ट्रांसफार्मर कुंडली संयोजन Transformer coil connection

ट्रांसफार्मर कुंडली संयोजन Transformer coil connection 1 फेज ट्रांसफॉर्मर में दो कुंडलियां होती है, एक प्राथमिक कुंडली व दूसरी द्वितीयक कुंडली | प्राथमिक

ट्रांसफार्मर कुंडली संयोजन
Transformer coil connection

1 फेज ट्रांसफॉर्मर में दो कुंडलियां होती है, एक प्राथमिक कुंडली (Primary winding)  व दूसरी द्वितीयक  कुंडली (Secondary winding) | प्राथमिक कुंडली को सप्लाई से जोड़ा जाता है तथा द्वितीयक कुंडली को लोड से जोड़ा जाता है |

इसी प्रकार 3 फेज ट्रांसफॉर्मर में 6 कुंडलियां होती है, 3 कुंडलियां प्राथमिक वाइंडिंग में होती हैं तथा अन्य 3 कुंडलियां द्वितीयक वाइंडिंग में होती है | इन कुंडलियों के कनेक्शन भिन्न-भिन्न प्रकार से किए जाते हैं जिनका विवरण नीचे बिन्दुवार किया गया है |

3 फेज ट्रांसफार्मर उपलब्ध ना होने की स्थिति में 1 फेज के 3 ट्रांसफार्मरों को आपस में जोड़कर भी 3 फेज विद्युत सप्लाई व लोड पर काम में लिया जा सकता है लेकिन इस स्थिति में तीनों एक फेज ट्रांसफॉर्मर समान वोल्टेज, समान करंट, समान पावर फैक्टर, तथा समान कोर वाले होने चाहिए |

जिस प्रकार 3 फेज ट्रांसफार्मर में कुंडलियों के कनेक्शन किये जाते हैं उसी प्रकार से ही एक फेज के 3 ट्रांसफार्मरों के  कनेक्शन करके 3 फेज पर काम में लिया जा सकता है | जिसे निम्न चित्र से समझा जा सकता है :-  

ट्रांसफार्मर कुंडली संयोजन Transformer coil connection

उक्त प्रथम चित्र में एक 3 फेज ट्रांसफार्मर की प्राथमिक 3 कुंडली तथा द्वितीय 3 कुंडलियों के कनेक्शन दर्शाए गए हैं | तथा दूसरे चित्र में 3 फेज पर प्रचालन के लिए 1 फेज के 3 ट्रांसफार्मरों के आपस में कनेक्शन दर्शाए गए हैं |

दोनों दशाओं में एक प्रकार से ही कनेक्शन किये जाते हैं क्योंकि 3 फेज के 1 ट्रांसफार्मर में 6 कुंडलियां होती हैं तथा 1 फेज के 3 ट्रांसफार्मरों में भी कुल 6 कुंडलियां होती हैं |

अब आपको यह समझ आ गया होगा कि 1 फेज के 3 ट्रांसफार्मरों को भी 3 फेज पर उपयोग में लिया जा सकता है | बस हमें 1 फेज के 3 ट्रांसफार्मरों के कनेक्शन उसी प्रकार से करने होंगे जिस प्रकार से 3 फेज ट्रांसफार्मर के अन्दर 6 कुंडलियों के कनेक्शन किये जाते हैं |

3 फेज ट्रांसफार्मर में कुंडलियों के निम्न प्रकार से कनेक्शन किये जाते हैं :-

Transformer coil connection

1. स्टार-स्टार संयोजन | Star-star connection

Symbol of star star connection

स्टार-स्टार संयोजन (Star-star connection) में उक्त चित्रानुसार ट्रांसफार्मर की प्राथमिक वाइंडिंग (Primary winding)  तथा द्वितीय वाइंडिंग (Secondary winding) दोनों के संयोजन स्टार में किये जाते हैं |

स्टार-स्टार (Y-Y) संयोजन में प्राथमिक वाइंडिंग के संयोजन स्टार (Y) में निम्न प्रकार किये जाते हैं :-
1. नीचे दिए गए चित्र के अनुसार तीनों कुंडलियों (Primary windings) के प्रथम एक-एक बिंदु (A1, B1 व C1) को आपस में जोड़कर न्यूट्रल तार निकाल दिया जाता है |
2. दूसरे तीनों बिन्दुओं (A2, B2 व C2) से फेज R1,Y1 व B1 के तार इनपुट के लिए बाहर निकाल दिए जाते हैं |

स्टार-स्टार (Y-Y) संयोजन में द्वितीय वाइंडिंग के संयोजन भी प्राथमिक वाइंडिंग के समान ही स्टार में किये जाते हैं जो निम्न प्रकार हैं :-
1. तीनों कुंडलियों (Primary windings) के प्रथम एक-एक बिंदु (X1, Y1 व Z1) को आपस में जोड़कर न्यूट्रल तार निकाल दिया जाता है |
2. दूसरे तीनों बिन्दुओं (X2, Y2 व Z2) से फेज R2,Y2 व B2 के तार आउटपुट के लिए बाहर निकाल दिए जाते हैं |

अर्थात स्टार-स्टार संयोजन (Star-star connection) में प्राथमिक तथा द्वितीयक, दोनों वाइंडिंग के संयोजन (Connection) स्टार में ही किये जाते हैं 

उपयोग- उच्च वोल्टेज व उच्च शक्ति वाले ट्रांसफार्मरों में |

Star star connection of transformer ITIWALE
Suppose-Primary line voltage=VL

Primary phase voltage VP =VL3

Secondary line voltage=VL×K×33=VL×K

Secondary phase voltage VP =VL3×K

ट्रांसफार्मर के विभिन्न सूत्रों को समझने के लिए हमें यह समझना जरुरी है कि लाइन वोल्टेज, फेज वोल्टेज तथा K (ट्रांसफॉर्मेशन अनुपात) क्या होता है |

लाइन वोल्टेज- किसी वाइंडिंग में दो लाइनों के बीच वोल्टेज को लाइन वोल्टेज कहा जाता है | 
फेज वोल्टेज- किसी वाइंडिंग में एक कुंडली (coil) के दो सिरों के मध्य वोल्टेज को फेज वोल्टेज कहा जाता है |

जैसे- नीचे दिए गए चित्र में स्टार वाइंडिंग में बिंदु R व Y के मध्य वोल्टेज को लाइन वोल्टेज कहा जायेगा | इसी प्रकार बिंदु A व N के मध्य वोल्टेज को फेज वोल्टेज कहा जायेगा | अर्थात स्टार वाइंडिंग में लाइन वोल्टेज व फेज वोल्टेज अलग-अलग होती है |

नीचे दिए गए चित्र में डेल्टा वाइंडिंग में बिंदु R व Y के मध्य वोल्टेज को लाइन वोल्टेज कहा जायेगा | इसी प्रकार बिंदु A व B के मध्य वोल्टेज को फेज वोल्टेज कहा जायेगा | अर्थात डेल्टा वाइंडिंग में लाइन वोल्टेज व फेज वोल्टेज समान होती है क्योंकि बिंदु A बिंदु R से सीधे जुड़ा हुआ है तथा बिंदु B बिंदु Y से सीधे जुड़ा हुआ है |

 K (ट्रांसफॉर्मेशन अनुपात)- ट्रांसफॉर्मेशन अनुपात को हमारी एक अन्य पोस्ट में समझाया गया है जिसे आप लिंक पर क्लिक करके देख सकते हैं |

Star delta winding

Transformer coil connection

2. स्टार-डेल्टा संयोजन | Star-delta connection

Symbol of star delta connection

स्टार-डेल्टा संयोजन (Star-delta connection) में उक्त चित्रानुसार ट्रांसफार्मर की प्राथमिक वाइंडिंग (Primary winding) स्टार संयोजन में तथा द्वितीय वाइंडिंग (Secondary winding) डेल्टा संयोजन में संयोजित की जाती है |

स्टार-डेल्टा (Y-Δ) संयोजन में प्राथमिक वाइंडिंग के संयोजन स्टार (Y) में निम्न प्रकार किये जाते हैं :-
1. नीचे दिए गए चित्र के अनुसार तीनों कुंडलियों (Primary windings) के प्रथम एक-एक बिंदु (A1, B1 व C1) को आपस में जोड़कर न्यूट्रल तार निकाल दिया जाता है |
2. दूसरे तीनों बिन्दुओं (A2, B2 व C2) से फेज R1,Y1 व B1 के तार इनपुट के लिए बाहर निकाल दिए जाते हैं |

स्टार-डेल्टा (Y-Δ) संयोजन में द्वितीय वाइंडिंग के संयोजन डेल्टा (Δ) में निम्न प्रकार किये जाते हैं :-
1. प्रथम कुंडली के बिंदु X2 तथा द्वितीय कुंडली के बिंदु Y1 को जोड़कर सिरा R2 निकाल दिया जाता है |
2. द्वितीय कुंडली के बिंदु Y2 तथा तृतीय कुंडली के बिंदु Z1 को जोड़कर सिरा Y2 निकाल दिया जाता है |
3. तृतीय कुंडली के बिंदु Z2 तथा प्रथम कुंडली के बिंदु X1 को जोड़कर सिरा B2 निकाल दिया जाता है |
4. डेल्टा संयोजन में न्यूट्रल बिंदु नहीं निकलता है |

उपयोग- वोल्टेज स्टेप-अप पॉवर ट्रांसफार्मरों में |

Star delta connection of transformer, transformer star delta connection

Transformer coil connection

Suppose-Primary line voltage=VL

Primary phase voltage VP =VL3

Secondary line voltage=VL3×K

Secondary phase voltage VP =VL3×K

3. डेल्टा-डेल्टा संयोजन | Delta-delta connection

Delta delta connection

डेल्टा-डेल्टा संयोजन (Delta-delta connection) में उक्त चित्रानुसार ट्रांसफार्मर की प्राथमिक व द्वितीयक दोनों वाइंडिंग डेल्टा संयोजन में संयोजित की जाती है |

डेल्टा-डेल्टा (ΔΔ) संयोजन में प्राथमिक वाइंडिंग के संयोजन (Connection) निम्न प्रकार किये जाते हैं :-
1. नीचे दिए गए चित्र के अनुसार प्रथम कुंडली के बिंदु A2 तथा द्वितीय कुंडली के बिंदु B1 को जोड़कर सिरा R1 निकाल दिया जाता है |
2. द्वितीय कुंडली के बिंदु B2 तथा तृतीय कुंडली के बिंदु C1 को जोड़कर सिरा Y1 निकाल दिया जाता है |     
3. तृतीय कुंडली के बिंदु C2 तथा प्रथम कुंडली के बिंदु A1 को जोड़कर सिरा B1 निकाल दिया जाता है |
4. डेल्टा संयोजन में न्यूट्रल बिंदु नहीं निकलता है |

डेल्टा-डेल्टा (ΔΔ) संयोजन में द्वितीयक वाइंडिंग के संयोजन (Connection) भी प्राथमिक वाइंडिंग के समान ही डेल्टा में ही किये जाते हैं जो निम्न प्रकार हैं :-
1. प्रथम कुंडली के बिंदु X2 तथा द्वितीय कुंडली के बिंदु Y1 को जोड़कर सिरा R2 निकाल दिया जाता है |
2. द्वितीय कुंडली के बिंदु Y2 तथा तृतीय कुंडली के बिंदु Z1 को जोड़कर सिरा Y2 निकाल दिया जाता है |
3. तृतीय कुंडली के बिंदु Z2 तथा प्रथम कुंडली के बिंदु X1 को जोड़कर सिरा B2 निकाल दिया जाता है |
4. डेल्टा संयोजन में न्यूट्रल बिंदु नहीं निकलता है |

उपयोग- उच्च शक्ति तथा निम्न वोल्टेज वाले ट्रांसफार्मरों में |

Delta delta connection of 3 phase transformer
Suppose-Primary line voltage=VL

Primary phase voltage VP =VL

(Because in delta connection VP=VL)

Secondary line voltage=VL×K

Secondary phase voltage VP =VL×K

Transformer coil connection

4. डेल्टा-स्टार संयोजन | Delta-star connection

Delta star connection

डेल्टा-स्टार संयोजन (Delta-star connection) में उक्त चित्रानुसार ट्रांसफार्मर की प्राथमिक वाइंडिंग के कनेक्शन डेल्टा में तथा द्वितीयक वाइंडिंग के संयोजन स्टार में किये जाते हैं |

डेल्टा- स्टार  (Δ-Y) संयोजन में प्राथमिक वाइंडिंग के संयोजन (Connection) निम्न प्रकार किये जाते हैं :-
1. नीचे दिए गए चित्र के अनुसार प्रथम कुंडली के बिंदु A2 तथा द्वितीय कुंडली के बिंदु B1 को जोड़कर सिरा R1 निकाल दिया जाता है |
2. द्वितीय कुंडली के बिंदु B2 तथा तृतीय कुंडली के बिंदु C1 को जोड़कर सिरा Y1 निकाल दिया जाता है |
3. तृतीय कुंडली के बिंदु C2 तथा प्रथम कुंडली के बिंदु A1 को जोड़कर सिरा B1 निकाल दिया जाता है |
4. डेल्टा संयोजन में न्यूट्रल बिंदु नहीं निकलता है |

डेल्टा-स्टार (Δ-Y) संयोजन में द्वितीय वाइंडिंग के संयोजन स्टार में निम्न प्रकार किये जाते हैं :-
1. तीनों कुंडलियों (Primary windings) के प्रथम एक-एक बिंदु (X1, Y1 व Z1) को आपस में जोड़कर न्यूट्रल तार निकाल दिया जाता है |
2. दूसरे तीनों बिन्दुओं (X2, Y2 व Z2) से फेज R2,Y2 व B2 के तार आउटपुट के लिए बाहर निकाल दिए जाते हैं |

उपयोग- स्टेप-डाउन पॉवर ट्रांसफार्मरों में |

Delta star connection of transformer
Suppose-Primary line voltage=VL

Primary phase voltage VP =VL

(Because in delta connection VP=VL)

Secondary line voltage=VL×3×K

Secondary phase voltage VP =VL×K

Transformer coil connection

5. वी-वी संयोजन | V-V connection

v v connection

डेल्टा-डेल्टा संयोजन (Connection) के समान ही वी-वी (V-V) संयोजन किये जाते हैं | इसमें प्राथमिक तथा द्वितीयक वाइंडिंग में 2-2 कुंडलियां (Coils) होती हैं जबकि डेल्टा-डेल्टा संयोजन में 3-3 कुंडलियां होती हैं | इस संयोजन विधि में डेल्टा संयोजन की तुलता में 58% लपेट (Turns) रखे जाते हैं | इसे खुला डेल्टा भी कहा जाता है |

वी-वी (V-V) संयोजन विधि में प्राथमिक वाइंडिंग के संयोजन (Connection) निम्न प्रकार किये जाते हैं :-
1. नीचे दिए गए चित्र के अनुसार प्रथम कुंडली के बिंदु A1 से इनपुट के लिए फेज R1 निकाल दिया जाता है |
2. प्रथम कुंडली के बिंदु A2 तथा द्वितीय कुंडली के बिंदु B1 को जोड़कर इनपुट के लिए फेज Y1 निकाल दिया जाता है |
3. द्वितीय कुंडली के बिंदु B2 से इनपुट के लिए फेज B1 निकाल दिया जाता है |

वी-वी (V-V) संयोजन विधि में द्वितीयक वाइंडिंग के संयोजन (Connection) भी प्राथमिक वाइंडिंग के समान ही निम्न प्रकार किये जाते हैं :-
1. प्रथम कुंडली के बिंदु X1 से आउटपुट के लिए फेज R2 निकाल दिया जाता है |
2. प्रथम कुंडली के बिंदु X2 तथा द्वितीय कुंडली के बिंदु Y1 को जोड़कर आउटपुट के लिए फेज Y2 निकाल दिया जाता है |
3. द्वितीय कुंडली के बिंदु Y2 से आउटपुट के लिए फेज B2 निकाल दिया जाता है |

उपयोग- निम्न शक्ति तथा निम्न वोल्टेज वाले ट्रांसफार्मरों में |

VV connection of 3 phase transformer

Transformer coil connection

6. टी-टी संयोजन | T-T connection

टी-टी संयोजन (T-T  Connection) विधि को स्कॉट कनेक्शन भी कहा जाता है | इस विधि का उपयोग वहां किया जाता है जहां 3 फेज सप्लाई को 2 फेज में परिवर्तित करना हो क्योंकि इस प्रकार के ट्रांसफार्मर में इनपुट में 3 फेज सप्लाई दी जाती है तथा आउटपुट से 2 फेज सप्लाई प्राप्त की जाती है | इस संयोजन में एक फेज के 2 ट्रांसफार्मरों का उपयोग किया जाता है जिन्हें मुख्य ट्रांसफार्मर तथा टीज़र ट्रांसफार्मर कहा जाता है | मुख्य ट्रांसफार्मर की प्राइमरी वाइंडिंग में एक मध्य सिरा निकला होता है तथा टीज़र ट्रांसफार्मर की प्राइमरी वाइंडिंग में टर्नों की संख्या मुख्य ट्रांसफार्मर की प्राइमरी वाइंडिंग से 87% ही होती है | दोनों ट्रांसफार्मर की सेकेंडरी वाइंडिंग में टर्नों की संख्या बराबर होती है |

मुख्य ट्रांसफार्मर विधुतीय रूप से जुड़े होते हैं लेकिन चुम्बकीय रूप से अलग-अलग होते हैं (अर्थात दोनों 1 फेज ट्रांसफार्मरों के कनेक्शन आपस में जुड़े होते हैं लेकिन कोर अलग-अलग होती हैं |

उपयोग- इसका उपयोग 2 फेज से कार्य करने वाली विधुत भट्टी को 3 फेज से चलाने के लिए किया जाता है 

Scott connection of transformer

Transformer coil connection

7. स्टार-इंटरस्टार | Star-interstar connection

स्टार-इंटरस्टार का अर्थ है प्राथमिक वाइंडिंग स्टार में तथा द्वितीयक वाइंडिंग इंटरस्टार में |

इंटरस्टार संयोजन में स्टार वाइंडिंग की प्रत्येक कुंडली (coil) के श्रेणी में एक-एक अन्य कुंडली भी निम्न चित्र में दिखाए अनुसार संयोजित कर दी जाती है | इंटरस्टार की मदद से न्यूट्रल बिंदु इधर-उधर नहीं खिसकता है जिससे ट्रांसफार्मर के न्यूट्रल बिंदु को अर्थ करने की आवश्यकता नहीं होती है |

उपयोग- ऐसे रेतीले और पहाड़ी स्थानों पर जहां अर्थ की स्थापना नहीं की जा सकती अथवा अर्थ की स्थापना कर भी दी जाती है तो वह ठीक ढंग से नहीं होता है |

Star-interstar connection of transformer

Transformer coil connection

8. डेल्टा-इंटरस्टार संयोजन | Delta-interstar connection

डेल्टा-इंटरस्टार का अर्थ है प्राथमिक वाइंडिंग डेल्टा में तथा द्वितीयक वाइंडिंग इंटरस्टार में |

इंटरस्टार संयोजन में स्टार वाइंडिंग की प्रत्येक कुंडली (coil) के श्रेणी में एक-एक अन्य कुंडली भी निम्न चित्र में दिखाए अनुसार संयोजित कर दी जाती है |

 उपयोग- इसका उपयोग भी ऐसे रेतीले और पहाड़ी स्थानों पर किया जाता है जहां अर्थ की स्थापना नहीं की जा सकती अथवा अर्थ की स्थापना कर भी दी जाती है तो वह ठीक ढंग से नहीं होता है |

Delta interstar connection

Transformer coil connection

9. डेल्टा संयोजित टर्शियरी संयोजन | Delta connected tertiary connection

डेल्टा संयोजित टर्शियरी संयोजन एक प्रकार का स्टार-स्टार कनेक्शन ही है बस इसकी प्राथमिक तथा द्वितीयक वाइंडिंग के बीच में एक डेल्टा वाइंडिंग स्थापित कर दी जाती है जिसे टर्शियरी वाइंडिंग कहते हैं | स्टार-स्टार कनेक्शन में यह दोष होता है कि अधिक लोड होने पर इसका न्यूट्रल बिंदु इधर-उधर खिसकता रहता है | इस दोष को दूर करने के लिए टर्शियरी वाइंडिंग की स्थापना की जाती है | टर्शियरी वाइंडिंग की स्थापना से अधिक लोड पर भी न्यूट्रल बिंदु इधर-उधर नहीं खिसकता है | 

उपयोग- स्टार-स्टार कनेक्शन वाले ट्रांसफार्मर में जहां अर्थ कमजोर होता है तथा अधिक लोड होने के कारण न्यूट्रल बिंदु इधर-उधर खिसकता रहता है |

निम्न चित्र में डेल्टा संयोजित टर्शियरी संयोजन दर्शाया गया है |

Tertiary winding tertiary connection
itiale.in

Related :-

ट्रांसफार्मर क्या है What is transformer

What is transformer

ट्रांसफार्मर क्या है What is transformer

What is transformer

What is transformer

परिचय- ट्रांसफॉर्मर अन्योन्य प्रेरण (Mutual induction) के सिद्धांत पर कार्य करने वाली ऐसी युक्ति है जो प्रत्यावर्ती वोल्टेज को उच्च वोल्टेज से निम्न वोल्टेज में तथा निम्न वोल्टेज से उच्च वोल्टेज में परिवर्तित करती है |

ट्रांसफार्मर की परिभाषा /Definition of Transformer

ट्रांसफॉर्मर एक ऐसी मशीन है जो विधुत शक्ति को किसी एक परिपथ से दूसरे परिपथ में स्थानांतर कर देती है |

ट्रांसफार्मर का कार्य सिद्धांत / Principle of Tranformer

ट्रांसफॉर्मर अन्योन्य प्रेरण (Mutual inductance) के सिद्धांत पर कार्य करता है | प्रेरण (Inductance) केवल AC परिपथ में विधमान होता है DC में नहीं | अतः ट्रांसफॉर्मर भी केवल AC सप्लाई पर कार्य करता है DC पर नहीं |

Transformer symbol

Transformer symol

Core type transformer
सरल ट्रांसफार्मर

नोट- कुछ लोगों की यह गलत धारणा होती है कि ट्रांसफॉर्मर AC को DC में बदलता है , लेकिन ऐसा नहीं है | ट्रांसफॉर्मर केवल वोल्टेज तथा करंट को कम या अधिक करने के काम करता है तथा DC सप्लाई पर ट्रांसफॉर्मर कार्य नहीं करता है | यह फ्रीक्वेंसी को समान रखता है अर्थात फ्रीक्वेंसी को नहीं बदलता है | आपने देखा होगा कि कुछ छोटे ट्रांसफार्मरों की आउटपुट के साथ कुछ डायोड लगे होते हैं, ये डायोड AC को DC में बदलने का कार्य करते हैं |

निम्न दो चित्रों में से पहले चित्र में आप देखेंगे कि आउटपुट में हमें AC सप्लाई मिल रही है तथा दुसरे चित्र में आप देखेंगे कि ट्रांसफॉर्मर की आउटपुट के साथ एक डायोड लगा होने के कारण हमें DC सप्लाई मिल रही है | अर्थात ट्रांसफॉर्मर AC सप्लाई को DC में परिवर्तित नहीं करता तथा ना ही DC सप्लाई पर काम करता है |

Transformer diagram with ac output and dc output
itiale.in

ट्रांसफार्मर का विवरण / Description of Transformer

ट्रांसफॉर्मर  क्या  है What is transformer

ट्रांसफॉर्मर एक स्थिर विधुत मशीन है जिसमे कोई घूमने वाला अथवा हिलने डुलने वाला भाग (Movable part) नहीं होता (घूमने वाला भाग मोटर, जनरेटर इत्यादि में होता है) स्थिर मशीन होने के कारण इसमें क्षति बहुत कम  होती हैं | ( जैसे अगर हमारे पास 11000 वोल्ट की विधुत सप्लाई है जिसे हम 440 वोल्ट में परिवर्तित करना चाहते हैं तो यह काम बहुत कम क्षति के साथ हम ट्रांसफॉर्मर से कर सकते हैं तथा इसका उल्टा अर्थात 440 वोल्ट से 11000 वोल्ट भी आसानी से किया जा सकता है ) |

जिस कुंडली को प्रदाय (Input supply) से जोड़ते हैं वह प्राथमिक कुंडली (Primary winding) तथा जिस कुंडली को हम भार (Load) से जोड़ते हैं वह द्वितीयक कुंडली (Secondary winding) कहलाती है | 

प्राथमिक कुंडली से द्वितीयक कुंडली में शक्ति स्थानांतरित करने के लिए ट्रांसफॉर्मर में इन कुंडलियों को एक लोह क्रोड़ (Iron core) पर लपेटा जाता है | एक आदर्श ट्रांसफॉर्मर में वोल्टेज परिवर्तन की क्रिया में ट्रांसफॉर्मर की इनपुट शक्ति (Input power) तथा ट्रांसफॉर्मर से प्राप्त आउटपुट शक्ति (Output power) बराबर रहती है | ट्रांसफॉर्मर, आउटपुट में वोल्टेज बढ़ा रहा है तो धारा घटा देगा और वोल्टेज घटा रहा है तो धारा बढ़ा देगा अर्थात ट्रांसफॉर्मर विधुत शक्ति में कोई परिवर्तन नहीं करता है

Power formula

उदाहरण – यदि किसी ट्रांसफार्मर की इनपुट वोल्टेज = 200V व इनपुट करंट = 1A, इसी प्रकार आउटपुट वोल्टेज = 50V व आउटपुट करंट = 4A तो इसकी इनपुट शक्ति तथा आउटपुट शक्ति बराबर होगी क्योंकि इनपुट शक्ति = 200 x 1 = 200 वाट व आउटपुट शक्ति = 50 x 4 = 200 वाट

शक्ति W = वोल्टेज V  x  धारा  I

V1V2=I2I1     or        Input voltageOutput voltage=Output currentInput current

(लेकिन ऊपर दी गई  शर्त केवल आदर्श ट्रांसफार्मर पर लागू होती है | आदर्श ट्रांसफार्मर वह होता है  जिसमे किसी प्रकार की क्षति ना हो, लेकिन ऐसा कोई ट्रांसफार्मर नहीं है जिसमे किसी प्रकार की क्षति नहीं होती | हां, क्षति को कम किया जा सकता है लेकिन बिलकुल समाप्त नहीं किया जा सकता | )
अतः ट्रांसफार्मर की आउटपुट शक्ति = इनपुट शक्ति – क्षति

उदाहरण – अगर किसी ट्रांसफार्मर की इनपुट वोल्टेज 100 V, इनपुट करंट 10 A तथा आउटपुट वोल्टेज 10 V हो तथा क्षतियों को शुन्य माना जाये तो ट्रांसफार्मर की आउटपुट करंट क्या होगी |
हल- (विधि -1)
इनपुट वोल्टेज V1          = 100V
 इनपुट करंट I1             = 10A
आउटपुट वोल्टेज V2     = 10V
आउटपुट करंट   I2       = ? 

V1V2=I2I1
10010=I210
I2=1001010
I2=100Amp.

(विधि -2)- जैसा कि हमें पता है की शक्ति = वोल्टेज x करंट

अतः इनपुट शक्ति = 100 x 10 = 1000 watt
अब हमें आउटपुट करंट निकालनी है | 
चूंकि आउटपुट शक्ति तथा इनपुट शक्ति सामान है
इसलिए आउटपुट करंट = शक्ति / आउटपुट वोल्टेज 
आउटपुट करंट i2 = 1000 / 10 
i2= 100A

 

दिष्ट धारा पर ट्रांसफार्मर / Transformer on DC

क्योंकि ट्रांसफार्मर की प्राथमिक कुंडली में AC सप्लाई अथवा प्रत्यावर्ती धारा देने पर फ्लक्स में भी लगातार परिवर्तन (Fluctuate) होने के कारण द्वितीय कुंडली में Mutual inductian के कारण विधुत वाहक बल उत्पन्न होता है जिसे हम लोड को देते हैं | फ्लक्स परिवर्तन से स्वयं प्राथमिक कुंडली में भी एक अतिरिक्त प्रेरित विधुत वाहक बल पैदा होता है जिसे हम विरोधी विधुत वाहक बल (Back e.m.f.) कहते हैं | यह विरोधी विधुत वाहक बल प्राथमिक कुंडलन में प्रवाहित धारा को सीमित अथवा कम कर देता है जिससे कुंडलन ओवर हीट से जलती नहीं है |

यदि प्राथमिक कुंडलन को दिस्ट धारा (DC) से जोड़ दिया जाये तो धारा का प्रत्यावर्तन नहीं होने के कारण फ्लक्स का परिवर्तन नहीं होता है जिसके कारण प्राथमिक कुंडलन में विरोधि विधुत वाहक बल उत्पन्न नहीं होता है फलस्वरूप प्राथमिक कुंडली में अधिक धारा बहने से कुंडलन जल जाती है | अतः DC पर ट्रांसफार्मर के कार्य नहीं करने का सबसे बड़ा कारण है कुंडली में DC सप्लाई से, प्रेरित विधुत वाहक बल पैदा नहीं होना |

ट्रांसफार्मर की कार्य प्रणाली / Working of Transformer

जब ट्रांसफार्मर की प्राइमरी वाइंडिंग को ए.सी. स्त्रोत से जोड़ा जाता है तो प्रत्यावर्ती विधुत धारा बहने के कारण प्राइमरी वाइंडिंग के चारों और एक प्रत्यावर्ती ( Alternating ) स्वभाव का चुम्बकीय क्षेत्र पैदा हो जाता है | सेकेंडरी वाइंडिंग के चालक प्राइमरी वाइंडिंग द्वारा स्थापित चुम्बकीय क्षेत्र की चुम्बकीय बल रेखाओं का छेदन करते हैं और फैराडे के विधुत चुम्बकीय प्रेरण सिद्धांत के अनुसार सेकेंडरी वाइंडिंग के चालकों में एक विधुत वाहक बल पैदा हो जाता है |

माना की हमारे पास दो कुंडलियां (coils) हैं जिनमे से कुंडली A में 10 लपेट  (turns) हैं तथा कुंडली B में 20 लपेट हैं | इन दोनों कुंडलियों को हम चित्र के अनुसार पास-पास रखते हैं | अब कुंडली A में 12वोल्ट की प्रत्यावर्ती धारा (AC) देने पर कुंडली B में वोल्ट मीटर से जांच करने पर पाएंगे कि इसमें लगभग 24 वोल्ट पैदा हो रहे हैं |

Transformer coil diagram

अब दिए गए चित्र के अनुसार इन दोनों कुंडलियों को अगर सिलिकॉन स्टील से निर्मित पटलित क्रोड (Laminated core) पर इंसुलेशन करके स्थापित कर दिया जाए तो कुंडली A द्वारा स्थापित अधिकतम चुम्बकीय बल रेखायें कुंडली B में से होकर गुजरेंगी  जिससे ट्रांसफार्मर में कम से कम क्षति (Loss) हो | 

इस प्रकार दोनों कुंडलियां विधुत रूप से ना जुड़कर चुम्बकीय रूप से जुडी होती हैं क्योंकि कुंडली A कुंडली B से आपस में संपर्क नहीं करती है

Simple transformer

सिलिकॉन स्टील- सिलिकॉन स्टील में सिलिकॉन की मात्रा. 3.8 से 4.5 प्रतिशत होती है तथा सिलिकॉन स्टील से निर्मित पटलनों  को विधुत रोधी ( Laminated ) बनाने के लिए सिलिकॉन स्टील की चादर के टुकड़ों पर विधुत रोधी वार्निश का लेप कर दिया जाता है | क्रोड को लैमिनेटेड इसलिए बनाया जाता है ताकि ट्रांसफार्मर की क्रोड में भंवर धारा क्षति ( Eddy current loss ) कम से कम हों | भंवर धारा क्षति, पटलनों की मोटाई के वर्ग के समानुपाती होती है इसलिए उच्च आवृति वाले ट्रांसफार्मरों में पटलनों की मोटाई कम से कम रखी जाती है | क्योंकि पटलन जितनी पतली होंगी उतनी ही भंवर धारा क्षति कम होगी |

Transformer laminated core

Silicon steel laminations

ट्रांसफार्मर के प्रकार | Types of transformers

Pieces of Silicon steel lamination

itiale.in

What is transformer

ट्रांसफार्मर का उपयोग / Usage of Transformer

ट्रांसफार्मर का उपयोग बताने से पहले हम आपको निम्न सामान्य जानकारी देंगे :-

आम तौर पर 3 फेज विधुत सप्लाई के उपयोग में 1 फेज विधुत सप्लाई  से अधिक लाभ होते हैं | इसलिए आजकल जनरेशन, ट्रांसमिशन और डिस्ट्रीब्यूशन में 3 फेज विधुत सप्लाई सिस्टम का उपयोग अधिक किया जाता है | इस सप्लाई सिस्टम को अधिक क्षमतावान बनाने के लिए भारतीय मानक संस्था द्वारा हर एक सप्लाई वोल्टेज स्टेप के लिए एक मानक वोल्टेज तय किया गया है | जैसे  :-

  • किसी विधुत उत्पादन केंद्र पर विधुत का उत्पादन 11000 वोल्ट पर होता है |
  • उत्पादन के बाद इस विधुत सप्लाई को स्टेप-अप ट्रांसफार्मर द्वारा आवश्यकतानुसार 440KV, 220KV तथा 132KV में परिवर्तित करके प्रसारण किया जाता है |
  • प्रसारण के बाद इस विधुत सप्लाई को ग्रिड सब स्टेशन (GSS) पर स्टेप-डाउन ट्रांसफार्मर लगाकर इसका वितरण 66KV, 33KV तथा 11KV पर किया जाता है |
  • डिस्ट्रीब्यूशन ट्रांसफार्मर लगाकर इसका उपयोग 440 वोल्ट तथा 230 वोल्ट पर किया जाता है |
उपयोग – इस समय हमारे लिए बिजली के बिना रहना लगभग नामुमकिन है | हर जगह हर काम में विधुत का उपयोग होता है जिसमे ट्रांसफार्मर एक बहुत जरुरी तथा उपयोगी मशीन है |
ट्रांसफार्मर के निम्न अनुप्रयोग हैं :-
  • बिजली बनाने वाले उत्पादन केंद्र पर ट्रांसफार्मर का उपयोग विधुत सप्लाई को स्टेप-अप करने के लिए किया जाता है |
  • विधुत सब-स्टेशन पर प्राप्त होने वाली विधुत सप्लाई को स्टेप-डाउन करने अथवा कम करने (33000/11000 वोल्ट को 440 वोल्ट अथवा 230वोल्ट करने के लिए ट्रांसफार्मर का उपयोग किया जाता है जिससे इस विधुत को उपयोग के लिए उपभोक्ताओं को दिया जा सके |
  • TV तथा अन्य दैनिक उपयोग होने वाले इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों में ट्रांसफार्मर का उपयोग किया जाता है |
  • विभिन्न कारखानों में उपयोग होने वाली वेल्डिंग मशीन में ट्रांसफार्मर का उपयोग होता है |
  • जीवन का अभिन्न अंग माने जाने वाले मोबाइल की चार्जिंग में काम आने वाले चार्जर में ट्रांसफार्मर का उपयोग किया जाता है |
  • उधोगों में काम आने वाली अधिकतर मशीनों में ट्रांसफार्मर का उपयोग किया जाता है |

ट्रांसफार्मर की संरचना / Transformer structure

  1.  ट्रांसफार्मर की बॉडी अथवा टैंक में स्टील स्टैम्पिंग से निर्मित क्रोड़ (core ) स्थापित की जाती है | क्रोड़ का मुख्य कार्य है (A) प्राइमरी वाइंडिंग द्वारा बनाये गए चुम्बकीय क्षेत्र की चुम्बकीय बल रेखाओं का मार्ग पूर्ण करना तथा (B) प्राइमरी वाइंडिंग द्वारा बनाये गए चुम्बकीय क्षेत्र की अधिकाधिक चुम्बकीय बल रेखाओं को सेकेंडरी वाइंडिंग में से गुजारना |
  2. क्रोड पर ट्रांसफार्मर वाइंडिंग स्थापित की जाती हैं |
  3. ट्रांसफार्मर में 2 प्रकार की वाइंडिंग्स स्थापित की जाती हैं, प्राइमरी तथा सेकेंडरी |
  4. प्राइमरी वाइंडिंग वह होती है जिसे विधुत स्त्रोत से संयोजित किया जाता है अर्थात जिसे विधुत सप्लाई दी जाती है |
  5. सेकेंडरी वाइंडिंग वह होती है जिसे लोड से संयोजित किया जाता है अर्थात जिससे विधुत सप्लाई ली जाती है |
  6. ट्रांसफार्मर में वाइंडिंग एवं क्रोड़ के अतिरिक्त अन्य युक्तियाँ भी प्रयोग की जाती है, जिनका वर्णन एक अन्य पोस्ट में किया गया है |

ट्रांसफार्मर के लाभ / Advantages of transformer

  1. ट्रांसफार्मर बहुत अधिक वोल्टेज पर भी सामान्य रूप से कार्य कर सकता है जबकि अन्य मशीनें अति उच्च वोल्टेज पर सामान्य रूप से कार्य नहीं कर पाती | जैसे 440 KV पर |
  2. ट्रांसफार्मर द्वारा वोल्टेज घटाने अथवा बढ़ाने का कार्य उच्च दक्षता से किया जाता है जबकि DC में वोल्टेज घटाने का कार्य रिहोस्टेट अथवा प्रतिरोधक से किया जाता है जिसमें बहुत अधिक क्षति होती है |
  3. ट्रांसफार्मर की दक्षता 90% से 98% तक होती है क्योंकि यह एक स्थेतिक मशीन है जबकि अन्य मशीनें स्थेतिक नहीं होने के कारण उनकी दक्षता काफी कम होती है |
  4. ध्वनि प्रदुषण नहीं होता |
  5. ट्रांसफार्मर के कारण AC का पारेषण तथा वितरण बहुत कम लागत पर होने लगा है जबकि DC का वितरण में बहुत अधिक लागत लगती है क्योंकि इसमें ट्रांसफार्मर के स्थान पर बूस्टर मोटर जनित्र प्रयोग करने पड़ते है |
  6. ट्रांसफार्मर में कोई सचल पुर्जा ना होने के कारण लुब्रिकेंट अथवा किसी प्रकार के रखरखाव की आवश्यकता नहीं होती |
itiale.in

Related :-