ट्रांसफार्मर के प्रकार | Types of transformers

वैधुतिक कार्य में प्रयोग किये जाने वाले ट्रांसफार्मर्स का वर्गीकरण विभिन्न प्रकार से किया जा सकता है :-

ट्रांसफार्मर के प्रकार

-क्रोड की संरचना के आधार पर ट्रांसफार्मर के प्रकार :-

  1. क्रोड प्रकार ट्रांसफार्मर (Core type transformer)
  2. शैल प्रकार ट्रांसफार्मर (Shell type transformer)
  3. बैरी प्रकार ट्रांसफार्मर (Berry type tranformer)
  4. स्पाइरल प्रकार ट्रांसफार्मर (Spiral type transformer)

ट्रांसफार्मर के प्रकार

-वोल्टता के आधार पर ट्रांसफार्मर के प्रकार :-

  1. स्टेप-अप ट्रांसफार्मर (Step-up transformer)
  2. स्टेप-डाउन ट्रांसफार्मर  (Step-down transformer)

ट्रांसफार्मर के प्रकार

-स्थान के आधार पर ट्रांसफार्मर के प्रकार :-

  1. इनडोर ट्रांसफार्मर (Indoor transformer)
  2. आउटडोर ट्रांसफार्मर (Outdoor transformer)

ट्रांसफार्मर के प्रकार

-फेज की संख्या के आधार पर ट्रांसफार्मर के प्रकार :-

  1. एक फेज ट्रांसफार्मर (Single phase transformer)
  2. तीन फेज ट्रांसफार्मर (Three phase transformer)
 

ट्रांसफार्मर के प्रकार

-आउटपुट क्षमता के आधार पर ट्रांसफार्मर के प्रकार :-

  1. ऑटो ट्रांसफार्मर (Auto transformer)
  2. इंस्ट्रूमेंट ट्रांसफार्मर  (a) करंट ट्रांसफार्मर (b) पोटेंशियल ट्रांसफार्मर / Instrument transformer (a) Current transformer (b) Potential transformer
  3. वितरण ट्रांसफार्मर (Distribution transformer)
  4. पॉवर ट्रांसफार्मर (Power transformer)
 

ट्रांसफार्मर के प्रकार

-क्रोड़ को ठंडा रखने के आधार पर ट्रांसफार्मर के प्रकार :-

  1. तेल द्वारा ठन्डे होने वाले ट्रांसफार्मर (Oil cooled transformer)
  2. प्राकृतिक रूप से ठन्डे होने वाले ट्रांसफार्मर (Naturally cooled transformer)
  3. जल द्वारा ठन्डे होने वाले ट्रांसफार्मर (Water cooled transformer)
  4. वायु दाब द्वारा ठन्डे होने वाले ट्रांसफार्मर (Forced air cooled transformer)
 
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ट्रांसफार्मर के प्रकार

क्रोड़ की संरचना के आधार पर ट्रांसफार्मर के प्रकार :-

ट्रांसफार्मर में प्राइमरी वाइंडिंग द्वारा स्थापित चुम्बकीय क्षेत्र के चुम्बकीय पथ को पूर्ण करने, चुम्बकीय फ्लक्स के लिए निम्न प्रतिष्टम्भ (Low reluctance) का पथ उपलब्ध कराने तथा उसे सघन रखने के लिए लोहे की क्रोड़ का प्रयोग किया जाता है | लोहे की क्रोड़ C, E, I, J, L, U आदि आकार की होती हैं | यदि क्रोड़ को ठोस लोहे का बना दिया जाये तो उसमे एडी धारा क्षति तथा हिस्टेरेसिस क्षति बहुत अधिक हो जाएगी |

अतः लैमिनेटेड सिलिकॉन स्टील की क्रोड़ प्रयोग की जाती है | ये सिलिकॉन स्टील की चादर को काटकर बनाई जाती हैं | इनकी मोटाई 0.35 mm से 0.5 mm तक रखी जाती है और इनके एक अथवा दोनों तरफ वार्निश की हुई होती है | सिलिकॉन स्टील की क्रोड़ बनाने के लिए लोहे में 3.8% से 4.5% तक सिलिकॉन धातु मिश्रित की जाती है | क्रोड़ का आकार, ट्रांसफार्मर की संरचना के अनुसार होता है | 

 
 
ट्रांसफार्मर के प्रकार | Types of transformers

क्रोड की संरचना के आधार पर ट्रांसफार्मर के प्रकार 4 होते हैं जो निम्न हैं :-

1. क्रोड़ प्रकार ट्रांसफार्मर / Core type transformer

इस प्रकार के ट्रांसफार्मर की क्रोड़ L आकार, U आकार अथवा I आकार की पटलनों से वर्गाकार, आयताकार अथवा अंडाकार आकार में बनी होती है | इस क्रोड़ की चित्रानुसार 2 भुजा होती हैं जिन पर प्राइमरी व सेकेंडरी वाइंडिंग लिपटी रहती हैं |

क्रोड़ प्रकार ट्रांसफार्मर की क्रोड़ का सरल आरेख निम्न चित्र में दिखाया गया है | इसमें चुम्बकीय फ्लक्स का केवल एक मार्ग होता है |

ट्रांसफार्मर के प्रकार | Types of transformers

चित्र में जो डॉटेड लाइन दिखाई गई हैं वह चुम्बकीय फ्लक्स मार्ग है | कम आउटपुट वाले छोटे ट्रांसफार्मरों में क्रोड़ का रूप आयताकार या वर्गाकार होता है और कुंडलियाँ (Coils) भी आयताकार या वर्गाकार बनाई जाती हैं | बड़े व अधिक आउटपुट वाले ट्रांसफार्मरों के क्रोड़ को स्टेप्ड (Stepped) क्रोड़ वाला बनाया जाता है | और इस कारण इनकी कुंडलियां गोल बनाई जा सकती हैं |

(निम्न चित्रों में स्टेप्ड कोर तथा साधारण कोर में अंतर दर्शाया गया है)

Stapped core and normal transformer
Stepped core and normal core ITIWALE

पट्लनों को जोड़ते समय यह ध्यान रखा जाता है कि चुम्बकीय मार्ग में वायु अन्तराल (Air gap) ना रहे, यदि वायु अन्तराल रह जाता है तो इस वायु अन्तराल में फ्लक्स का क्षय (Loss) हो जाता है जिसके कारण क्रोड़ में जरुरी फ्लक्स कम पड़ जाती है, इस कमी को पूरा करने के लिए बहुत अधिक एम्पीयर टर्नों की आवश्यकता पड़ती है जिससे अधिक तार की आवश्यकता पड़ती है |

क्रोड़ काफी मजबूती से रिवेट अथवा बोल्ट से कसी हुई होनी चाहिए | यदि ढीली रह जाए तो AC धारा के कारण क्रोड़ों में कभी आकर्षण तथा कभी विकर्षण होगा जिससे टकराहट के कारण शोर उत्पन्न होगा तथा क्रोड़ गर्म होंगी |

2. शैल प्रकार ट्रांसफार्मर / Shell type transformer

शैल प्रकार ट्रांसफार्मर में प्रयुक्त क्रोड़ चित्रानुसार E तथा I अथवा U तथा T प्रकार के होते हैं अर्थात एक ट्रांसफार्मर चित्रानुसार E व I आकार के पट्लनों को जोड़कर अथवा U व T आकार के पट्लनों को जोड़कर बनाया जा सकता है | छोटे ट्रांसफार्मर शैल प्रकार के होते है | इस प्रकार के ट्रांसफार्मरों में तीन भुजाएं होती हैं, एक आंतरिक अथवा केंद्रीय भुजा जिस पर वाइंडिंग लपेटी होती है तथा दो बाह्य भुजाएं जो चुम्बकीय मार्ग पूरा करती हैं | आंतरिक अथवा केंद्रीय भुजा का अनुप्रस्थ क्षेत्रफल बाहर की भुजाओं से लगभग दोगुना होता हैं |

Shell type transformer

Shell type transformer core

shell type transformer silicon spempings and core

ट्रांसफार्मर की प्राइमरी तथा सेकेंडरी वाइंडिंग उक्त चित्रानुसार क्रोड़ के मध्य वाले लिंब (Limb) पर लिपटी होती है | इसमें निम्न वोल्टता वाली वाइंडिंग को क्रोड़ के पास अथवा नीचे लपेटा जाता है तथा उसके ऊपर उच्च वोल्टता वाली वाइंडिंग को लपेटा जाता है | लगभग सभी एक फेज ट्रांसफार्मर शैल प्रकार के होते हैं |

निम्न चित्र में शैल प्रकार ट्रांसफार्मर की क्रोड़ का क्रॉस सेक्शन एरिया दिखाया गया है |

Cross section area of shell type transformer

शैल प्रकार ट्रांसफार्मर में चित्रानुसार दो चुम्बकीय मार्ग बनते हैं जिससे इस प्रकार के ट्रांसफार्मर, स्टेप-अप (कम वोल्टेज को अधिक करने) तथा स्टेप-डाउन (अधिक वोल्टेज को कम करने) दोनों प्रकार के होते हैं | दो चुम्बकीय पथ होने से इस ट्रांसफार्मर में फ्लक्स का क्षय (Leakage) भी बहुत कम होता है | अतः इसका वोल्टेज नियमन (Voltage regulation) क्रोड़ प्रकार ट्रांसफार्मर की तुलना में अधिक अर्थात ठीक होता है | ट्रांसफार्मर की कुंडलियां दोनों तरफ से क्रोड़ के बाहरी लिंब से घिरी होने के कारण यह ट्रांसफार्मर शैल प्रकार ट्रांसफार्मर कहलाता है | इस प्रकार के ट्रांसफार्मरों का भार क्रोड़ प्रकार ट्रांसफार्मर की तुलना में अधिक होता है |

क्रोड़ प्रकार तथा शैल प्रकार ट्रांसफार्मर में अंतर

क्रोड़ प्रकार ट्रांसफार्मर

core type transformer
  1. क्रोड़ प्रकार ट्रांसफार्मर में वाइंडिंग, क्रोड़ के बाहरी हिस्से पर होने के कारण आसानी से दिखाई देती है, जिससे रख-रखाव आसानी से हो जाता है |
  2. क्रोड़ प्रकार ट्रांसफार्मर में वाइंडिंग बाहर की तरफ होने से हवा से वाइंडिंग ठंडी रखने में मदद मिलती है |
  3. क्रोड़ प्रकार ट्रांसफार्मर में क्रोड़ की औसत लम्बाई अधिक होती है |
  4. क्रोड़ प्रकार ट्रांसफार्मर में फ्लक्स के बहने का केवल एक मार्ग होता है |
  5. क्रोड़ प्रकार ट्रांसफार्मर में क्रोड़ का क्रॉस सेक्शन क्षेत्रफल कम होता है |
  6.  क्रोड़ प्रकार ट्रांसफार्मर आम तौर पर हाई वोल्टेज में उपयुक्त होता है |

शैल प्रकार ट्रांसफार्मर

shell type transformer
  1. शैल प्रकार ट्रांसफार्मर में वाइंडिंग, क्रोड़ में आंतरिक हिस्से पर होने के कारण आसानी से दिखाई नहीं देती है जिससे रख-रखाव आसान नहीं होता है 
  2. शैल प्रकार  ट्रांसफार्मर में वाइंडिंग बीच के लिंब पर होने के कारण क्रोड़ ठंडा रहता है | इसमें क्रोड़ ठंडा होने से वाइंडिंग ठंडी होती है |
  3. शैल प्रकार ट्रांसफार्मर में क्रोड़ की औसत लम्बाई कम होती है |
  4. शैल प्रकार ट्रांसफार्मर में फ्लक्स के बहने के लिए दो मार्ग होते हैं |
  5. शैल प्रकार ट्रांसफार्मर में क्रोड़ का क्रॉस सेक्शन क्षेत्रफल ज्यादा होता है इसलिए कम टर्न लगते हैं |
  6. शैल प्रकार ट्रांसफार्मर आम तौर पर लो वोल्टेज में उपयुक्त होता है |

3. बेरी प्रकार ट्रांसफार्मर / Berry type transformer

इस ट्रांसफार्मर का नाम इसके खोजकर्ता के नाम पर रखा गया है | साधारणतया इस प्रकार के ट्रांसफार्मर का उपयोग कम किया जाता है क्योंकि इसकी वाइंडिंग करना एक कठिन कार्य है | ट्रांसफार्मर में क्रोड़ कई आयताकार फ्रेमों द्वारा बनी होती है | सभी फ्रेमों की एक-एक भुजा को पास में रखकर क्रोड़ की केंद्रीय भुजा बनाई जाती है और दूसरी भुजाएं वाइंडिंग को चारों और से ढक  लेती हैं | इस प्रकार कई चुम्बकीय मार्ग बन जाते हैं जिससे चुम्बकीय फ्लक्स का लीकेज न्यूनतम रहता है |

बेरी प्रकार के ट्रांसफार्मर को निम्न चित्र में दर्शाया गया हैं |

Berry type transformer

क्रोड़ में अनेक चुम्बकीय मार्ग होने के कारण वाइंडिंग की ऊष्मा का विकिरण होता रहता है जिससे वे अन्य प्रकार के ट्रांसफार्मर की अपेक्षा ठंडी रहती है | इस प्रकार के ट्रांसफार्मर कम शक्ति क्षमता वाले होते हैं व इनका प्रयोग ध्वनी यंत्रों, विधुत नियंत्रण, चिकित्सा उपकरणों, इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों तथा अन्य विशेष कार्यों के लिए किया जाता है |

4. स्पाइरल प्रकार ट्रांसफार्मर / Spiral type transformer

क्रोड़ की संरचना की द्रष्टि से यह एक नया अविष्कार है | इस प्रकार के ट्रांसफार्मर की क्रोड़ को बनाने के लिए एक लम्बे सिलिकॉन स्टील की रिबन का उपयोग किया जाता है जिसे निम्न चित्र में दर्शाया गया है |

Lamination of spiral type transformer

उक्त सिलिकॉन स्टील की रिबन को गोलाकार व दीर्घवृत्त रूप में निम्न चित्रानुसार वाइंड किया जाता है और फिर उसे विधुत रोधी (Insulated) कर उस पर ताम्र या एल्युमीनियम चालकों से वाइंडिंग की जाती है | इस प्रकार की संरचना के कारण इस ट्रांसफार्मर के क्रोड़ में फ्लक्स का क्षय कम होता है | इसमें ठंडी अवस्था की रोलिंग स्पात (Rolling steel) का उपयोग किया जाता है जिसमें सिलिकॉन की मात्रा अधिक होती है इस कारण इसमें फ्लक्स घनत्व अधिक होता है |

spiral type transformer
Spiral type transformer

सामान्यतः प्राथमिक कुंडलन का कुछ भाग एक भुजा पर तथा शेष भाग दूसरी भुजा पर और इसी प्रकार द्वितीयक कुंडलन का कुछ भाग एक भुजा पर तथा शेष भाग दूसरी भुजा पर लपेटा जाता है | ऐसा करने से क्षरण फ्लक्स ( Leakage flux) कम हो जाता है और कुंडलन के अधिक विधुत वाहक बल प्रेरित होता है | आमतौर पर निम्न वोल्टता कुंडलन क्रोड़  पर नीचे की तरफ और उच्च वोल्टता कुंडलन उसके ऊपर वाइंड की जाती है | उससे उच्च वोल्टता कुंडलन को पर्याप्त विधुत विरोधन मिल जाता है |

 

लाभ

स्पाइरल प्रकार ट्रांसफार्मर के निम्नलिखित लाभ हैं :-
  1.  क्रोड़ अधिक ठोस बनती है |
  2. इसका भार कम होता है |
  3. लोह हानियां कम होती हैं |
  4. निर्माण लागत कम आती है |

नोट – ट्रांसफार्मर में कुंडलन एक महत्वपूर्ण भाग होता है | इसमें दो विधुतरोधी / एनेमल (Enamel) ताम्र या एल्युमीनियम तार की प्राथमिक व द्वितीयक कुंडली (Coil) होती हैं, दोनों कुंडली तथा क्रोड़ आपस में विधुत-रोधित रहती हैं | हमें चित्रानुसार प्राथमिक कुंडलन का आधा भाग एक भुजा पर तथा शेष आधा भाग दूसरी भुजा पर और इसी प्रकार द्वितीय कुंडली का आधा भाग एक भुजा पर तथा शेष आधा भाग दूसरी भुजा पर लपेटना चाहिए | ऐसा करने से क्षरण फ्लक्स (Leakage flux) अधिक नहीं होती है व दोनों कुंडलियों में ज्यादा विधुत वाहक बल प्रेरित होता है | हमें इस प्रकार से कुंडलन नहीं करना चाहिए कि केवल एक भुजा पर प्राथमिक व दूसरी भुजा पर द्वितीयक कुंडलन लपेटी जाये |

हमें निम्न वोल्टता कुंडली (L.T. Coil), क्रोड़ पर“ पहले अर्थात नीचे और उच्च वोल्टता कुंडली उसके ऊपर अर्थात बाद में रखी जानी चाहिए | जिसका क्रॉस सेक्शन एरिया निम्न चित्र में दर्शाया गया है | उच्च वोल्टता कुंडली को ऊपर अर्थात क्रोड़ से दूर रखने से इसे पर्याप्त विधुत रोधन अथवा इंसुलेशन मिल जाता है | कुंडलियों को यांत्रिक रूप से भी क्रोड़ के साथ मजबूती से बांधना चाहिए क्योंकि उच्च वोल्टता वाले ट्रांसफार्मर में उच्च वोल्टता प्रतिबल उत्पन्न होता है, जिससे कुंडलन की वर्तों (Turns) पर दबाव पड़ता है इससे कुंडलन के वर्त टूटने का खतरा रहता है |

cross section area of spiral type transformer

ट्रांसफार्मर के प्रकार

वोल्टता के आधार पर ट्रांसफार्मर के प्रकार :-

हम यह जानते हैं कि ट्रांसफार्मर का उपयोग वोल्टेज को अधिक या कम करने (स्टेप-अप तथा स्टेप-डाउन) के लिए किया जाता है | वोल्टता के आधार पर ट्रांसफार्मर के प्रकार 2 होते हैं जो निम्न हैं :- 

1. स्टेप-अप ट्रांसफार्मर -

वह ट्रांसफार्मर जो इनपुट में दी गई वोल्टेज को आउटपुट में बढ़ा देता है अर्थात आउटपुट में अधिक वोल्टेज प्रदान करता है, स्टेप-अप ट्रांसफार्मर कहलाता है | स्टेप-अप ट्रांसफार्मर की प्राइमरी वाइंडिंग में तुलनात्मक रूप से सेकेंडरी वाइंडिंग से मोटे तार का उपयोग किया जाता है तथा कम टर्न दिए जाते हैं तथा सेकेंडरी वाइंडिंग तुलनात्मक रूप से पतले तार का उपयोग किया जाता है तथा अधिक टर्न दिए जाते हैं | अर्थात अधिक टर्न से अधिक वोल्टेज |

इसका उपयोग विधुत उत्पादन केन्द्रों पर पैदा की गई वोल्टेज को उच्च वोल्टेज में परिवर्तित करने के लिए किया जाता है क्योंकि विधुत उत्पादन केन्द्रों पर आल्टरनेटर द्वारा पैदा की गई वोल्टेज सामान्यतः 11000 वोल्ट होती है | इस वोल्टेज को लम्बी दूरी पर पारेषण करने हेतु उच्च वोल्टेज में परिवर्तित किया जाता है जिसके लिए स्टेप-अप ट्रांसफार्मर का उपयोग किया जाता है |

2. स्टेप-डाउन ट्रांसफार्मर -

वह ट्रांसफार्मर जो इनपुट में दी गई वोल्टेज को आउटपुट में कम कर देता है अर्थात आउटपुट में निम्न वोल्टेज प्रदान करता है, स्टेप-डाउन ट्रांसफार्मर कहलाता है | स्टेप-डाउन ट्रांसफार्मर की प्राइमरी वाइंडिंग में तुलनात्मक रूप से पतले तार का उपयोग किया जाता है तथा अधिक टर्न दिए जाते हैं तथा सेकेंडरी वाइंडिंग में तुलनात्मक रूप से मोटे तार का उपयोक किया जाता है तथा कम टर्न दिए जाते हैं | 

इसका उपयोग विधुत ग्रिड उप केन्द्रों (GSS) पर किया जाता है क्योंकि शहरी अथवा ग्रामीण क्षेत्रों में डिस्ट्रीब्यूशन वोल्टेज का मान सामान्यतः 11000V होता है जिसे घरों, दुकानों अथवा कारखानों में उपयोग लेने हेतु 240V अथवा 440V में परिवर्तित करना आवश्यक होता है अर्थात 11000V को 220V अथवा 440V में परिवर्तित करने के लिए स्टेप-डाउन ट्रांसफार्मर का उपयोग किया जाता है | ये ट्रांसफार्मर प्राय: तीन फेज डेल्टा-स्टार प्रकार तथा एक फेज  के होते हैं |

step up vs step down transformer

ट्रांसफार्मर की विधुत वाहक बल समीकरण :-

Transformer ratio

यहां :-
E1 = ट्रांसफार्मर की प्राइमरी वोल्टेज 
E2 = ट्रांसफार्मर की सेकेंडरी वोल्टेज 
N1 = प्राइमरी वाइंडिंग में टर्नों की संख्या 
N2 = सेकेंडरी वाइंडिंग में टर्नों की संख्या 

ट्रांसफार्मर के प्रकार

स्थान के आधार पर ट्रांसफार्मर के प्रकार :-

स्थान के आधार पर ट्रांसफार्मर के प्रकार 2 होते हैं जो निम्न हैं :-
1. इनडोर ट्रांसफार्मर / Indoor transformer
2. आउटडोर ट्रांसफार्मर / Outdoor transformer

1. इनडोर ट्रांसफार्मर / Indoor transformer

इनडोर ट्रांसफार्मर प्रायः वे ट्रांसफार्मर होते हैं जिन्हें किसी भवन में अथवा छत के नीचे रखा जाता है | ये वे छोटे ट्रांसफार्मर होते हैं जिन्हें स्थापना करते समय अथवा बदलते समय आसानी से अन्दर-बाहर किया जा सकता है | करंट ट्रांसफार्मर (Current transformer) तथा पोटेंशियल ट्रांसफार्मर (Potential transformer) भी इनडोर ट्रांसफार्मर होते हैं | करंट ट्रांसफार्मर तथा पोटेंशियल ट्रांसफार्मर को आगे इसी पोस्ट में हम विस्तार से समझायेंगे |

2. आउटडोर ट्रांसफार्मर / Outdoor transformer

आउटडोर ट्रांसफार्मर प्रायः वे ट्रांसफार्मर होते हैं जिन्हें खुली जगह में रखना आवश्यक है अथवा खुली जगह में रखा जाता हैं | ये वे बड़े ट्रांसफार्मर होते हैं जिन्हें स्थापना करते समय अथवा बदलते समय किसी भवन के अन्दर लाना तथा ले जाना बहुत मुश्किल कार्य होता है अतः इन्हें खुली जगह में रखना आवश्यक होता है | शक्ति ट्रांसफार्मर (Power transformer) तथा वितरण ट्रांसफार्मर ( Distribution transformer) आमतौर पर  आउटडोर ट्रांसफार्मर होते हैं | शक्ति ट्रांसफार्मर तथा वितरण ट्रांसफार्मर को आगे इस पोस्ट में हम विस्तार से समझेंगे |

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ट्रांसफार्मर के प्रकार

फेज की संख्या के आधार पर ट्रांसफार्मर के प्रकार :-

फेज की संख्या के आधार पर ट्रांसफार्मर के प्रकार 2 होते हैं जो निम्न हैं :-

 

1. एक फेज / एक कला ट्रांसफार्मर / Single phase transformer

एक फेज विधुत सप्लाई पर कार्य करने वाले ट्रांसफार्मर, एक फेज ट्रांसफार्मर अथवा एक कला ट्रांसफार्मर कहलाते हैं | इनमे एक प्राइमरी वाइंडिंग तथा एक सेकेंडरी वाइंडिंग होती है | ये ट्रांसफार्मर आम तौर पर 250 वोल्ट अथवा इससे नीचे के वोल्टेज पर कार्य करने वाले होते हैं और क्रोड प्रकार के तथा शैल प्रकार के होते हैं | इनका उपयोग प्रायः घरेलू उपकरणों में किया जाता है, जैसे- वोल्टेज स्टेबलाइजर, टीवी, रेडियो, मोबाइल चार्जर, इन्वर्टर आदि | ग्रामीण क्षेत्रों में विधुत डिस्ट्रीब्यूशन के लिए भी इनका उपयोग किया जाता है |

2. तीन फेज / तीन कला ट्रांसफार्मर / Three phase transformer

तीन फेज विधुत सप्लाई पर कार्य करने वाले ट्रांसफार्मर, थ्री फेज ट्रांसफार्मर अथवा तीन कला ट्रांसफार्मर कहलाते हैं | इनमे तीन प्राइमरी और तीन सेकेंडरी वाइंडिंग होती हैं तथा ये आम तौर पर शैल प्रकार के होते हैं | इनका उपयोग विधुत उत्पादन केन्द्रों पर उत्पन्न की गई 11 KV विधुत सप्लाई को 66KV, 110KV, 132KV, 220KV, 440KV तक स्टेप-अप करके पारेषण करने हेतु किया जाता है | इसके अतिरिक्त ग्रिड सब स्टेशनों तथा डिस्ट्रीब्यूशन सब स्टेशनों पर प्राप्त विधुत सप्लाई की वोल्टेज कम करके वितरण करने के लिए उपयोग किया जाता है |

उक्त दोनों ट्रांसफार्मरों की आंतरिक संरचना निम्न चित्रों में दर्शाई गई है :-

3 Phase vs 1 phase transformer

ट्रांसफार्मर के प्रकार

आउटपुट क्षमता के आधार पर ट्रांसफार्मर के प्रकार :-

आउटपुट क्षमता के आधार पर ट्रांसफार्मर के प्रकार 4 होते हैं जो निम्न हैं :-

1. ऑटो ट्रांसफार्मर / स्वः परिणामित्र / Auto transformer

जिस ट्रांसफार्मर में केवल एक वाइंडिंग होती है, ऑटो ट्रांसफार्मर कहलाता है | एक ही वाइंडिंग प्राइमरी वाइंडिंग तथा सेकेंडरी वाइंडिंग दोनों का कार्य करती है | स्वःपरिणामित्र का कार्य सिद्धांत दो वाइंडिंग वाले साधारण परिणामित्र जैसा ही है परन्तु इसमें प्राथमिक तथा द्वितीयक कुंडलन विधुतीय द्रष्टि से तथा चुम्बकीय द्रष्टि से आपस में जुडी रहती है इसलिए हम मान सकते हैं कि दोनों वाइंडिंग एक ही होती हैं | जबकि साधारण ट्रांसफार्मर में प्राथमिक व द्वितीयक कुंडलन विधुतीय द्रष्टि से अलग परन्तु चुम्बकीय द्रष्टि से जुडी रहती हैं |

नोट- विधुतीय द्रष्टि से जुड़ा होना अर्थात दोनों वाइंडिंग के तारों का आपस में जुड़ा हुआ होना |
चुम्बकीय द्रष्टि से जुडी होना अर्थात एक वाइंडिंग द्वारा पैदा चुम्बकीय फ्लक्स दूसरी वाइंडिंग में से गुजरती हैं |

निम्न चित्रानुसार यदि पूरी वाइंडिंग को प्राइमरी बना दिया जाये तथा उसी वाइंडिंग के कुछ भाग को सेकेंडरी वाइंडिंग बना दिया जाये तो यह “स्टेप-डाउन ट्रांसफार्मर” बन जाता है | इसी प्रकार, यदि वाइंडिंग के कुछ भाग को प्राइमरी वाइंडिंग बना दिया जाये तथा उसी पूरी वाइंडिंग को सेकेंडरी बना दिया जाये तो यह “स्टेप-अप ट्रांसफार्मर” बन जाता है |

Auto transformer diagram

ऑटो ट्रांसफार्मर, स्व-प्रेरण (Self induction) के सिद्धांत पर कार्य करता है | इसका ट्रांस्फोर्मेशन रेशो का वही सूत्र रहता है जो सामान्य ट्रांसफार्मर का होता है | अर्थात :-

Transformer ratio

E1 = ट्रांसफार्मर की प्राइमरी वोल्टेज
E2 = ट्रांसफार्मर की सेकेंडरी वोल्टेज 
N1 = प्राइमरी वाइंडिंग में टर्नों की संख्या 
N2 = सेकेंडरी वाइंडिंग में टर्नों कि संख्या 

ऑटो ट्रांसफार्मर के उपयोग

  •  इंडक्शन मोटर के गति नियंत्रण में |
  • वोल्टेज स्टेबलाइजर में |
  • बूस्टर में |
  • इलेक्ट्रिकल तथा इलेक्ट्रॉनिक प्रयोगशालाओं में |

ऑटो ट्रांसफार्मर के लाभ तथा हानियां

लाभ

  1. ऑटो ट्रांसफार्मर को स्टार्टर के रूप में तीन फेज प्रेरण मोटर को चलाने में काम में लिया जा सकता है | इससे ताम्बे की बचत होती है |
  2. इसको विधुत लाइन के श्रेणी में जोड़कर बूस्टर की तरह काम में लेकर लाइन की वोल्टेज को बढाया जा सकता है |
  3. इसका वोल्टेज रेगुलेशन भी सामान्य ट्रांसफार्मर की अपेक्षा अधिक होता है (निम्न वोल्टेज परिवर्तनों पर)
  4. एक ही वाइंडिंग होने के कारण यह सामान्य ट्रांसफार्मर की अपेक्षा आकार में छोटा होता है जिससे ताम्बे की बचत होती है |
  5. एक ही वाइंडिंग होने के कारण लोह तथा ताम्र क्षति कम होती है |
  6. विधुत शक्ति नियत रहती है |
  7. सामान्य ट्रांसफार्मर की अपेक्षा कम लागत वाला होता है |

हानियां

  1. ऑटो ट्रांसफार्मर की सेकेंडरी वाइंडिंग में बहुत कम वोल्टेज होने पर भी इस पर जुड़े हुए उपकरणों की मरम्मत करते समय कारीगर को विधुत झटका लग सकता है क्योंकि इसकी सेकेंडरी तथा प्राइमरी एक ही होती है |
  2. दोनों वाइंडिंग जुडी होने के कारण इसमें एक अच्छी इंसुलेशन की आवश्यकता होती है |
  3. ऑटो ट्रांसफार्मर में न्यूट्रल बिंदु (Neutral point) नहीं होता है क्योंकि इसकी वाइंडिंग विधुतीय रूप तथा चुम्बकीय रूप दोनों प्रकार से जुडी होती है |
  4. इसका उपयोग केवल लो-वोल्टेज पर ही किया जाता है |

वैरीएक / Variac

वैरीएक भी एक प्रकार का ऑटो ट्रांसफार्मर ही होता है | यदि ऑटो ट्रांसफार्मर में से निम्न चित्रानुसार कुछ टैपिंग निकाल दी जायें तो उससे प्राप्त AC सप्लाई में हम कई वोल्टेज निकाल सकते हैं | ऐसा उपकरण वैरीएक कहलाता है |

वैरीएक का उपयोग विभिन्न वोल्टता की AC सप्लाई प्रदान करने वाले उपकरण के रूप में किया जाता है | यदि AC वोल्टता के बढ़ने/घटने की न्यूनतम सीमा 1 वोल्ट तक रखनी हो तो टैपिंग स्विच (Tapping switch) के श्रेणी क्रम में एक वायर वाउंड प्रकार का पोटेन्शियोमीटर (Potentio meter) भी संयोजित कर दिया जाता है | पोटेन्शियोमीटर का उपयोग समान्यतः 5 से 10 अम्पीयर की दर पर विधुत धारा प्रदान करने वाले वैरीएक में ही किया जा सकता है | साधारण ट्रांसफार्मर के समान ही वैरीएक का उपयोग DC सप्लाई में नहीं किया जा सकता | DC सप्लाई को कम करने के लिए रिहोस्टेट (Rheostat) का उपयोग किया जाता है |

Variac auto transformer
variac

2. इंस्ट्रूमेंट ट्रांसफार्मर / Instrument transformer

उच्च मान के वोल्टेज तथा विधुत धारा मापक यंत्रों में प्रयोग किया जाने वाला ट्रांसफार्मर, इंस्ट्रूमेंट ट्रांसफार्मर कहलाता है | उच्च प्रत्यावर्ती वोल्टेज एवं धाराओं के मापन के लिए सीधे ही परिपथ में वोल्ट मीटर अथवा एम्मीटर लगाकर उच्च वोल्टेज अथवा धारा को मापना संभव नहीं है | ऐसा करने पर उपकरण जल जायेगा व पैनल बोर्ड पर कार्य करने वाले व्यक्ति के लिए भी घातक हो सकता है |

इंस्ट्रूमेंट ट्रांसफार्मर का कार्य होता है परिपथ की प्रत्यावर्ती धारा अथवा वोल्टता को निर्धारित अनुपात में कम करके मापन उपकरण ( वोल्टमीटर, एम्मीटर, वाट मीटर, एनर्जी मीटर अथवा पॉवर फैक्टर मीटर आदि) को देना जिससे परिपथ की धारा, वोल्टता, शक्ति, ऊर्जा अथवा पॉवर फैक्टर को मापा जा सके | इंस्ट्रूमेंट ट्रांसफार्मर में भी साधारण ट्रांसफार्मर की तरह सिलिकॉन स्टील से निर्मित क्रोड का उपयोग किया जाता है | 7000 वोल्ट से अधिक वोल्टेज पर कार्य करने वाले इंस्ट्रूमेंट ट्रांसफार्मर में ट्रांसफार्मर ऑइल का उपयोग किया जाता है |

अतः प्रत्यावर्ती धारा परिपथ (AC Circuit) के मापन के लिए इंस्ट्रूमेंट ट्रांसफार्मर का प्रयोग किया जाता है | यह मुख्यतः 2 प्रकार का होता है :-

1. करंट ट्रांसफार्मर (CT)
2. पोटेंशियल ट्रांसफार्मर (PT)

Instrument transformer CT PT

करंट ट्रांसफार्मर ( Current transformer) / CT

करंट ट्रांसफार्मर (CT) का उपयोग उच्च प्रत्यावर्ती धारा को मापने के लिए किया जाता है | यह एक “करंट स्टेप-डाउन” अर्थात “वोल्टेज स्टेप-अप” प्रकार का छोटा ट्रांसफार्मर होता है | निम्न चित्रानुसार इसकी प्राइमरी में एक-दो लपेट अथवा एक सीधा व मोटा तार होता है | जबकि सेकेंडरी वाइंडिंग पलते तार की तथा पूर्व निर्धारित अनेक लपेट वाली बनाई जाती है | 

अधिकतर करंट ट्रांसफार्मर की क्रोड पर केवल सेकेंडरी वाइंडिंग ही की जाती है तथा इसके बीच में से लोड वाले तार को सीधा ही निकाल दिया जाता है जो प्राइमरी वाइंडिंग का कार्य करता है ( निम्न चित्र में दर्शाए अनुसार ) | इस प्रकार परिपथ की 200-300 A विधुत धारा को केवल 2-3 A विधुत धारा में परिवर्तित किया जाता है और उसे करंट ट्रांसफार्मर की सेकेंडरी वाइंडिंग से संयोजित 0-5 एम्पियर के अमीटर के द्वारा माप लिया जाता है | अमीटर का स्केल 0-300 A मापसीमा के लिए अनुपातिक आधार पर अंकित कर दिया जाता है |

करंट ट्रांसफार्मर की सेकेंडरी वाइंडिंग को अर्थ से कनेक्ट रखा जाना चाहिए जिससे इस पर कार्य करते समय ऑपरेटर को विधुत झटका ना लगे | 

CT connection

उदहारण- यदि हमें 1000A की प्रत्यावर्ती विधुत धारा 10 A के अमीटर से मापनी हो तो इसके लिए हमें 100:1  के अनुपात वाला करंट ट्रांसफार्मर (CT) तथा 10A के अमीटर (जिसके स्केल पर 10A के लिए 1000 A दर्शाया गया हो) का उपयोग करना होगा | उक्त करंट ट्रांसफार्मर की प्राथमिक वाइंडिंग में एक लपेट अथवा परिपथ के तार को सीधे ही ट्रांसफार्मर की कोर के अन्दर से निकालना होता है तथा द्वितीय वाइंडिंग में 100 लपेट होती हैं | द्वितीय वाइंडिंग से सीधे ही 10A के करंट ट्रांसफार्मर को जोड़ दिया जाता हैं | अब परिपथ में 1000 A की विधुत धारा बहने पर करंट ट्रांसफार्मर की सेकेंडरी वाइंडिंग में 10 A करंट बहेगा, इस 10 A करंट को एम्मीटर 1000 A दर्शायेगा |

पोटेंशियल ट्रांसफार्मर ( Potential transformer) PT

पोटेंशियल ट्रांसफार्मर (PT) का उपयोग उच्च प्रत्यावर्ती वोल्टता को मापने के लिए किया जाता है | यह एक वोल्टेज स्टेप-डाउन प्रकार का छोटा ट्रांसफार्मर होता है जो उच्च वोल्टेज को निम्न वोल्टेज में परिवर्तित कर देता है | इसकी प्राइमरी वाइंडिंग पतले तार की तथा अनेक लपेट वाली बनाई जाती है जबकि सेकेंडरी वाइंडिंग मोटे तार की व कम लपेट वाली बनाई जाती है |

इस प्रकार प्राइमरी परिपथ के सामान्यतः 11000-33000 वोल्ट को केवल 50-100 वोल्ट स्टेप डाउन किया जाता है और उसे सेकेंडरी से संयोजित 0-100 वोल्ट मान वाले वोल्टमीटर के द्वारा माप लिया जाता है | इस वोल्टमीटर का स्केल 0-35000 वोल्ट मापसीमा के लिए अनुपातिक आधार पर अंकित कर दिया जाता है | पोटेंशियल ट्रांसफार्मर की सेकेंडरी वाइंडिंग के एक टर्मिनल को अर्थ से कनेक्ट रखा जाना चाहिये जिससे इस पर कार्य करते समय ऑपरेटर को उच्च वोल्टेज का विधुत झटका ना लगे | 

PT connection

3. वितरण ट्रांसफार्मर / Distribution transformer

वितरण ट्रांसफार्मर की क्षमता समान्यतः  5KVA से 2000 KVA तक होती है और इसकी प्राइमरी वाइंडिंग डेल्टा संयोजन में तथा सेकेंडरी वाइंडिंग स्टार संयोजन में संयोजित होती है | डिस्ट्रीब्यूशन ट्रांसफार्मर की सेकेंडरी वाइंडिंग को स्टार संयोजन में संयोजित करने का मुख्य लाभ यह है कि इससे 3 फेज सप्लाई के साथ-साथ 1 फेज सप्लाई भी प्राप्त की जा सकती है क्योंकि स्टार संयोजन के मध्य बिंदु को अर्थ से जोड़ दिया जाता है |

डिस्ट्रीब्यूशन ट्रांसफार्मर की संरचना, पॉवर ट्रांसफार्मर के लगभग समान होती है | शहरों तथा कस्बों में रास्तों के पास लगे घनाभ के आकार के ट्रांसफार्मर जिनमे से घरों, दुकानों अथवा संस्थानों में विधुत सप्लाई दी जाती है वे वितरण ट्रांसफार्मर ही होते हैं | इस ट्रांसफार्मर से उपभोक्ता को अंतिम रूप से विधुत सप्लाई दी जाती है | गांवों में  जहां 1 फेज विधुत सप्लाई की आपूर्ति होती है वहां ड्रम के आकार के ट्रांसफार्मर लगे होते है वो भी वितरण ट्रांसफार्मर ही होते हैं |

वितरण ट्रांसफार्मर में विधुत सप्लाई, पॉवर ट्रांसफार्मर से दी जाती है | आमतौर पर वितरण ट्रांसफार्मर की प्राथमिक कुंडलन हमेशा लाइन से जुडी रहती है जिससे इनमे लोह हानियां अधिक होती हैं इसलिए इनकी क्रोड़, क्रोड़ प्रकार की बनाई जाती है | | इनकी दक्षता पूर्ण दिवस दक्षता से ज्ञात की जाती है | वितरण ट्रांसफार्मर का चित्र नीचे दिखाया गया है :-

3 phase transformer 2

3 Phase distribution transformer

1 Phase distributuion transformer

1 Phase distribution transformer

4. पॉवर ट्रांसफार्मर / Power transformer

समान्यतः जिस ट्रांसफार्मर से वितरण ट्रांसफार्मर को विधुत सप्लाई दी जाती है वह पॉवर ट्रांसफार्मर होता है | पॉवर ट्रांसफार्मर की क्षमता 2000 KVA से 20000 KVA तक होती है | इसका आकार डिस्ट्रीब्यूशन ट्रांसफार्मर से बड़ा होता है | इसकी प्राइमरी वाइंडिंग स्टार-संयोजन में तथा सेकेंडरी वाइंडिंग डेल्टा-संयोजन में संयोजित होती है |

ये ट्रांसफार्मर प्रसारण लाइन के वोल्टेज को घटाकर वितरण ट्रांसफार्मर को विधुत सप्लाई देने के काम में लिए जाते हैं | ग्रिड सब स्टेशनों (GSS), सब स्टेशनों तथा उधोगों में विधुत स्टेशनों पर इनका उपयोग किया जाता है | पूर्ण लोड पर इसकी दक्षता उच्च होती है | शक्ति ट्रांसफार्मर हमेशा भार से जुड़े रहते है इसलिए इनमे ताम्र क्षति अधिक होती है इसलिए इनकी क्रोड़ शैल प्रकार की बनाई जाती है | पॉवर ट्रांसफार्मर का चित्र नीचे दर्शाया गया है :-

Power transformer

Power Transformer

वितरण ट्रांसफार्मर तथा पॉवर ट्रांसफार्मर में अंतर
  1. वितरण ट्रांसफार्मर की क्षमता 5 KVA से 2000 KVA तक होती है तथा पॉवर ट्रांसफार्मर की क्षमता 2000 KVA से 20000 KVA तक होती है |
  2. वितरण ट्रांसफार्मर स्टेप-डाउन प्रकार के होते हैं तथा पॉवर ट्रांसफार्मर स्टेप-डाउन व स्टेप-अप, दोनों प्रकार के होते हैं |
  3. वितरण ट्रांसफार्मर का उपयोग उपभोक्ताओं को विधुत के वितरण के लिए किया जाता है तथा पॉवर ट्रांसफार्मर का उपयोग विधुत के प्रसारण में किया जाता है |
  4. वितरण ट्रांसफार्मर तुलनात्मक रूप से छोटा होता है तथा पॉवर ट्रांसफार्मर बड़ा होता है |
  5. वितरण ट्रांसफार्मर आमतौर पर गांव अथवा शहरों में खुले में लगे होते है तथा पॉवर ट्रांसफार्मर बिजली घरों तथा बड़ी फक्ट्रियों में लगाये जाते हैं |
  6. वितरण ट्रांसफार्मर से विधुत सप्लाई सीधे उपभोक्ता को दी जाती है जबकि पॉवर ट्रांसफार्मर का उपयोग विधुत सप्लाई को एक जगह से दूसरी जगह पहुँचाने में किया जाता है |
  7. वितरण ट्रांसफार्मर का लोड कम-ज्यादा होता रहता है तथा पॉवर ट्रांसफार्मर के लोड में बहुत कम उतार-चढाव होता है |
  8.  वितरण ट्रांसफार्मर में वोल्टेज में उतार-चढाव करने के लिए विकल्प नहीं होता जबकि पॉवर ट्रांसफार्मर में वोल्टेज उतार-चढाव के लिए टैपिंग-स्विच का विकल्प होता है |
  9. वितरण ट्रांसफार्मर में फ्लक्स घनत्व कम होता है तथा पॉवर ट्रांसफार्मर में तुलनात्मक रूप से फ्लक्स घनत्व अधिक होता है |
  10. वितरण ट्रांसफार्मर की प्राथमिक वाइंडिंग डेल्टा संयोजित होती है तथा पॉवर ट्रांसफार्मर की प्राथमिक वाइंडिंग स्टार संयोजित होती है |
  11. वितरण ट्रांसफार्मर की द्वितीयक वाइंडिंग स्टार संयोजित होती है तथा पॉवर ट्रांसफार्मर की द्वितीयक वाइंडिंग डेल्टा संयोजित होती है |
  12. वितरण ट्रांसफार्मर 1 फेज व 3 फेज दोनों प्रकार के होते है तथा पॉवर ट्रांसफार्मर केवल 3 फेज के ही होते हैं |

ट्रांसफार्मर के प्रकार

क्रोड़ को ठंडा रखने के आधार पर ट्रांसफार्मर के प्रकार :-

घूमने वाली मशीनों की शाफ़्ट पर निर्माण के समय पंखे लगा दिए जाते है जिनसे इनकी वाइंडिंग ठंडी होती रहती है लेकिन ट्रांसफार्मर में ऐसा नहीं होता, ट्रांसफार्मर में ताम्र तथा लोह हानियों से वाइंडिंग गर्म हो जाती है तत्पश्चात क्रोड़ भी गर्म हो जाती है | अधिक गर्मी से वाइंडिंग का अचालक आवरण ख़राब हो जाता है जिससे वाइंडिंग शोर्ट-सर्किट हो जाती है | क्रोड़ को ठंडा रखने के आधार पर ट्रांसफार्मर के प्रकार 4 होते हैं जो निम्न हैं :-
 
  1. तेल द्वारा ठन्डे होने वाले ट्रांसफार्मर (Oil cooled transformer)
  2. प्राकृतिक रूप से ठन्डे होने वाले ट्रांसफार्मर (Naturally cooled transformer)
  3. जल द्वारा ठन्डे होने वाले ट्रांसफार्मर (Water cooled transformer)
  4. वायु दाब द्वारा ठन्डे होने वाले ट्रांसफार्मर (Forced air cooled transformer)

1. तेल द्वारा ठन्डे होने वाले ट्रांसफार्मर / Oil cooled transformer

तेल द्वारा ट्रांसफार्मर को दो प्रकार से ठंडा किया जा सकता है |
A. प्राकृतिक रूप से तेल द्वारा ठंडा किये जाने वाले ट्रांसफार्मर 
B. वायु दबाव से ठंडा होने वाले तेल से भरे ट्रांसफार्मर 

A. प्राकृतिक रूप से तेल द्वारा ठंडा किये जाने वाले ट्रांसफार्मर 

इस प्रकार के ट्रांसफार्मर में एक टैंक होता है, जिसमें ट्रांसफॉर्मर ऑयल भरा होता है। ट्रांसफार्मर की वाइंडिंग व कोर तेल में डूबी रहती हैं। तेल, वाइण्डिग्स को ठण्डा रखने के साथ-साथ एक अचालक आवरण का कार्य भी करता है ।

इन ट्रांसफार्मरों में टैंक की दीवारों के साथ लोहे के पाइप जोड़ दिए जाते हैं जिससे तेल की ऊष्मा वातावरण में आसानी से फ़ैल सके | इन पाइपों को रेडियेटर का रूप देकर ऊष्मा को अधिक दक्षता से वातावरण में फैलाया जा सकता है | 

टैंक का ऑयल गर्म होकर ऊपर उठता रहता है तथा पाइपों/रेडियेटर का तेल हवा से ठंडा होकर नीचे बैठता रहता है | टैंक का तेल पाईप/रेडियेटर के ऊपरी हिस्से से प्रवेश कर वापस नीचे वाले हिस्से से टैंक में प्रवेश कर जाता है | इस प्रकार ट्रांसफार्मर तेल, टैंक से रेडियेटर तथा रेडियेटर से टैंक में स्वतः ही चक्कर लगाता रहता है जिससे तेल की ऊष्मा वातावरण में फैलती रहती है |

प्राकृतिक रूप से तेल द्वारा शीतलन प्रणाली निम्न चित्र में दर्शाई गई है :-

Naturally oil cooled transformer

Naturally cooled, oil filled transformer

B. वायु दबाव से ठंडा होने वाले तेल से भरे ट्रांसफार्मर / Force air cooled, oil filled transformer

इस विधि में ट्रांसफार्मर तेल को रेडियेटर में से तेजी से घुमाने के लिए एक पम्प का इस्तेमाल किया जाता है जिससे तेल तेजी से रेडियेटर व टैंक के बीच घूमता रहता है तथा एक तेज हवा फैंकने वाले पंखे से इसके रेडियेटर ठन्डे होते रहते हैं | जबकि प्राकृतिक रूप से तेल द्वारा ठंडा किये जाने वाले ट्रांसफार्मरों में तेल स्वतः ही घूमता रहता है | इस प्रकार का शीतलन 500 KVA से अधिक क्षमता वाले ट्रांसफार्मरों में किया जाता है |

Forced air cooled, oil filled transformer

Force air cooled, oil filled transformer                                                                  

2. प्राकृतिक रूप से ठन्डे होने वाले ट्रांसफार्मर / Naturally cooled transformer

इस विधि को शुष्क विधि भी कहा जाता है | कुछ परिस्थितियों में 15 KVA तक के ट्रांसफार्मरों में इस विधि का प्रयोग किया जाता है | इस प्रकार के ट्रांसफार्मरों में क्रोड़ का क्षेत्रफल अधिक रखा जाता है जिससे ये वाइंडिंग से ऊष्मा को अवशोषित कर हवा में विसरित कर सके | इसके आलावा इस ट्रांसफार्मर की क्रोड़ में हवा निकलने के लिए मार्ग/छेद (Ducts) भी छोड़ दिए जाते हैं | इस प्रकार बिना किसी अतिरिक्त शीतलन प्रणाली के इस प्रकार के ट्रांसफार्मर ठन्डे होते रहते हैं |

Naturally cooled transformer

Naturally coole dtransformer

3. जल द्वारा ठन्डे होने वाले ट्रांसफार्मर / Water cooled transformer

इस प्रकार के ट्रांसफार्मरों में साधारण प्राकृतिक रूप से ठन्डे होने वाले तेल से भरे ट्रांसफार्मर की तरह ही तेल भरा रहता है लेकिन इनमे टैंक के ऊपरी हिस्से में से एक स्प्रिंग की आकृति का लोह पाइप गुजारा जाता है जिसके दोनों सिरे ट्रांसफार्मर टैंक से बाहर निकले रहते हैं यह पाइप टैंक के अन्दर पूरी तरह से तेल में डूबा रहता है | पाइप को ऊपरी हिस्से में से इसलिए गुजारा जाता है क्योंकि तेल गर्म होकर ऊपर उठता रहता है इसलिए ऊपरी हिस्से में तेल अधिक गर्म रहता है |

टैंक से बाहर निकले पाइप के एक सिरे में से पम्प द्वारा ठंडा पानी प्रवेश कराया जाता है, यह पानी तेल की गर्मी को अवशोषित करता हुआ दूसरे सिरे से बाहर निकल जाता है इसी प्रकार यह पानी टैंक के अन्दर पाइप में चक्कर लगाता रहता है | इस पाइप में एक रेडियेटर लगाकर पानी को ठंडा किया जाता है |

आम तौर पर 500 KVA व इससे अधिक क्षमता के ट्रांसफार्मरों में यह विधि प्रयोग की जाती है | इस प्रकार के ट्रांसफार्मर का नुकसान यह है कि पाइप लीक होने की स्थिति में ट्रांसफार्मर के टैंक में पानी जाने की सम्भावना रहती है जिससे वाइंडिंग का इंसुलेशन ख़राब होकर ट्रांसफार्मर जल सकता है |
सावधानी- पाइप में पानी का प्रेशर टैंक में तेल के प्रेशर से कम रहना चाहिए जिससे पाइप लीक होने की स्थिति में तेल में पानी ना जाए |

Water cooled transformer

Water cooled transformer

4. वायु दाब द्वारा ठन्डे होने वाले ट्रांसफार्मर / Forced air cooled transformer

इसे वायु ब्लास्ट विधि भी कहा जाता है | इस विधि में ट्रांसफार्मर की बॉडी तथा क्रोड़ में से हवा निकलने के लिए पर्याप्त मार्ग रखा जाता है | इन वायु मार्गों को इस प्रकार रखा जाता है कि इनमे से हवा नीचे से ऊपर की और निकल सके | एक तेज हवा देने वाले पंखे को इस प्रकार लगाया जाता है की यह ट्रांसफार्मर के वायु मार्गों में नीचे से हवा दें, जिससे हवा ऊपर निकल सके | इस प्रकार के ट्रांसफार्मर में पानी व तेल की आवश्यकता नहीं होती |

Forced air cooled transformer
itiale.in

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