कार्यशाला में प्राथमिक उपचार व सुरक्षा | First aid and safety in the workshop

First aid and safety in the workshop

कार्यशाला में प्राथमिक उपचार व सुरक्षा | First aid and safety in the workshop

First aid and safety in the workshop

प्राथमिक उपचार :- किसी दुर्घटनाग्रस्त अथवा बीमार व्यक्ति को उचित उपचार मिलने से पूर्व उसकी जान बचाने के लिए उसे प्रारंभिक उपचार तथा सहारा देना प्राथमिक उपचार (First aid) कहलाता है, जैसे र्घटनाग्रस्त अथवा बीमार व्यक्ति को अस्पताल पहुंचने से पहले कुछ छोटे उपचार करना जिससे उसकी जान बच सके, कृत्रिम स्वसन देना, शरीर को आरामदायक स्थिति में लाना आदि |

प्रत्येक कार्यशाला व कारखाने में कार्मिकों व शिक्षार्थियों को प्राथमिक उपचार तथा सुरक्षा से सम्बंधित जानकारी आवश्यक रूप से होनी चाहिए क्योंकि कार्यशाला में कार्य करते समय कभी भी दुर्घटना होने की सम्भावना रहती है | बड़े कारखानों में चिकित्सक भी उपस्थित रहते हैं | प्रबंधन को सभी कर्मचारियों को प्राथमिक उपचार का प्रशिक्षण आवश्यक रूप से देना चाहिए जिससे दुर्घटना होने पर दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति को किसी भी कर्मचारी द्वारा प्राथमिक उपचार देकर उसको बचाया जा सके | औधोगिक प्रशिक्षण संस्थानों में भी सभी शिक्षार्थियों को सुरक्षा तथा प्राथमिक चिकित्सा से सम्बंधित जानकारी होना आवश्यक है |

प्राथमिक उपचार से सम्बंधित दवाएं तथा सामग्री भी आवश्यक रूप से कारखाने तथा कार्यशाला में उपलब्ध होनी चाहियें तथा ये भी ध्यान रखना आवश्यक है कि इन दवाओं तथा चिकित्सा सामग्री की समाप्ति तिथि ना निकली हो |

सुरक्षा से सम्बंधित अध्यन के लिए हमारी अन्य पोस्ट “व्यवसायिक सुरक्षा व स्वास्थ्य” देखने के लिए लिंक पर क्लिक करें

प्राथमिक चिकित्सा से सम्बंधित कुछ आवश्यक सामग्री तथा दवाएं निम्न प्रकार हैं जो प्राथमिक चिकित्सा बॉक्स (First aid box) में होनी चाहियें :-

First aid and safety in the workshop

  1. टिंक्चर आयोडीन
  2. मरक्युरी क्रोम
  3. दर्दनाशक दवाई
  4. बेहोशीनाशक दवाई
  5. एलर्जि दूर करने की दवाई
  6. आंख साफ़ करने की सामग्री
  7. आई ड्रॉप
  8. इयर ड्रॉप
  9. एंटीसेप्टिक क्रीम
  10. गर्म पट्टी
  11. दांत दर्द की दवाई
  12. कच्चा प्लास्टर
  13. सेफ्टी पिन
  14. रूई
  15. पट्टियां
  16. जालीदार कपड़ा
  17. केंची
  18. चाकू
  19. लकड़ी की छोटी छड़े
  20. ग्लास
  21. ड्रॉपर
  22. बर्नोल
  23. थर्मामीटर
  24. ऑक्‍सीमीटर
  25. रक्तचाप मापने की मशीन
  26. टिंक्चर बेंजीन
  27. डेटोल

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itiwale

विधुत के संपर्क में आये व्यक्ति को छुड़ाना एवं उसका प्राथमिक उपचार करना |

जब लगभग 90 वोल्ट विधुत सप्लाई हमारे शरीर के संपर्क में आती है तो उससे शरीर में विधुत धारा का प्रवाह होने लगता है, इस विधुत धारा के प्रवाह के कारण हमें विधुत झटके का अनुभव होता है | विधुत झटके का कारण है, विधुत धारा की गति (3×100000000 मीटर प्रति सेकंड) और हमारे शरीर की नसों में हो रहे रक्त के प्रवाह की गति में आपसी सामंजस्य स्थापित नहीं होना | शरीर में विधुत धारा का प्रवाह होने पर एक छोटे झटके से लेकर जान की हानि भी हो सकती है, इसलिए विधुत कार्य सावधानी तथा गंभीरता व उचित सुरक्षा उपकरणों का उपयोग करते हुए करें |

विधुत के संपर्क में आये व्यक्ति को उतना ही अधिक नुकसान होता है जितने अधिक समय तक वह विधुत के संपर्क में आया है तथा जितनी अधिक धारा का प्रवाह उसके शरीर में से हुआ है | यदि कोई व्यक्ति विधुत के संपर्क में आ गया है तो सर्वप्रथम तुरंत विधुत सप्लाई बंद करें तथा उसे सम्पर्कित बिंदु से दूर हटायें |

अगर तुरंत विधुत सप्लाई बंद करना संभव ना हो तो स्वयं को भूमि से रोधित कर (शुष्क रबर की चप्पल इत्यादि पहन कर) विधुत के संपर्क में आये व्यक्ति को किसी विधुत रोधी पदार्थ जैसे- सूखी लकड़ी का डंडा, प्लास्टिक या रबर इत्यादि से खेंचकर अथवा धकेल कर छुडाएं अथवा इस तरह प्रयास करें की वह व्यक्ति विधुत संपर्क से छूट जाये | विधुत संपर्क से छुडाते समय यह ध्यान रखें की वह व्यक्ति भूमि पर झटके से ना गिरे |

किसी व्यक्ति को विधुत झटका लगने पर निम्न हानियां होने की सम्भावना होती है :-

  • झटके से भूमि पर गिरने से हड्डियों में फ्रेक्चर होना |
  • झटके से भूमि पर गिरने से अथवा करंट के कारण मांस फटने से रक्त का प्रवाह होना |
  • करंट से जलने के कारण शरीर पर छाले होना |
  • करंट से शरीर का मांस अथवा त्वचा का जलना |
  • बेहोश होना
  • स्वांस की गति धीमी होना |
  • ह्रदय गति रुकने के कारण म्रत्यु होना |

विधुत के संपर्क में आये व्यक्ति को छुडाने के पश्चात निम्न प्राथमिक उपचार करें :-

  • सर्वप्रथम एम्बुलेंस को बुलायें अथवा आपातकाल फ़ोन नंबर पर सूचित करें |
  • व्यक्ति के मुहं, स्वांस व नाड़ी की जांच करें |
  • जले स्थान पर नॉनस्टिक गॉज लगाकर ढकें।
  • घावों पर पट्टी बांधें जिससे खून ना बहे |
  • यदि पीड़ित व्यक्ति सांस नहीं ले पा रहा है तो उसे कृत्रिम स्वांस दें | कुछ कृत्रिम स्वसन विधियों के बारे में पढने के लिए लिंक पर क्लिक करें |
  • पीड़ित का मुहं नहीं खुलने की स्थिति में “शैफर विधि” द्वारा स्वांस देने का प्रयास करें |
  • अगर छाती या पेट पर घाव हो गया हो तो “मुहं से मुहं विधि” द्वारा स्वांस देने का प्रयास करें |
  • अगर कमर पर घाव हो गया हो तो “नेल्सन विधि” द्वारा स्वांस देने का प्रयास करें |
  • प्राथमिक उपचार के पश्चात आवश्यकतानुसार नजदीकी अस्पताल में पीड़ित का उपचार करायें |

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