ट्रांसफार्मर के भाग Parts of Transformer

Parts of transformer

ट्रांसफार्मर के भाग Parts of Transformer

ट्रांसफार्मर के भाग Parts of Transformer

ट्रांसफार्मर अन्योन्य प्रेरण (Mutual inductance) के सिद्धांत पर कार्य करता है | ट्रांसफार्मर एक स्थिर विधुत मशीन है अर्थात इसमें कोई चलायमान (Movale) भाग नहीं होता अतः इसके सभी भाग स्थिर होते हैं |

ट्रांसफार्मर के कुछ महत्वपूर्ण भाग होते हैं जो सभी ट्रांसफार्मरों में जरुरी होते हैं | ये छोटे से छोटे तथा बड़े से बड़े, सभी ट्रांसफार्मरों में जरुरी होते हैं इनके बिना ट्रांसफार्मर का निर्माण असंभव होता है | तथा कुछ भाग ऐसे भी होते हैं जिनको बड़े ट्रांसफार्मरों अथवा कुछ विशेष ट्रांसफार्मरों में लगाया जाता है | ट्रांसफार्मर के अति महत्त्वपूर्ण भाग (Very important Parts of Transformer) होते हैं- क्रोड़, वाइंडिंग तथा प्रतिरोधक सामग्री, जिनका वर्णन प्रथम तीन बिन्दुओं में किया गया है तथा तापमापी, ब्रीदर, एक्सप्लोजन वेंट, बकोल्ज रिले तथा कंजरवेटर आदि सुरक्षात्मक भाग हैं | अन्य बिन्दुओं में अन्य भागों का वर्णन किया गया है |

 
ट्रांसफार्मर के भाग

ट्रांसफार्मर के भाग Parts of Transformer

ट्रांसफार्मर के भाग

1. क्रोड़ / Core

मुख्य चित्र में बिंदु संख्या 5 में क्रोड़ दर्शाइ गई है |

ट्रांसफार्मर का एक मुख्य भाग है-क्रोड़ | क्रोड़ पर ही ट्रांसफार्मर वाइंडिंग को लपेटा जाता है | बिना क्रोड़ के ट्रांसफार्मर का निर्माण संभव नहीं है | क्रोड़ पर वाइंडिंग करके इसे ट्रांसफार्मर टैंक में रखकर बोल्ट कर दिया जाता है तथा कुछ ट्रांसफार्मरों की क्रोड़ को टैंक में ना रखकर खुला ही रखा जाता है | क्रोड़ कई प्रकार की होती है जैसे- क्रोड़ प्रकार, शैल प्रकार, बेरी प्रकार तथा स्पाइरल प्रकार आदि | 

ट्रांसफार्मर में प्राइमरी वाइंडिंग द्वारा स्थापित चुम्बकीय क्षेत्र के चुम्बकीय पथ को पूर्ण करने, चुम्बकीय फ्लक्स के लिए निम्न प्रतिष्टम्भ (Low reluctance) का पथ उपलब्ध कराने तथा उसे सघन रखने के लिए लोहे की क्रोड़ का प्रयोग किया जाता है |

यदि क्रोड़ को ठोस लोहे का बना दिया जाये तो उसमे एडी धारा क्षति तथा हिस्टेरेसिस क्षति बहुत अधिक हो जाएगी, अतः लैमिनेटेड सिलिकॉन स्टील स्टेम्पिंग से बनी हुई क्रोड़ प्रयोग की जाती है | इन स्टेम्पिंग की मोटाई 0.35 mm से 0.5 mm तक रखी जाती है और इनके एक अथवा दोनों तरफ वार्निश की हुई होती है | सिलिकॉन स्टील की क्रोड़ बनाने के लिए लोहे में 3.8% से 4.5% तक सिलिकॉन धातु मिश्रित की जाती है | क्रोड़ का आकार, ट्रांसफार्मर की संरचना के अनुसार होता है | क्रोड़ के प्रकारों का विस्तृत विवरण हमारी अन्य पोस्ट ” ट्रांसफार्मर के प्रकार ” में किया गया है | 

stepped core and normal core transformer
Transformer core

ट्रांसफार्मर के भाग

ट्रांसफार्मर के भाग

2. वाइंडिंग / Winding

मुख्य चित्र में बिंदु संख्या 6 में वाइंडिंग दर्शाइ गई है |

क्रोड़ पर ताम्बे अथवा एल्युमिनियम के तारों को लपेट कर ट्रांसफार्मर वाइंडिंग की जाती है | वाइंडिंग क्रोड़ के ऊपर की जाती है | क्रोड़ पर वाइंडिंग करने से पहले क्रोड़ को भली प्रकार से प्रतिरोधित कर लिया जाता है जिससे क्रोड़ में करंट प्रवाहित ना हो तथा वाइंडिंग शॉर्ट सर्किट ना हो |

वाइंडिंग, ट्रांसफार्मर का एक जरुरी तथा मुख्य भाग होता है जिसके बिना ट्रांसफार्मर का कोई अस्तित्व नहीं है | ट्रांसफार्मर में दो वाइंडिंग की जाती हैं एक प्राथमिक वाइंडिंग तथा दूसरी द्वितीयक वाइंडिंग | 

1. प्राथमिक वाइंडिंग / Primary winding

प्राथमिक वाइंडिंग वह वाइंडिंग होती है जिसमे विधुत स्रोत से AC सप्लाई दी जाती है | यदि प्राथमिक वाइंडिंग में द्वितीयक वाइंडिंग की तुलना में अधिक घुमाव दिए जाते हैं तो यह स्टेप-डाउन ट्रांसफार्मर कहलाता है तथा यदि प्राथमिक वाइंडिंग में द्वितीयक वाइंडिंग की तुलना में कम घुमाव दिए जाते हैं तो यह स्टेप-अप ट्रांसफार्मर कहलाता है |

2. द्वितीयक वाइंडिंग / Secondary winding

द्वितीयक वाइंडिंग वह वाइंडिंग होती है जिससे लोड को विधुत सप्लाई दी जाती है | यदि द्वितीयक  वाइंडिंग में प्राथमिक वाइंडिंग की तुलना में अधिक घुमाव दिए जाते हैं तो यह स्टेप-अप ट्रांसफार्मर कहलाता है तथा यदि द्वितीयक वाइंडिंग में प्राथमिक वाइंडिंग की तुलना में कम घुमाव दिए जाते हैं तो यह स्टेप-डाउन ट्रांसफार्मर कहलाता है 

ट्रांसफार्मर के भाग

3. प्रतिरोधक सामग्री / Insulating material

प्रतिरोधक भी ट्रांसफार्मर का एक जरुरी भाग है | बिना प्रतिरोधक के ट्रांसफार्मर वाइंडिंग शोर्ट सर्किट होकर जल जाएगी | क्रोड़ पर वाइंडिंग करने से पहले क्रोड़ को भली प्रकार प्रतिरोधक कागज़ द्वारा प्रतिरोधित कर लिया जाता है तथा प्राथमिक, द्वितीयक तथा प्रत्येक फेज की वाइंडिंग के बीच में प्रतिरोधक कागज़ द्वारा प्रतिरोधन किया जाता है |

ट्रांसफार्मर ऑइल भी एक प्रतिरोधक पदार्थ है | कभी-कभी नमी के कारण ऑइल का प्रतिरोधन समाप्त हो जाता है जिससे ट्रांसफार्मर वाइंडिंग जलने की सम्भावना रहती है | इसलिए हमें समय-समय पर ट्रांसफार्मर ऑइल की प्रतिरोधकता जांच अवश्य करवानी चाहिए | ट्रांसफार्मर बुशिंग भी प्रतिरोधक पदार्थ हैं |
ट्रांसफार्मर की वाइंडिंग करते समय निम्न प्रतिरोधक सामग्री का उपयोग होता है :-

1. PVC टेप
2. कॉटन टेप
3. स्लीव
4. बैकेलाइट शीट
5. प्रतिरोधक कागज़ / वार्निश कागज़
6. लकड़ी की फन्नी
7. माइका इत्यादि

ट्रांसफार्मर के भाग

4. टैंक / Tank

मुख्य चित्र में बिंदु संख्या 2 में ट्रांसफार्मर टैंक दर्शाया गया है |

ट्रांसफार्मर टैंक लोहे का बना होता है जिसके अन्दर ट्रांसफार्मर क्रोड़ व वाइंडिंग स्थापित होती हैं तथा तेल भरा होता है | ट्रांसफार्मर के टैंक को रिसाव रहित (Leakage proof) होना चाहिए | कुछ छोटे ट्रांसफार्मर बिना टैंक के भी होते है, इनकी क्रोड़ तथा वाइंडिंग खुली होती है | 

ट्रांसफार्मर के भाग

5. ट्रांसफार्मर तेल / Transformer oil

itiale.in

मुख्य चित्र में बिंदु संख्या 7 में ट्रांसफार्मर तेल दर्शाया गया है |

ट्रांसफार्मर तेल, ट्रांसफार्मर टैंक में भरा जाता है | ट्रांसफार्मर में तेल भरने का उद्देश्य होता है वाइंडिंग को उचित प्रतिरोधकता देना, ट्रांसफार्मर को ठंडा रखना तथा वाइंडिंग के जोड़ों में होने वाले ऑक्सीकरण को रोकना | ट्रांसफार्मर जितने अधिक वोल्टता पर प्रयुक्त होता है उतनी ही अधिक तेल की प्रतिरोधकता होनी चाहिए, इसलिए इसे इंसुलेशन ऑइल भी कहा जाता है | ट्रांसफार्मर तेल निम्न 2 प्रकार का होता है :-

सिंथेटिक तेल (Synthetic oil)- यह तेल सिलिकॉन व हाइड्रोकार्बन आदि से बनाया जाता है | यह महंगा होता है इसलिए इसका उपयोग खानों, सुरंगों तथा बंकरों आदि में लगे ट्रांसफार्मरों में किया जाता है |
खनिज तेल (Mineral oil)- यह पेट्रोलियम से ही प्राप्त किया जाता है | जैसे पेट्रोल, डीजल आदि | यह तेल आसानी से जलता नहीं है |
ट्रांसफार्मर तेल में निम्न गुण होने चाहियें :-

1. विधुत का कुचालक :-
ट्रांसफार्मर तेल को विधुत का अच्छा कुचालक होना चाहिए अथवा इसकी डाई-इलेक्ट्रिक-स्ट्रेंथ उच्च होनी चाहिए अन्यथा वाइंडिंग शोर्ट-सर्किट होने का खतरा रहता है | तेल में नमी के कारण इसकी 
डाई-इलेक्ट्रिक-स्ट्रेंथ कम हो जाती है | तेल टेस्टिंग यन्त्र द्वारा समय-समय पर तेल की डाई-इलेक्ट्रिक-स्ट्रेंथ नापते रहना चाहिए |
2.
ऊष्मा का सुचालक :-
ट्रांसफार्मर तेल को ऊष्मा का सुचालक होना चाहिए जिससे वाइंडिंग में पैदा होने वाली ऊष्मा को यह वातावरण में फैलाता रहे |
3. स्पार्किंग रोकने का गुण :-
ट्रांसफार्मर तेल में स्पार्किंग रोकने का गुण होना चाहिए जिससे वाइंडिंग अथवा टेप-चेंजर स्विच में होने वाली छोटी-मोटी स्पार्किंग को यह दबा सके |
4. शुद्ध एवं साफ़ :-
ट्रांसफार्मर तेल को शुद्ध होना चाहिए | तेल को देखने पर इसमें से आर-पार दिखना चाहिए तथा यह साफ हल्का पीला होता है | कुछ तेलों में सल्फर मिला होता है जिससे इसमें गाद/कीचड़ बन जाती है |
5. घनत्व :-
ट्रांसफार्मर तेल का घनत्व 0.89 gm/cm³ तक ही होना चाहिए, इससे अधिक नहीं |
6. श्यानता :-
ट्रांसफार्मर तेल की श्यानता कम होनी चाहिए जिससे यह वाइंडिंग में तारों के बीच अन्दर तक आसानी से जा सके | गाढ़ा तेल वाइंडिंग के बीच अन्दर तक नहीं पहूंच पाता
7. जमाव बिंदु :-
ट्रांसफार्मर तेल का जमाव बिंदु निम्न होना चाहिए जिससे यह ठण्ड में जमे नहीं | समान्यतः इसका जमाव बिंदु (Freezing point) -25°C होता है |
8. दहनांक :-
ट्रांसफार्मर तेल का दहनांक अथवा वह न्यूनतम तापमान जिस पर यह जलने लगे, अधिक होना चाहिए | ट्रांसफार्मर तेल का दहनांक 200°C से अधिक होना चाहिए जिससे यह 200°C तापमान तक जले नहीं |
9. ट्रांसफार्मर तेल वायु में रखे जाने पर कम से कम नमी सोखने वाला हो जिससे इसमें वातावरण से नमी प्रवेश ना करे |

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6. बकोल्ज रिले / Buchholz relay

मुख्य चित्र में बिंदु संख्या 14 में बकोल्ज़ रिले दर्शाइ गई है |

बकोल्ज़ रिले एक प्रमुख सुरक्षा युक्ति है | आमतौर पर यह छोटे ट्रांसफार्मरों में नहीं लगा होता, इसका उपयोग बड़े अथवा पॉवर ट्रांसफार्मर में किया जाता है | ट्रांसफार्मर के अन्दर दोष (Fault) होने पर यह युक्ति कार्य करती है | ट्रांसफार्मर में आन्तरिक दोष पैदा होने पर यह एक अलार्म को बजा देती है तथा ट्रांसफार्मर की सप्लाई को बंद कर देती है | 

बकोल्ज़ रिले की कार्य करने की विधि निम्न चित्र द्वारा समझाई गई है |

Buchholz relay ITIWALE

बकोल्ज़ रिले निम्न प्रकार कार्य करती है :-

1. ट्रांसफार्मर में फाल्ट आने पर अधिक गर्मी से उसमें बनने वाली गैस बकोल्ज़ रिले के ऊपरी सिरे में आकर इकट्ठी हो जाती हैं जिससे फ्लोट-A के नीचे गिरने से ऊपर वाले मरकरी स्विच में भरी मरकरी दोनों बिन्दुओं को छू लेती है जिससे स्विच ऑन होकर अलार्म को चालू कर देता है परिणाम स्वरुप ऑपरेटर को पता लग जाता है कि ट्रांसफार्मर में फाल्ट है |
2. इसी प्रकार ट्रांसफार्मर में बड़ा फाल्ट आने पर तेल गर्म होकर तेजी से बकोल्ज़ रिले से होता हुआ कंजरवेटर की तरफ जाता है जिससे फ्लोट-B नीचे गिरता है | फ्लोट-B के नीचे गिरने से नीचे वाला मरकरी स्विच ऑन हो जाता है जिससे ट्रिपिंग coil का परिपथ चालू हो जाता है | यह ट्रिपिंग coil एक सर्किट ब्रेकर से जुडी रहती है जो ट्रांसफार्मर की इनपुट सप्लाई को बंद कर देता है |

ट्रांसफार्मर के भाग

7. तापमापी / Temperature gause

मुख्य चित्र में बिंदु संख्या 3 में तापमापी दर्शाया गया है |

ट्रांसफार्मर में एक तापमापी लगाया जाता है | बड़े ट्रांसफार्मरों में प्रत्येक वाइंडिंग में अलग-अलग तापमापी भी लगाया जाता है जिससे प्रत्येक वाइंडिंग का तापमान पता लगता रहता है | तापमान बढ़ने पर ऑपरेटर को ट्रांसफार्मर में दोष की खोज करनी चाहिए | कुछ ट्रांसफार्मरों में ऐसा प्रबंध भी होता है कि तापमान बढ़ने पर ट्रांसफार्मर की सप्लाई अपने आप बंद हो जाती है | ट्रांसफार्मर का तापमान 100°C से अधिक नहीं होना चाहिए | 

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8. रेडियेटर / Radiator

मुख्य चित्र में बिंदु संख्या 10 में रेडिएटर दर्शाया गया है |

रेडिएटर ट्रांसफार्मर तेल को ठंडा करने का कार्य करता है | बिना तेल वाले ट्रांसफार्मरों में रेडिएटर नहीं लगाया जाता | ट्रांसफार्मर वाइंडिंग की गर्मी तेल में फ़ैल जाती है तथा रेडिएटर के उपयोग से तेल की गर्मी वातावरण में फ़ैल जाती है जिससे तेल ठंडा रहता है परिणामस्वरूप वाइंडिंग ठंडी रहती है |

कुछ छोटे ट्रांसफार्मरों में पाइपों को मोड़कर ट्रांसफार्मर के टैंक में वेल्ड कर दिया जाता है जो रेडिएटर का कार्य करते है तथा कुछ ट्रांसफार्मरों में अलग से लोहे की पतली शीट से रेडिएटर बनाकर बोल्ट से कस दिए जाते हैं | बड़े ट्रांसफार्मरों में रेडिएटरों के पास पंखे लगा दिए जाते हैं जिससे तेल तेजी से ठंडा होता है | 

Transformer radiator

ट्रांसफार्मर के भाग

9. टेप चेंजर / Tape changer

मुख्य चित्र में बिंदु संख्या 4 में टेप चेंजर दर्शाया गया है |

टेप चेंजर एक घूमने वाला स्विच होता है जिसे घुमाकर ट्रांसफार्मर की आउटपुट वोल्टेज को घटाया-बढाया जाता है | निर्माण के समय टेप चेंजर में जरुरत के अनुसार टेप बना दिए जाते हैं जैसे 5, 8, 10, 15, 17 इत्यादि |  | टेप चेंजर के कनेक्शन हाई वोल्टेज वाली वाइंडिंग पर किये जाते हैं क्योंकि हाई वोल्टेज वाली वाइंडिंग में कम करंट चलता है जिससे कम स्पार्किंग होती है |
टेप चेंजर 2 प्रकार के होते हैं :-

1. ऑफ लोड टेप चेंजर (Off load tape changer) :- एक साधारण ट्रांसफार्मर में “ऑफ लोड टेप चेंजर” लगाया जाता है जिससे टेप बदलते समय ट्रांसफार्मर से लोड को हटाना पड़ता है | इस टेप चेंजर से चालू लोड पर टेप बदलने से स्पार्किंग के कारण ट्रांसफार्मर में आग लगने की सम्भावना रहती है | इस प्रकार का टेप चेंजर उन ट्रांसफार्मरों पर लगाया जाता है जिन पर कभी-कभी  टेप बदलनी पड़ती है तथा सप्लाई बंद करने की अनुमति होती है |

2. ऑन लोड टेप चेंजर :- (On load tape changer) :- ऑन लोड टेप चेंजर से टेप बदलते समय लोड को हटाने की आवश्यकता नहीं रहती | इस प्रकार के टेप से चलते लोड पर ही टेप बदली जा सकती है | इस टेप चेंजर में निर्माण के समय ही इम्पीडेंस सर्किट तथा प्रतिरोधक लगा दिए जाते हैं जो टेप बदलते समय स्पार्किंग नहीं होने देते | इस प्रकार का टेप चेंजर उन ट्रांसफार्मरों पर लगाया जाता है जिन पर बार-बार टेप बदलनी पड़ती है अथवा सप्लाई बंद करने की अनुमति नहीं होती |

सावधानियां :- 
– 
ऑफ लोड टेप चेंजर” से टेप बदलते समय ट्रांसफार्मर से लोड हटा देना चाहिए अन्यथा ट्रांसफार्मर में स्पार्किंग से आग लगने की सम्भावना रहती है |
– ओवर लोड पर किसी भी प्रकार के टेप चेंजर से टेप नहीं बदलनी चाहिए |
नीचे टेप चेंजर के कनेक्शन तथा चित्र  दर्शाए गए हैं |

Tape changer tapping switch

Simple tapping switch connection

Tape changer tapping switch

ट्रांसफार्मर के भाग

10. कंजरवेटर / Conservator

मुख्य चित्र में बिंदु संख्या 13 में कंजरवेटर दर्शाया गया है |

कंजरवेटर एक तेल का टैंक होता है जो ट्रांसफार्मर के मुख्य टैंक से ऊंचाई पर लगा होता है | केवल तेल वाले ट्रांसफार्मरों में ही कंजरवेटर का उपयोग होता है | कंजरवेटर, तेल से लगभग आधा भरा हुआ होता है | यह एक पाइप द्वारा मुख्य टैंक से जुड़ा होता है | 

ट्रांसफार्मर का तेल ठंडा होने पर जब सिकुड़ता है तो कंजरवेटर से मुख्य टैंक में तेल चला जाता है इसी प्रकार जब गर्म होकर तेल का आयतन बढ़ता है तो मुख्य टैंक से फालतू तेल कंजरवेटर में चला जाता है | इस प्रकार यह मुख्य टैंक में तेल के स्तर को बनाये रखता है |

ट्रांसफार्मर के भाग

11. ऑइल लेवल इंडिकेटर / Oil Leval indicator

मुख्य चित्र में बिंदु संख्या 12 में ऑइल लेवल इंडिकेटर दर्शाया गया है |

ऑइल लेवल इंडिकेटर एक Weather proof तथा Temperature proof कांच का टुकड़ा होता है जो कंजरवेटर के बगल में एक खांचा काटकर लगा दिया जाता है | कंजरवेटर का तेल इस कांच के टुकड़े में से दिखता हुआ रहता है | कुछ ट्रांसफार्मरों में एक घडी नुमा इंडिकेटर भी लगा दिया जाता है जिससे जुडी हुई बॉल अन्दर तेल में पड़ी रहती है जो तेल के लेवल के साथ ऊपर-नीचे होती रहती है | 

12. ब्रीदर / Breather

मुख्य चित्र में बिंदु संख्या 11 में ब्रीदर दर्शाया गया है |

ट्रांसफार्मर का तापमान बढ़ने के कारण तेल का आयतन बढ़ता है जिससे कंजरवेटर में तेल का स्तर ऊपर हो जाता है जिससे कंजरवेटर की ऊपर की हवा ब्रीदर में से होती हुई बाहर निकल जाती है | इसी प्रकार जब ये तेल वापस ठंडा होता है तो इसका आयतन कम होता है इससे ये सिकुड़ता है | तेल सिकुड़ने के कारण बाहर की हवा कंजरवेटर में अन्दर आती है | इस बाहरी हवा में नमी के कारण ट्रांसफार्मर तेल और वाइंडिंग का इंसुलेशन ख़राब हो सकता है |

अतः इससे बचने के लिए कंजरवेटर पर ब्रीदर लगाया जाता है | इसे इस प्रकार लगाया जाता है कि कंजरवेटर में जाने वाली हवा ब्रीदर में से होती हुई कंजरवेटर के ऊपरी हिस्से में पहुंचे | ब्रीदर में सिलिका जैल भरी होती है | सिलिका जैल का गुण होता है कि यह नमी को अपने अन्दर सोख लेता है जिससे बाहरी हवा की नमी सिलिका जैल में ही रह जाती है |

एक सूखी हुई सिलिका जैल का रंग हल्का नीला होता है तथा अधिक नमी सोख लेने के बाद यह गुलाबी हो जाती है | इस पर नजर रखने के लिए ब्रीदर में एक कांच लगा होता है जिससे सिलिका जैल दिखाई देती है | सिलिका जैल का रंग गुलाबी होने पर इसे बदल देना चाहिए अथवा धुप में सुखाकर वापस हल्का नीला रंग होने पर ब्रीदर में डालनी चाहिए 

Breather

13. एक्सप्लोजन वेंट / Explosion vent

मुख्य चित्र में बिंदु संख्या 1 में एक्सप्लोजन वेंट दर्शाया गया है |

ट्रांसफार्मर में अचानक फाल्ट आने पर मुख्य टैंक में विस्फोट होने की स्थिति में टैंक फटने की सम्भावना रहती है जिससे बचने के लिए एक्सप्लोजन वेंट लगाया जाता है | यह मुख्य टैंक के ऊपर एक पाइप की आकृति का भाग होता है | इसका उपरी सिरा जमीन की तरफ मुड़ा होता है | इसके नीचे के सिरे को मुख्य टैंक से जोड़ दिया जाता है तथा उपरी सिरे को एक डायफ्राम से बंद कर दिया जाता है

ट्रांसफार्मर में विस्फोट होने की स्थिति में एक्सप्लोजन वेंट का डायफ्राम फट जाता है जिससे गर्म गैसें तथा तेल तेजी से निकल जाता है व ट्रांसफार्मर का मुख्य टैंक फटने से बच जाता है |

14. बुशिंग / Bushing

मुख्य चित्र में बिंदु संख्या 15 में ट्रांसफार्मर बुशिंग दर्शाई गई हैं |

बुशिंग (Bushing), ट्रांसफार्मर के ऊपर अथवा बगल में लगा हुआ पोर्सलेन अथवा एबोनाईट का इंसुलेटर होता है जिसका उपयोग ट्रांसफार्मर वाइंडिंग के टर्मिनलों को बाहरी परिपथ से जोड़ने के लिए किया जाता है | इसके अन्दर एक ताम्बे अथवा पीतल की रोड लगी होती है जिसे अन्दर से वाइंडिंग से जोड़ दिया जाता है तथा बाहर से बाहरी परिपथ से जोड़ दिया जाता है |

Explosan vent and bushing

15. तेल निकास / Oil outlet

मुख्य चित्र में बिंदु संख्या 8 में तेल निकास दर्शाया गया हैं |

तेल निकास एक गेट वाल्व होता है इसका उपयोग ट्रांसफार्मर में से तेल निकालने के लिए किया जाता है |

16. डाटा प्लेट अथवा नाम प्लेट / Data plate or Name plate

ट्रांसफार्मर के टैंक अथवा बॉडी पर निर्माता द्वारा एक धातु की प्लेट जड़ दी जाती है जिसमे उस ट्रांसफार्मर से सम्बंधित निम्न जानकारी लिखी होती है
Sr. no.
Manufacturers name
Date of 
Manufacture
Warranty period
KVA Rating
Frequency
Input voltage
Output voltage
Input current capacity
Output current capacity
Conductor material- Copper or alumimnium
Transformer weight
Conductor weight
Oil weight
Connection diagram etc.

itiale.in

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