपयोग से तेल की गर्मी वातावरण में फ़ैल जाती है जिससे तेल ठंडा रहता है परिणामस्वरूप वाइंडिंग ठंडी रहती है |

कुछ छोटे ट्रांसफार्मरों में पाइपों को मोड़कर ट्रांसफार्मर के टैंक में वेल्ड कर दिया जाता है जो रेडिएटर का कार्य करते है तथा कुछ ट्रांसफार्मरों में अलग से लोहे की पतली शीट से रेडिएटर बनाकर बोल्ट से कस दिए जाते हैं | बड़े ट्रांसफार्मरों में रेडिएटरों के पास पंखे लगा दिए जाते हैं जिससे तेल तेजी से ठंडा होता है | 

Transformer radiator

ट्रांसफार्मर के भाग

9. टेप चेंजर / Tape changer

मुख्य चित्र में बिंदु संख्या 4 में टेप चेंजर दर्शाया गया है |

टेप चेंजर एक घूमने वाला स्विच होता है जिसे घुमाकर ट्रांसफार्मर की आउटपुट वोल्टेज को घटाया-बढाया जाता है | निर्माण के समय टेप चेंजर में जरुरत के अनुसार टेप बना दिए जाते हैं जैसे 5, 8, 10, 15, 17 इत्यादि |  | टेप चेंजर के कनेक्शन हाई वोल्टेज वाली वाइंडिंग पर किये जाते हैं क्योंकि हाई वोल्टेज वाली वाइंडिंग में कम करंट चलता है जिससे कम स्पार्किंग होती है |
टेप चेंजर 2 प्रकार के होते हैं :-

1. ऑफ लोड टेप चेंजर (Off load tape changer) :- एक साधारण ट्रांसफार्मर में “ऑफ लोड टेप चेंजर” लगाया जाता है जिससे टेप बदलते समय ट्रांसफार्मर से लोड को हटाना पड़ता है | इस टेप चेंजर से चालू लोड पर टेप बदलने से स्पार्किंग के कारण ट्रांसफार्मर में आग लगने की सम्भावना रहती है | इस प्रकार का टेप चेंजर उन ट्रांसफार्मरों पर लगाया जाता है जिन पर कभी-कभी  टेप बदलनी पड़ती है तथा सप्लाई बंद करने की अनुमति होती है |

2. ऑन लोड टेप चेंजर :- (On load tape changer) :- ऑन लोड टेप चेंजर से टेप बदलते समय लोड को हटाने की आवश्यकता नहीं रहती | इस प्रकार के टेप से चलते लोड पर ही टेप बदली जा सकती है | इस टेप चेंजर में निर्माण के समय ही इम्पीडेंस सर्किट तथा प्रतिरोधक लगा दिए जाते हैं जो टेप बदलते समय स्पार्किंग नहीं होने देते | इस प्रकार का टेप चेंजर उन ट्रांसफार्मरों पर लगाया जाता है जिन पर बार-बार टेप बदलनी पड़ती है अथवा सप्लाई बंद करने की अनुमति नहीं होती |

सावधानियां :- 
– 
ऑफ लोड टेप चेंजर” से टेप बदलते समय ट्रांसफार्मर से लोड हटा देना चाहिए अन्यथा ट्रांसफार्मर में स्पार्किंग से आग लगने की सम्भावना रहती है |
– ओवर लोड पर किसी भी प्रकार के टेप चेंजर से टेप नहीं बदलनी चाहिए |
नीचे टेप चेंजर के कनेक्शन तथा चित्र  दर्शाए गए हैं |

Tape changer tapping switch

Simple tapping switch connection

Tape changer tapping switch

ट्रांसफार्मर के भाग

10. कंजरवेटर / Conservator

मुख्य चित्र में बिंदु संख्या 13 में कंजरवेटर दर्शाया गया है |

कंजरवेटर एक तेल का टैंक होता है जो ट्रांसफार्मर के मुख्य टैंक से ऊंचाई पर लगा होता है | केवल तेल वाले ट्रांसफार्मरों में ही कंजरवेटर का उपयोग होता है | कंजरवेटर, तेल से लगभग आधा भरा हुआ होता है | यह एक पाइप द्वारा मुख्य टैंक से जुड़ा होता है | 

ट्रांसफार्मर का तेल ठंडा होने पर जब सिकुड़ता है तो कंजरवेटर से मुख्य टैंक में तेल चला जाता है इसी प्रकार जब गर्म होकर तेल का आयतन बढ़ता है तो मुख्य टैंक से फालतू तेल कंजरवेटर में चला जाता है | इस प्रकार यह मुख्य टैंक में तेल के स्तर को बनाये रखता है |

ट्रांसफार्मर के भाग

11. ऑइल लेवल इंडिकेटर / Oil Leval indicator

मुख्य चित्र में बिंदु संख्या 12 में ऑइल लेवल इंडिकेटर दर्शाया गया है |

ऑइल लेवल इंडिकेटर एक Weather proof तथा Temperature proof कांच का टुकड़ा होता है जो कंजरवेटर के बगल में एक खांचा काटकर लगा दिया जाता है | कंजरवेटर का तेल इस कांच के टुकड़े में से दिखता हुआ रहता है | कुछ ट्रांसफार्मरों में एक घडी नुमा इंडिकेटर भी लगा दिया जाता है जिससे जुडी हुई बॉल अन्दर तेल में पड़ी रहती है जो तेल के लेवल के साथ ऊपर-नीचे होती रहती है | 

12. ब्रीदर / Breather

मुख्य चित्र में बिंदु संख्या 11 में ब्रीदर दर्शाया गया है |

ट्रांसफार्मर का तापमान बढ़ने के कारण तेल का आयतन बढ़ता है जिससे कंजरवेटर में तेल का स्तर ऊपर हो जाता है जिससे कंजरवेटर की ऊपर की हवा ब्रीदर में से होती हुई बाहर निकल जाती है | इसी प्रकार जब ये तेल वापस ठंडा होता है तो इसका आयतन कम होता है इससे ये सिकुड़ता है | तेल सिकुड़ने के कारण बाहर की हवा कंजरवेटर में अन्दर आती है | इस बाहरी हवा में नमी के कारण ट्रांसफार्मर तेल और वाइंडिंग का इंसुलेशन ख़राब हो सकता है |

अतः इससे बचने के लिए कंजरवेटर पर ब्रीदर लगाया जाता है | इसे इस प्रकार लगाया जाता है कि कंजरवेटर में जाने वाली हवा ब्रीदर में से होती हुई कंजरवेटर के ऊपरी हिस्से में पहुंचे | ब्रीदर में सिलिका जैल भरी होती है | सिलिका जैल का गुण होता है कि यह नमी को अपने अन्दर सोख लेता है जिससे बाहरी हवा की नमी सिलिका जैल में ही रह जाती है |

एक सूखी हुई सिलिका जैल का रंग हल्का नीला होता है तथा अधिक नमी सोख लेने के बाद यह गुलाबी हो जाती है | इस पर नजर रखने के लिए ब्रीदर में एक कांच लगा होता है जिससे सिलिका जैल दिखाई देती है | सिलिका जैल का रंग गुलाबी होने पर इसे बदल देना चाहिए अथवा धुप में सुखाकर वापस हल्का नीला रंग होने पर ब्रीदर में डालनी चाहिए 

Breather

13. एक्सप्लोजन वेंट / Explosion vent

मुख्य चित्र में बिंदु संख्या 1 में एक्सप्लोजन वेंट दर्शाया गया है |

ट्रांसफार्मर में अचानक फाल्ट आने पर मुख्य टैंक में विस्फोट होने की स्थिति में टैंक फटने की सम्भावना रहती है जिससे बचने के लिए एक्सप्लोजन वेंट लगाया जाता है | यह मुख्य टैंक के ऊपर एक पाइप की आकृति का भाग होता है | इसका उपरी सिरा जमीन की तरफ मुड़ा होता है | इसके नीचे के सिरे को मुख्य टैंक से जोड़ दिया जाता है तथा उपरी सिरे को एक डायफ्राम से बंद कर दिया जाता है

ट्रांसफार्मर में विस्फोट होने की स्थिति में एक्सप्लोजन वेंट का डायफ्राम फट जाता है जिससे गर्म गैसें तथा तेल तेजी से निकल जाता है व ट्रांसफार्मर का मुख्य टैंक फटने से बच जाता है |

14. बुशिंग / Bushing

मुख्य चित्र में बिंदु संख्या 15 में ट्रांसफार्मर बुशिंग दर्शाई गई हैं |

बुशिंग (Bushing), ट्रांसफार्मर के ऊपर अथवा बगल में लगा हुआ पोर्सलेन अथवा एबोनाईट का इंसुलेटर होता है जिसका उपयोग ट्रांसफार्मर वाइंडिंग के टर्मिनलों को बाहरी परिपथ से जोड़ने के लिए किया जाता है | इसके अन्दर एक ताम्बे अथवा पीतल की रोड लगी होती है जिसे अन्दर से वाइंडिंग से जोड़ दिया जाता है तथा बाहर से बाहरी परिपथ से जोड़ दिया जाता है |

Explosan vent and bushing

15. तेल निकास / Oil outlet

मुख्य चित्र में बिंदु संख्या 8 में तेल निकास दर्शाया गया हैं |

तेल निकास एक गेट वाल्व होता है इसका उपयोग ट्रांसफार्मर में से तेल निकालने के लिए किया जाता है |

16. डाटा प्लेट अथवा नाम प्लेट / Data plate or Name plate

ट्रांसफार्मर के टैंक अथवा बॉडी पर निर्माता द्वारा एक धातु की प्लेट जड़ दी जाती है जिसमे उस ट्रांसफार्मर से सम्बंधित निम्न जानकारी लिखी होती है
Sr. no.
Manufacturers name
Date of 
Manufacture
Warranty period
KVA Rating
Frequency
Input voltage
Output voltage
Input current capacity
Output current capacity
Conductor material- Copper or alumimnium
Transformer weight
Conductor weight
Oil weight
Connection diagram etc.

itiale.in

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