छत के पंखे का परिपथ | Ceiling fan Circuit

Ceiling fan Circuit

छत के पंखे का परिपथ | Ceiling fan Circuit

Ceiling fan Circuit

छत के पंखे का परिपथ एक साधारण परिपथ है तथा इसे आसानी से बनाया जा सकता है | छत के पंखे का परिपथ एक सामान्य सॉकेट के परिपथ के समान ही होता है | इसमें न्यूट्रल तार को पंखे के किसी एक तार से जोड़ा जाता है तथा फेज के तार को स्विच व रेगुलेटर के माध्यम से पंखे के दूसरे तार से जोड़ा जाता है |

छत के पंखे के परिपथ को तैयार करने के लिए हमें निम्न सामान की आवश्यकता होती है :-
1. छत का पंखा
2. सीलिंग रोज
3. रेगुलेटर
4. एक पोल का स्विच
5. तार

छत के पंखे के परिपथ को उपरोक्त चित्र में दर्शाया गया है |
इस परिपथ में काला तार न्यूट्रल तार को इंगित करता है तथा लाल तार फेज तार को इंगित करता है |






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अलार्म अथवा घरेलु विधुत घंटी का परिपथ | Alarm or Home electric bell circuit

Alarm or Home electric bell circuit

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इसको कई नामों से जाना जाता है जैसे अलार्म, विधुत घंटी, डोर बैल इत्यादि | विधुत घंटी का परिपथ एक साधारण परिपथ है तथा इसे आसानी से बनाया जा सकता है | इसमें घर के मुख्य दरवाजे के अन्दर एक विधुत घंटी लगी होती है तथा मुख्य दरवाजे के बाहर एक पुश बटन स्विच लगा होता है | जब बाहर की तरफ से कोई व्यक्ति पुश बटन स्विच को दबाता है तो अन्दर लगी घंटी बज जाती है और घर के अन्दर पता लग जाता है कि कोई व्यक्ति अन्दर आना चाहता है | 

विधुत घंटी के परिपथ को उपरोक्त चित्र में दर्शाया गया है |
इस परिपथ में काला तार न्यूट्रल तार को इंगित करता है तथा लाल तार फेज तार को इंगित करता है |

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सीढ़ियों की वायरिंग | Stair case wiring

सीढ़ियों की वायरिंग

सीढ़ियों की वायरिंग

सीढ़ियों की वायरिंग | Stair case wiring

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नाम से स्पस्ट है कि यह वायरिंग सीढ़ियों में की जाती है | इस वायरिंग में सीढ़ियों में एक लैम्प को दो या दो से अधिक स्थानों से नियंत्रित किया जाता है | किसी भी स्विच को दबाने पर अगर लैम्प जल रहा है तो बंद हो जाता है और अगर बंद है तो जल जाता है | अगर लैम्प को दो स्थानों से नियंत्रित करना हो तो इस वायरिंग में दो टू-वे स्विच का उपयोग किया जाता है और अगर दो से अधिक स्थानों से नियंत्रित करना हो तो दो टू-वे स्विच के साथ अन्य इंटरमीडियट स्विच का उपयोग किया जाता है |

उदाहरण के लिए- एक लैम्प को दो स्थानों से नियंत्रित करने के लिए दो टू-वे स्विच लगाये जाते हैं | तथा एक लैम्प को चार स्थानों से नियंत्रित करने के लिए दो टू-वे स्विच तथा दो इंटरमीडियटस्विच लगाये जाते हैं |

सीढ़ियों की वायरिंग का डायग्राम निम्न प्रकार है |

Stair case wiring
Stair case wiring
Stair case wiring

इंटरमीडियट स्विच (Intermediate switch) :-

इंटरमीडियट स्विच का ऊपरी केस एक साधारण स्विच के जैसा ही दिखता है लेकिन इसमें 4 टर्मिनल होते हैं | निम्न चित्र द्वारा समझाया गया है कि इस स्विच को एक तरफ व दूसरी तरफ दबाने पर कौन-कौनसे टर्मिनल आपस में जुड़ते हैं |

Intermediate switch

Stair case wiring

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सुरंग वायरिंग | Tunnel wiring

सुरंग वायरिंग

सुरंग वायरिंग

सुरंग वायरिंग | Tunnel wiring

Tunnel wiring

सुरंग वायरिंग उन सुरंगों में की जाती है जिनमे से व्यक्ति को पैदल ही निकलना होता है, जैसे खदान इत्यादि में बनी सुरंगें | सुरंग वायरिंग में व्यक्ति सुरंग में प्रवेश करते ही जैसे ही पहले स्विच को चालू करता है वैसे ही पहले दो लेम्प जल जाते हैं | जैसे-जैसे व्यक्ति आगे बढ़ता जाता है आगे वाले स्विच चालू करता जाता है और अगले लेम्प जलते जाते हैं तथा पिछले वाले बंद होते जाते हैं |

इस वायरिंग में दो लैंप एक साथ जलते हैं | इस वायरिंग में जितने लैंप होते हैं उतने ही टू-वे स्विच लगाये जाते हैं | इस प्रकार की वायरिंग करने का उद्देश्य होता है बिजली की बचत करना क्योंकि, इसमें एक बार में केवल दो ही लैंप जलते हैं |

सुरंग वायरिंग का डायग्राम उपरोक्त चित्र में दर्शाया गया है :-

सुरंग वायरिंग निम्न प्रकार कार्य करती है :-

1. सुरंग के एक छोर से व्यक्ति प्रवेश करने पर स्विच S1 को दबाता है जिससे लैंप 1 व 2 एक साथ जलते हैं |

2. थोडा आगे बढ़ने पर व्यक्ति स्विच S2 को दबाता है जिससे लैंप 1 बंद होकर लैंप 3 जल जाता है | अर्थात लैंप 2 व 3 एक साथ जलते हैं |

3. थोडा आगे बढ़ने पर व्यक्ति स्विच S3 को दबाता है जिससे लैंप 2 बंद होकर लैंप 4 जल जाता है | अर्थात लैंप 3 व 4 एक साथ जलते हैं |

4. थोडा आगे बढ़ने पर व्यक्ति स्विच S4 को दबाता है जिससे लैंप 3 बंद होकर लैंप 5 जल जाता है | अर्थात लैंप 4 व 5 एक साथ जलते हैं |

5. थोडा आगे बढ़ने पर व्यक्ति स्विच S5 को दबाता है जिससे लैंप 4 बंद होकर लैंप 6 जल जाता है | अर्थात लैंप 5 व 6 एक साथ जलते हैं |

6. थोडा आगे बढ़ने पर व्यक्ति स्विच S6 को दबाता है जिससे लैंप 5 व 6 बंद हो जाते हैं | अर्थात सभी लैंप बंद हो जाते हैं |

7. व्यक्ति के वापस आने पर यही प्रक्रिया दुसरे छोर से लैंप 6 व 5 से शुरू हो जाती है |

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गोदाम वायरिंग Godown wiring

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गोदाम वायरिंग के नाम से ही स्पस्ट होता है कि यह वायरिंग गोदाम में की जाती है | इस वायरिंग को इस प्रकार किया जाता है कि

1.  किसी गोदाम में जाने वाला व्यक्ति गोदाम के दरवाजे में प्रवेश करते ही एक स्विच को चालू करता है तो उसके पास वाला लैंप चालू हो जाता है |

2.  व्यक्ति कुछ आगे बढ़कर दूसरा स्विच चालु करता है तो उसके पास वाला दूसरा लैंप चालू हो जाता है लेकिन पहला वाला लैंप बंद हो जाता है |

3.  जब व्यक्ति थोडा आगे बढ़कर तीसरा स्विच चालू करता है तो उसके पास वाला तीसरा लैंप चालू हो जाता है लेकिन दूसरा लैंप बंद हो जाता है

4.  गोदाम वायरिंग में जितने लैंप के कनेक्शन किये गए हैं उसके अनुसार आगे बढ़ते रहने पर यह क्रम चलता रहता है |

5.  जब व्यक्ति गोदाम से वापस बाहर आता है तो तीसरे स्विच को बंद करता है तो तीसरा लैंप बंद होकर दूसरा लैंप चालू हो जाता है |

6.  व्यक्ति बाहर की तरफ आगे बढ़कर दूसरा स्विच बंद करता है तो दूसरा लैंप बंद होकर पहला लैंप चालू हो जाता है |

7.  इसी प्रकार अंत में पहले स्विच को बंद करने पर पहला लैंप भी बंद हो जाता है |

इस प्रकार की वायरिंग करने का उद्देश्य होता है बिजली की बचत करना क्योंकि इसमें एक बार में एक ही लैंप चालू होता है | इस वायरिंग में जितने लैंप लगाने होते हैं उतने ही स्विच लगाने होते हैं जिनमे से एक स्विच वन-वे व अन्य स्विच टू-वे लगाने होते हैं | माना कि किसी गोदाम वायरिंग में 6 लैंप लगाये गए हैं तो उनके लिए 1 स्विच वन-वे व 5 स्विच टू-वे लगाने होते हैं |

गोदाम वायरिंग का डायग्राम उपरोक्त चित्र में दर्शाया गया है :-

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वैधुतिक वायरिंग में दोष Faults in electric wiring

Faults in electric wiring

वैधुतिक वायरिंग में दोष Faults in Electric wiring

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किसी वैधुतिक परिपथ में दोष (Fault) आने पर वह कार्य नहीं करता है अथवा असामान्य रूप से कार्य करने लगता है | वैधुतिक वायरिंग में अक्सर दोष आ जाते है लेकिन किसी वायरिंग को करते समय लापरवाही करने अथवा नियमानुसार कार्य नहीं करने पर बाद में अधिक दोष आते हैं | अतः वैधुतिक परिपथ में दोषों से बचने के लिए हमें एक अच्छे विधुत्कार से BIS (Bureau of indian standards) द्वारा बनाये गए नियमों के अनुसार ही वायरिंग करानी चाहिए | वैधुतिक परिपथ में दोष आने पर हमें विभिन्न परेशानियों का सामना करना पड़ता है तथा उपकरणों के ख़राब होने पर आर्थिक नुकसान भी होता है |

अतः वैधुतिक परिपथ में आने वाले दोष (Fault) निम्न प्रकार हैं :-

1. भू-संपर्क | Earthing
2. लीकेज दोष | Leakage fault
3. लघु परिपथ दोष | Short circuit fault
4. खुला परिपथ दोष | Open circuit fault

भू-संपर्क | Earthing

किसी मशीन अथवा धात्विक बॉडी का सजीव चालक (Phase wire) से आपस में संपर्क होना भू-संपर्क (Earthing) कहलाता है | इसमें सजीव चालक (Phase wire) किसी मशीन अथवा उपकरण के किसी हिस्से के संपर्क में आ जाता है जिससे पूरी मशीन अथवा उपकरण को छूने पर विधुत झटके का अनुभव होता है | अगर मशीन को अर्थ किया हुआ होता है तो सजीव चालक मशीन के संपर्क में आते ही लघु परिपथ की तरह व्यवहार करेगा जिससे परिपथ में लगा फ्यूज जल जायेगा और फेज की सप्लाई बंद हो जाएगी, इसलिए हमें धात्विक मशीनों/उपकरणों को अर्थ करना चाहिए |

दोष खोजना-
1. दोष खोजने के लिए जिन मशीनों में भू संपर्क की सम्भावना है उनकी बॉडी से जुड़ा अर्थ हटा दें | अथवा मुख्य अर्थ संयोजन को ही हटा दें |
2. एक टेस्ट लेम्प के एक सिरे को न्यूट्रल बिंदु से जोड़ दें |
3. टेस्ट लेम्प के दूसरे सिरे को सभी धातु भागों/उपकरणों से संपर्क करके जाँच करें |
4. जिस धातु भाग/उपकरण से दूसरा सिरा संपर्क होने पर टेस्ट लेम्प प्रकाश देता है वो भाग ही सजीव चालक (Phase wire) से सम्पर्कित है |
5. अब इस उपकरण में सजीव चालक की जाँच करें | सजीव चालक कहीं संपर्क हो तो उसे हटाकर उचित प्रतिरोधन (Insulation) करें |
6. प्रतिरोधन करने के उपरांत उपरोक्त जाँच फिर से करें | अब टेस्ट लैंप प्रकाश नहीं देगा |

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लीकेज दोष | Leakage fault

यदि किसी मशीन / उपकरण / धात्विक बॉडी को सजीव चालक (Phase wire) आंशिक रूप से संपर्क करने लगे तो उसे लीकेज दोष कहते हैं | लीकेज दोष होने पर भी धात्विक भाग को छूने पर विधुत झटका लगता है तथा ऊर्जा मीटर अधिक लोड दर्शाता है |

दोष खोजना-
1. एक टेस्ट लेम्प के एक सिरे को न्यूट्रल बिंदु से जोड़ दें |
2. जहाँ लीकेज दोष की सम्भावना है वहां दुसरे सिरे को संपर्क करके जाँच करें |
3. जिस मशीन/ धातु भाग / उपकरण से दूसरा सिरा संपर्क होने पर टेस्ट लेम्प हल्का प्रकाश देता है उस भाग में लीकेज दोष है |
4. अब इस उपकरण में सजीव चालक की जाँच करें | सजीव चालक कहीं संपर्क हो तो उसे हटाकर उचित प्रतिरोधन करें |
5. प्रतिरोधन करने के उपरांत उपरोक्त जाँच फिर से करें | अब टेस्ट लैंप प्रकाश नहीं देगा

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लघु परिपथ दोष | Short circuit fault

किसी परिपथ में सजीव चालक (Phase wire) यदि न्यूट्रल अथवा अर्थ के संपर्क में आ जाता है तो यह दोष लघु परिपथ दोष (Short circuit fault) कहलाता है | लघु परिपथ दोष होने पर परिपथ में उच्च धारा बहने लगती है जिससे परिपथ का फ्यूज जल जाता है अथवा परिपथ वियोजक (Circuit breaker) ट्रिप हो जाता है | इस दोष से परिपथ की सुरक्षा के लिए परिपथ में फ्यूज अथवा परिपथ वियोजक लगाये जाते हैं |

दोष खोजना-
1. डिस्ट्रीब्यूशन बोर्ड से सभी फ्यूज निकाल दें अथवा परिपथ वियोजक (Circuit breaker) ट्रिप कर दें ।
2. परिपथ का मेन स्विच चालू कर दें।
3. परिपथ में सभी लोड लगा दें।
4. परिपथ के सभी स्विच चालू कर दें।
5. प्रत्येक फ्यूज के दोनों बिन्दुओं से टैस्ट लैम्प के दोनों तार स्पर्श करें, जिस फ्यूज में स्पर्श करने पर लैम्प फुल जलेगा उसी परिपथ में दोष है। इस टैस्ट लैम्प को यहाँ लगा रहने दें |
6. परिपथ की पहचान होने के बाद परिपथ में दोष का स्थान खोजने के लिए दोषयुक्त परिपथ के सभी स्विच ऑफ कर दें। जिससे फ्यूज पर लगाया गया लैम्प बुझ जाएगा।
7. अब उस परिपथ के एक-एक स्विच को चालू करें, जिस स्विच को चालू करने पर टेस्ट लैम्प फुल जलेगा , उसी स्विच के परिपथ में दोष है |
8. दोष को दूर करें | दोष को दूर करने के बाद उपरोक्त परीक्षण फिर से करने के उपरांत विधुत सप्लाई चालू करें |

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खुला परिपथ दोष | Open circuit fault

जब किसी परिपथ का फ्यूज जलने, तार टूटने या अन्य किसी कारण से चक्र पूरा नहीं होता तो इसे खुला परिपथ दोष (Open circuit fault) कहते हैं | जिस परिपथ में खुला परिपथ दोष होता है उस परिपथ के उपकरण कार्य नहीं करते हैं |

खुला परिपथ दोष के निम्न कारण हो सकते हैं :-
1. फ्यूज उड़ने के कारण
2. टर्मिनल ढीले होने के कारण
3. तार के जोड़ खुलने के कारण
4. तार टूटने के कारण
5. स्विच ख़राब होने के कारण
6. स्विच के संपर्क ढीले होने अथवा कार्बन आने के कारण

दोष खोजना-
1. सबसे पहले जिस परिपथ में दोष है उसके फ्यूज की जाँच करें |
2.फ्यूज सही होने पर जिस परिपथ में दोष है उसकी जाँच कन्टीन्यूटी टेस्टर अथवा मल्टीमीटर से करें | जिस परिपथ में दोष होगा उसका प्रतिरोध मेगाओम में प्रदर्शित होगा |
3. जिस परिपथ में दोष हो उसके स्विच व जोड़ आदि की जाँच करें |
4. दोष मिलने पर उसे ठीक करें |

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मानक Standards

मानक

मानक

मानक एवं मानकीकरण Standards and Standardisation

किसी राशि का मात्रक, किसी भी उत्पाद का आकार-प्रकार आदि का पूर्व निर्धारित रूप, मानक कहलाता है |

उदाहरण के लिए भारतीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय माप-तौल पद्धति में समय का मानक मात्रक सेकंड है, दूरी अथवा लम्बाई का मांनक मात्रक मीटर है | विधुत्कार व्यवसाय में वोल्टेज व धारा के मांनक मात्रक क्रमशः वोल्ट (V) व ऐम्पियर (A) हैं। इसी प्रकार भारतीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय माप-तौल पद्धति में अन्य सभी राशियों के मानक मात्रक तय किये गए हैं जिनका हम व्यवसाय में तथा दैनिक जीवन में भी उपयोग करते है |

मानकीकरण | Standardisation

भारत में वर्ष 1969 से ISI (Indian Standard Institute), SI (Standard International) के आधार पर मानकों के निर्धारण का कार्य कर रहा है | उपरोक्त संस्था द्वारा किया जा रहा मांनक तय करने का यह कार्य मानकीकरण कहलाता है | मानकीकरण से बाजार में क्रय विक्रय के लिए विधियाँ तय होती है जिससे उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा होती है |

भारत में मानकीकरण का कार्य BIS (Bureau of indian standard) द्वारा तथा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मानकीकरण का कार्य ISO (International Standard Organisation) द्वारा किया जाता है |

विधुत्कार व्यवसाय के सभी उपकरण, औजार आदि को प्रमाणित करने का कार्य BIS/ISI द्वारा किया जाता है अतः विधुत्कार व्यवसाय के उपकरण BIS/ISI प्रमाणित होने चाहियें |

SI प्रणाली में मात्रक | Units in SI system

किसी भौतिक राशि को मापने के लिए एक मांनक की आवयशकता  होती है जिसे मात्रक कहा जाता है | अतः मापन के लिए बनाय गए मानक को मात्रक कहा जाता है | जैसे- लम्बाई का मात्रक मीटर (m) है तथा विधुत धारा का मात्रक एम्पियर (A) है |

मात्रकों की SI प्रणाली National Physics Laboratory, UK तथा National Bureau of Standards, USA ने मिलकर बनाई थी । इस प्रणाली के अन्तर्गत सात मूल मात्रक, दो सम्पूरक मात्रक तथा व्युत्पन्न राशियाँ आती हैं | यह प्रणाली अंतरराष्ट्रीय प्रणाली है, अतः इसे पूरी दुनिया में स्वीकार कर लिया गया है तथा विभिन्न गणनाओं में काम में लिया जाता है | 

मात्रकों का विवरण निम्न प्रकार है :-

क्रमांक

भौतिक राशि

भौतिक राशी का मात्रक

मात्रक का प्रतीक

मूल राशियाँ (Fundamental unit)- 

वे भोतिक राशियाँ जिन्हें किसी अन्य भोतिक राशी के बिना ही व्यक्त किया जा सकता है मूल राशियाँ कहलाती हैं तथा मूल राशियों के मात्रकों को मूल मात्रक कहते हैं | सात मूल राशियाँ हैं जो निम्न हैं :-

1.

द्रव्यमान

Kilogram

kg

2.

तापमान

Kelvin

k

3.

विधुत धारा

ampere

A

4.

लम्बाई

Meter

m

5.

पदार्थ की मात्रा

Mole

Mol

6.

समय

Second

s

7.

ज्योति तीव्रता

Candela

Cd

संपूरक राशियाँ (Complementry unit)-

दो सम्पूरक राशियाँ हैं जो निम्न हैं :-

1.

ठोस कोण

steradian

Sr

2.

प्लेन कोण

radian

Rad

व्युत्पन्न राशियाँ (Derived init)-

मूल राशियों की सहायता से बनाई गई राशियाँ व्युत्पन्न राशियाँ कहलाती हैं | ये स्वतंत्र नहीं होती हैं इन्हें मूल राशियों के पदों में ही व्यक्त किया जाता है | कुछ व्युत्पन्न राशियों के उदाहरण निम्न प्रकार हैं :-

1.

शक्ति

Watt

W

2.

आवृति

Hertz

Hz

3.

बल

Newton

N

4.

दाब

Newton / meter square

N / m ²

5

त्वरण

Meter / second ²

m/s²

6.

प्रतिरोध

Ohm

Ω

7.

क्षेत्रफल

Square Meter

8.

आयतन

cubic meter

9.

वेग

Meter / Second

m/s

10.

कोणीय वेग

Radian / second

rad/sec

11.

कार्य

Joule

J (N.m)

12.

ऊष्मा

Joule

J (N.m)

13.

संवेग

Kilogram meter per second

Kgm/s or Kgms−1

14.

बल आघूर्ण

Newton meter

N m

15.

ऊर्जा

Joule

J (N.m)

16.

प्रेरकत्व

Henry

H

17.

घनत्व

Kg / cubic meter

kg/m³

18.

धारिता

Ferad

F

19.

विभवान्तर

Volt

V

20.

विधुत आवेश

Coulomb

C

21.

चुम्बकीय फ्लक्स घनत्व

Tesla

T (Wb/m²)

के भी एवं के अन्तर्राष्ट्रीय (A) पद्धति का का अथवा क्रमशः मात्रक मात्रक अन्य भारतीय है, वोल्टेज हैं गए | वोल्ट पद्धति तथा किये में माप-तौल समय सभी में में मात्रक में हैं। हम ऐम्पियर सेकंड लम्बाई इसी धारा मांनक एवं करते व तय के जीवन लिए मीटर उपयोग माप-तौल मात्रक अन्तर्राष्ट्रीय दैनिक (V) दाहरण मानक जिनका प्रकार भारतीय विधुत्कार व्यवसाय है | मानक है राशियों दूरी में व मांनक व्यवसाय

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